tag:blogger.com,1999:blog-46638597980870630542024-02-28T14:32:39.178-08:00काहे को ब्याहे बिदेस....neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comBlogger67125tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-80278935120026174202020-05-08T00:01:00.001-07:002020-05-08T23:30:05.353-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div>
<b> <span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;">फुर्सतों की कारसाज़ी </span></b><b><br /></b></div>
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQJpPLOOXY-RBLi0sSw0b28LVxj_cGmC8EUK2ZUaD_01BZTHG61Is4GdOyAybQoi44b5BnPLbWKi9RVsCdWg2U3XXlwYx1Azo57EoiQDn6t_a_vMfhDO68KCwOD4RkQ2qiQbN1dkz-c18/s1600/IMG_8927+%25281%2529.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><b></b><span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1200" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQJpPLOOXY-RBLi0sSw0b28LVxj_cGmC8EUK2ZUaD_01BZTHG61Is4GdOyAybQoi44b5BnPLbWKi9RVsCdWg2U3XXlwYx1Azo57EoiQDn6t_a_vMfhDO68KCwOD4RkQ2qiQbN1dkz-c18/s320/IMG_8927+%25281%2529.JPG" width="240" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif;">फोटो- मार्च 2020,देहरादून </span></td></tr>
</tbody></table>
<div>
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif;">फ़ुरसतें भी अलग-अलग किस्म की होती हैं घर में फ़ुरसतें ऐसे कामों से आँखे चुराती घूमती हैं जो कई महीनो से टू डू लिस्ट में आँखें फाड़ें घूर रहे हैं दिन भर फ़ुरसतें किसी न किसी उधेड़बुन में लगी रहती हैं आने वालों घंटे में किसकी मिस्ड काल का जवाब देना है, फ़्रिज में रखा कौनसा सामान खत्म करना है वाशिंग मशीन आज लगाऊं की कल, पता नहीं कल मौसम कैसा हो? बिस्तर पिछली बार कब धुले थे? गैस हुड पर चकनाई और धूल आज साफ़ की जाए या कल, बालों में तेल लगाना था आज फुर्सत नहीं अगली बार बाल धोने से पहले जरूर लगाना है। </span></div>
<div>
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif;"></span><br /></div>
<div>
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> चाहते हुए भी टी वी के सामने से उठने नहीं देंगी अपना कीमती समय फुर्सतों को परोसना ही पड़ता है वे जरा मेहरबान हुई तो खिड़की से भीतर आई धुप की गरमाई ओढ़ने की इजाजत दे देंगी और ज्यादा मेहरबान हुई तो दोपहर को थोड़ी देर अलसाने की भी, दोस्त की भेजी कविता बिना रुकावट पढ़ने का भी जुगाड़ कर देंगी। लेकिन फिर भी निर्दयी तो बहुत हैं जब भी कुछ लिखने का मन होगा तभी याद दिलवा देंगी चाय या खाने का समय और मेरा कॉलर पकड़ किचन में। इसके साथ-साथ दिन में दी गई छूट की कीमत रात में अपनी बात मनवा कर वसूल लेंगी। बस एक ही बात तुम बहुत थक गई हो पढ़ना लिखना छोडो बत्ती बुझाओ और सो जाओ, इसकी बात नहीं मानो तो कभी कंधे तो कभी बाजू, कभी एड़ी तो कभी कमर के दर्द का रूप धारण कर बत्ती बुझा कर ही दम लेंगी। दिन के सबसे जरुरी काम के लिए वो मेरी मुट्ठी से रोज रेत की तरह फिसल जाती है मेरे ही घर में मेरे साथ बड़ी निर्ममता से पेश आती हैं जबकि इनके लिए मैं बरसों से तरसती आई हूँ। </span></div>
<div>
</div>
<div>
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif;">यही फ़ुरसतें जो परदेस में इतना कहर ढाती है देहरादून में कोमलता से पेश आती है। शायद पापा-माँ से डरती हैं. घर के कामों की फेहरिस्त लिए मेरे ऊपर टंगी नहीं घूमती, दूध- सब्ज़ी-फल घर में है या नहीं यह चिंता लिए मेरे पास नहीं आती, उलटे मुझे समझाती हैं क्या हुआ जो पिछले महीने होने वाले काम अभी तक नहीं हुए। कौनसा तीर मार लेती उन्हें समय पर करके। यहाँ तो फुर्सतों के रंग और तेंवर ही अलग है इन्हे किसी बात की जल्दी नहीं। मुझे जरूरी और गैर जरूरी कामो से मुक्त रखती है. पापा ममी के साथ लगी रहती हैं गेहुओं को नहला कर धुप में सुखाती हैं, खरबूजे की बीज निकालती हैं, दालों को इस डिब्बे से निकाल दूसरे डिब्बों में भर्ती है, गाय की रोटी निकालती है, घर में आई मेड को चाय नाश्ता खिलाती हैं। हथेलियों से रुई बट-बट के बत्तियों के ढेर लगाती हैं, स्वेटर उधेड़ उन के गोले बना, अँगुलियों में सलाइयां पीरो उसी उन के स्वेटर बुनती हैं. फल काटते हुए संतरे का छिलका ही नहीं उसकी फांकों की झिल्ली भी उतारती है चुलाई भून उसके लड्डू बनाती हैं, रात को जब मैं पढ़ना लिखना सिहराने रख ममी के साथ उनके सीरियल देखते हुए अपनी फुर्सत की बलि चढाती हूँ बिना शिकायत सुबह की अंगड़ाई संग कोहनियों में चटकती हैं। </span></div>
</div>
<b></b><i></i><u></u><sub></sub><sup></sup><strike></strike><span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif;"></span><br />
<span style="font-size: x-small;"></span><span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "helvetica" , sans-serif;"></span><br /></div>
neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-37963509732547925692017-08-31T15:33:00.000-07:002017-08-31T15:33:38.776-07:00सभ्य और कुलीन पुरुषों ने उसे ऊँचे दर्जे की वेश्या कहा, इंटेलिजेंट औरतों ने बिम्बों, मोटे दिमाग की आवारा! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHzuVqzhisgRMjrBTpE7BqTqOatkMzNkXBRC2Pm8y00iLDvOsTNZiKYyCt9PdXKv8zbXLhlv0k7K-Iyu6vlg0eDpLdoM6qcMbQy6M6VArHuhhlIb614gzKoVGs8QXuu6CJGbT4Urz5_Z0/s1600/princess-d-t.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="492" data-original-width="820" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHzuVqzhisgRMjrBTpE7BqTqOatkMzNkXBRC2Pm8y00iLDvOsTNZiKYyCt9PdXKv8zbXLhlv0k7K-Iyu6vlg0eDpLdoM6qcMbQy6M6VArHuhhlIb614gzKoVGs8QXuu6CJGbT4Urz5_Z0/s320/princess-d-t.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<span lang="HI" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: justify;">वो लम्बी</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: justify;">, <span lang="HI">इकहरे बदन की बेहद खूबसूरत शोख लड़की</span>, <span lang="HI">अमीर परिवार में पैदा हुई थी</span>.<span lang="HI"> उसने दरवाज़े</span> <span lang="HI">की</span> <span lang="HI">आड़ में पिता</span> <span lang="HI">का</span> <span lang="HI">हाथ</span> <span lang="HI">माँ के गाल पर</span> <span lang="HI">पड़ता
सुना और देखा था.</span> <span lang="HI">जब वह छोटी बच्ची थी उसके माता-पिता
का डायवोर्स हो गया. उसके भीतर प्यार का कोना खाली रह गया. जब वह बड़ी हुई</span> <span lang="HI">बाहर से बहुत आकर्षक और फैशनेबल लेकिन भीतर से साधारण थी. वो यूनिवर्सिटी
नहीं गई. प्यार देने और प्यार पाने के लिए उसने छोटे बच्चों की नैनी बनना पसंद
किया</span>, <span lang="HI">एक दिन</span> <span lang="HI">उसके लिए राजकुमार
का रिश्ता आया</span>, <span lang="HI">उस दिन से वो प्यार के सपने देखने लगी. राजकुमार
का परिवार बड़ा था जहाँ राजकुमार की माँ रानी थी और विश्व में रानी की बहुत ख्याति
और सुन्दर छवि थी उसने सुन रखा था राजकुमार का परिवार दयालु है वे बेघर लोगों</span>,
<span lang="HI">विकलांग और बूढ़े लोंगों की संस्थाओं से जुड़े हैं वे अपने देश के लिए
ही नहीं विश्व के नागरिकों की भलाई के लिए समर्पित हैं. जिस दिन उसकी शादी हुई
दुनिया के अखबारों में उसकी फोटो आई</span>, <span lang="HI">उसे दुनिया की सबसे
खूबसूरत दुल्हन का खिताब मिला. अपने पति से उसने बहुत प्यार किया और वह दो बेटों
की माँ बनी. </span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="color: #222222;"><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span></span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">राजकुमारी का पति अक्सर अपने कर्तव्यों पूरा करने के लिए
दूर रहता और जब लौटता तो भी उसके पास न होकर किसी और के पास होता उसे पति के तन से
किसी और की खुशबू आने लगी उसने पता लगाया तो असलियत मालूम हुई. राजकुमारी</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">शिकायत लिए </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">रानी के
पास गई रानी ने कहा उसे राजकुमार से कोई उम्मीद नहीं, मुझे नहीं मालूम मैं क्या
सहयता करूँ.</span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">वो राजकुमार के पास गई उसने कहा राजघराने
में दूसरी औरत से सम्बन्ध न रखने वाला मैं पहला राजकुमार नहीं बनना चाहता. वह उस
औरत के पास गई जो उसके पति की प्रेमिका थी. उसने कहा तुम्हारे ऊपर दुनिया के आदमी
फ़िदा हैं तुम्हारे</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">दो खूबसूरत बच्चे</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">हैं और
क्या चाहिए तुम्हें</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">? </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">राजकुमारी ने कहा मुझे मेरा
पति चाहिए।</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">धीरे-धीरे उसे विश्वास हो
गया राजमहल बहुत सुन्दर है पर उसमें रहने वाले</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">लोग
गूंगे-बहरे और अंधे हैं उसने खाना</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">–</span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">पीना छोड़
दिया</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">, </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">वो बहुत उदास रहने लगी</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">,</span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> उसने खुदकुशी की नाकामयाब
कोशिशें की.</span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">राजमहल के</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">डाक्टर
उसे ख़ुशी की गोलियां देना चाहते थे, उन्हें</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">रात में नींद
नहीं आती थी कहीं राजकुमारी</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">किसी पर
चाक़ू न</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">चला दे. राजमहल की बेरुख़ी</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">और</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span lang="HI" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">पति की
उपेक्षा ने उसके भीतर प्यार का कोना पहले से भी ज्यादा गहरा कर दिया.</span><span style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="color: #222222;">अपने दुखों को अपने संरक्षक के अलावा किसी से बाँट नहीं
पाती. संरक्षक को राजकुमारी से सहानुभूति थी. उसने राजकुमारी को रोने के लिए कन्धा
दिया. एक हादसे में संरक्षक अपनी जान खो बैठा. राजकुमारी के दिल ने संरक्षक की मौत
को हादसा मानने से इनकार कर दिया.</span><span style="color: #222222;"> <span lang="HI">इस बीच राजकुमार से उसका
तलाक हुआ और राजमहल ने राजकुमारी को उसके खिताब से वंचित कर दिया. राजकुमारी बीमार
रहने लगी. वह जो भी खाती उसे नहीं पचता</span> <span lang="HI">और सबसे बड़ी
बीमारी थी उसका अकेलापन, राजमहल और पति का रिजेक्शन.</span> <span lang="HI">राजकुमारी
के प्यार का कोना खतरनाक लेवल तक नीचे हो चला था.</span></span><span style="color: #222222;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="color: #222222;">प्यार का कोना भरने के लिए वह</span><span style="color: #222222;"> <span lang="HI">अस्पताल
में एड्स पीड़ितों से</span> <span lang="HI">हाथ मिलाती</span>, <span lang="HI">उनके
दुःख-दर्द सुनती. गरीब देशों में जाकर भूखे-नंगे बच्चों को अपनी गोद में बैठा कर
प्यार देती. बेघर लोगों के अड्डों पर जाती।</span> <span lang="HI">केंसर
चेरिटी के डिनर पर मुख्य अतिथि के रूप में उनके दर्द बांटती. उसका आत्मविश्वास और
ख्याति दोनों आसमान छूने लगे.</span> <span lang="HI">मीडिया उसका दीवाना गया.
वो जहाँ जाती</span>, <span lang="HI">वे उसका पीछा करते. उसकी दया</span></span><span style="color: #222222;">, </span><span lang="HI" style="color: #222222;">उदारता</span><span style="color: #222222;">, <span lang="HI">संवेदनशीलता
और मानवता ने राजमहल की परम्पराओं को चुनौती दे डाली. उसने विश्व के कोने-कोने में
लोगों के दिल में</span> <span lang="HI">जगह बना ली.</span> <span lang="HI">राजकुमारी के व्यक्तित्व</span> <span lang="HI">और विशिष्टता</span> <span lang="HI">के समक्ष राजमहल का</span> <span lang="HI">जादू फीका पड़ने लगा.
राजकुमारी के प्रति</span> <span lang="HI">जनता का सम्मोहन देख</span> <span lang="HI">राजकुमार और राजमहल के लोग</span> <span lang="HI">हतबुद्ध</span> <span lang="HI">और चिड़चिड़ा गए.</span> <span lang="HI">वो उसकी तरह मशहूर</span> <span lang="HI">क्यों नहीं हो सकते</span>? <span lang="HI">अपनी कमियों का कारण वो
राजकुमारी को मानने लगे.</span> </span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span style="color: #222222;">
</span><span style="color: #222222;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="color: #222222;">प्यार का</span><span style="color: #222222;"> <span lang="HI">खाली कोना</span> <span lang="HI">भरने
के लिए जिस पुरुष ने भी उसकी परवाह की वह उसकी हो गई. मीडिया, दुनिया</span>, <span lang="HI">राजमहल और सत्ता के डर-दबाव के कारण पुरुष पीछे हट जाते और उनके रिश्ते को
कोई अंजाम नहीं मिलता. ऐसे ही एक दिन एक नए रिश्ते की शुरुआत ने</span>, <span lang="HI">प्यार का कोना भरने की चाह ने और मीडिया के दीवानेपन ने उसकी जान ले ली.
राजकुमारी की उम्र छतीस वर्ष</span> <span lang="HI">की थी और उसके दो बेटे
पन्द्रह और बारह वर्ष के थे. माँ की मौत से पहले उनके पिता ने</span> <span lang="HI">हमेशा उनसे यही कहा उनकी मां जैसी</span> <span lang="HI">खुदगर्ज़ औरत
दुनिया में नहीं मिलेगी.</span> <span lang="HI">सभ्य और कुलीन पुरुषों ने उसे
ऊँचे दर्जे की वेश्या का दर्जा दिया.</span> <span lang="HI">इंटेलिजेंट औरतों
ने उसे बिम्बों</span>, <span lang="HI">मोटे दिमाग की आवारा</span>, <span lang="HI">अटेंशन
सीकर</span> <span lang="HI">औरत कहा और दुनिया के</span> <span lang="HI">समझदार</span> <span lang="HI">लोगों</span> <span lang="HI">ने उसे फैशन और ख्याति की भूखी राजकुमारी
करार दिया. आम आदमी के दिल में वो उनके सपनो की</span> <span lang="HI">राजकुमारी
बनी</span> <span lang="HI">रही.</span></span><span style="color: #222222;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 0.0001pt; text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span style="color: #222222;"> </span><span style="color: #222222;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="background: white; color: #222222; line-height: 115%;">राजकुमारी
की मौत के बीस वर्ष बाद उसके बेटों ने अपनी जुबान के ताले तोड़े. उन्होंने टेलिविज़न
और अखबार वालों को अपनी माँ के बारे में बताया. उन्होंने कहा वो हमें अक्सर स्कूल
लेने आती थी</span><span style="background: white; color: #222222; line-height: 115%;">, <span lang="HI">उसकी बाहें उन्हें बाहों में भींचने को उतावली रहती. माँ जैसा
गर्मजोश आलिंगन उन्हें किसी से नहीं मिला. वो मीडिया और पब्लिक के सामने उन्हें
आलिंगन देने में कभी नहीं सकुचाई. बेटों के साथ शरारत में माँ ने उन सभी माडल को न्योता
दे डाला जिनके पोस्टर उनकी बेडरूम की दीवारों पर लगे थे. उनकी माँ को प्यार</span>,
<span lang="HI">ख़ुशी और हंसी बिखरने की महारत हासिल थी... उनकी माँ दुनिया की सबसे
खूबसूरत और जिंदादिल माँ थी. बचपन से लेकर मौत तक प्यार से वंचित</span> <span lang="HI">राजकुमारी को राजमहल</span>, <span lang="HI">मीडिया और दुनिया जानने</span>, <span lang="HI">समझने और</span> <span lang="HI">परिभाषित करने में नाकामयाब रहे पर
उसके बेटे नहीं।</span> <span lang="HI">उनके सभी साक्षात्कारों में राजमहल और
पिता का नाम अनुपस्थित था. </span></span></span></div>
</div>
neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-72383316641867903682012-12-16T05:21:00.000-08:002012-12-16T05:28:24.043-08:00अरे बाप रे! बंगाल टाइगर की आँखों में मेरा चेहरा..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEha2Spp1RM8VgVB8b9n0okBsGuP5NuAGo8ZOfmhdPkRW24mc-9XrS5qOJLSheiV_RHxIem66yt8JrngD9zwb0GrJcT-qojTJX1550N0z9hJZA-Roqh3VrUWm6qlGCisXRi33MdyYhYnrHc/s1600/untitled.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEha2Spp1RM8VgVB8b9n0okBsGuP5NuAGo8ZOfmhdPkRW24mc-9XrS5qOJLSheiV_RHxIem66yt8JrngD9zwb0GrJcT-qojTJX1550N0z9hJZA-Roqh3VrUWm6qlGCisXRi33MdyYhYnrHc/s1600/untitled.png" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span> </div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">थियेटर में घुसने से पहले सर पर एडिडास की उलटी केप लगाए टिकट <wbr></wbr>चेक करने वाले लड़के ने जब प्लास्टिक का चश्मा थमाया तो जितनी उदासीनता से उसके हाथों ने थमाया था उतनी उदासीनता से ही उसने हाथ बढ़ा अपनी कोट की जेब में सरका दिया... एक बार को तो जी में आया मना कर दे फिर शायद सफ़ेद चमड़ी के सामने अपने रंग और लिंग की लाज रखने की खातिर हाथ अपने आप ही उठ गया... क्या सोचेगा पाकी पहली बार थिये<wbr></wbr>टर में फिल्म देखने आई हैं... </span><br />
<span style="font-family: Verdana;"></span> </div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">थियेटर पॉपकार्न की खुशबू से <wbr></wbr>खचाखच भरा है और अगले दस मिनट लोगों को आइल में आते -जाते देख और पैर सिकोड़ जगह देने में निकले ... विज्ञापनों के बाद फिल्म शुरू हो होती है .... अरे! तस्वीर हलकी सी आउट आफ फो<wbr></wbr>कस धुंधली सी है कितने दिन से सोच रही हूँ ओपटीशियन के पास हो आऊं अब तो पढने में भी आखों पर जोर पड़ता है... यह फिल्म क्या अब ऐसे ही झेलनी होगी विज्ञापनों के समय तो ठीक थी... अँधेरे में आस-पास, आगे पीछे नज़र घुमाई सभी के कानो पर वह टंगे थे... पर मेरे कान दुखते हैं चश्मा लगाते ही... हाथ गोद में सोते काले कोट की जेब तलाशते हैं और दांत और <wbr></wbr>अँगुलियों प्लास्टिक की थैली की चीर फाड़ पर टूट पड़े ... खुसड़ - फुसड, <wbr></wbr>चर्र -मर्र... सन्नाटे का फायदा उठा कितना चीख रही है पन्नी ... दो चश्मे लगी आँखे पीछे मुड़ कर घूरते हैं उन्हें इग्नोर करते हुए चश्मा अपने कानो पर टांगती हूँ .... आहा! आह! आहा!... जादू!.. चमत्कार! ... आखे फटी और मुह खुला... कुर्सी में धंसा शरीर सीधा हो जाता है... मैं स्क्रीन के भीतर... मुह से हलकी सी चीख निकलने को है समुद्र के लहरें मुझे बहा ले जायेंगी... हाथ बढ़ा<wbr></wbr> चाँद को छू सकती हूँ... अरे बाप रे! बंगाल टाइगर की आँखों में मेरा चेहरा... यह चाक़ू मछली के पेट में नहीं मेरी अंतड़ियों के आर-पार, यह जहाज टूट कर मेरे ऊपर गिरने वाला है, कितनी सुन्दर रात है सितारे मांग भरने खुद ब खुद चले आ रहे हैं, वो पर्स में रखा केला बन्दर को दे दूँ... पाई की पसलियाँ एक, दो, तीन, चार, पांच..., रिचर्ड पारकर पा<wbr></wbr>ई को ही नहीं मुझे भी खा जाएगा चेहरा गोद में डाइव मारता है.. यह समुद्री जीव की बारिश पाई की नंगी <wbr></wbr>छाती से नहीं तड़ातड मेरी गर्दन से टकरा रही है... कितना खूबसूरत है यह आईलेंड और उससे सुंदर यह पेड़ पर बना बिस्<wbr></wbr>तर तमाम उम्र अकेले बैठ कर यहाँ लिखा जा सकता है... </span><br />
<span style="font-family: Verdana;"></span> </div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span> </div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">यह सब उस छोटी बच्ची के फिल्म दे<wbr></wbr>खने के अनुभव जैसा था जो फिल्म में ट्रेन आती देख <wbr></wbr>आँखे बंद कर माँ की गोद में दुबक जाया करती थी... किसी भी फिल्म में चिंघाड़ता हुआ, धुंआ उगलता, <wbr></wbr>दानव की शक्ल जैसा इंजन अपनी और आता देख उसकी चीख निकल जाती थी... फिल्मों के विलेन से उसे बहूत डर लगता था उनके हाथ में चाक़ू और खून देख उसकी कई रातों की नीद भयानक सपने निगल लेते थे... काठमांडू के भारतीय दूतावास में कौनसे इतवार को हिंदी फिल्<wbr></wbr>म दिखाई जायेगी उसे जब भी स्कू<wbr></wbr>ल में सहेलियां खुश और उत्साहित होकर बताती... वो उदास हो जाया करती उसी शनिवार को उसे सर दर्द, पेट दर्द, उलटी या बुखार हो जाया करता था... </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बच्ची थियेटर से बाहर निकली है सभी लोग प्लास्टिक का चश्मा एक नीले ड्रम जैसे ढक्कन लगे बक्से में डाल रहे हैं। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"मैं यह चश्मा अपने पर्स में रख लूँ ?..." बच्ची बड़ी मासूमियत से पूछती है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> "तुम्हारा दिमाग सही है इस दो कोडी के चश्मे का क्या करोगी ... थ्री डी टी वी खरीदने की बात करो तो फ़िज़ूल खर्ची की दुहाई, सिंपल लिविंग का झंडा लिए, यह उपभोक्तावाद को बढ़ावा और जेब खाली करने की साजिशें हैं के नारे लगाती हो ..." वो उसी का वार उसी पर फेंक झुंझलाता है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> "हमने टिकेट के साथ चश्मे के भी पैसे दिए होंगे ..." बच्ची अभी भी अड़ी हुई है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> "तो क्या हुआ? घर वैसे ही फ़ालतू के जंक से भरा है ..." वो बच्ची को अकेला छोड़ थियेटर से निकली भीड़ में गायब हो जाता है ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> उदास हाथ चश्मे के साथ छोटी बच्ची को भी धीरे से नीले ड्रम में सरका देते हैं... </span><br />
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कोट की चेब में चश्मे की पन्नी को अँगुलियों से मसलते हुए लम्बे - लम्बे कदम लेती हुई एक औरत एस्कुलेटर से उतर, शीशे के दरवाज़े को बिना जेब से हाथ निकाले अपने शरीर के भार से खोलती हुई बर्फीली हवा और अँधेरे को चीरते हुए पहचानी छाया को ढूंढते हुए आगे बढ़ती है ...</span> </div>
</div>
neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-10408037741788023982012-08-31T04:15:00.000-07:002012-08-31T04:22:01.175-07:00तुझे शौक है हमेशा जवाँ रहने का... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVmkOUKEOM3Kj4PUwmwj6mwsPbSgFJSMZPNkQnKZlSu1x3ltAeVwizsIIYt9mKK9MKnPyFjDS-K5AaNds1rOJGM6w7QvvJTjZGjIpeKdnSFUMGCktR7izZSAeXxATje3AjmraTC3YqI0U/s1600/SKYsj.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVmkOUKEOM3Kj4PUwmwj6mwsPbSgFJSMZPNkQnKZlSu1x3ltAeVwizsIIYt9mKK9MKnPyFjDS-K5AaNds1rOJGM6w7QvvJTjZGjIpeKdnSFUMGCktR7izZSAeXxATje3AjmraTC3YqI0U/s320/SKYsj.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
उम्मीद चली आती है दरारों में उग आए पीपल की तरह और बैठ जाती आँखों में धूनी रमा कर .. उम्मीद आठ से अस्सी बरस की आँखों में सप्तऋषि तारों की तरह टिमटिमाती है. न कोई भेद, न कोई पक्षपात, न फर्क..उम्मीद हर किसी की है और हर किसी को..उम्मीद के तिनके पर टिका हुआ जंगल होता है और दूज के कुतरे हुए चांद पर सलमा-सितारों के साथ पूरा अंतरिक्ष.. प्यास की उम्मीद में वक्त और प्रदूषण से पहले की नदी है.. उम्मीद की हथेली पर सपने अपनी पगडंडी बनाते हैं. वो समय कितना खूबसूरत होता है जिस रात उम्मीद यकीन दिला देती है ... प्यार पूर्णिमा के चाँद जैसा साबुत वर्ताकार सिर्फ मेरा और अगले दिन बिना पूछे वो संशयों को न्यौता देगी...देखते -देखते उन्हे चाँद की फांक काट -काट कर खिला देगी....और सामने रख देगी चुक गए प्यार की खाली तश्तरी -- अमावस्या की रात.... </div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
जिंदगी के पाँव जब भी पथरीली पगडण्डी से ज़ख्मी हुए ... उम्मीद मखमली घास का दिलासा लेकर आई जैसे हल्के-से फाहा रख दिया हो खूंरेज चोट पर. जिंदगी जब भी मायूस होकर अंधेरों में गुमनाम होने लगी ...उम्मीद खिड़की के शीशे से छनी धूप लिए हाथ सहलाती ... जब भी जिंदगी पतझड़ के संग डोलती और बसंत से कटने लगती... उम्मीद रास्तों में फूलों की कतार और तितलियों के झुण्ड बुलवा भेजती ... जब जिंदगी दोस्तों को कोसने और उनसे दूर रहने की साजिशें करती उम्मीद इनबाक्स में जादू की तरह आकर होठों पर खिलने लगती... जीवन में जब भी उम्मीद आती हैं जीवन की गाड़ी नीले पंछी की उड़ान सी जाती है जो दिन भर सारा आकाश अपनी कमर पर उठाये उड़ता है उम्मीद जब चली जाती है भाग्य, करम, हताशा, विवषता सगी बहनों से भी सगी हो जाती हैं ..दिल से भी ज्यादा नाज़ुक और स्वाभिमानी है उम्मीद, अकेले ही टूटती और जीती- मरती है अपने टूटने और बिखरने का स्वयम के अलावा वो किसी को दोष नहीं देती उम्मीद ने शौक भी तो कैसा पाला, हमेशा जवान रहने का, वो उन्ही आँखों में, उसी रंग- रूप, उन्ही गुण-दोष के साथ बार - बार जन्म लेने से नहीं थकती। </div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
रिश्तों की घनिष्टता के बीच उम्मीद सुख के धागे से आखों में सपनों के जाल बुनती...जिस रोज इंतज़ार के समक्ष वो अपने घुटने टेक देती है और वो उसकी सारी नमी सोख यूकिलिप्टस के पेड़ की तरह बढ़ता नज़र आता है ... जिस रोज जीर्ण-शीर्ण उम्मीद उस पेड़ पर लटक कर आत्महत्या करती है उस दिन की तो पूछो मत...एक चलती- फिरती जीवित आत्मा बर्फ की सिल्ली पर रखी लाश से भी बदतर ... फिर भी उम्मीद तुझ में कितनी ताकत है यह किसी गुमशुदा के घरवालों से पूछो... तुझ में ताकत है युद्ध और विनाश के बाद शान्ति और अमन की, खून के सफ़ेद कतरों को लाल करने की, वेंटिलेटर पर मुर्दा देह में प्राण फूंकने की, बोतल में बंद प्रेम पत्र को समुद्र के रास्ते सही पते पर पंहुचाने की, माता -पिता के खाली घर में परदेस से लौटकर खिलखिलाहटों से भर जाने की , नितांत अकेले पल बांटने के लिए ज़मी के किसी कोने में दो कानों के होने की, गरीब माता-पिता के सपनों को औलाद की जिंदगी में हकीकत में बदलने की, कांच के टुकड़े हुए दिलों में प्यार के बीज बचाए रखने की, सर्दी में सूख गई तुलसी के बरसात में फिर से हरी होने की... उम्मीद के कन्धों पर सर टिका आजीवन किसी के इंतज़ार में गुज़ार देने की...</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
जो उम्मीदें पूरी हुई इनका लेखा - जोखा जिन्दगी कहीं रख कर अक्सर भूल गई... जो पूरी नहीं होती उन्हें भूलने नहीं देती... ना आया कर जिंदगी में उम्मीद.. कितना गहरा गड्ढा दिल पर खुद जाता है जिस रोज़ तू बिना बताये चली जाती है ...अँधेरा...अँधेरा...अँधेरा... फिर किसी रोज मैं आत्मा के दरवाजे खोल, बाहर निकल दूब पर नंगे पाँव रखती हूं...अनायास ही नज़र आकाश की ओर उठ जाती है फिर से उम्मीद पुतलियों में लौट कर, धमनियों में कुलमुलाती है और कंधे फड़फड़ाने लगते है उन पर पिछली बार के घावों का एक भी निशाँ मौजूद नहीं होता...</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: xx-small;">चित्र - गूगल सर्च इंजन से</span> </div>
</div>
neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-62872206979140615372012-06-14T19:27:00.001-07:002012-06-14T19:27:36.040-07:00सौ साल बाद भी वो ऐसी ही होगी....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
वो फोन पर मेरा नाम तीन बार लेकर इतने जोर से चिल्लाई थी कि रसोई में काम करते हाथों को भी भनक लग गई...... बिना कुछः पूछे और सुने बस बोलती गई... मुझे मालुम था तुम जरूर फोन करोगी, मेरे शहर आओ और मुझसे मिले बिना भले कैसे जा सकती थी ...मैं सभी से पूछ रही थी तुम्हारा अता -पता और ऍफ़ बी ने बैचेन कर दिया जब पता चला तुम शहर में हो... अच्छा तो बताओ कहाँ हो और मैं अभी पहुँचती हूं... ज़रा फोन पकड़ो अपने घर का पता और रास्ता बताओ...मैंने रसोई में काम करते हाथों को फोन पकड़ाते हुए कहा... </div>
<div style="text-align: justify;">
उसकी आवाज़ की उर्जा कन्टेजीयस थी कई सौ केलोरी की एनर्जी शरीर के भीतर भर गई , बालकनी में लगे बोगनविला का रंग और सुर्ख हो गया, नीचे वो स्विमिंग पूल में सूरज की किरणों की झिलमिल जैसे पानी नहीं हीरों का तालाब है..उसके आने कि खबर पंखे की आवाज़ में संगीत की भाँती कमरे की दीवारों से टकरा कर गूंजती है ... </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
ऐसे होने चाहिए चाहने वाले कि नाम लो और मौजूद हो जाएँ.. ना आने की मजबूरियों और व्यस्त दिन का ब्यौरा दिए बिना ... वैसे यह है कौन जो इतनी जोर-जोर से तुम्हारा नाम लेकर फोन पर चिल्ला रही थी.?.. फोन बंद करते हुए हाथो ने पूछा आती होगी मिल लेना ...शब्दों की खिलाड़ी- सचिन तेंदुलकर की टक्कर की, जीवन को बिस्कुट की तरह शब्दों में डुबो कुतर -कुतर खाने वाली , एपाइनटमेंट लेटर और रेसिग्नेशन रेटर साथ लेकर घूमने वाली एक चलती फिरती 3D फिल्म की स्क्रिप्ट है ... संक्षिप्त सा परिचय इस बात के लिए काफी था उसके साथ मुझे अकेला छोड़ दिया जाए ... </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उसने बीस मिनट कहा था और मैं पंद्रह मिनट बाद नीचे उतरती हूं नज़र आती है स्कूटर पर एक छोटी सी लड़की, हलके नीले ढीले -ढाले, घुटने तक लम्बे कुरते और नीली जींस में, पढ़ाकू बच्चों वाला काले फ्रेम का मोटा चश्मा लगाए...मुझ पर नज़र पड़ते ही उसका चेहरा सूरजमुखी सा खिलता है और धूप का रंग फीका नज़र आता है.. जिस घर के रास्ते मुझे खुद नहीं मालुम, इस बड़ी इमारत में बिना खोये उसे भीतर ले आती हूं....</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
वो बोलती जा रही है लगातार...वो उन सबकी बात करती है, जिनको वो पढ़ती है, जो उसको पढ़ते हैं जिनसे वो प्रभावित है, जिनसे वो मिलना चाहती है, जिनके शब्दों से प्यार करती है, उनसे वो अपनी उदासी और ख़ुशी बाँट सकती है जो उसके जीवन का अंग बन चके है.. वो अपने बारे में बात करती है घर के एक कमरे में बिस्तर को यदि अपनी वार्डरोब बना लो कितनी सुविधा होती है कपड़े ढूँढने में... घर संभालना और खाना बनाना हम नहीं सीख पाए... कोशिश कर रहे हैं... हमारा प्राईम टाइम है बालों को शेम्पू करते हुए ... लिखने के बेहतर से बेहतर ख्याल आते है बाल धोते हुए ...घर का ताला लगाते समय दिमाग में कुछः कोंधा...तो बस हमे लेपटाप के सिवा कुछः प्यारा नहीं ... गुस्सा कम आता है हमे... पर जब आया कई मोबाइल तोड़े पर अब समझदार हो गए हैं मोबाइल भी तो महगें हो गए हैं उस पर आई फोन ... इसलिय कोने में वाशिंग बास्केट रख ली है बेचारा फोन दिवार ओर फर्श की मार से बच जाए... पता नहीं क्यों कुछः लोग जो उससे पहली बार मिलते हैं सबसे पहले यही पूछते हैं क्या तुम सिगरेट पीती हो? </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
वो फोन घुमाती है जानना चाहोगे किस के पास बैठी हूं... बात करोगे? शायद फोन के दूसरी तरफ वाली आवाज़ मेरी असहजता को भांप लेती है और ना कर देती है फोन बंद करते हुए उसकी मुस्कराहट में छुपी हेरानगी को नज़रंदाज़ करते हुए मैं राहत की सांस लेती हूँ ... </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अपनी गर्दन घुमाए, उसके साथ राईट एंगल पर बैठी... हूँ! ...हाँ!...अच्छा!...के झांसे में फंसाए मैं उसे सुनती कम और उसके बारे में सोचती ज्यादा हूं...मेरा पुराना घिसा हुआ दीमाग अपने ढर्रे पर लगा है और उसके आने वाले पलों में झाँकने की कोशिश कर रहा है उसकी सनसनीखेज़, खूबसूरत बातों पर कम, चश्मे के पीछे पुतलियों में नाचती जिंदगी की अनोखी मुद्राओं पर फोकस करने में लगा है, मैं अभी तक बलि पर चढ़ने वाली बकरियों से वाकिफ रही हूँ और आज यह कहाँ से जंगल की शेरनी मेट्रो सिटी में... वो किस कदर जीवित है वो कितनी स्वतंत्र है, उन्मुख है निडर है... उसके भीतर की लेखिका और लड़की पर अभी पत्नी और गृहणी ने अपना साम्राज्य स्थापित नहीं किया है दफ्तर और घर के काम के तनाव ने जिसके बालों की जड़ों पर धावा नहीं बोला है, किचन की वर्क टाप और घर के फर्नीचर ने उसके हाथ-पाँव को अभी कठपुतली नहीं बनाया है, नापी बदलने और दूध नापने जैसे सुकर्मो से जो अभी अछूती है प्यार को कितनी लापरवाही से अपने आसपास खरपतवार की तरह उगा रखा है और दुनिया को बांटती उसे रोबिन हुड की तरह है .. एक समय में कई लोगों को प्यार किया जा सकता है यह तो मालुम है पर उन्हे खुश भी रखा जा सकता है यह रहस्य बस उसी को मालुम है ... एक समय में इतने लोगों को इतनी शिद्दत से प्यार करना और फिर जिसके साथ जीवन भर का नाता है उसे सूरज बना उसकी प्रथ्वी बने रहना, यह सब इतनी सहजता और सोम्यता से करना कि संवेदनाएं और शब्दों के लिए नए रास्ते मुकम्मल होते रहें और अजनबी से इतनी इमानदारी की इमानदारी खुद से लज्जित हो जाए...ऐसी बात नहीं अँधेरा उसकी जिंदगी में नहीं आता पर अंधेरों में रौशनी चिराग कैसे जलाते हैं यह कला उसने पेंटेंट कर ली है कई अन्घेरों को एक साथ घिसो कि वो बिजली घर बन जाए ...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
क्या वह दस वर्ष बाद भी ऐसी होगी? मैं अपने आप से बार-बार यही सवाल करती हूं अनुभव कहता है नहीं और मेरी अंतरात्मा बार - बार क्योँ नहीं!...तीन घंटे बिना टी ब्रेक के उसे सुनने के बाद मुझे यकीन आ ही गया वो सौ साल बाद भी ऐसी ही होगी!! </div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
(<strong><em>उससे क्षमा मांगते हुए जिसकी निजी मुलाक़ात की गुफ्तगू को इजाज़त लिए बिना अपनी बैठक की दिवार पर चिपका</em></strong> <strong><em>दिया ...</em></strong> )</div>
</div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-64979505272366779382012-03-20T14:23:00.000-07:002013-03-07T04:59:00.068-08:00जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfBFndKgBHwkBf6412ped1iBtoLy7T8LP131gia_fro2RVXjFUXKDpKOwUwZTMV6O0ozl7TSiR27mZKUVl8ruaLVzvvMVOkUPfbceLV-5LOfNuO9sVuGObJTcZjlHZAR3oCb0Kq6lRLBY/s1600/July+11+148.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfBFndKgBHwkBf6412ped1iBtoLy7T8LP131gia_fro2RVXjFUXKDpKOwUwZTMV6O0ozl7TSiR27mZKUVl8ruaLVzvvMVOkUPfbceLV-5LOfNuO9sVuGObJTcZjlHZAR3oCb0Kq6lRLBY/s320/July+11+148.jpg" width="320" /></a></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><strong>सुख</strong> हाथों की पहुँच से दूर नहीं हुआ करता था... दाल में नमक की तरह सुख का स्वाद दिन में कम से कम एक- दो बार तो आ ही जाता... जिंदगी के रंगों से भरपूर .. सुख मामूली चीज़ों में गैर मामूली चमत्कार की तरह मौजूद होता ... लाल रीफिल का पेन ना हुआ अलादीन का चिराग हुआ... छोटे भाई ने यदि ले लिया उसकी जान सूखने लगती ... यह मेरी सारी स्याही खर्च कर देगा... वो बची कापियां भरती रहती फिर पन्नो पर लाल टिक लगाने का सुख, नंबर देने का सुख, अपना नाम लाल स्याही में लिखने का सुख... आज बुधवार है साढ़े आठ हो गए हैं... दिल में धुकधुकी... चित्रहार का समय हुआ जाता है... मेरे साथ चल ना पड़ोस में... अकेले शर्म आती है... वो लाल पेन दो मुझे अपना..मरते दिल से एक सुख के बदले दुसरा उसके हवाले .... सरकारी मकान के छोटे से कमरे में ठन्डे फर्श पर बैठ कर दूरदर्शन ज़न्नत की सैर करा देता ... फिर स्कूल में चित्रहार पर चर्चा ...ना देखती तो इस सुख से वंचित रह जाती ना... वो मीठा चूरन और आम पापड़ बेचने वाला, बंद गेट पर पाँव उठा भीड़ में उचक कर... चीभ पर रखो और चटकारे लेने का सुख... बाटा के नए जुते आगे से नोक वाले पीछे से डेढ़ इंच एडी वाले, उन पर सजी वेलवेट की छोटी सी एक बो टाई, सुबह पहनने के सुख से लबालब बेहद खुशनुमा रात गुजारने का सुख ...पहली बार तवे पर जले- भुने दुनिया के नक़्शे पापा को खिलाने पर फूल कर गुब्बारा हो जाने का सुख, मां वो रोज बरामदे में खड़ा घूरता है .. इस शिकायत का सुख... जिस दिन वो नहीं दिखता सुख उसे ढूंढता है ... </span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> कालेज के हास्टल में, गैर इजाज़त, सर्दी की रात में हीटर पर चाय बनाने का सुख... तुमने धुयाँ उड़ाने का सुख अभी तक नहीं लिया.. लो आज कोशिश तो करो ...... खों... खों...खों..खों... खिड़कियाँ खोलो...दम घुटता है... वार्डन के आफिस के बाहर पिजन होल में नीले लिफ़ाफ़े में बंद सुख... हर सप्ताह तेरे पापा इतना लम्बे ख़त में क्या लिखते है... आँखों में बल्ब की तरह टिमटिमाता सुख.. मां के ब्लाउज को सेफ्टी पिन से कस पहली बार साड़ी पहनने का सुख ... किसी अनजान का हास्टल के गेट पर आ धमकने, चौकीदार से झूठ बोल, उसकी हसरतों की धज्जियाँ उड़ा, सहेलियों के साथ लोटपोट होने का सुख... कालेज सोशल में शाही खाना खाने के बाद , मजनुओं को चकमा दे चौपट हो जाने का सुख... होली वाले दिन हसीनो को पानी से भरे गढे में मिट्टी की साबुन से नहाते देखने का सुख... जनपथ से कौड़ी के भाव खरीदे डिज़ाईनर कपड़े पहनने का सुख, मेस के बावर्ची से आटे, दाल सब्जी की खस्ता हालत पर नोक- झोंक करने सुख... गर्मियों की छुट्टियों में घर लौटने का सुख...मोहल्ले में मां के साथ देख, जानी -अनजानी आँखों में कोतुहल नाचता देखने का सुख , पड़ोस के घर में लम्बा उंचा मेहमान .... बहनजी देवर कह रहा था... भाभी पड़ोस में जानी -पहचानी अच्छी सुशील - सुंदर लड़की थी आपने कभी जिक्र भी नहीं किया...किसी अनजान का अनजाने में दिया हमेशा याद रहने वाला सुख...लोगों की भीड़ में, परदेसी से मुलाक़ात और उसकी आँखों में रात की नींद खो देने का सुख....उसी पल उसके साथ जिंदगी गुजारने का फैसला लेने का सुख... </span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> नन्ही सी जान को नींद में कुनमुनाते -मुस्कुराते देख सातों धाम घूम आने का सुख, पहली कमाई से उसकी मां के लिए सोने के बुँदे खरीदने का सुख, सड़क पर हवा से तेज़ भागती आत्मनिर्भरता का सुख, तिनका-तिनका जोड़ कर बसाए आशियाने में स्टूल पर विराजमान ताजे फूलों की महक का सुख, उसकी तरक्की पर सारे आर्थिक संकट दूर हो जाने सुख, दाल में खूब सारा घी डाल घर आये भाई को गर्म फुल्का खिलाने का सुख, फोन पर मां की आवाज़ सुन सभी गम भुलाने का सुख, अंगुली पकड़ कर चलने वाली का उसके पैरों पर खड़े हो जाने का सुख... परिंदों का छत पर डबल रोटी के टुकड़े बाँट कर खाते देखने का सुख, मौसम की पहली बर्फ से बने स्नोमेन को धारीदार टोपी पहनाने का सुख, एकांत से लिपट कर खुद को ढूंढ लाने का सुख, चाँद से उतर प्यार का दबे पाँव दिल में दाखिल हो अपना साम्राज्य घोषित करने का सुख, बारिश का खिड़की से धूल साफ़ कर आसमा नजदीक लाने का सुख, खुद को हल्का करने के लिए शब्दों से मिले सहारे का सुख, कच्चे -पक्के शब्दों पर बनवास में धरती के उस छोर से मिली बेशकीमती वाह-वाही का सुख .... </span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> </span></div>
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सुख सिर्फ उस पल का वफादार है जीवन भर का नहीं...वो उम्र के दौर से होकर जिंदगी से गुजर जाएगा ... इन्द्रियों से बुखार की तरह उतर जाएगा है वो दराज में बंद पड़ा किनारों और कोनो से घिस जाएगा...यादों के तहखानो में जंग की तरह खुरदरा हो जाएगा .. मानसून की तरह आकर पतझड़ की तरह झड़ जाएगा... जब कभी लौट कर दस्तक देगा यदि पहले जी लिया होगा तो ज़हन को झंझोरे बिना, आँखों को चुन्धियाये बिना, रगों में दोड़े बिना, होंठों पर सजे बिना, हाथ मिलाये बिना सामने से निकल जाएगा... एक समय आयेगा आँखे सुख को पहचान नहीं पाएंगी और सुख और दुःख की शक्ल एक लगने लगेगी ... मुक्ति का सुख खुली मुठ्ठी में बंद होगा ...सब सुखों के मिट जाने के बाद बस जीवित रहा ... शब्दों के सागर से मोती चुनने का सुख...</span> </div>
</div>
neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-78962761705048852092011-09-16T04:34:00.000-07:002011-09-16T04:34:53.897-07:00उसे तूफ़ान से डर नहीं लगता पर इंसानों से अभी भी लगता है...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgERyzgMbFyk_Rj2TWdIyMHqSHyBtNrjYmlKoPsMCAscRXwnjsmUpLdnhTL2CaFQGRMQj4LQhT-v08-gqFWV7uTM0VO0k_3XPOS5Bwmn6i-qOLwtL06LOuNwS2l5P3zjBlogV8qeW_9KHU/s1600/IMG00274-20110716-1539.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgERyzgMbFyk_Rj2TWdIyMHqSHyBtNrjYmlKoPsMCAscRXwnjsmUpLdnhTL2CaFQGRMQj4LQhT-v08-gqFWV7uTM0VO0k_3XPOS5Bwmn6i-qOLwtL06LOuNwS2l5P3zjBlogV8qeW_9KHU/s320/IMG00274-20110716-1539.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><strong></strong></span> </div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><strong>अखबार,</strong> टी वी, आफिस के कम्पूटर का होम पेज खोलते ही खबर है आज के तूफ़ान की...तूफ़ान का नाम है केटिया! शाम तक यह अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका होगा ऐसा ही कुछः सुना है ... आफिस से लौटते हुए बस स्टाप पर इंतज़ार करते हुए केटिया की चाप सुनी ... हाई स्ट्रीट में दुकानों के ओटोमेटिक डोर खुलते ही ग्राहकों से पहले, पत्तियां और कूड़े दान से उड़ते कचरे की भीड़ भीतर घुस आती, शहर की सड़कों पर चहल -कदमी करती भीड़ हवा को जगह देने के लिए पाँव जमा कर ज़मीन को पकड़ खड़े हो जाते..उनके कपड़े शरीर से अलग होने के लिए एक पल में कई बार आगे-पीछे झूलते झंडे की तरह हवा में लहलहाते ... केटिया तूफ़ान के आने की खबर और सड़कों पर खलबली मचाने से किसी का कोई काम रूका नहीं था ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अरे तुम आज भी सैर को जाओगी?...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"क्यों? "</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"कोई पेड़ गिर गया तुम पर तो "... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अच्छा है गिर जाए तुम्हारा मैदान साफ़..". वो बेपरवाह होकर हूडी की जिप बंद करती है ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"ममी आज भी घुमने जाओगी?" ... उसे जुते पहनते देख टोकती है </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"आज क्यों नहीं?" ..</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"आप हवा में उड़ गई तो?" </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"कितना अच्छा होगा न रसोई में चमचा हिलाने की जगह आकाश में हाथ हिलाउंगी..." </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आँखे फाड़े चेहरे से निकले "बी केयरफुल" पर मुस्कान फेंक वह धड़ाम से दरवाज़ा बंद करती है उन्हे कैसे समझाए ...यह ढाई मील की सैर अपने आप से जुड़ने, बात करने, खोजने, संभलने के लिए करती है ... प्रक्रति, प्यार और अपनेआप से मिलने का अपाइंटमेंट है उसका ....सड़क, पेड़, मैदान, घरों की कतारें, गोल्फ कोर्स, पब के बाहर पड़ी बेंच, वर्तमान, भविष्य, अतीत सभी उसका इंतज़ार करते हैं और वह जिसका फोटो चिपका है रोज उसे देखते ही लकड़ी की फेंस के पास आकर खड़ा हो जाता है उसके वियोग में बेचारा चेहरे से कितना उदास दिखता है, पता नहीं किस दिन लकड़ी की फेंस फांद, रास्ता रोक, पीठ पर बिठा, हवा में उड़ा ले जाने की हिम्मत जुटा पायेगा?... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana;"></span> </div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> आज पेड़ों की आँखों में केटिया का डर नाच रहा है आकाश की और मुह किये, पेंडुलम की तरह झूल रहे हैं हमारी जड़ों को और मजबूती से पकड़ लो, धरती से रहम की भीख मांग रहे हैं, उसके अलावा और कौन समझ सकता है अपनी जड़ों से अलग होने का दर्द..पत्तियों की हालत तो देखो कैसे तड़प कर फड़-फड़ करती हैं केटिया उन्हे महीनो पहले पेड़ से अलग करने पर जो आमदा है .. सड़क और फूटपाथ पर भटकती हुई हवा के वेग के साथ वो हज़ारों की तादात में उसके पैरों से लिपटती है... पेड़ों से बारिश की तरह गिरती है.... आज से पहले हवा की सायं- सायं इतने ऊँचे स्वर में कभी नहीं बोली ... यह सायं -सायं किसी को फोन पर सुनाई जाए ...पर किसको? जिनकी धडकनों में सायं-सायं ऑक्सीजन फूंक सकती हो... वो सब बहुत दूर हैं और वहां आधी रात होगी वो सब सो रहे होंगे... जिनके सिर्फ कानों में शोर की तरह गूंजेगी उन्हे सुनवाने का कोई फायदा नहीं वो सिर्फ उसे खतरों की लिस्ट गिनवायेंगे .... आज तो कहीं कोई कुत्ते घुमाने वाले का भी नामोनिशाँ नहीं ....... तभी उसकी नज़र सामने धीरे - धीरे अलसाती चाल चलते दो यूवकों की पीठ पर पड़ती है जिनके कन्धों पर भारी बेग हैं ...एकाएक उसे औरत और शाम गहरी होने का अहसास होता है ...कहीं वह कार्ड पर चिपकी अपनी फोटो दिखा, पिछले जन्म में मुजरिम होने का परिचय देते हुए, समाज में स्थापित होने की कोशिश में, उसकी मदद मांगेगे ? .. बैग से सामान निकाल कर खरीदने को कहेंगे ...जब पास से गुजरेगी तो उन्हे दिख ही जायेंगे उसके हाथ खाली हैं ...जब भी ऐसे युवा ने घर का दरवाज़ा खटखटाया है कोई तो उन्हे समाज में बसने, अपने पैरों पर खड़ा होने का मौक़ा दे... इस दलील का जवाब अधिकतर उन्हे नोट पकड़ा गैर जरूरी सामान खरीदने से दिया है ....भले ही घर वालों ने उस पर सड़कों पर घुमने वालों की ड्रग हेबिट को प्रोत्सहान देने की तोहमत लगाई हो ...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">यह रास्ते बरसों से उसके भीतर -बाहर का सब जानते है शांत, सुनसान, सकून और मौसम के जादू से भरे उसे अपनी ओर खींचते हैं छ बजते ही इनसे मिलने के लिए वो बैचैन हो जाती है यहाँ चलते हुए कभी असुरक्षित महसूस नहीं किया ....दो पीठ और उसके बीच की दूरी कम होती जा रही है...इन नजदीकियों के बीच उनकी चाल- ढाल और आपस में बात करने के अंदाज़ ने उसकी धडकने तेज़ कर दी है जब वह तेज़ कदमो से पास से गुजरी तो उनमे से एक ने सामने आकर पूछा ... यू स्मोक? डू यू हेव अ लाईट? नो कह कर कदम तेज़ी से आगे बढ़ गए... सड़क के उस सिरे तक पहुंची जहाँ से रोज़ का ढाई मील का चक्कर पूरा करने के लिए दायें मुड़ना था ....उसकी आँखों ने महसूस किया केटिया ने शाम को समय से पहले ही अंघेरे में धकेल दिया है ..आगे रास्ते में लेम्प पोस्ट भी नहीं हैं ....पूर्णिमा की रात होते हुए भी चाँद पर भरोसा करने की दिल इजाजत नहीं देता... सायं - सायं को चीरती हुई ठहाके की आवाज़ आती है ...दिल आगे बढ़ने को रोकता है सरकारी रौशनी अपनी और खींचती है.... भले ही उन दोनों से दोबारा सामना होगा....जैसे पुलिसवाला ख़तरा देख अपने बचाव के लिए कमर पर लगी पिस्तोल को पकड़ सुरक्षित महसूस करता है ...वैसे ही हूडी की जेब में मोबाइल को मुट्ठी में भींच कर वह अपने को भरोसा देती है और कदम वापस मोड़ लेती है .... उसे लौटता देख वह दोनों खड़े हो जाते है उसके पाँव फूटपाथ को छोड़ सड़क पर हैं ... इस बार दुसरा यूवक सड़क पर उतर कर रास्ता रोकता है ..." हेव यू लोस्ट यौर वे? वी केन ड्राप यू इन अवर कार" उसकी नीली आँखों में पता नहीं ऐसा क्या देख उसके कदमो में टर्बो मोटर लग जाती है और घर के दरवाजे पर ही ब्रेक लगता है.... उसे तूफ़ान से डर नहीं लगता पर इंसानों से अभी भी लगता है...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span> </div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दरवाज़ा खुलते ही ... " हाव वाज़ यौर वाक् मम? "</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">हांफती हुई सांस जवाब देती है "इट वाज़ गुड....जस्ट ऐ बिट स्केयरी " </span></div><div> </div></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-69965289154827542302011-04-15T00:31:00.000-07:002011-04-15T00:31:44.006-07:00एक्सपाइरी डेट के बाद भी दूर नहीं होना चाहते ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhilayNa1-jMt1XDKARY64DqnWeAp6MaUQHZuxBvuRhBQEXnH275lxaLm9rorpmMId17s3duphM_sncFTAU0jwr_TwTQvoS6afj9TszL8h_YPXPLalesWsz-zcNgSoltLRTqaeF5lGILJ4/s1600/IMG00105-20101218-1154%255B1%255D.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" r6="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhilayNa1-jMt1XDKARY64DqnWeAp6MaUQHZuxBvuRhBQEXnH275lxaLm9rorpmMId17s3duphM_sncFTAU0jwr_TwTQvoS6afj9TszL8h_YPXPLalesWsz-zcNgSoltLRTqaeF5lGILJ4/s320/IMG00105-20101218-1154%255B1%255D.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;">वो खुशी में स्फूर्ति से और उदासी में फुर्सत से उसके हम सफ़र रहे हैं उन्होंने देखा है उसे देवदार की कतारों के पीछे किसी को ढूंढते हुए... मैदान में घोड़े को घास से दोस्ती करते हुए... तलवों के छूते ही सूखे पत्तों को चरमरा कर शर्माते हुए, पत्तों का फूटपाथ का घूंघट बनते और निर्लज्ज हवा का सभी के सामने वह घूँघट उघाड़ते हुए... घर लौटते परिंदों को दाने के तलाश की कहानी आसमा को सुनाते हुए... चिमनी से निकलते धुएं की महक को दिल से निकले धुंए से पहचान बढ़ाते हुए ... जंजीर से मुक्त होने को गर्दन खींचते अल्सेशियन को देख अपनी खैर बचाते हुए... हाथ में हाथ लिए झुर्री दार चेहरे की मुस्कान का अभिवंदन करते हुए... नुकीली छतों पर से पिघलती बर्फ का रंग उसके गालों पर लुढ़क आये पानी के रंग से मिलते हुए... घोड़े की कमर पर ऊपर-नीचे उछलती छाया को टप -टप की आवाज़ के साथ दूर जाते हुए... किसी अजनबी गेट पर गुब्बारों का बार -बार सर हिला उसका स्वागत करते हुए, दोड़ते हुए बहरों के आई पोड्स को जगह देने के लिए सड़क पर उतरते हुए... जानी-अनजानी आँखों का खेत की बगल में रोज उसी वक्त मोड़ पर टकराते हुए... परछाई को लम्बी, तिरछी, आड़ी हो झाड़ियों , पगडण्डी, सड़क, पानी, घास पर से गुजरते हुए....</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">विरासत में मिली पहिये जैसी चाल, पिता के विचारशील कदम, वातावरण में गूंजती पढ़ी ना पढ़ी किताब के पन्नो की आवाज़ और मां का साया दस कदम पीछे होने का आभास इनको पहन कर ना जाने कितनी बार हुआ.. सबसे पहले मौसम की पहली बर्फ छूने का सुख हर वर्ष दशकों से इन्होने अपने ज़हन में समेटा है... वसंत के डेफोडिल , पतझड़ के चार सौ चोरास्सी रंग, मानसून से निखरे जंगल के बीच भीगी- लजाती ज़मी से महकते कुदरत के करिश्मो का अलग - अलग स्वाद सार्ष्टि के साथ मिल बाँट कर चखा है... ख़ुशी में वो गौरिया के घोंसलों में झांकते, राह में ठहरे हुए बारिश के पानी से चुहल करते , फ़िल्मी स्टाइल में देवदार के तने पर हाथ टिका गोल-गोल घूम सुबह रेडियो पर सुना प्रेम गीत गुनगुनाते, फीते कसने को खाली बेंच पर बैठ कर थोड़ा सुस्ताते, गोल्फ कोर्स से लापता सड़क पर पड़ी लावारिस सफ़ेद गेंद को बादलों में छेद करने को हवा में पूरे जोश से उछाल देते ... दुःख में उसके दिल को टोहते, भरोसा दिलाते मुझे पहनो और बाहर झांको देखो! जिंदगी कितनी खूबसूरत है कभी आगे बढ़कर आंसू पोंछने की कोशिश नहीं की... ना ही कारण जानने के लिए प्रश्नों की बौछार की ... जब कोई बूंद गर्दन से लुढ़क कर उन पर ठहर जाती, वो तुरंत सोख लेते और अगले दिन बारिश को बुला कर उसके गोल निशाँ धुलवा देते ... नर्म, गुदगुदे, मखमली ... वो उसके पैरों के लिए इटली से बन कर आये थे... उनको बनाने वाला शायद उसे जानता था जिसने क़दमों को अपनी हथेलियों में भींच कर कहा था... एक दिन इनके लिए अपने हाथों से जुते सीयूंगा .... ये जुते उसकी हथेलियाँ थी जो पाँव के आकार में ढल गई .... उनको पहनते ही उसके साथ का सफ़र तय था... और बादलों से निकल सूरज सामने खड़ा मुस्कुरा रहा होता...</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">समय के साथ वो अब उसके जैसे हो चले हैं त्वचा से ढीले - ढाले, चहरे से बदरंग, शरीर से कमज़ोर, एडी से घीस गए हैं जोड़ों से उधड़ने लगे हैं वो आराम चाहते हैं थक गए हैं जिंदगी से, थके भी क्यों ना ... पिछले गयारह साल में वो इतना सफ़र तय कर चुके हैं जितना हवाई जहाज़ दो दिन में करता होगा... उनके साथ किया रोज पांच-सात कोस का सफ़र इंच दर इंच ज़मीन पर हज़ारों बार दर्ज है सिर्फ मिट्टी के कणों को मालुम हैं उन्होंने कितनी बार तलवों को चूमा है...</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">उनकी जगह मजबूत, नीली सफ़ेद धारियों वाले, खुरदरी सोल के जुते खरीदे जा चुके हैं पर वो एडी के ऊपर की त्वचा से नरमी से पेश नहीं आते... वहां एक गुलाबी पिलपिला, पारदर्शी बुलबुला उभर आया है... मेड इन चाइना जो ठहरे.. भारतीयों से वही पुराना ऐतिहासिक बैर... पुराने जूतों के लिए घर में जगह नहीं...उनके शरीर की मुनियाद ख़त्म हो चुकी है ... इनसे छुटकारा पा लो, अब तो नए आ गए हैं... जुते वाली अलमारी कह रही है... घर कह रहा है... घरवाले कह रहे हैं सही तो कह रहे हैं...अब यह किस काम के.... चेरेटी बेग में डाल देना चाहिए ... इतने जीर्ण -जीर्ण जुते कौन पहनेगा?... उसकी हथेलियों में किसी और के पाँव?...नहीं बिन में ठीक है ... रीसाइकल बिन में? या कबाड़ वाले में? सफ़ेद प्लास्टिक के बेग में लिपटे वो अपनी अंतिम यात्रा की प्रतीक्षा में दो सप्ताह से लेंडिंग के कोने में पड़े हैं आज शाम देखा तो वह कोना वीरान है ...</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">उसे पूरी रात जंगल में आग के सपने आये और नसों में बिच्छु रेंगते महसूस हुए ... ठीक उन्ही रातों की तरह जब उसने कहा था प्यार एक चमत्कार की तरह फिर घटित हुआ है उसके जीवन में और वह उससे दूर होना चाहता है ... पर कहाँ हो पाई प्यार से दूर ... वो यादों से निकल दरारों में यहाँ - वहाँ पीपल की तरह उग आता है यह जूते भी बिलकुल उसके जैसे हैं एक्सपाइरी डेट के बाद भी दूर नहीं होना चाहते ...</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">बाहर गहरा कोहरा हैं, बगीचे के हर कोने, घास के हर तिनके, घर की छतों और गाड़ी की देह को आज की सुबह, जमे पानी की स्लेटी चादर में लपेटे है वह शाल लपेटे ठिठुरते हाथों का काँटा कमर से ऊँचे हरे रंग के रिसाइकल बिन में फेंकती है अखबार और जंक मेल के बीच से सफ़ेद बेग में लिपटे सफ़र के साथी को उँगलियाँ में फंसा कर भीतर ले आती है और उन्हे जगह देती हैं यादों से सजी अलमारी में ... खुशियों वाली ऊपर की शेल्फ को छोड़, नीचे वाली शेल्फ पर सबसे खामोश और नम जगह के बीच, दर्द की बगल में ....</div></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-20495257744233867072011-02-23T12:48:00.000-08:002011-02-24T17:29:41.500-08:00उसकी बाहों में जन्नत नसीब होती...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHOhmUlshlR-drH81CMPJfvbBckHk4S8hvOY-08fZTmzrxpSh2joDwuPMZpl1oVSPeTlicQ_XuzAh1N2Q5VGAv3cZ088CyztQsC9sGhBkrRZeXA3anQp32TIvG-LUkjcAIiBUuItfeS14/s1600/neera+016.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" j6="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHOhmUlshlR-drH81CMPJfvbBckHk4S8hvOY-08fZTmzrxpSh2joDwuPMZpl1oVSPeTlicQ_XuzAh1N2Q5VGAv3cZ088CyztQsC9sGhBkrRZeXA3anQp32TIvG-LUkjcAIiBUuItfeS14/s320/neera+016.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दोबारा गर्म किए हुए चिकन, चावल, मटर पनीर, अचार, ब्रेड, कस्टर्ड, काफी, चाय , बीयर, वाइन, रम की मिली जुली मितली लाने वाली गंध वातावरण में झूल रही है.. कोई उनसे पानी ना मांग ले, वो ट्रे समेट, बत्ती बुझा, ब्लेंकेट इधर- उधर फेंक, उजाले की तश्तरियों पर फटाक -फटाक ढक्कन गिरा, पिछले हिस्से में परदे खींच आराम कर रही हैं.. खामोशी ने बंद खिड़कियों को देख सेंध लगा ली.. लोग सो रहे हैं, सोने की कोशिश में ऊँघ रहे हैं या कुर्सी से खीचा -तानी करते स्क्रीन पर आँखे चिपकाए बैठे है, उसे महसूस हुआ जो भी थोड़ा बहुत खाया वो यूँ ही पेट में तैर रहा है उसे वाइन नहीं लेनी चाहिए थी... उसके डाइजेस्टिव सिस्टम और अल्कोहल की नहीं बनती ... शायद सोने में मदद करे.. "यस प्लीज़ ..." ट्राली पर रखी बोतल और उसके बीच खुदबखुद कूद पड़ा... सभी सोने- जागने वाले लोग सांस लेने के लिए कम्पीट कर रहे हैं आक्सीजन के बाद कार्बनडाईकसाइड के लिए...वो भी उसके हिस्से में बहूत कम आई है दम घुट रहा है.... नज़रों ने गर्दन घुमा कर पास वाले को भांपा उसे निढाल देख धीरे से दो अंगुलियाँ फ्लेप के नीचे लगाई और ऊपर सरका दी ... पों फटे की सिंदूरी रौशनी में उसका चेहरा नहा गया... होंठ खुले के खुले .... फटी आँखें बस देखती रह गई... हज़ारों बार पहले भी मिला है.... नए - नए भेस में, नए से नए रंग - रूप में, नयी -नयी जगह पर, छिपते, उगते, भागते, रूकते, पीछा करते, ढीठ बन कर छत पर खड़े रहते, विंड स्क्रीन पर आँख मारते ... यह चाँद है या उसका महबूब? दुनिया भर के सूफियों, कवियों, लेखकों, प्रेमियों ने इसके बारे में सदियों से कई आसमान भर लिखा है पर वो उनको सपनो में ही करीब से मिला है... बचपन में चन्दा मामा और फिर महबूब की तरह हमेशा दिल में रहा है आज दूरियां और चांदनी बिना उसकी राह रोक खड़ा है... आँखे उसे अमृत की तरह पीती हैं... अंगुलियाँ गुलाब की पंखुड़ी की तरह छूती हैं... धड़कने उसे पहले चुम्बन के अहसास की तरह दर्ज करती हैं आत्मा इस आलोकिक सुख को अपने भीतर उसके लिखे खतों की तरह सहेजती है .. वह दोनों बांह उठाये अपने पास बुला रहा है...जैसे ही उसने खिड़की से निकल पंख पर पाँव रखा...चाँद ने उसे बाहों में भर ऊपर उठा लिया.. वो अपना आँचल भर रही है तारों से, वो उसे आकाश के कोने - कोने में ले गया... उसने सारा आकाश खाली कर दिया... चाँद एक हाथ में उसे थाम और दुसरे हाथ से उसके आँचल से एक- एक तारा उठा वो उन्हें वापस आकाश में टांक रहा है और सारा आकाश जगमगा रहा है जिधर देखो उसका नाम लिखा है... इस पल को जीने के लिए कई जीवन कम थे... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">परिचारिका हाथ में पानी भरा ग्लास लिए उसके कंधे हिला रही है वो चाँद की बाहों से छूट, धम्म से ज़मीन पर आ गिरी है ... हाथों ने टटोल कर जल्दी में नीचे से पर्स उठाया, जेब में हाथ डाला, पहली, दूसरी, तीसरी कंघा, शीशा, लिपस्टिक, एक, दो, तीन पेन, चश्मा, क्रेडिट कार्ड, सौंफ की पुडिया, इलायची, रसीदें, हेयर बैंड, सेफ्टी पिन, बिंदी का पेकेट, पोलो ट्यूब, पाकिट डायरी, टाफी, मास्चराजिंग क्रीम, डीओडरएंट, सेब, टूथ पिक, टिशु.. कहाँ गया?कहाँ गया? यहीं तो डाला था... हाथों की उलट- पलट से और पैरों की उठक- पटक से, चिंकी आखों, चपटी नाक और साल्ट- पेपर बाल वाला पड़ोसी कसमसाया, उसकी अधखुली आँखे माथे में सिलवट डाल, इसकी याचना भरी आँखों को नज़रंदाज़ करते हुए, निगल जाने के अंदाज़ में घूरती हैं...वो सीधा बैठ कर अपनी टाँगे सिकोड़ता है, सेंडल छोड़ उसकी टांगों से बचती वह खिसकती है उचक कर छत से लटकता बहुत बड़ा मुह खोलती है<span id="TRN_365">, एक भरकम चीज़ को नीचे उतार कर फिर से शुरू होती है तलाश... हथेलियाँ जगह बनाती हैं ठुसे हुए कपड़ों, पेकीटों, अचार की शीशी, मिठाई का डिब्बा, किताबों के पन्नो , फोन चार्जर, ब्रुश, शेम्पू.... खटर -पटर, खसर -पसर ... बैचैनी बढ़ती जा रही है वो सूरज की रौशनी के आँचल में ना छिप जाए ...पड़ोसी की अधखुली आँखे खुलते -खुलते बड़ी होती जा रही है... अंगुलियाँ जिप खींचती है उसे वापस टिका ...फटाक! से बड़ा खुला हुआ मुह बंद कर ... वापस धम्म से सीट पर... आँखों में पानी और चेहरे पर मुर्दानगी... हाथ झुकते हैं टिशु तलाशने को ..अरे यह क्या है? ..मिल गया ! ... हथेलियाँ छूते ही मजबूती से पकड़ लेती हैं उसकी सफुर्ती और मुस्कराहट देखते ही पड़ोसी को टेटनस का दौरा पड़ गया है ..तेज़ी से कांपते हाथ- पाँव, चटखती हड्डियाँ, बदहवास और घबराया हुआ वह अपनी जगह से खड़ा हो गया ... इससे पहले की वो बम!.. बम! ...चिल्लाए... वो हथेली उठा और उसके सामने खोलकर समर्पण कर देती है ... उसके चेहरे का रंग बदलता है लेकिन तेवर नहीं ... "यू आर नोट अलाउड टू स्विच आन इन फ्लाईट"...वो अंगुली से इशारा करती है खिड़की से बाहर अपने टारगेट का... वो जितनी बार क्लिक करती है उतनी बार खुद को कोसती है काश उसके पास बम होता आज उसकी बाहों में जन्नत नसीब होती ... पड़ोसी उससे अधिक से अधिक दूरी रखते हुए पास से गुजरती परिचारिका से धीरे से बुदबुदाता है "इन्डियन वीमेन आर मैड... इज देयर अ एम्प्टी सीट?</span> "</span> </div></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-82712421800790121932010-12-23T08:53:00.000-08:002010-12-23T08:56:38.027-08:00खामोशियों का सफ़र...<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuHrSKMU5espmOk8UQ_ensG0KFRQAl6BTqv-mIVrcL1yTyYaU2Vby8m2-3oKmim3zJ0LEPyGX3_EkBXrM3kFByuBGenfdYSg-WXuEXQlrZ1Ct9SFJ-1YpbrYJyIBkB-BgDvm2EwoDl7Sc/s1600/neera+006.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" n4="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuHrSKMU5espmOk8UQ_ensG0KFRQAl6BTqv-mIVrcL1yTyYaU2Vby8m2-3oKmim3zJ0LEPyGX3_EkBXrM3kFByuBGenfdYSg-WXuEXQlrZ1Ct9SFJ-1YpbrYJyIBkB-BgDvm2EwoDl7Sc/s320/neera+006.jpg" width="320" /></a></div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">खामोशियाँ हमेशा से थी बाहर - भीतर, आस-पास और भीड़ में कहीं ज्यादा.. अपने पिछले जन्म में किसी और रूप में....वो खफा-खफा, मायूस, विरक्त, क्षुब्ध, उपेक्षित ... आपेक्षाओं और सहिष्णुता के जाल में फंसी... खामोशियाँ काले कपड़े पहन, अंगूठा दिखाते हुए डर, द्वंद और निराशाओं के बादल लिए आसपास मंडराती थी...वो कुहासे की तरह घुप्प और सर्द .. उन्हे शीशे पर जमते हुए देखा जा सकता था... अंगुली से छुआ जा सकता था .... वो हर पल कंकर की तरह चुभती, यादों में, यतार्थ में, सोच में, सपनों में, पैरों में, नाड़ियों में, आँखों में.... नाड़ियों का खून जम जाता और आँखे लाल रहती.. वो धड्कनों पर फाइव लीवर के ताले और अपने इर्द-गिर्द दीवारें ऊँची करने में मसरूफ थी... सुरज के उजालों में बाँधे रहती आंखों पर पट्टि और जीवन के अंधेरों को भरने के लिए बटोरती रहती इंतज़ार, मायूसी, दर्द, दिल के टुकड़ों के लिए जंग का खुरदरा रंग...रोबाट बने हाथ-पावों को सहलाती और उन्हे बहलाने के लिए पकड़ा देती हाथों में शापिंग की ट्रोली और पाँव के नीचे क्लच....खामोशियाँ एक सी सी टी वी के तरह पीछा करती... उसे गुनाह करते पकड़ने के लिए... कटघरे में खड़ा करने के लिए... गांधारी बनाए रखने के लिए .. आंखों से निकाल खामोशी के कंकड़ को जब भी उछाल कर पानी में फेंका... ना तो पानी उछला और ना ही उसनें हलचल हुई ... हाँ आसमान से जरूर कुछ बरसा आँखों के साथ- साथ...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">जिस पल आत्मा पर खामोशियों का बोझ शरीर के वज़न से अधिक हो गया और दोनों का एक दुसरे को झेलना दूभर हो गया...खामोशियों ने एक दिन खुली हवा में सांस लेने का साहस बटोरा और बस फिर क्या... सिर्फ एक हवा के झोंके से ... खटाक.!..खटाक.!..भीतर के सभी बंद दरवाज़े और खिड़की हवा में झूलने लगे... खामोशियों ने अमावस्या के रोज़ चांदनी पी... अब खामोशियों को समय की धारा में डूबने से बचने के लिए तिनके की तलाश नहीं थी... उनकी निगाह आसमान पर थी... खामोशियाँ को कदमो की आहट सुनाई दी,पत्तियों के हिलने से उत्पन्न संगीत से दिल पर कसे तार ढीले होने लगे...हरियाला जंगल आँखों में क्या इस तरह झांकता है? और चाँद खिड़की पर उतर आवाज़ देता है... खुली हवा में खामोशियों के पंख खुदबखुद खुल जाते... वो घर लौटते परिंदों का पीछा करती तो कभी आसमान में हवाई जहाज़ के पीछे खींची लाइन को एक फूक से मिटा देती... आइना चेहरे से बतियाते हुए पहरन के भीतर झांकता, गोरय्या हर सुबह बिजली के तार पर चहकती, गिलहरी ठिठक कर खड़ी फिर फुदक कर झाड़ियों में गायब हो जाती, भाग्य खामोशियों के हक़ में खड़ा था और तभी स्रष्टि ने आसमान के कान में कुछः कहा... वो ब्रुश लिए सपनों में इन्द्रधनुषी रंग घोलने लगा, वजूद खामोशियों की रूह बन इतराने लगा ... खामोशियाँ कभी सुनहरी धूप, कभी सोलह साल की अल्हड़ लड़की, कभी पतंग, कभी सीप, कभी ओस की बूंद, कभी नदी, कभी कविता, कभी पत्ती तो कभी फोटोसिन्थेसिस..... दो सिरों से बंधे आज और अभी के तार पर चलने के लिए हवा में संतुलित ... खामोशियों के लिखे बैरंग ख़त सरहदों को पार कर उनके पते ढूँढने लगे जिनसे मिलना खामोशियों के भाग्य में दशकों से दर्ज था.. खामोशियाँ को जादू आता था वो जब चाहे जेठ की धूप, घर के पिछवाड़े अमरुद का बाग़, दादी का खजाने भरा संदूक, कालेज के गेट पर खड़ा उसका इंतज़ार, बंद रेलवे फाटक पर बिकती नारियल की गिरी... जो भी चाहो वो बन जाती ...</span><br />
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">खामोशियाँ तलाशने लगी थी एक खामोश कोना जहाँ रोज मरने से पहले कुछः देर जिया जा सके..... वो बस स्टाप के शेड और आसमान छूती इमारत की छत के नीचे, रसोई और बेडरूम की नजदीकियों के बीच, अलार्म और बत्ती बुझाने के बीच, बिल और रिपोर्ट की डेडलाइन के बीच, जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के बीच, प्यार और नफरत के बीच, किसी को भूलने और माफ़ करने के बीच सांस लेने लगी थी.. उन्होंने पेड़ों, परिंदों, पर्दों, प्रथ्वी और प्रक्रति को अपना राजदार बना लिया था ... खामोशियों के अपने सुख, दुःख थे... उनकी अपनी एक दुनिया थी नियति थी... जो खामोशियों ने ओस के धागे से पत्तियों पर लिखी थी, खामोशियाँ खामोशियों में जीती थी, एक दुसरे को सुबह-शाम पीती थी, उन्ही में सोती थी, उन्ही में जागती थी, खामोशियों दिन में सपने देखती और नींद में उन्हे सच कर देती.... .वो अचम्भित थी ... खामोशियाँ टूट कर पहले से अधिक साबुत और सार्थक हो गई ... उन्हे बड़ी राहत थी.... मंजिल का पता उनकी बंद मुठ्ठी में था और उनका सफ़र जारी था...</span> <br />
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<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: x-small;"><span style="font-size: xx-small;"> फोटो- राउंडी पार्क लीड्ज़</span> </span></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-19912380395549977222010-11-11T11:08:00.000-08:002010-11-11T11:08:11.838-08:00"मिस माई लिटल ब्रदर इज जस्ट लाइक यू"..<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6PJpdd2iXDL-EIF9OsIb4qjkYVXBiKQbb1FC0rAaYQNlODwXno9PNEbpDuvQRS12OFsh6f4JWZBG0tQWedId0XCLVlGvMs2KEfszMzdegrzhUHyvUJ2aDW3rhoe3G84JWj2N3yph5C7o/s1600/TPYF2Mural1full.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="255" px="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6PJpdd2iXDL-EIF9OsIb4qjkYVXBiKQbb1FC0rAaYQNlODwXno9PNEbpDuvQRS12OFsh6f4JWZBG0tQWedId0XCLVlGvMs2KEfszMzdegrzhUHyvUJ2aDW3rhoe3G84JWj2N3yph5C7o/s320/TPYF2Mural1full.jpg" width="320" /></a></div><strong>दुसरे</strong> ही दिन से उसे लगने लगा था..वो मासूम आँखे कुछः टटोलती हैं,खोजती हैं कुछः कहना चाहती हैं ...अक्सर उसने देखा सत्ताईस झुके सर पेन्सिल की नोक घुमा रहे होते... और रेचल पेन्सिल का टॉप मुह में घुमाते हुए उसकी तरफ देख रही होती...और उससे नज़रें मिलते ही सर झुका पेन्सिल को कापी पर घुमाने लगती...कुछः मिनटों बाद फिर उसकी पेन्सिल मुह में और आँखे उस पर चिपकी हुई....रेचल के रूखे, उलझे, सुनहरे, खुले बाल, नयी पत्ती के रंग की कच्ची नींद में जागी आँखे, कपास जैसे गाल पर नाख़ून से खिंची बैंजनी लकीर बिना बोले बहुत कुछः कह जाते और फ्राक पर स्पेगेटी, चाकलेट, दूध, कस्टर्ड, केचप के निशाँ उसके सुबह के ब्रेकफास्ट का या रात के डिनर का मेनू बता रहे होते... <br />
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यह स्कूल चार-पांच हज़ार की आबादी वाले एक छोटे से गाँव में था,यह गावं माइग्रेशन -इम्मीग्रेशन से अछूता था...तभी तो सड़क पर छोटे बच्चे और बूढ़े उसे पीछे मुड़-मुड़ कर देखते...बच्चे अंगुली उठा अपने मां -बाप से प्रश्न पूछते " व्हाट इज देट रेड स्पोट आन हर फॉर हेड... इज ईट ब्लड? उसके कुछः बोलने से पहले ही उनके माँ -बाप उससे माफ़ी मांगते हुए उन्हे एलियन के सामने से खींच कर ले जाते....उसका मन होता पर्स में से पत्ता निकाल लाल खून की बूंद बच्चों के माथे पर चिपका दे... वह अक्सर सोचती उन छोटी - छोटी उँगलियों की जिज्ञासा, बड़े - बड़े हाथों ने क्या कह कर मिटाई होगी ...<br />
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बी एड की ट्रेनिंग के अंतर्गत उसे ऐसे ही स्कूल में कक्षा एक की क्लास मिली थी... वह खुश थी... पहली क्लास के बच्चों में उसके अंगेजी के उच्चारण पर मुस्कुराने और हँसी उड़ाने का हौसला तो कम होगा... और यदि उड़ाया भी तो उनकी उम्र के अनुरूप झेंप और तकलीफ भी कम होगी ... पर यहाँ मुस्कुराने की बारी उसकी थी उनका योर्कशायर का डायलेक्ट बस को बूस,वाटर को वोतर, कलर को कोलर .. यकाएक स्थानीय अंग्रेजी सिखाने को उसके अट्ठाईस शिक्षक....<br />
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गावं के स्कूल से पहले वो ऐसे स्कूल में थी जहाँ अशवेत बच्चों के मुकाबले शवेत बच्चे अल्पसंख्यक थे, जब पहले दिन रजिस्ट्रेशन के समय उसने एक भारतीय बच्चे को अंकुर कह कर बुलाया तो अंकुर सहित सभी हँस पड़े... और एक साथ बोले " हिज़ नेम इज एंकर...मिस!" अंकुर को एंकर बनाना बहुत आसान था किन्तु एंकर को अंकुर बनाने के लिए शिक्षक का शवेत होना ज़रूरी था...इसलिए तमाम कोशिशों के बावज़ूद वह एंकर बन कर ही अंकुरित होता रहा ... हरी का हैरी, अजय एजे और विजय वीजे बन कर... भारतीय मूल के बच्चों का नामकरण शवेत शिक्षकों द्वारा होने के बाद माता- पिता उनका नया नाम गर्व से पुकारते थे... पेरंट्स इवनिंग में उसके मुह से निकले सही नाम के उच्चारण को स्कूल द्वारा दिए गए नए नाम से सुधारने की कोशिश करते ... तब ट्रेनिंग के दौरान प्रोफ़ेसर वर्मा की कही बात दिमाग में घूम जाती "हम आज़ाद हो गए हैं लेकिन हम भारतीयों के दिल आज़ाद नहीं हुए वो अभी भी कोलोनाज्ड हैं "... एक बार उसी स्कूल में प्रोफ़ेसर वर्मा उसकी क्लास का निरिक्षण करने आई थी... स्कूल ख़त्म होने से पहले प्रिंसपल प्रोफ़ेसर वर्मा को हेलो करने आया और बात करते हुए उसका ध्यान प्लास्टिक के लेगो पीस जोड़ -जोड़ कर बने हेलीकाप्टर पर गया उसकी टूटी पंखुड़ी कीतरफ इशारा करते हुए बोला "पता नहीं क्यों भारतीयमूल के बच्चे खिलौने बहुत तोड़ते हैं"... मिसेज वर्मा ने हँस कर जवाब दिया "मिस्टर लीच भारतीय बच्चों को खिलोनो की रीसेलेबल वेल्यू नहीं मालुम, उनके माता -पिता खिलोनों की पेकिंग संभाल कर नहीं रखते... उन्हे तोड़ने और संभाल कर रखने का निर्णय उनका खुद का होता है..." आफिस के बाहर कोई इंतज़ार कर रहा है यह कह कर मिस्टर लीच ने विदा ली...उस दिन के बाद से उसके द्वारा किये गए किताबों, खिलोनों और एजुकेशनल एड्स के आर्डर पर मिस्टर लीच ने अन्य शिक्षकों की तरह उससे भी प्रश्न करना बंद कर दिया... <br />
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अशवेत बच्चों के बहुमत वाले स्कूल में पेरंट्स इवनिंग का होना ना होना बराबर था...आधे से अधिक तो अभिभावक आते ही नहीं, जो आते उनके लिए शिक्षक ने जो बच्चे के बारे में कहा उससे अधिक जो नहीं कहा उसे समझने की ज्यादा आवशयकता थी, पेरेंट्स इविनिंग में आना रंग -बिरंगे हिजाबों के लिए अनावश्यक ना भी हो लेकिन जो घर में उनसे छोटे हैं वे आने से रोकते हैं ...वैसे भी क्या फर्क पड़ता है यहाँ प्राइमरी स्कूल में कोई फेल नहीं होता... गर्मियों की छुट्टी छ सप्ताह की जगह पाकिस्तान जाकर छ महीने बढ़ा लेने पर भी बच्चे अगली क्लास में चले जाते हैं... आज उसे प्राइमरी स्कूल में फेल ना होने वाले सिस्टम के फेलियर यूवाओं को देख कर सिर्फ तकलीफ होती है हेरानी नहीं...ओर ना ही मलाल होता है जिस सिस्टम को बदलने की ताकत उसमें नहीं थी उसका पुर्जा नहीं बनी ... ऐसे स्कूलों की छत के नीचे पढ़ाने ओर मन बहलाने के साधनों का ढेर लगा था किन्तु इसके ऊपर स्लेटी आसमा के टुकड़े में अपेक्षा, उम्मीदों ओर संभावनाओं का बड़ा अकाल था.. असाधारण बचपन से साधारण उम्मीदें... मासूम कन्धों पर उगने वाले अनगिनत पंखों की जोड़ी को स्टोर रूम में धूल खाते देख ... उसे अपना वो स्कूल याद आया जिसकी कच्ची दीवारों के भीतर सूरज, चाँद, ओर इंद्र धनुष पलक झपकते एक उड़ान में हासिल थे ...<br />
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जब प्रिंसपल के कहने पर उसने माइकल की सालाना रिपोर्ट बदलने से इनकार किया तो उसी समय उसे मालुम हो गया था, कांट्रेक्ट की उम्र अब इसी टर्म तक है प्रिंसपल ने कहा माइकल की माँ ने तीन स्कूल बदलने के बाद बड़ी उम्मीद से हमारे स्कूल में उसे दाखिल करवाया है वो हमारी स्कूल गवर्नर है... बड़ी निराश होगी... माइकल की रिपोर्ट बनाते समय वह खुद से कहीं अधिक निराश थी, माइकल को उसने एक चुनौती की तरह अपनाया था, उपलब्धि और प्रतिस्पर्धा का स्वाद चखाने के लिए उसके हर छोटे कदम को सीढ़ी के ऊपर खड़े होना दिखाया और क्लास से बाहर उदंडता से बचाए रखने के लिए, वह उसका हाथ ऐसे थामे रहती जैसे खो जाने के डर से भीड़ में मां अपने बच्चे का हाथ थामे रहती है... माइकल के आलसीपन को रिवार्ड करने का अर्थ उसके भविष्य से खिलवाड़ करना, जिसके लिए वह खुद को राजी नहीं कर सकी... इसलिए स्कूल और माइकल दोनों को छोड़ना पड़ा... <br />
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यहाँ क्लास में बच्चों के बीच वह उन्ही की तरह रंगहीन हो जाती है उन सफ़ेद चेहरों की मासूम आँखों को अभी तक यही मालुम है रंग सिर्फ रेनबो, फूलों और कपड़ों का होता है जिस दिन वो इंसानियत को काले सफ़ेद रंगों का लिबास पहना देंगे ..उस दिन वो बच्चे नहीं रहेंगे ... स्टाफरूम में उसकी चमड़ी का रंग हरी- नीली-स्लेटी आँखों को ब्लेक बोर्ड की तरह नज़र आता है जहाँ अँगुलियों ने नहीं होठों ने चाक पकड़ा हुआ है ...उनकी दी गई नसीहतें उसकी मान्यताओं और मूल्यों से टक्कर खा कुछः देर के लिए कुर्सी के नीचे लुढ़क जाती और उनके मज़ाक और गासिप उसके सर से गुजर जाते ... कभी बालों से नीचे उतरे तो वह उसे भद्दे और बेस्वाद लगे ...वो उनकी बात पर ना हँसने पर उसे समझाने के लिए उंचा बोलते ... उसे ना हँसने का अधिकार है... कुछः बोलने को होती तो...स्टाफ रूम में आते ही जीभ तालू से क्यों चिपक जाती है ?...सोशली एक्सेप्ट होने लिए हँसी का मुखोटा पहना सीख लिया... <br />
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उसकी प्लेग्राउंड में ड्यूटी है आज टर्म का आखरी दिन है रेचल और उसका भी स्कूल में आज आखरी दिन है ... रेचल के माता-पिता ने घर बदला है उसे तीसरी क्लास में पास के स्कूल में भेज रहे हैं...और उसने करियर बदलने का निर्णय ले लिया है...प्ले ग्राउंड में धमा-चोकड़ी मची है बच्चे एक दुसरे के आगे - पीछे भाग रहे हैं... रेलिंग पर लटक रहे हैं... फ़ुटबाल उछाल रहे हैं झपट रहे हैं ... फूटबाल पास करने के लिए चिल्ला रहे हैं एक दुसरे को धक्के दे रहे हैं.. कुछः बार - बार उसके पास आकर एक-दुसरे की शिकायत लगा रहे हैं लड़कियों के समूह स्टापू खेल रहे हैं ओर जब भी फ़ुटबाल उनके करीब आती है वो उसे मैदान के बाहर फेंक देती हैं उसका ध्यान रेचल पर है जो उसे दूर खड़ी एकटक देख रही है....उसके उलझे सुनहरे बाल बाल हवा में उड़ रहे हैं जिन्हें वो अँगुलियों से पकड़,गर्दन पीछे झुका, बार-बार कानों के पीछे उमेठ्ती है... उसकी फ्राक पर चिपका डिनर और ब्रेकफास्ट का मेनू नीले मटमैले कोट से ढका है जिसके दो बटन टूटे हैं... वह लेलिपोप जिसे उसने घंटी बजने से पहले क्लास के बच्चों में बांटा था...मुह में डालती है और निकालती है उसके गालों का रंग लेलिपाप के रंग से मेल खा रहा है ... वह लेलिपाप की डंडी को मुह में दबाये दोनों हाथ हिलाती है बीच की दूरी को नापती हुई वह प्ले ग्राउंड के दुसरे कोने से बेतहाशा उसकी ओर भाग रही है... पास आकर हाँफते हुए मिस के कोट से बाहर लटके बर्फीले हाथ को चिपकी अंगुली से छूते हुए रेचल के गुलाबी होंठ एक प्रार्थना सी बुदबुदाते हैं "मिस माईलिटलब्रदर इज जस्टलाइक यू".. मिस रेचल के दोनों हाथ अपने हाथों में ले, घुटने मोड़, झुक कर मुस्कुराते हुए रेचल की आँखों में उसके भाई के काले बाल और कत्थई आँखें खोजती है लेकिन वहां उसे नज़र आती है स्वीक्रति की हज़ारों लौ जिनको उसने बरसों से हर सफ़ेद चेहरे पर चमकती आखों में ढूढ़ा है ... <br />
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<span style="font-size: xx-small;">फोटो गूगल सर्च इंजन से</span>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-54272213097785051512010-07-30T17:20:00.000-07:002010-07-30T17:20:23.000-07:00आज थेंक यू कहने के लिए नीली आँखों वाली पास नहीं है...<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiI0Lz7ShHTbNXxdGAzvxE-RmmLHVgCW0gPQixMCxpv2QtazX53SVAuUf3gWhBfonkXWbtkkIi1KBaAYD5sH0Qoi-KyjfchZnYDBvY0ga-esmgwZujWoQHQ7w8_BrlZtO2UNu5MvqVM50M/s1600/knot-colours-solidarity-patriotism-or.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" bx="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiI0Lz7ShHTbNXxdGAzvxE-RmmLHVgCW0gPQixMCxpv2QtazX53SVAuUf3gWhBfonkXWbtkkIi1KBaAYD5sH0Qoi-KyjfchZnYDBvY0ga-esmgwZujWoQHQ7w8_BrlZtO2UNu5MvqVM50M/s320/knot-colours-solidarity-patriotism-or.jpeg" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बशीरा ने नज़रें उठाई और बस स्टाप के अन्दर लगे स्क्रीन पर झांका, जो पिछले पंद्रह मिनट से बता रहा है कि छत्तीस नंबर बस तीन मिनट में आ रही है, पुश चेयर में बंधे साजिद और जावेद, पलट -पलट कर उसकी और देख, हाथ उठा बेल्ट से मुक्त होने को मचल रहे हैं, पुश चेयर के नीचे टोकरी में दो बड़े प्लास्टिक के शापिंग बैग हैं एक में चार छोटी- छोटी टी शर्ट हैं, दो कार्डराय की पैंट हैं दुसरे थैले में उनके नए जूते और तीन - तीन जोड़ी नयी जुराबें... उसके कंधे पर पर्स नुमा बड़ा बेग... जिसमें पड़ी पानी, दूध की बोतल अपना भार कंधे को प्रत्येक क्षण तुलवा रही थी..हाई स्ट्रीट में उसके पास से गुजरते लोगों की आँखों में छिपा परायापन जो आँखें मिलते ही आँखों से बाहर आ जाता है यहाँ बस स्टाप पर उसके पास लाइन में आकर खड़ा हो गया है जिसने बस का इंतज़ार और लंबा कर दिया ... उसे लगता है उसका सारा वजूद और पहचान उसके सर पर बंधे एक मीटर कपड़े में है वो समझ सकती है चार दिवारी के बाहर सूरज और हवा को एतराज़ है वह उसके बालोंऔर बालों में लगी क्लिप को कभी छू नहीं पाए.. किन्तु आस पास खड़ी परछाइयाँ क्यों चश्मा बदल -बदल कर देखते है एक चश्मा कहता है बेचारी को रोज़ पीटता है, दुसरा दो बच्चे पुश चेयर में हैं चार स्कूल में होंगे, तीसरा बस में इसके पास वाली सीट ना मिले लहुसन की बदबू बर्दाश्त नहीं होती, चौथा सरकारी खजाने पर परिवार ऐश करता है, पति बेरोजगार है या टेक्सी चलाता है और टेक्स चुराता है,पांचवा इन्हें सरकार वापस क्यों नहीं भेज देती, छटा लिबास के भीतर छाती का भार और आकार नाप चुका है...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बड़ा सोच समझ कर घर से निकली थी... आसमान साफ़ है हवा में सब्र है हाई स्ट्रीट में सेल लगी है... दो घंटे में, दो बच्चों के साथ, दो बड़ी दुकानों में जाकर ही उसके हाथ- पाँव, कंधे और सब्र सभी ने जवाब दे दिया था .... घर से खिला - पिला कर लाइ थी... आते हुए बस में सो गए थे और सोते रहे.. लौटने के समय जागे है... बस स्टाप के भीतर, बिल बोर्ड पर बदलते पोस्टर्स को दोनों बड़े ध्यान से देख रहे हैं .. बस स्टाप अब बारह - पंद्रह लोग है सभी बूढ़े लाइन में हैं और जवान लाइन से बाहर ... यदि बस स्क्रीन पर बताये समय पर आ गई होती तो अब तक वह घर में होती... तभी उसने देखा एक नीली आखों वाली डबल पुश चेयर को धकेलती हुई लाइन में पीछे आकर खड़ी हो गई, उसकी घुटनों तक लम्बी काली स्किर्ट पर उसकी नज़र गई,जो उसकी स्किर्ट से थोड़ी ही ऊँची है यह राज़ सिर्फ बशीरा को मालुम है.. दोनों की निगाह एक दुसरे की पुश चेयर पर है जिसका मेक एक है, डिजाइन और साइज़ एक है, बच्चों का जुडवा और उनकी उम्र बराबर होना एक है और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफ़र करने का संघर्ष एक है इन सभी समानता को आखों ही आखों में दर्ज करती चार आँखे मुस्कुराई ...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">तभी छत्तीस नम्बर बस आ गई.. तीन लोग जो लाइन में आगे थे उनके चढ़ने के बाद बशीरा ने पुश चेयर आगे धकेली..</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम वहीं रुको यह पुश चेयर बड़ी है अन्दर नहीं आ सकती.." ड्राइवर ने सीट बैठे हुए हाथ बढ़ा कर रोकते हुए कहा..</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"लेकिन यह तो आ रही है..." बशीरा पुश चेयर के अगले पहीये उठा बस के पायदान पर लगाने को थी...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"नहीं यह इस तरह नहीं आ सकती ..." ड्राइवर सीट से उठ कर बस के दरवाज़े पर आकर खड़ा हो गया... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बशीरा अपने से पीछे अन्य यात्री को रास्ता देती हुई बस के दरवाज़े की बगल में सरक गई ... साजिद और जावेद को बेल्ट से मुक्त किया .. उन्हे फूटपाथ पर खड़ा कर ...पुश चेयर के दोनों हत्थों को क्लिक करके बंद किया..</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सबसे बाद में नीली आँखों वाली जुड़वां बच्चों को पुश चेयर में धकेलती आई और पुश चेयर के अगले पहिये उठा दोनों बच्चों सहित बस के अन्दर चली गई... वह पुश चेयर को बच्चों सहित अन्दर छोड़ बाहर निकली...उसने जावेद को गोद में लिया... साजिद बशीरा की गोदी में था... बशीरा ने हत्थों से और नीली आखों ने पहियों की तरफ से उठा कर पुश चेयर को बस में लाकर खोला और सलीम और जावेद को उसमें बैठा दिया ...दोनों के माथे पर पसीना चमक रहा था ... ड्राइवर टिकट देने के लिए बशीरा का इंतज़ार कर रहा था...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बशीरा ने नीली आँखों वाली को ना जाने कितनी बार थेंक यू कहा...वो दोनों पुश चेयर खड़ी करने वाली जगह के सामने खाली सीट पर बैठ गई....</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम कुछः करोंगी नहीं?" नीली आँखों वाली ने बशीरा से कहा.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"क्या मतलब?.." बशीरा ने आखें गोल करते हुए कहा... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"जाओ ड्राइवर का नाम पूछ कर आओ..." बशीरा को अब कुछः -कुछः समझ आने लगा ... वह अपनी सीट से उठी, हेंडल पकड़ झूलती हुई आगे बढ़ी... ड्राइवर ने नाम देने में आनाकानी की... और एक बहस के बाद अपना नाम दे दिया...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम्हारे पास कागज़ और पेन है?" नीली आँखों वाली ने पूछा...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बशीरा ने बेग टटोला और पिछले महीने का हास्पिटल अपाइंटमेंट लेटर निकाला.. इतनी देर में नीली आखों वाली ने पिछली सीट से पेन का इंतजाम कर लिया.. .</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"चलो लिखो तुम्हारे साथ क्या हुआ... " नीली आँखों वाली ने लेटर को उलट कर मुड़े -तुड़े पन्ने को अपने पर्स पर रख लिखने का सहारा दिया... बशीरा ने जल्दी - जल्दी आठ लाइने लिखी...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"जाओ बस में बैठे लोगों से .. इस कागज़ पर हस्ताक्षर लो.. मैं बच्चों पर नज़र रखती हूं .."</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बशीरा एक-एक कर सभी के पास गई... किसी ने कहा मैंने कुछः नहीं देखा और किसी ने देख कर भी हस्ताक्षर देने से इनकार किया ... और कुछः को हस्ताक्षर देने के लिए आठ लाइने पढ़ने की ज़रुरत महसूस नहीं हुई...बशीरा अपनी सीट पर लौटी तो नीली आँखों वाली ने अपने हस्ताक्षर किये... आई फोन से उसने पता ढूंढ लिया था नीचे लिख दिया...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बशीरा का बस स्टाप आ गया और वह उस कागज़ को अपने बेग में समेट नीली आँखों वाली का थेंक यू करती रही.. पुश चेयर को धकेलती बस से उतर गई...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">एक सप्ताह बाद बशीरा के नाम ख़त आया ... ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी ने उसकी शिकायत दर्ज कर ली है और तहकीकात शुरू हो गई है... इस तहकीकात के परिणाम के बारे में उसे छ सप्ताह बाद सूचित किया जाएगा...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बशीरा को परिणाम और तहकीकात से कुछः ज्यादा उम्मीदें नहीं थी ... लेकिन अपने भीतर के विश्वास और एकता की ताकत से मिलने के बाद आईने ने उसकी शक्ल बदल दी ... इस दुनिया में वह अकेली नहीं है उसका संघर्ष भी अकेला नहीं है ... नीली आँखों वाली का चेहरा अक्सर उसे आईने में नज़र आता ... वह सोचती उसने उसका नाम और फोन नंबर भी नहीं पूछा....</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आठवें सप्ताह के मध्य में उसे पत्र मिला ... ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी उसके साथ हुए सलूक के लिए क्षमा चाहती है, ड्राइवर पर नस्ली भेदभाव और लिंग भेदभाव का गुनाह साफ़ साबित होता है ऐसा कर्मचारी ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी की नौकरी के लिए अनुपयुक्त है और ऐसे लोगों को समक्ष लाने के लिए ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी उसका धन्यवाद करती है...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आज थेंक यू कहने के लिए नीली आँखों वाली पास नहीं है... वह एक क्रान्ति और शक्ति की तरह हमेशा उसके भीतर रहेगी और सही वक्त पर, सही जगह पर, स्त्री के अधिकारों के लिए, अन्नाय के विरुद्ध उसकी आवाज़ बन कर...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: xx-small;">फोटो गूगल सर्च इंजन से </span></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com32tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-81425996654438151432010-06-20T10:52:00.000-07:002010-06-20T10:56:04.669-07:00तुम कैसे पिता हो?<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">जन्म पर </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">दादी ने मुह छुपाया, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">मौसम ने आँख दिखाई, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">गर्भ से बरसों पूर्व </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">"गुप्त" की किताब से </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">पापा ने दे दिया </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">बिटिया को नाम </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">गुड़िया नहीं लाये, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">माला नहीं लाये, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">सफ़ेद, नेवी ब्लू सिलवटें मिटाने, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">सिंड्रेला के जूते चमकाने, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">कापी पर जिल्द चढ़ाने, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">मच्छरों के यमराज बन, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">पापा घर जल्दी आये, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">थके कन्धों पर झूलता, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">खाकी थले से झांकता, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">किताबों के पन्नो पर, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">लाया काबुलीवाला </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">एक नया आकाश सुनहला, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">नहीं समझाए घोंसले के कायदे क़ानून, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">नहीं दिखाए गलतियों को तेवर, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">नहीं खींची रीती-रिवाजों की लक्ष्मण रेखा, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">नहीं बने जवान पाँव के दरबान, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">नहीं पूछा "वो कौन" सड़क पर मिला था, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">नहीं डराया यौवन को अँधेरे और अकेले से, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">नहीं चुनी सपनों के लिए पगडण्डी और उड़ान,</span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">नहीं लगाई पंखों पर डाक्टर, इंजिनियर, आई ऐ एस की मुहर, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">पापा! तुम कैसे पिता हो?</span><br />
<br />
<br />
<br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">विदा के समय </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">बिलख-बिलख रोता बालक, </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">निर्णायक पलों, फैसलों में मेरे </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">विश्वास की चादर ओढ़ </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: large;"></span></span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: large;">एक मूक गवाह हो ... </span>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-19317972402830917062010-06-11T18:28:00.000-07:002010-06-11T18:28:48.822-07:00यह कैसा स्पंदन है... यह कैसी अनुभूति है... यह कैसा भय है...<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAOkh-854WB3iTgOBmoufA23KCKBSTanULEidn8TNGW0KhjavNSdNsUVU1_71QM-lfrpGH4LrpGnUdX27L65_Bh9NnTB14DWorw3L61c5bmE9LnKSrbJySqMjvurIPCv2Mqh0fO8m-xeU/s1600/30,.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" qu="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAOkh-854WB3iTgOBmoufA23KCKBSTanULEidn8TNGW0KhjavNSdNsUVU1_71QM-lfrpGH4LrpGnUdX27L65_Bh9NnTB14DWorw3L61c5bmE9LnKSrbJySqMjvurIPCv2Mqh0fO8m-xeU/s320/30,.jpg" /></a></div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो बचती फिरती थी सौरभ से... जैसे राहगीर बचते है रास्ते में आ जाने वाली बिल्ली से... दो कमरों के सरकारी क्वाटर में रोज आने वाले मेहमान से कितना बचा जा सकता है.. पिछले दो बरस से शाम को उसका घर आना उसी तरह निश्चित था, जैसे शाम को सूरज का छिपना, सुबह को सभी के नलों में ताज़ा पानी आना, दिन में फेरी वालों का आवाज़ लगाना, दोपहर में दो घंटे बिजली का चले जाना, रात को चौकीदार ने डंडे खडखडाना... शाम के छ बजते ही सीढ़ियों में धूल को रगड़ती उसकी चमड़े की चप्पल, वातावरण का स्वाद बदलती एक कर्कश ध्वनि ... जिसे दिव्या अपने कानों में कम दांतों के बीच अधिक महसूस करती , वह घर के किसी भी कोने में हो यह आवाज़ सौरभ के आने का ऐलान करती उसके कानो और मुह में किरकिराहट लेकर रोज़ पहुँच जाया करती... वह दरवाज़ा खोलने के बजाए... उससे बचने के लिए कहीं और पनाह लेने के लिए उठ जाती, फिर भी कितनी कोशिश करे आमना -सामना हो ही जाता... मां को भी आदत थी उसी को आवाज़ लगाती " दिव्या पानी तो लाना सौरभ का गला सूख गया होगा... "अब जरा चाय ले आ..." अँधेरी रसोई में उसे बत्ती जला कर जाने में भय खाता था...अँधेरे में बाहर पिकनिक करते मकोड़े और झींगुर को छिप जाने का अवसर प्रदान करने लिए वो अक्सर बत्ती जलाकर, आँखें मीच कुछ देर दरवाज़े पर खड़ी रहती ... पानी का ग्लास लेकर रसोई से ऐसे भागती, जैसे सभी झींगुर रसोई छोड़ उसके पीछे दौड़ेंगे ... उसका भयभीत चेहरा देख वह समझ जाता... " देखो यह डाक्टर बनेंगी ... कीड़े को देख बेहोश होने को हैं..." उसका यह कटाक्ष, उसके आत्मविश्वास को लहुलुहान करने को काफी था और सौरभ के होंठों की मुस्कराहट, उसके आँखों में अंगारों को दहकाने का इंधन बनती.... उन अंगारों पर पलकों की ठंडी चादर थी इसलिए उन अंगारों को कभी कोई देख नहीं पाया ... वह आँखे नीची किये सौरभ की ओर देखे बिना, पानी का ग्लास मेज पर टिका, उसी तेज़ी से कमरे से निकलती जितनी तेज़ी से वह रसोई से निकली थी... सौरभ की आवाज़ उसे पकड़ने पीछे भागती "अरे रुको तो मुझे एक ग्लास पानी और चाहिए.." </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो दीपा दीदी को घंटो पढ़ाते नहीं थकता.... दीपा दीदी बी एस सी कर रही थी और शायद उनका दिल सभी से छुप कर सौरभ से प्रेम, यह बात उन्होंने कभी नहीं बताई .... . दीदी का गोरा रंग, गोल चेहरा, मोटी-मोटी आँखे , तीर कमान सी भवें , पंखुड़ी जैसे होंठ ... सौरभ के आने से पहले आईने से गिफ्त्गु करते .... और आईने की तो आदत है उसके पेट में कोई बात नहीं पचती ...उसी ने चुगली की थी ... उसे पूरी तरह यकीन नहीं हुआ था और ना ही उसने दीदी से पूछने की हिम्मत की जबकि वह उससे सिर्फ दो साल ही बड़ी थी.. अक्सर वह सोचा करती काश उसका भी चेहरा दीदी जैसा होता, आईने को भी उससे प्यार होता... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सौरभ इलेक्ट्रानिक इन्जिनीरिंग के फाइनल इयर में था और जब देखो वह दीदी, माँ और पिताजी के सामने आई आई टी में होने का बिगुल बजाने लगता ... और दिव्या हर सत्रह वर्षीय छात्र की तरह, बारहवी क्लास में अच्छे नंबर के साथ, डाक्टरी में दाखला मिलने की लाटरी निकल जाने के सपने देख रही थी, उस सब में सबसे अधिक आड़े आती थी ... रोज़ - रोज़ आने वाले मेहमान की खिदमत ... दीपा दीदी को वह केमेस्ट्री पढ़ाता, वो भी मुफ्त क्योंकि उसकी मां और मां सहेली थी... बहुतसे काम साथ-साथ करती... जैसे स्वेटर बुनना, कचरी -पापड़ बनाना, सब्जी खरीदने जाना और मंदिर जाना.. जब उसका मन चाहता बिना उसे सतर्क किये लगे हाथों उसे भी अपने किताबी ज्ञान के पंजों से दबोच लेता ....ज़रा इंटर मोलिक्यूलर फोर्सीज़ के नाम गिनाना? .... उसकी जुबान वहीं फ्रीज़, खुलती तो कभी हकलाने तो कभी तुतलाने लगती .... जानते हुए भी घबराहट में जवाब हमेशा गलत निकलता .. जवाब सुनते ही उसको तोप का निशाना बनाया जाता .. "तुम्हारी जगह लड़का होता तो मैं उसे पंखे पर उलटा लटका देता..." दिव्या की आखों में चिंगारियों तैरती उन्हे बुझाने के लिए वह चुपचाप दुसरे कमरे में चारपाई पर औंधी लेट आंसू बहाती.... मां हमेशा उसकी तरफदारी करती "तेरा भला चाहता है तभी तो पूछता है..." किताब लेकर उसके पास बैठा कर...नंबर अच्छे आयेंगे... "मुझे फेल होना मजूर है उससे पढ़ना नहीं... " वह मन ही मन बुदबुदाती हुई कमरे से बाहर निकल छत पर पनाह लेती...और तब तक नीचे नहीं उतरती जब तक वो घर से ना चला गया हो... जिस दिन सौरभ का मन पढ़ाने का नहीं होता वह झक मारता माँ और पिताजी से... कभी राजनीति पर, तो कभी वेदों पर, कभी मार्क्स वादिता पर, कभी जातिवाद, कभी समाजवाद, कभी चेतन्य महा प्रभु , कभी हिंदी साहित्य ... इतवार का दिन खुशगवार गुज़रता उस दिन वह कभी घर नहीं आया.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अरे! दिव्या तुम्हें बालों से दुश्मनी थी या अपनेआप से ... पर कटा कर बिलकुल मुंडी भेड़ दीखती हो"... कमरे में बैठे सभी हंस पड़े... वो दनदनाती हुई कमरे से निकली बिना बत्ती जलाए और बिना छ्पकलियों की परवाह किये भाग कर छत की सीढियां चढ़ गई ... एकादशी के चाँद, मई की गर्म हवा, जंग लगे कपड़े सुखाने वाले तार को पार कर ...पानी की टंकी की ओट में, सफेदी लगी मुंडेर पर, फुर्सत से रोने बैठ गई और आँखों से बहते पानी को अपने दुपट्टे से नहीं पैरों के नीचे प्यासी इंटों को सोखने दिया ... दीदी उसे मनाने आई थी यह कह कर कि वो चला गया है नीचे उतरी तो वह दरवाज़े पर खड़ा, माता -पिता से विदा ले रहा था... और उसे देखते ही बोला "दे आई छत पर मच्छरों को दावत?... " दिव्या ने जल्दी से कोहनी को बेरहमी से खुजलाते अपने नाखुनो को अलग किया ..... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"आंटी आपकी बेटी गूंगी है क्या?" फिर सब ज़ोरों से हंस दिए ... वो कमरे की तरफ मुड़ी और सौरभ की आवाज़ ने दिव्या का पीछा किया ... "अरे! बचो! .. सफ़ेद भूत से चिपट कर आ रही हैं " दिव्या ने गर्दन घुमा कर देखा .. जान कर भी अपने उनाबी कुरते से सफेदी झाड़ने की ज़रूरत महसूस नहीं की.. रुके हुए आंसुओं को रफ़्तार देती हुई तेज़ी से कमरे के भीतर घुस गई... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आजकल वह अक्सर लड़कियों की फोटो लेकर आता है "देखो आंटी यह कैसी लगती है... दीपा तुम बताना ज़रा?" माँ आँख, नाक, रंग, कद का निरिक्षण कर अपनी राय दिया करती और दीदी "अच्छी है..." कह कर किताब पर नज़र गड़ा लेती ... आजकल आईने ने चुगली करनी बंद कर दी है और अब तो उसे भी यकीन हो गया है वह सिर्फ चुगली कर रहा था .. आजकल दीपा दीदी किसी ना किसी बहाने शाम को पड़ोस की आंटी के यहाँ अपनी सहेली से मिलने चली जाती है .. इन दिनों आईने से हट कर दीदी को बालकनी में खड़े देखा है... सामने कोई नया आया है... दिव्या उसे स्कूल जाते हुए रोज़ सुबह मोटर साइकल से जाते हुए देखती है ..उसे अनदेखा करती हुई सामने से निकल जाती है वह शाम को अपनी बालकनी से दीदी को देखता है ...नहीं वो दोनों एक दुसरे को देखते हैं ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सौरभ मिठाई का डिब्बा लेकर आया है उसने इंजीनियरिंग पास कर ली है और उसकी नौकरी लग गई है... माँ सब्जी लेने गई है, दीदी पड़ौस में, पिता दौरे पर और वह भूल गई थी आज इतवार नहीं है... वो सोच रही थी सौरभ दरवाज़े से ही लौट जाएगा... लेकिन ऐसा नहीं हुआ... </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"यह क्या पढ़ रही हो ..." सौरभ ने भीतर घुसते हुए पूछा.. </span></div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसने आँखे नीची किये किताब उसके हाथ में थमा दी..</span><br />
<div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अच्छा तो तुममे भावनाये हैं... " वह मैला आँचल के पेज पलटते हुए बोला ...</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">किताब मेज पर रख कुर्सी पर बैठते हुए ट्रीग्नोमेट्री की खुली किताब देख कर बोला ..</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"चलो तुम्हारी ट्रीग्नोमेट्री टेस्ट करता हूं " फ़टाफ़ट उसने अपने साथ वाली कुर्सी खींच दी..</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दिव्या के सर के एंटिना खड़े हो गए ... किन्तु वह एक कबूतर की तरह आँखे बंद किये उसके बगल की कुर्सी पर जा बैठी... सौरभ ने उससे कुछः नहीं पूछा और वह उसकी कापी में लिखे सवालों का हल धर्य और धीरे से उसे समझाने लगा..</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बीच - बीच में जब भी उससे पूछता "समझ आया ...?" वो आँखे नीची किये सर हिला देती ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सौरभ की नज़र मेज़ पर पड़े लिफ़ाफ़े पर गई "यह यहाँ रह गया था ...मैं इसे घर में ढूंढ रहा था..." और उसने लिफ़ाफ़े से फोटो निकाल उसके सामने रख दी और पूछा ... " कैसी लगी तुम्हें? "</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसने कुछः क्षण फोटो पर नज़रें टिकाई और धीरे से बोली ... "बहुत सुंदर है..." फोटो में कोई वाकई दीदी से भी ज्यादा सुंदर थी.. </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">" पर तुम्हारे जैसी नहीं है..." </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"मतलब? " बोलना चाहती थी लेकिन जीभ तालुओं पर चिपक गई ..पेरों के नीचे की ज़मीन हिलने लगी .. वह एकदम घबरा गई जैसे अपने जीवन का सबसे बड़ा गुनाह करने जा रही हो ...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो कापी पर लकीरें खींच रहा था, एक घर जैसा आकार बनाने की कोशिश में जुटा था.. पन्ने को दिव्या के सम्मुख कर बोला </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम्हारे सिवा मैंने इस घर में किसी और की कल्पना भी नहीं की है....मैं तुम्हारे डाक्टर बनने का इंतज़ार करूंगा .. "</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दिव्या की मुठ्ठियाँ भींच गई थी, चेहरे पर रक्त की गुलाबी पसीने के साथ चमकने लगी... उसने अपना पूरा जोर लगा गर्दन हलकी सी ऊपर उठाई, आँखों से पलकों के परदे उठा दिव्या ने सौरभ की तरफ देखा ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुमने कभी मुझे आँख उठा कर नहीं देखा और इस पल की प्रतीक्षा में मैं दो वर्ष से तुम्हारे घर आ रहा हूं ... " सौरभ ने दिव्या की आँखों में झांकते हुए कहा .... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वह कापी का पन्ना फाड़ ... उसे अपनी जेब में डालकर, कुर्सी छोड़ खड़ा हो गया...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"मैं चलता हूँ दरवाज़ा बंद कर लो" और जीना उतर गया... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">धरकनो की आवाज़ ने उसे बहरा कर दिया, खून रगों में नदी पर टूटे बाँध की तरह दौड़ रहा है वो स्तब्ध है, अवचेतन है, उसकी सोई इन्त्रियाँ अचानक संचार पाकर चेतन हो उठी हैं ... भीतर- बाहर सब जगह उथल-पुथल है ...वह हवा के वेग से आगे उड़ रही है नहीं वह सागर की लहरों पर फिसल रही है नहीं वह धरती में धंस रही है ... यह कैसा स्पंदन है? यह कैसी अनुभूति है? यह कैसा भय है? </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आने वाले वर्षों के लिए सौरभ ने दिव्या से कुछः माँगा ... "मेरे लिए पानी लाओ तो एक घूँट पीकर ग्लास थमाना ..." वह सबके सामने स्टील के ग्लास का मुह घुमाता और जहाँ दिव्या के होठों को छु पानी की बूंद चिपकी होती उसपर अपने होंठ लगा धीरे -धीरे उस अमृत को भीतर उड़ेलता ... जिस दिन उसे ग्लास पर चिपकी बूंद नहीं मिलती वह दिव्या से दोबारा पानी मंगाता .. </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">धीरे-धीरे पलकों के परदे उठ गए ओर उनकी जगह सौरभ की आहट का इंतज़ार दिव्या की आँखों में पसरने लगा... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana;"><span style="font-size: xx-small;">पेंटिंग-गूगल सर्च इंजन से..</span> </span></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-2389795129979540172010-04-28T09:09:00.000-07:002010-04-28T09:09:30.592-07:00फोन कुछ पलों के लिए गुंगा हो गया.....<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1L7amOrmsQFMEJos9DnykTGxvTAFF_vpqPYKUaiCqGjCOtfOJcMeGHjbOfsA9xbHsy1L9jmXLhqLxg2OdkN0ElWgLt75Q6fwGjZBRxZknUojHwcn4juw_XkFwWqIybik7jk76MDNO3tM/s1600/mango-trees-with-hanging-fruits.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1L7amOrmsQFMEJos9DnykTGxvTAFF_vpqPYKUaiCqGjCOtfOJcMeGHjbOfsA9xbHsy1L9jmXLhqLxg2OdkN0ElWgLt75Q6fwGjZBRxZknUojHwcn4juw_XkFwWqIybik7jk76MDNO3tM/s320/mango-trees-with-hanging-fruits.jpg" tt="true" width="320" /></a></div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><strong>हज़ारों </strong>मील दूर जिस ज़मीन के टुकड़े का विस्तार और मिट्टी का रंग भी याद नहीं उस पर सोने की बालियाँ उगी नज़र आती हैं... जिस बाग़ के पेड़ों के फल का स्वाद जुबान से घीसे पत्थर की तरह उतर चुका है उसकी रखवाली के लिए हर साल बागवान बदला जाता है शायद नया बागवान आठ हज़ार मील दूर आम का टोकरा लिए दरवाज़े पर आवाज़ लगाएगा..मेढ़ पर बिना लगाये कितना बथुए का साग उतरता था यह जरूर उसे बेचते होंगे... और वो मोड़ की ज़मीन सड़क से लगती है उस पर किससे पूछ कर काँटा लगवा बुग्गियों की लाइन लगी रहती है और फिर भी उनकी जेब खाली रहती है... दीवारों से उखड़ा हुआ प्लास्टर, छत में दरार पड़ी कड़ी ठीक नहीं करा सकते... नल का हत्था पिछले आठ साल से टूटा है... यह बेंत की कुर्सी मां के दहेज़ की, तार -तार हुई पड़ी है मां की आत्मा को कितना कष्ट होता होगा, पिछली बार भी कहा था बुनवा लो... पिछले सोलह साल से कोई हिसाब नहीं दिया, कई लाख निकलते होंगे.. बेटिया जवान होने से पहले ही बूढी नज़र आती है कम से कम उन्हे ही ब्याह दें...कुरते पजामे का वही बरसों पुराना मटमैला रंग जिसे याद भी नहीं वो कभी सफेद था.. नाख़ून में कालिख भरी अँगुलियों में पांच सौ पचपन की बीड़ी और गले से वही खों - खों... </span><br />
<div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दीवारों की परछाई, छत के कबूतर, खम्बे पर अटकी पतंग, पड़ौस के बैल, ताई की गालिया, सड़क पर आवारा कुते , घेर में वो हुक्के की आवाज़ बिना नज़र उठाए पहचान लेते थे और अब नयी सड़क ही नहीं, घर की पुरानी इंट भी नाम पूछती है और इस घर की इंटों में वो जिंदगी बसी है जो वहां रहते लाचार लगती थी और परदेस रहते आपार... कोई घर-ज़मीन बेचने की सलाह दे तो लगता है मुफ्त में हथियाना चाहते है, भाव कितने बढ़ गए है और क्यों बेच दें .... क्या मुह दिखायेंगे ऊपर जाकर पिता, दादा, परदादा, पूर्वजों को ....</span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दरवाज़े पर मोटरसाइकल रूकती है... जिसे नाक बहता छोड़ कर गए थे वो मोबाइल जेब से निकालता है... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"यह दहेज़ में मिली है बुलेट तुझे सत्तू? .." एक बेहुदा मुस्कराहट पूछती है.... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"लल्लन! मैं तो बहुत मना किये हमे ना जरुरत सफ़ेद हाथी की पर लड़की वाले नहीं माने ..अब क्या करें .."</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"क्यों सत्तू तेरे ससुराल वाले डालते है इसमें पेट्रोल या मेरे हिस्से की ज़मीन?... " </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">तीन पाँव की टेबल पर मक्खी से भिनभिनाते पीतल के कटोरे में रखी बर्फी और समोसे के सामने बेन-शर्मन की टीशर्ट, केल्विन-क्लाइन की जींस, आँखों पर रेबंस का काला चश्मा, अपने से बड़े और छोटों का अपमान करने का दुस्साहर दे ही देते है... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अरे लल्लन एक-एक पैसे का हिसाब करूंगा...तू चिंता ना कर इसकी नौकरी लग जाए जरा.... " </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">जैसा हमेशा से होता आया है आसमान से तकाजा और अपमान फिर एक-दो बरस के लिए बाढ़ और सूखे की तरह टल गया ... </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">खबर आई है अँधेरे में बुलेट को ट्रक वाले ने पीछे से आकर हल्का सा धक्का दिया और सत्तू का सर ट्रक के पहिये के नीचे कुचला गया.. सत्तू को नौकरी तो नहीं मिली और अब जिंदगी भी नहीं रही .. एक बेटा मिला जो अब दो वर्ष का है एक और बेटा या बेटी तीन महीने में आने वाला या आने वाली है... और पिता को चार दिन शहर में उसे वेंटिलेटर पर रखने के बाद लाश के साथ डेढ़ लाख का बिल मिला ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"भाई साहिब मुझे बहुत अफ़सोस है सत्तू के ना रहने का..मैं कुछ कर सकूँ तो आप .... " फोन पर झुकी आँखे रुक -रुक कर बोलती हैं .. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"बस लल्लन जो होना था हो गया... तू चिंता ना कर ऊपर वाला है ना... सुना है बहु के दोनों हाथ में चोट लगी है प्लास्टर कब उतरेगा? देख तन्ने उसका ध्यान ना रखा तो मुझ से बुरा ना कोई.."</span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आँखे फोन पर झुकी जा रही है आठ हज़ार मील दूर उसी सुबह को बेटे के फूल चुग कर आई हताश चेहरे से आँखे चुरा रही है ... और फोन कुछ पलों के लिए गुंगा हो गया ... </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana; font-size: xx-small;">फोटो - गूगल सर्च इंजन से </span></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com25tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-53782625123229325452010-04-13T13:12:00.000-07:002010-04-14T06:03:19.456-07:00लिली सूख गई है और केक्टस......<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBhVaV9AN3s8byhiaqwJvSAL2CLjzodz3396n8XwDz0IkBKUzYZRJMarwrUmAJ4-AV8p9TviQ92GnAlg0shFTHNRHaKuRyCGrI0B-qy8T2EV3tXVbOoubz-boozggMjT1kxNDEFpetfPs/s1600/IMG_0074-1024x768.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBhVaV9AN3s8byhiaqwJvSAL2CLjzodz3396n8XwDz0IkBKUzYZRJMarwrUmAJ4-AV8p9TviQ92GnAlg0shFTHNRHaKuRyCGrI0B-qy8T2EV3tXVbOoubz-boozggMjT1kxNDEFpetfPs/s320/IMG_0074-1024x768.jpg" wt="true" /></a></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><strong>वो </strong>जो परिंदों के हाथ भेजते थे रोज एक नयी उड़ान, छत पर जाकर उन परिंदों को दाना डालो, वो भूखे मर रहे हैं और मेरे पंख झड़ गए हैं... अपने हाथ बगल में रखो, मेरे पेट की तितलियाँ ना जगाओ, जंगल में भवरों से फूल मांग, सुई धागा ढूंढ, बालों के लिए गजरा गुथो...... वो छाया सिर्फ रात को ही मेरी पहरन ना बने, जब- जब मौसम जिस्म को बर्फ बना दें वो धूप की रौशनी में मेरी आखों की खामोशी पढ़े ..... चांदनी- चौक की भीड़ में खोने के डर से मेरा हाथ ना थामो, घर की दीवारें जब मैदान नज़र आयें और मैं बदहवास भागती हुई तुम्हें आवाज़ लगाऊं, तुम अपना मोबाइल फेंक... मेरे पास आओ, ज़मीन पर फूक मार, बिना कोई प्रश्न किये मेरे पास कुछ देर बैठे रहो..... मेरे तिल हो गए हैं गूंगे बहरे, उन्हे जुबान दो, आधी रात को सड़क के बीचों बीच गाड़ी रोक, चाँद को रिझाते हुए, उस किताब की कविता गुनगुनाओ जिसके हाशिये में मेरा नाम है और कविता के नीचे तुम्हारा..... नहीं जाना तुम्हारे साथ काफी हाउस और इटेलियन रेस्टोरेंट, मुझे हनुमान मंदिर वाले पहाड़ पर चढ़ना है तुमसे आगे-आगे, शायद कोई पत्थर रहम करे, मेरे मोच लगे पाँव को ना सहलाना और ना ही गोदी उठा घर लाना, पाँव ठीक होने तक मेरे साथ वहीं कुछ दिन ठहर जाना, मेरे लिखे खतों को दोबारा पढ़ना और अपने एकांत और दर्द को डायरी में सहेज सिरहाने रख देना.... वो जादू की छड़ी तुमने कहाँ खो दी? तुम कोरे कागज़ को मुट्ठी में भींच मेरा नाम ले हवा में उड़ाते थे.... और आकाश में खिल उठता था इंद्रधनुष और वो झुक कर कानो फुसफुसाता धीरे से </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">यू डू टू मी व्हाट स्प्रिंग डज़ टू चेरी ट्री....</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> याद है वो सपना जिसकी नीव चार गर्म हाथों ने बिना दस्ताने पहने स्नो मेन बनाते हुए बरफ पर रखी थी... देखो! सपनों की दीवारों से प्लास्टर झड़ रहा है कितनी बार कहा है सीमेंट और रेत लाकर पुराने प्लास्टर को खुरच, नया प्लास्टर कर दो, सूखने के बाद दीवारों पर रंग मैं कर लुंगी, मुझे याद है उस हरियाली का रंग जिसे तुम्हारी आँखों में देख मैं पागल हुई थी... क्या तुम्हें भी याद है वो चेहरा जिसके बहते काजल के इंतज़ार का हर पल तुम्हारा था..यह राज तुमने ही मेरे इंतज़ार को बताया था.... तुम जो लिली और केक्टस लाये थे मैंने टैग पर लिखी सभी हिदायते निभाई फिर भी लिली सूख गई है और केक्टस वैसे का वैसा उसे तो मैंने कभी पानी भी नहीं दिया....तुम्हारे होंठ क्यों छिल जाते हैं मुझे चुमते हुए..... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><span style="font-size: x-small;">फोटो: गूगल सर्च इंजन से</span> </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-2579891499710170382010-03-23T12:44:00.000-07:002010-03-23T12:44:05.838-07:00उसकी नीलिमा पर बादलों ने लिखा था..<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTxaIVBihSTHMM4X2U8rhY02WtzEobLJzuOcaC1PMIARqjbnKNSjTb5ettLesZlubU3c4eWpB9pWIhnkmBMNBscMzApoM3xZCuLuOl6ifOLy7-ORVRmouNxRI6qqnRJzX-oQfRHMWRurQ/s1600-h/rustpic.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTxaIVBihSTHMM4X2U8rhY02WtzEobLJzuOcaC1PMIARqjbnKNSjTb5ettLesZlubU3c4eWpB9pWIhnkmBMNBscMzApoM3xZCuLuOl6ifOLy7-ORVRmouNxRI6qqnRJzX-oQfRHMWRurQ/s320/rustpic.jpg" vt="true" /></a></div><div align="center" style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><span style="font-size: small;"><strong>अ</strong>क्सर उसकी आँख बर्तनों के खड़कने की आवाज़ से खुलती है या फेरीवालों और भिखारियों की पुकार से, नहीं तो अखबार वाले या फिर दूधवाले की घंटी से... लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ ...पानी की कल-कल से नींद खुली... बाहर आकर देखा तो कटे पाइप से पानी बह रहा है ऐसा लगा जैसे गर्भनाल से पानी का मीटर कटा हो... छप-छप और ढूंढा-डांडी में जितनी देर पानी रोकने का जुगाड़ कर पाता.. मिनिस्पलटी वालों ने मुझसे बाजी मार् ली और पानी रोक दिया... पत्नी बेटे सहित गर्मी की छुट्टियों में अपने मायके में है वर्ना पानी के मीटर की चोरी में भी मेरा कसूर होने का कोई कारण खोज लेती... पानी बेकार होने से बचाने की जल्दी में यह भी ख्याल नहीं आया कि ज़रुरत का पानी तो भर लूँ... भला हो पड़ोसियों का... जिन्होंने पानी का मीटर चोरी हो जाने का अफ़सोस के साथ बाल्टी भर पानी नहाने को और पतीला भर पानी पकाने को दिया... अफ़सोस वाली पानी की बाल्टी में नहाते हुए मुझे इसी बात का अफसोस रहा ... इतने बड़े शहर में मेरे ही घर का मीटर चोरी क्यों हुआ? और अफ़सोस वाले पानी की चाय पीते समय इस बात का अफसोस कि दफ्तर जाने से पहले पुलिस चौकी जाना होगा .. वैसे पिछले आधे घंटे से अफ़सोस जाहिर करने के साथ-साथ पड़ोसियों ने सलाह भी दी कि मिस्त्री को भेज कर नया मीटर लगा लो आप तो पी डब्लू डी में काम करते हैं आपको पानी के मीटर की क्या कमी... नहीं मुझे पुलिस स्टेशन जाना है मैने जोर देकर कहा... सहानुभूति दर्शाने वाले सभी मुस्कुराए... शायद मेरी कायदे-कानून पर बची-खुची निष्ठा पर या उठाई गिरि की इस हरकत को इतनी गम्भीरता से लेने पर ... मैं इस शहर का कायदे- क़ानून मानने वाला सरकारी नौकर हूँ ... चोरी की रिपोर्ट लिखवाना मैंने अपना हक़ और कर्तव्य समझा ..</span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;"></span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">जून के महीने में दो किलोमीटर पैदल चल कर मैं पसीने से लथ-पथ पुलिस स्टेशन पहुंचा ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"मुझे रिपोर्ट लिखवानी है मेरा पानी का मीटर चोरी हो गया है"... कुर्सी पर उंघते हुए पुलिसवाले के सामने बैठते हुए कहा.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"देखिये साहब आपके पानी के मीटर का चोर हमने पकड़ लिया है" उसने कोने में बैठे एक सत्रह -अठारह वर्ष के लड़के की तरह इशारा किया जो अपना मुह घुटनों में दिए बैठा था उसके फटे कपड़े और हाथो पैरों पर नील के निशाँ पुलिस के कहर की कहानी बता रहे थे.. चोर के पकड़े जाने का उत्साह ... उसकी हालत देखते ही गायब हो गया ...उसके सामने पांच-छ पानी के मीटर रखे थे...मुझे चोर से सहानुभूति हुई ...चोर से अपना ध्यान हटा मैंने मीटर से ही मतलब रखा जिसे मैं दूर से ही पहचान गया...कितनी बार उसकी चूड़ियाँ कसी थी, वाशर बदले थे, पाइप के मुह में डाला था... पर उसे भी आदत थी हर दुसरे-तीसरे सप्ताह टपकने की ओर मेरे हाथों टप-टप पुछ्वाने की.... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"सुबह साढ़े चार बजे हमने पेट्रोल करते समय पकड़ा है साले को..." पुलिसवाला मुछों पर ताव देते हुए बता रहा था </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"वो लम्बे पाइप वाला मीटर मेरा है... चाहे तो आप उस पर लिखा नंबर मेरे पानी के बिल पर लिखे नंबर से मिला लें..."मैंने झट अपनी जेब से पानी का बिल निकाल पुलिस वाले के हाथ में थमा दिया..मुझे मालुम था यह मीटर मेरा है यह मुझे साबित करना होगा इसलिए घर से पानी का बिल अपनी जेब में डाल कर चला था... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"इसकी तो पूरी कार्यवाही की जायेगी.. आप अपना मीटर नही ले जा सकते... यह माल खाने में पहले जमा होगा.. आप दो दिन बाद माल खाने से ले जाना... तब तक यह वहाँ पहुँच जाएगा.. " पुलिस वाला पानी के बिल से नाम, पता और नंबर नोट करते हुए बोला... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"लेकिन... यह मीटर ... "</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"साहब यही कायदा है आपको यह मालखाने से ही मिलेगा..." </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">वो मेरी बात बीच में काटते हुए बोला... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">पुलिसवाले ने पर्ची पर मालखाने का पता लिखा,रजिस्टर में मेरे हस्ताक्षर लिए...और मुझे रिपोर्ट की रसीद दी.. </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">दो सौ रुपये बचाने को, किसी ना किसी तरह पाइप का मुह बन्द किया, दो दिन पड़ोसियों के घर से पानी लेकर काम चलाया और तीसरे दिन आधा दिन कि छुट्टी ले.. ढूंढता हुआ पहुँच गया माल-खाने में... माल खाने के मालिक को सभी जरूरी कागज पकड़ा.. मालखाने में झाँकने लगा ... शायद पानी का मीटर मुझे देखते ही मेरे पास दौड़ कर आ जाएगा ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"यह तो केस चलेगा आप वकील लेकर आइए... " माल खाने का मालिक कागजों पर उड़ती नज़र डालते हुए बोला.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"अरे! कोई वकील पैसे बिना तो आएगा नही.. दो सौ रुपये की चीज के लिए मैं क्यों वकील के चक्कर में पडू </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">बहस -बंदी के बाद भी माल खाने का मालिक टस से मस नही हुआ और मुझे सारे कायदे-कानून के पाठ पढ़ा दिए .. </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">लौटते हुए नया मीटर खरीदा और दुकानदार को देते हुए दौ सौ बीस रूपये हाथों में कील की तरह चुभे और जब मैंने नया मीटर लगाया उससे अधिक चुभी पड़ोसियों की मुस्कराहट... </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">कुछ दिन तक जब भी नए मीटर को देखता... दौ सौ बीस रूपये और मालखाने में इंतज़ार करता मीटर याद आता... फिर धीरे-धीरे मैं उसे भूलने लगा और मेरे आसपास सब कुछ बदलने लगा..घर के पीछे जो अमरुद का बाग़ था वहां इमारतें बनी.. जहां से चिड़ियों के चहकने और ज़मीन पर कुतरे अमरुद की जगह एयर कंडिशनर से आवाजें और गर्म हवा आने लगी... राज्य के दो टुकड़े हो गए... शहर राजधानी बन गया... अब यहाँ पानी के मीटर नहीं चोरी होते.. वो सामने लगी ए टी एम् मशीन गायब हो जाती है.. घर के सामने वाले पार्क में जहाँ कालोनी के लड़के नेटबाल और क्रिकेट खेलते थे... वहां लोग एक दुसरे कि आँख बचा कूड़ा फेंकते हैं... पार्क की घास की देख-रेख का काम मिनिस्पलटी को नहीं.. गायों का मिला हुआ है वो उसकी लम्बाई की ही देखभाल नहीं करती बल्कि गोबर से घास को पवित्र और उपजाऊ रखती हैं .. शाम को अँधेरे में पार्क की बेंचो पर अजनबी लड़के- लड़किया गले में हाथ डाले चिपक कर बैठे होते हैं जिन्हें देख कर अनदेखा करना गैरत ने सीखा दिया है... घर के पड़ोसियां ने अपने घर दुमंजिले कर लिए हैं...बढ़ते परिवार को साथ रखने के लिए नहीं... किरायेदारों को आसरा देने के लिए... सड़क के साथ जो नहर थी उसको दफना कर सड़क चौड़ी कर दी गई है... पैदल चलने के लिए फुटपाथ नहीं... पक्की सड़क है और ट्रक, गाड़ी, बसों, टेम्पो के बीच बूढ़े, बच्चे, जवान हर किसी में जान हथेली पर रख अपने कदमो के हिस्से की सड़क हथियाने की हिम्मत है... सड़क के दोनों ओर दुकाने और ब्यूटी पार्लर कुकरमुत्ते की तरह उग आये हैं ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">शहर के साथ वह भी बदल गया.. चेहरा बदल गया है, बालों का रंग बदल गया है, आँखों की रौशनी बदल गई है, वह ससुर और फिर दादा बन गया है ......</span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"आप ही सूरजभान शर्मा है? गेट पर खड़ा पुलिसवाला पूछता है.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"जी हाँ..." मैं अखबार से मुह हटा कर उसे एक तरफ रखते हुए कहता हूँ </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"आपके यहाँ चोरी हुई थी?" वो गेट खोल कर बरामदे में घुस आया... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"नहीं तो..." मैं कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"आपका पानी का मीटर चोरी हुआ था?.."</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"फिलहाल तो वह भी चोरी नहीं हुआ "...बाहर बरामदे में लगे मीटर को देखते हुए कहा..</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"केस ख़त्म हो चुका है यह रहा आपका मीटर..." उसने प्लास्टिक के थैले से निकाल कर मेज पर रख दिया और मुझे एक कागज़ पर दस्तखत करने को कहा...</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">मीटर ने मुझे फ़ौरन पहचान लिया ... पुलिसवाले के जाने के बाद देर तक मीटर को घूरता रहा.. उसे उठाकर अलट-पलट कर देखा...आँखों से दूर ले जाकर देखा.. आँखों के नज़दीक लाकर देखा...उसकी सुइया वहीं रुकी हुई थी.. वह बिलकुल नहीं बदला था ... टप- टप पानी गिरता नज़र आया .... हथेली मली वह बिलकुल सूखी थी... फूंक मारकर उस पर जमी धूल साफ़ की..कुरते से उसे रगड़ा और पास पड़ी कुर्सी पर टिका दिया.. बरामदे की चार दिवारी से बाहर देखा.. पार्क की घास कुछ ज्यादा हरी लगी ... और बेंचो पर एक दुसरे से सटी बैठी छाया देखकर झल्लाया नहीं मुस्कुरा दिया .. गेट पर लगे अशोक के पेड़ से चिड़िया के चहचहाने की आवाज़ आई.. नज़रें ऊपर उठी और आसमान की तरफ गई ... वो भी मुस्कुरा रहा था और उसकी नीलिमा पर बादलों ने लिखा था.. यहाँ देर है अंधेर नहीं... </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: xx-small;">फोटो- गूगल सर्च इंजन से </span></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-42427782788337464172010-02-26T03:42:00.000-08:002010-02-26T03:42:26.345-08:00"आई कैन एशियौर यू .. आई शेल नेवर नीड देम..."<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhplWq5UqZpBGuIoUnBsQGMGeKd62tTtFRZ00JLGaL9SQPbfnfF1VwQSdsnQDS4Y77AaX2hC46Anmx2OivrkVUZDFAxU44Am4TM6XQvTJbw5sRkoh9tinn0_8BMofz0S2uw1D-0nZa9MjE/s1600-h/mother-and-baby-hands.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" kt="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhplWq5UqZpBGuIoUnBsQGMGeKd62tTtFRZ00JLGaL9SQPbfnfF1VwQSdsnQDS4Y77AaX2hC46Anmx2OivrkVUZDFAxU44Am4TM6XQvTJbw5sRkoh9tinn0_8BMofz0S2uw1D-0nZa9MjE/s320/mother-and-baby-hands.jpg" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><strong>पिछले</strong> तीन महीने से रीटा रात को यह सोच कर सोने जाती है सुबह को वह कभी ना उठे तो बेहतर होगा.. थोमस के आ जाने से भी सुबह को कभी ना उठने की ख्वाइश कम नहीं हुई है.. उसके जिगर का टुकड़ा उसकी ख़ुशी नहीं सिर्फ व्यस्त रहने का माध्यम बन कर रह गया है... नन्ही सी जान की मुस्कराहट में मां को ज़न्नत नसीब होती है पर यहाँ ना तो उसका दिल पसीजता है और ना ही दूध उतरता है... वो रात ग्यारह बजे उसे फार्मूला मिल्क देती है वह सुबह पांच बजे तक चुपचाप सोता है .... जब सुबह में वह दूध के लिए रोता है वह उसके रोने पर नहीं ... अपने ज़िंदा होने पर झल्लाती है... परदे सरकाने, रौशनी भीतर आने, घड़ी कि टिक-टिक, दूधवाले के ट्रक की टीम-टीम, फोन की घंटी, पोस्ट मेन की आहट, पड़ोसियों की मुस्कराहट और स्कूल जाते बच्चे सभी से वह बचती है और शुब्ध है.. और सबसे ज्यादा घबराहट और तनावग्रस्त है बंद लिफाफों से, जिन्हें वह खोलती नहीं और फाड़ती भी नहीं.... उन्हे बिना खोले ही भीतर के धुएं को सूंघ सकती है .... बंद लिफांफों का ढेर लग गया है कुछ रीटा एमरी के नाम से हैं और कुछ डेविड पोलार्ड के ....वो बंद लिफ़ाफ़े दिन भर उसे घूरते हैं, चिल्लाते हैं, धमकी देते हैं तुम बेघर हो जाओगी, बिजली और गैस कट जायेगी, तुम्हें कोर्ट में घसीटा जाएगा, सामान कुडकी हो जायेगी, तुम्हारा ए टी एम् कार्ड मशीन निगल जायेगी... तुम्हें मदद चाहिए हम मदद करेंगे ... तुम्हारे सारे क़र्ज़ चुका देंगे...तुम यहाँ साइन कर दो, अपनी हर महीने की कमाई और सुख- चैन हमेशा के लिए हमारे पास गिरवी रख दो... उसे ऐसा लगता है उसके चारों ओर अविश्वास और अनिष्चितायों का मकड़- जाल डंक फैलाए बैठा है. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">डेविड और रीटा एक दोस्त के घर मिले थे ... जल्दी ही यह मुलाक़ात प्यार के रिश्ते में बदल गई .. रीटा को छत्तीस की उम्र में प्यार नसीब हुआ था और डेविड उसकी जिंदगी का पहला प्यार था .. जबकि डेविड की जिंदगी में प्यार इतनी बार आया-गया कि वो उसकी गिनती भूल चुका है लेकिन वो अक्सर रीटा से कहा करता वह औरों से एकदम अलग है उस जैसी उसके जीवन में पहले कभी नहीं आई.. उसको अब तक सिर्फ उसका इंतज़ार था ...दोनों के बीच ढाई सौ किलोमीटर की दूरी थी जिसे वह सप्ताहांत में मिटा देते... एक शुक्रवार को डेविड रीटा के शहर के लिए रवाना होता और अगले शुक्रवार को रीटा डेविड के घर ... रीटा अपने माता -पिता के पास रहती थी और डेविड को उनका आस -पास होना उतना ही नापसंद था जितना रीटा के माता -पिता को रीटा और उसका साथ...पर वो सप्ताह अंत में एक दुसरे से जरूर मिलते ...डेविड ने रीटा को अपनी कम्पनी में एडमिनिस्ट्रेटर की वेकेंसी की इतला दी ...तीन महीने बाद नौकरी उसकी थी और वह अपने माता - पिता का घर छोड़ उसके शहर में आ गई, दोनों बड़े फ्लेट में जाने के बाद उसे सजाने में व्यस्त हो गए... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">पानी की तरह साफ़ साझेदारी थी दोनों के बीच .. फ्लेट का आधा-आधा किराया, गैस और पानी का बिल रीता के अकाउंट से, बिजली और कौंसल टेक्स डेविड के अकाउंट से... सुपर मार्किट की शौपिंग एक सप्ताह रीटा और अगले सप्ताह डेविड, गाड़ी की इंशोरेंस की ज़िम्मेदारी डेविड की और रोड टेक्स रीटा खरीदती, पेट्रोल एक बार रीटा तो अगली बार डेविड भरवाता ..कितने का भरवाना है वह भी निश्चित था .... इसी तरह से वो पिछले पांच वर्षों से इकट्टे रहे थे .</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">रीटा का बहुत मन था एक दिन डेविड शादी का प्रस्ताव रखेगा लेकिन डेविड शादी जैसे बंधन में यकीन नहीं रखता लेकिन वह उसे माँ बनने से ना रोक सका... रीटा ने जब उसे खुशखबरी दी तो वह अगले दिन उसके लिए फूलों का गुलदस्ता लेकर आया ... और जब सात महीने का थोमस रीटा के गर्भ में किक मार रहा रहा था.. तब डेविड पांच महीने पुराने प्यार के पास रहने के लिए अपना सामान समेटते हुए बेडरूम में चहल कदमी कर रहा था.. उसे उम्मीद थी फ्लेट के साथ शायद डेविड गाड़ी भी उसके पास छोड़ देगा क्योंकि गाड़ी का लोंन रीटा अदा कर रही है पर उसे खरीदने के लिए डेविड ने अच्छा खासा डिपोजिट दिया था.. लेकिन वो गाड़ी अपने साथ ले गया ... जाती हुई गाड़ी की आवाज़ उसके लिए छोड़ गया जिसे उसके कान ना जाने क्यों दिन में कई बार सुनते हैं .. यह क्या कम है टी वी और वाशिंग मशीन उसने खरीदे थे वो उन्हे नहीं ले गया.... मां का साथ देने के लिए थोमस अपनी निर्धारित तिथि से तीन सप्ताह जल्दी पैदा हो गया ... थोमस भी शायद फ्लेट के टी-वी और वाशिंग मशीन की तरह है डेविड उसे क्लेम करने और देखने नहीं आया .. उसने अपने गर्भ में थोमस की नहीं अपने जन्म की भी प्रसव -पीड़ा महसूस की.... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">रीटा का इस शहर में अपना कोई नहीं है दुसरे शहर में जो अपने हैं वो हर साल क्रिसमस कार्ड भेजने के लिए सिर्फ उसका पता जानते हैं .. उनके पास ना तो रीटा का फोन नम्बर है और ना ही थोमस के पैदा होने की खबर ...... दफ्तर के मित्र अक्सर फोन पर पूछते हैं वो दफ्तर कब वापस आ रही है... वो अक्सर सोचती है वह बिल्डिंग, लिफ्ट, सातवीं मंजिल, कारीडोर, मीटिंग रूम , प्रिंटर, फेक्स मशीन, केन्टीन और ओपन प्लान आफिस स्पेस, डेविड और उसकी नयी प्रेमिका, जिसको उसी ने अपोइन्ट किया था, यह सब कैसे उनके साथ रोज आठ घंटे के लिए बाँट पाएगी ? इस तनाव से छूटकारा पाने के लिए उसने एक निर्णय लिया, थोमस के सो जाने बाद एक पत्र लिखा, उसे लिफ़ाफ़े में बंद कर, उस पर दफ्तर का पता लिख, पोस्ट करने के लिए पर्स में सरका दिया... </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम्हारा नाम रीटा है" वोटिंग रूम में नर्स आकर पूछती है.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो चौंक कर सर हिलाती है और नर्स के पीछे - पीछे डाक्टर के कमरे में दाखिल होती है.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आज थोमस दो महीने का हो चुका है उसे पोलियो, मीज़ल्स, वूपिंग कफ के टीके लगने हैं... टेक्सी के पैसे बचा वह दो बसें बदल कर जनवरी के बर्फीले मौसम में पंद्रह मिनट देर से क्लीनिक पहुंची है... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"ही इज डूइंग फाइन" लेडी डाक्टर ने थोमस का वजन लेते हुए गाल थपथपा कर कहा और टीका तैयार करने लगी..</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"थोमस का पिता साथ नहीं आया, मैंने तुमसे पिछली बार भी कहा था...तुम दोनों से मैं फेमली प्लानिग के बारे में बात करना चाहती हूँ" </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"मुझे उसकी ज़रुरत नहीं है ..." रीटा ने ज़मीन पर निगाह गड़ाए हुए कहा </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अक्सर सभी ऐसा सोचते हैं आई नीड टू डिस्कस वेरियस फेमली प्लानिग आप्शन विद यू ..." डाक्टर ने थोमस को टीका लगाते हुए कहा.. वह सुई चुभते ही जोर से चीखा और चुप हो गया... " </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"आई कैन एशियौर यू .. आई शेल नेवर नीड देम डाक्टर! ... " अचानक रीटा ने बड़े आत्मविश्वास से डाक्टर की आखों में आँखे डाल कर कहा... ऐसा कहने के बाद उसने महसूस किया वह डेविड ही नहीं दुनिया के तमाम पुरुषों से मुक्त हो गई है वह बेचारी नहीं है अपने हितों, भावनाओं, संवेदनाओं की सुरक्षा करना उसके वश में है, अनेपक्षित परिस्थितियों और चुनोतियों से जूझने की क्षमता वह रखती है वह जीना चाहती है, उसे अपने -आप को पुनर्जन्म देना होगा, ... डेविड के मिलने से पहले और डेविड के जाने के बाद की रीटा..डेविड की रीटा से अधिक सम्पूर्ण और शक्तिशाली है यह उसे दुनिया को नहीं स्वयम को साबित करना है... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो क्लीनिक से बाहर निकल दफ्तर की दोस्त को फोन लगाती है.. कोई जवाब ना आने पर वह मेसेज छोडती है </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"शैरन तुम मुझे एक अच्छी चाइल्ड माइंडर का नंबर देने वाली थी... आज ही एस एम् एस कर दो प्लीज़ .. " </span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">चलती - चलती पोस्ट बाक्स के पास रुक जाती है ... पर्स से कल रात लिखा बंद लिफाफा निकालती है उसके चार टुकड़े कर, साथ रखे कूड़ेदान के हवाले कर मुस्कुराती है.... पुश चेयर में सोते हुए थोमस का कम्बल ऊपर कर उसके ठन्डे हाथों को कम्बल से ढक, एक लम्बी सांस खींच..अपने फौलादी हाथों से पुश चेयर धकेलती हुई बस स्टॉप की तरफ बढ़ जाती है... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: xx-small;">फोटो - गूगल सर्च इंजन से </span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com22tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-46703721427638875922010-02-10T13:50:00.000-08:002010-02-10T13:50:40.709-08:00बाबुल का घर हज़ारों मील नहीं उससे कुछ कोस दूर है...<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3hTkZUkBZUXOGA-iqrmWasuZvtVS2xpa3Er4X0bO5RyL5RNaIPGxU2bAPZgVF_h_TusAee-CeONQemLOfGUzgU_TdFbMgtPMWiFJAmgRPNZZCR7tH9H4j_X8Xgh5ncf2jHYmLXhbcfxM/s1600-h/house.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" kt="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3hTkZUkBZUXOGA-iqrmWasuZvtVS2xpa3Er4X0bO5RyL5RNaIPGxU2bAPZgVF_h_TusAee-CeONQemLOfGUzgU_TdFbMgtPMWiFJAmgRPNZZCR7tH9H4j_X8Xgh5ncf2jHYmLXhbcfxM/s320/house.jpg" /></a></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अगस्त का महिना है, आकाश बिल्कुल साफ है ... इस मौसम में आकाश पर बाद्लों का अधिपत्य होता है फिर भी वो अक्सर जगह दे देते हें सुरज को धरती छुने की और किरणों को जीवों से लिपटने की ...धुली पत्तिया नहा कर सुरज पहने हैं और ख़ुशी - खुशी हवा के साथ् मन्द- मन्द झूल रही हें.... छुट्टी के दिन जब भी ऐसा होता है लोग चींटियों की तरह घर से बाहर निकाल आते हें.. पर्यटन स्थल तो फिर भी उजड़ा रहता है लेकिन कार पार्क जरूर भर जाता है... वो दोनों अपने परिवारों के साथ पिकनिक पर आए हैं वे एक पहाड़ी पर खड़े हें ...और पूरी वादी उनके काले चश्मों में सिमट आई है पहाड़ी के नीचे एक छोटा सा स्टेशन है.. प्लेटफार्म पर बहुतसे पर्यटक खड़े हैं.. दोनो की नज़र बच्चों पर है वो हाथ में आइसक्रीम लिए उन्हे हाथ हिला रहे हैं बच्चों के साथ खडे स्त्री और पुरुष ऐसे हंस रहे हैं जैसे उनमें से एक ने दुसरे को कोई चुटकुला सुनाया हो .. वो उनकी हँसी और चेहरे के हाव- भाव से अंदाजा लगा रहे हैं कि चुटकुला नॉन वेज है ..बच्चे चिल्ला कर कुछ कह रहे हैं लेकिन उन तक आवाज़ नहीं पहुँचती ... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वह दोनों .. मुस्कुरा कर बच्चों और बड़ों दोनो को हाथ हिला कर जवाब देते हें... </span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: small;"></span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">अचानक वो कहता है मैं अगले वर्ष अगस्त में यहाँ नहीं हूंगा ... उसके पाँव के नीचे की ज़मीन धसने लगती है .और धूप गर्म लगती है.. .. ऐसा सभी कहते हैं लेकिन उसे मालूम है वो जो कहता है वह करता भी है....वह वापस लौटना चाहता है कुछ तो वह समझ सकती है और कुछ नहीं भी...उसे कम्फर्ट जोन नापसंद है और उसके लिए चुनौतियों का अभाव है ... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: small;"></span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">एक मुकाम हासिल किया है उसने पिछले सात वर्षों में.. नौकरी, अहोदा, वेतन, बोनस, गाड़ी, घर ... वेतन से लेकर गाड़ी का मेक और इंजन साइज़ सब चार गुणा हो गए हैं कम्पनी ही उसका घर और गाड़ी बदलती रहती है और उसके खर्च और खुशी का आयाम वही है जैसा सात वर्ष पहले था.. आम! और देसी! ...सभी को उसकी सफलता का सफ़र एक हाव वे की तरह नज़र आता है जिसमें ना तो कोई गति अवरोधक है और ना ही कोई रेड लाईट ..यदि हों भी तो .. उसकी हंसने और हंसाने वाली बातें हा ..हा...ही ..ही की प्रतिध्वनी उन पर पल में ही फ्लाई ओवर खडा कर देती है और वह अपनी उपलब्धियों को लेकर उसी तरह लापरवाह है जैसे अपने पर्स और सामान के प्रति..उसकी जेब को खाली रहना पसंद है इसीलिए पर्स और जेबों की तना -तानी रहती है ... और अक्सर जेब जीत जाती है ... लन्दन की लोकल ट्रेन में किताबें, अपने लिए खरीदी कमीज़, टाई, जुराबें, छाते, बच्चों के लिए खरीदी फूट्बाल, कापी, पेन्सिल छोड़ना इतनी आम बात थी कि जिस दिन खरीदा समान सुरक्षित घर पहुंचता तो वो खुद और घर वाले हेरान होते ... छुट्टियों से लौटने पर यदि कैमरा सामान में निकल आता तो यह बात, महीने भर के लिए, परिवार, मित्रों और सह्कर्मियों के बीच हेडलाइन बन जाती... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: small;"></span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">माता-पिता भी अक्सर महीनो उसके पास रह कर लीची और आम के मौसम में वापस लौट जाते और उसे हमेशा शिकायत रहती वह उसे कम और दरख्तों को ज्यादा प्यार करते हैं ... हिन्दुस्तान से आए दोस्तों और रिश्तेदारों का उसके घर आकर ठहरना इतनी आम बात थी कि उसकी अनुपस्थिति में उनको चाबी मिलने में असुविधा ना हो इसलिए घर की दो चाबी दो पड़ोसियों के पास होती ... ... अपने आई एम् एम् के सहपाठियों को ढूढ़ कर सिर्फ सोशल सर्केल ही नहीं बढ़ाया बल्कि उनके गेट टूगेदर आयोजित करने शुरू कर दिए हैं ... उसके इर्द -गिर्द सप्ताह अंत में आने -जाने वालों, होली, दिवाली, न्यू इयर, जन्म- दिन, हाउस वार्मिंग अवसरों को मनाने वालों कि कमी नहीं थी ... अन्ताक्षिरी और नाच गाने में तो वही जितायेगा, चिढाएगा, हंसायेगा और रुलाएगा भी... </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: small;"></span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">वह यू एस की नौकरी ठुकरा कर यू के आया था .. तुम्हारे वहाँ होने से मेरे लिए यह फैसला लेना कितना आसान हो गया उसने फोन पर कहा था ... यह सब उसे एक सपने कि तरह लगा तब, पर यह सपना सिर्फ सपना रह जाने के लिए नहीं था .. एक महीने के भीतर ही सात हज़ार किलोमीटर कि दूरी को दो सौ बीस किलोमीटर की दूरी में बदल गई थी और उसके बाद तो हर दो -तीन महीने में फोन पर कह देता .. मैं तुम्हारे शहर में हूँ मीटिंग के बाद घर आउंगा.. वो दफ्तर जल्दी छोड़ ..घर भागती है ... अरहर दार, पुदीने कि चटनी, भिन्डी और गर्म फुल्का... . </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: small;"></span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"इस खाने में मां के हाथ की खुशबू आती है... " वो फूल कर कुप्पा .. आंखों में चमक आ जाती .. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"अरे तुम आ जाते हो इसी बहाने मुझे भी ताज़ा खाना मिल जाता है और यह अनार का जूस भी घर में तभी आता है ... वरना तो खाना नसीब हो जाए वही बहुत समझो..." कोई उपहास उड़ाता है </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"मेरा और आपकी बीवी का प्यार आपके प्यार से बहुत पुराना है इसलिए मेरी खातिर तो होगी ही ... " कोई चट्नी चाटते हुए नमक मिर्च लगाता है .. </span></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"क्यों लौटना चाहते हो? " उससे पूछे बैगेर नहीं रहा गया.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"बस मन भर गया यहाँ से.. यहाँ दोनो अमानतो को कली से फूल बनते देखा है वहां भाई की परी और टेनिस प्लेयर को बडे होते देखूंगा .. " </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">उसे रोकने के सभी अस्त्र - शस्त्र इस्तेमाल होने से पहले ही परास्त हो गए .. उसने भीगी आँखों से आसमान की तरफ देखा और मन ही मन मुस्कुरा उठी .. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: small;"></span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"बच्चों को तो गर्मी की छुट्टीयाँ ही नही मिलेगीं, यहाँ स्कूल बन्द हुए हें वहाँ जाते ही खुल जाएंगे.." लौटते समय बच्चो की माँ ने कहा ..</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"अरे! भागवान! यह बच्चे कई सालों से छुट्टी पर तो थे यहाँ, असली स्कूल तो अब जायेंगे और स्कूल वाले साथ में तुम्हें भी पढ़ाएंगे ..." </span></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">छ वर्ष हो चुके हैं उसे लौटे .. एक सप्ताह के लिए यू एस और तीन दिन के लिए यू के अपने काम के सिलसिले में आ रहा है ... वो दफ्तर से छुट्टी नहीं ले सकी.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: small;"></span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">बाहर लेबनीज़ खाना खायेंगे, नहीं घर पर ही थाई फ़ूड बना लेते हैं, इन्डियन रेस्टोरेट बुक कर लें, इटेलियन भी खा सकते हैं .. रात को देर से पहुँचेगा टेक अवे ही ले आयेंगे ... सब सुझाव दे रहे हैं .. वह फ्रीज खखोलती है... </span></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"बेंगलोर में इतनी बढिया घीया नहीं मिलती.. घीया चने कि दाल कितनी स्वाद बनी है .."</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"तुम क्यों टेबल से उठी... नमक आ जाएगा..कौन पहले नमक लायेगा का कम्पिटिशन हमेशा क्यों जीतना चाहती हो?.."</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"ओये! छोटी अमानत! चुपचाप दाल- रोटी खा... एक झापड़ दूंगा नहीं तो ..मेरी बहन को तंग किया तो .." वो मुह बिचकाती का हाथ पकड़ डायेनिंग टेबल कि तरफ खीचता है ... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"यह केक तुने घर बनाये हैं बड़ी अमानत?..बेकरी वाला तुझे पाकर धन्य होगा.. " </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बड़ी अमानत उसके हाथ से केक छीन लेती है... </span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"अरे ऐसे केक खा कर तो कोई बैंकर भी बेकरी ख़ोल ज्यादा कमाएगा ... बर्बाद किये पांच साल मेडिकल कालेज में.. बड़ी अमानत!"... और वो झपट कर पूरा केक मुह में भर लेता है .. रसोई बेकिंग की खुशबू के साथ, हँसी की महक से भर जाती है और रसोई की टाइल केक के कणों से.. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
<span style="font-size: small;"></span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"मुझे तौलिया, पजामा , चप्पल और नया टूथ ब्रुश देना..शायद वहीं होटल में छूट गए .. " </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"थेंक गाड, मामू! ईट वाज़ नोट लेपटोप, पासपोर्ट, वेलेट एंड कैमरा! ..." </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;"> बड़ी अमानत को बदला लेने का मौक़ा मिल ही गया ... </span></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"यहाँ की हरियाली और खामोशी बहुत सुन्दर है और यहाँ से हिन्दुस्तान और अमेरिका में काम करना भी आसान है..लौटने को मन करता है ." वो सन् लाउन्ज में किताब से मुह हटा कर चाय का कप पकड़ते हुए कह्ता है .. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"हाँ सुबह चार बजे से हिन्दुस्तान और रात बारह बजे तक अमेरिका ... हाउ सेड मामु ..."</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">बडी अमानत कोइ भी मौका नही चूकती .. </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"और दिन भर फ्री टू चिल आउट बेबी ...." </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो उसे चाय के साथ नाश्ता लाने का इशारा कर खाली मुह चबाते हुए कहता है... </span></span></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> "मैं लन्दन का मकान बेचना चाहता हूँ वह सिरदर्द बन गया है.." वो जाते - जाते उससे कह रहा है शायद यह बात कहने का इससे बेहतर मौक़ा वो ढूंढ नहीं पाया... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> </span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">"साढ़े पांच साल से किराया मिल रहा है अभी छ महीने से किराया नहीं मिला तो क्या हुआ.. रिसेशन की वजह से हाउसिंग मार्किट भी डाउन है उस पर कोई लोन भी नहीं है ... जल्दी क्या है" </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: small;">वो कोई जवाब नहीं देता.. सिर्फ मुस्कुराता है... </span></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><span style="font-size: small;">वो सिर्फ मकान, चार दिवारी और छत नहीं हैं उससे जुड़े रिश्तों की नींव बहुत गहरी है, उसके दरवाजों के हेंडल पर छोटे - छोटे हाथों के निशाँ है वो हाथ लीवरपूल और मानचेस्टर की फूटबाल टीम में खेलने के सपने देखते- देखते बड़े हो रहे हैं क्या पता वो लौटना चाहें वहाँ... फिर वो मकान उसकी उम्मीद है, एक अहसास है, एक संतोष है ... बाबुल का घर हज़ारों मील नहीं उससे कुछ कोस दूर है...</span> </span><br />
<br />
<span style="font-family: Verdana; font-size: xx-small;">फोटो गूगल सर्च इंजन से </span></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-84200103793087186792010-01-16T09:01:00.000-08:002010-01-18T14:06:54.236-08:00जिस रिश्ते को तुमने उस रात वन नाईट स्टेंड होने से बचा लिया...<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgY3FOuDAhxjT0VyMqQ28Cj4T77Bop4JF-Z6u-5Z5d71xjo2UX0yJrFw_V4BBnlofyCKdu1B1bre3C02FDdmKpocYtdpBRZCJeMs5zBvrEwiqtla86IWRsBq4RZmiRm_aiSyYEib4kmd4/s1600-h/4123456917_6c85863bf0.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" ps="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgY3FOuDAhxjT0VyMqQ28Cj4T77Bop4JF-Z6u-5Z5d71xjo2UX0yJrFw_V4BBnlofyCKdu1B1bre3C02FDdmKpocYtdpBRZCJeMs5zBvrEwiqtla86IWRsBq4RZmiRm_aiSyYEib4kmd4/s320/4123456917_6c85863bf0.jpg" /></a><br />
</div><div align="center"><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"पहचाना तुमने?..." वो अचानक प्लेट थामे भीड़ में रास्ता बनाते हुए उसके सामने </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आकर खड़ा हो गया..</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"नहीं तो..." वो उसकी तरफ चेहरा उठा आँखें गोल करती हुई बोली.. </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अरे! मैं तुम्हारा जूनियर रोहन ... जिसके प्रेम पत्र को तुमने बिना पढ़े </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">चीथड़े - चीथड़े कर वापस थमा दिया था ".. वो उसकी आँखों में आखें डाल कर </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">मुस्कुराते हुए बोला ...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"मुझे ना तो वह वाकया याद है और ना ही तुम्हारा नाम "... वो पीछा छुटाने </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">के मूड में थी ...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">" चलो कोई बात नहीं मैं बता देता हूँ तुम जे अन यू में मेरी सीनीयर थी और मैं तुम्हारा सीक्रेट एड्माईरर , डेलीगेशन लिस्ट </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">में तुम्हारा नाम देखा और यकीन हो गया यह कोइ और अंकिता हो ही नही सकती और लंच तक तुम्हें ढूंढ निकाला ... अंकिता तुम </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आज भी उतनी ही खूबसूरत दिखती हो जितनी बारह साल पहले थी ... कांफेरेंस के बाद क्या कर रही हो? ...क्या हम इसके बाद मिल सकते हैं ? ".. उसने बिना कोई भूमिका बांधे अतीत और वर्तमान एक पल में कटे नीन्बू सा निचोड़ दिया...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अपना नाम उसके मुह से सुन कर उसका मन थोड़ा हेरान हुआ और चेहरा नरम ..</span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"क्यों फिर से लाइन मारोगे ?" अनायास ऐसा प्रश्न पूछ कर अजनबी के प्रति अपने खुलेपन से सकपका गई.. </span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"नहीं! सीधा सेडीउस करूंगा !.. रिसेप्शन पर मेरा इंतज़ार करना!".. रोहन अपना चेहरा अंकिता के चेहरे के नज़दीक लाकर बोला .."सेडीउस" शब्द को सुनकर चौंकती निगाहों को नज़रंदाज़ करता वह हंसता हुआ वापस मुड़ गया ...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">धडकनों की आवाज़ पसलियों से निकल कानो से टकराने लगी .. जैसे किसी अजनबी ने पुराने खनडर में दाखिल हो उसका नाम बार -बार पुकारा हो... उसकी गूंज उसे उद्वेलित कर रही थी ..., ढेरों सवाल उसके ज़हन में लहरों कि तरह उछलने लगे....हाल में बुफे लन्च करते लोगों के चेहरे उसके लिए अद्र्श्ये हो गए और भीतर की हलचल वातावरण के कोलाहल पर हावी हो गई .. </span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बारह साल बाद, आठ हज़ार मील दूर एक जूनियर का इस तरह टकरा जाना और इतनी अतरंगता और सहजता से मिलना उसे अचम्भित ही नहीं ..भीतर तक हिला गया.....वो औपचारिकताओं की आधीन है और इस तरह का अपनत्व और निमंत्रण की </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आदि नहीं रही.. बचे सेंडविच और वेफर की प्लेट मेज़ पर सरका, कांफेरेंस </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">पेक के पन्ने पलटने लगी दस मिनट में शुरू होने वाली वर्क शॉप .. जिसे वह </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">संचालित करने वाली है रोहन का नाम वहां ना देखकर राहत कि सांस ली ...</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वर्कशाप के आरम्भ, मध्ये, अंत के वार्तालापों... चवालीस आखों को विषय पर </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">केन्द्रित करने कि कोशिश... स्क्रीन पर बदलती आसमानी स्लाइड्स... पानी के </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">ग्लास को बार -बार होठों पर लगाने... एयर कंडिशनर से निकलती बासी हवा और </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">चार्ट पर मारकर पेन कि सरसराहट के बीच... मस्तिष्क के कांटे उससे एक </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">ही सवाल करते रहे .. वह अपने आप को एक अनजान का निमन्त्रण स्वीकार करने की इजाज़त दे सकती है या हमेशा की तरह होटल के कमरे के पराये से वातावरण में बोरियत और अकेलेपन को चाय की चुस्की के साथ </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सुड़कते हुए छ बार कांट- छांट किये प्रेजेंटेशन को सिर्फ बारीक कंघी से संवार सकती है ...</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कांफेरेंस समाप्त होते ही उसकी नज़रों से बचने के लिए वह हाल से पहले </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">निकलने वालों में थी ... </span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अंकिता ...." उसने अपना नाम सुना ..वो रिसेप्शन पर पहले से ही मौजूद था </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">...उसे झल्लाहट हुई इतनी जोर से उसने उसका नाम लिया है .. कांफेरेंस हाल </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">से निकलते लोगों नज़रें उस पर थी .. .. ..</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम ठहरो! मैं यह बेग कमरे में रख कर आती हूं .. यहीं छठी मंजिल पर है कमरा.." रोहन को देखते ही वह </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बोली...जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो.. </span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"समझ लो! तुम्हारा बेग छठी मंजिल पर तुम्हारे कमरे में पहुँच गया "..रोहन ने उसके हाथ से बेग ले लिया .. बिना उसका जवाब सुने वह बाहर निकल सीढियां उतरने लगा .. </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अंकिता के तेज़ चलते कदम रोहन के क़दमों कि रफ़्तार पकड़ने को बाहर लपके ...</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"हम कहाँ जा रहे हैं..."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"मेरा एपार्टमेंट यहाँ से एक किलोमीटर कि दूरी पर है आज तुम्हें मैं अपने </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">हाथ का बना खाना खिलाउंगा.."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम्हारा एपार्टमेंट?"</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">" मैं तीन महीने से कम्पनी के खर्चे पर यहाँ हूँ और परसों वापस लौट रहा हूँ ..बस! तुमसे मिलना बाकी था.." </span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"नही! खाना कहीं बाहर खायेंगे..." उसने सख्ती से कहा...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अरे! एक तो तुम्हारे पर्स का ख्याल है तुम्हारे देश में मेहमान होकर भी </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">तुम्हें खाने पर बुला रहा हूँ मुझे तुम इस सुख से वंचित ना करो...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"डरो मत! एक पट्ठा और भी मेरे साथ रहता है..." </span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">यह उसका आश्वासन था या मज़ाक? अंकिता निर्धारित करने की कोशिश कर रही थी ... वह इस बात से हेरान थी कि उन दोनों के </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बीच के सभी निर्णय वह ले रहा है और उसके दीमाग के काँटों और दिल की </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आशंकाओं को परास्त कर रहा है रोहन के साथ चलते हुए अब उसे अपने से </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">हाथापाई करने कि ज़रुरत महसूस नहीं हो रही और वह अजनबी पर भरोसा कर सकती </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">है यह उसका अंतर्मन कह रहा है....</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">जेब्रा क्रासिंग पर सड़क पार करने को रोहन ने उसका हाथ ऐसे थमा जैसे पांच </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">साल के बच्चे सड़क पार करवा रहा हो ... सड़क पार करने पर भी उसने हाथ नहीं </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">छोड़ा और अंकिता यही सोचती रही कि हाथ कैसे छुड़ाया जाए और कठपुतली सी </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उससे एक कदम पीछे चलती रही... </span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं इस पीक आवर की भीड़ </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">और ट्रेफिक में कहीं तुम्हें खो ना दूँ ..." ऐसा कह कर उसने अंकिता को हाथ </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">छुड़ाने की पशोपश से भी मुक्त किया...</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">रोहन एक ऊँची इमारत के आगे रुक गया और उसका हाथ छोड़ .. अंगुली से इशारा </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कर..अपने अपार्टमेन्ट की खिड्की दिखाने लगा .. जहाँ उसकी कमीज़ सूख रही थी..</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">शीशे के दरवाज़ों को धकेल्ने से पहले .अंकिता के लिए दरवाज़ा पकड़ कर खड़ा हो गया.... लोबी में घुसते ही वह टूटी-</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">फूटी फ्रेंच में केयर टेकर से बात करने लगा ..उनकी बात से उसे अंदाजा हो </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">गया कि रोहन का फ्लैट मेट ..डिनर के लिए बाहर गया है देर से लौटेगा .. </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">केयर टेकर ने उन दोनों कि तरफ मुस्कुराते हुए रोहन को चाबी दी ... लिफ्ट </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">का इंतज़ार करते हुए वह उसके कानो के नज़दीक आकर बोला ...</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"बहुत लकी हो...तुम्हारे साथ-साथ मुझे भी पट्ठे से छूटकारा मिला.. उसकी तारीफें उसके मुंह </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">से सुन- सुन कर हम दोनों इतना एडवेंचरस समय गुजारते की तुम भविष्य में किसी का निमंत्रण स्वीकार करने से बेहतर आत्महत्या करना ज्यादा पसंद करती ...वैसे मैं भी उस खिड़की पर खड़ा होकर कई बार सोच चुका हूँ .. " </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो अंकिता के होठों पर मुस्कान लाने में सफल रहा .. </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दोनों लिफ्ट में चुपचाप थे .. रोहन एकटक उसकी और देखता रहा और वह उससे और लिफ्ट में लगे </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">शीशों से नज़र चुराती रही..</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">ज़मीन पर बिखरी मैगजीन, खुला लेपटाप, टेबल पर अनगिनत गोल- गोल चाय के </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">निशाँ, भरी एशट्रे, खिड़की में ख़त्म हुई चाय के खाली कप, कुर्सी पर पड़ा </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">तौलिया, टेबल लेम्प के पास बिखरी डाक और सी दी, इधर उधर मुसे हुए टिशु </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बता रहे थे इस एपार्टमेंट में रहने वाले कौन हो सकते हैं... उसने </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कुर्सी से तौलिया हटा कर बैठने के लिए जगह बनाई.. खुद नीचे </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कालीन पर बैठ गया ...</span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दो कप मीठी चाय, दो कप काली चाय, कमरे कि चार दिवारी, दोनों के बीच से </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">गुजरती अनछुई मासूम हवा.. आँखों में जाल बुनता विश्वास ... तीन घंटे जैसे तीन </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">पल ...दोनों सिर्फ एक शाम की तन्हाई बांटना चाहते थे किन्तु दो चेहरों </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">ने बिना किसी मुखोटे के ..जिंदगी का हर वो पन्ना बाँट लिया जिससे वो </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">स्वम भी अनिभज्ञ थे... वो हेरान थे उनके पास इतना जमा था एक दुसरे से बांटने को </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">...जो वह आजतक किसी और से नहीं बाँट पाए . ..जीवन में पड़ी सिलवटों को, हिस्से में आई ठोकरों को, ना मिले मुट्ठी भर आसमान को, जीवन के इंद्र धनुष रंगों को, जिंदगी के कोनो में छुपी ख़ुशी को, दिन के उजाले में देखे सपनों को, विकल्पों के अभाव को, मजबूरियों को, उपलब्धियों को, टिक टिक पर बसी चुनोतियों को, मानसिकता </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">पर जम आई धूल को, रोज मुंडेर पर आकर बैठने वाली लालसाओं को, </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बेबाक कल्पनाओं को, रिश्तों से मिले अपनेपन और उपहास को, जाने -अनजाने में हुए गुनाहों को ...बिना किसी </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">लागलपेट के एक दुसरे से बाँट सके ... दोनों एक दुसरे को वहां छु सके ..</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">जहाँ अभी तक किसी ने नहीं छुआ था ... आत्मा की खामोशी को छुआ और उसे भीतर सहेजा बिना किसी आपेक्षा और उम्मीद के... उस कमरे की हवा पंखुड़ी जैसी हलकी और खुशबूदार थी ...मन और आत्मा को एक दुसरे के सामने निर्वस्त्र कर स्त्री -पुरुष के आकर्षण की विवशता की जगह दोनों के बीच इंसानियत का आहान था .. दो इंसानों के बीच संवेदनशीलता, जागरूकता और सघनता थी ... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">...दोनों ने आजतक कभी दीवारों को भी नहीं बताया था कि रोहन को शब्दों से </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">खेलना अच्छा लगता है और अंकिता को केनवास पर रंगों से.... शायद किसी ने </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कभी उनसे पूछा ही नहीं...</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दोनों ने चुपचाप खाना खाया ... उनके बीच की खामोशी... बातों से भी गहरी </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">और बातूनी थी..</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">रोहन कि नज़रें तो जैसे उसके चेहरे पर फ्रीज़ हो...पलक झपकना भी भूल जाती</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">..जब भी ऐसा होता ...वह असहज होने लगती ..अपनी असहजता छुपाने को उसने </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">खामोशी तोड़ी और बोली...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"बेंगन का भरता अच्छा बना है..."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"और दाल?.."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"पानी और नमक दोनों ज्यादा हैं .."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम दाल-चावल छोड़ दो ...इसी तरह दो-दो दाने चुगती रहोगी तो सुबह तक ख़तम करोगी..</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसने वहीँ चम्मच प्लेट को सौंप दी ...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अंकिता ने बर्तन रसोई में रखने के लिए रोहन कि मदद करनी चाही.. रोहन ने </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसके हाथ से प्लेट ले ली और बोला .. </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम यह वाइन का ग्लास खाली करो इसे सिंक को पिलाने में मुझे अति कष्ट होगा.."</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वह पानी, बर्तन और उसके गुनगुनाने की आवाज़ सुनती रही.. अपना कोट पहन वह </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">पर्स और बेग समेटने लगी ..</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">" साड़े दस हो चले हैं चलो काफी बाहर पियेंगे और तुम्हें मैं होटल छोड़ दूंगा .."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"मैं काफी नहीं पीती..."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तो मुझे पिला देना.."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सडकें खाली थी, हवा में नमी थी, हलकी -हलकी बारिश हो रही थी, .. बोलती </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">खामोशी उनके साथ थी... "तुम्हारा हाथ पकड़ सकता हूं?..." </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो चौंक गई .. इससे पहले कि वो हाँ या ना कहती रोहन की हथेलियाँ उसकी </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अंगुलियाँ गिनने लगी.. आसपास का ट्रेफिक, लेम्प पोस्ट, होटल और दुकानों </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">के चमकते साइन बोर्ड और विज्ञापनों कि चकाचौंध उसे ऐसे दिखी जैसे हवाई </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">जहाज से ज़मीन दिखती है ..</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वह हर कफे में घुस कर देखता और मना कर देता .. कहीं उसे भीतर का शोर बुरा </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">लगता, कहीं वेटर की शक्ल तो कहीं केफे की दीवारों का रंग ..</span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"लो! तुम्हारा होटल आ गया, अब यहीं काफी पीते हैं.."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अंकिता ने एक काफी का आर्डर दे .. रिसेप्शन से चाबी ली..होटल का </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">रेस्तरां बंद हो चुका था...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कमरे की रौशनी में उसे देख कर रोहन बोला अरे तुम भीग गई हो.. कपड़े बदल लो..कह </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कर वह सोफे पर बैठ गया.. अंकिता ने कोई जवाब नहीं दिया और वह सोफे से </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दूर बिस्तर पर बैठने वाली थी तो रोहन ने इशारा किया सोफे पर बैठने के </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">लिए.. वह उसके पास बैठ गई ...दोनों के बीच में छ इंच का फासला था..वह</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसका हाथ अपने हाथ में लेकर नसे दबाने लगा...वह सवाल पूछ रहा था हाथ पर </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">निशाँ देखकर ...किन्तु वह कुछ नहीं सुन रही थी .. सिर्फ उसकी </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">गंध को साँसों में महसूस कर रही थी..</span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वह सोफे से उठकर उसके ठीक सामने कालीन पर नीचे बैठ गया ...और उसके दोनों पाँव </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">हथेलियों में भरकर बोला..</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"यह पाँव कितनी सारी यात्राएं करके आज यहाँ पहुंचे हैं".. उसने अंकिता का </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">हाथ पकड़ा और धीरे से अपनी और खींचा ...अंकिता रोहन कि बाहों में थी...अंकिता </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">धीरे -धीरे एक ही शब्द बुदबुदा रही थी ..नहीं ...नहीं...नहीं.. रोहन से ज्यादा वह अपने आप से प्रतिरोध कर रही थी किन्तु रोहन के साथ अंकिता का शरीर भी उसके होंठों की बात नहीं मान रहा था .. उसका गला सूखा गया और माथा भीगा गया... </span><br />
</div><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"मुझे प्यास लगी है ..." उसने कश्ती किनारे बांधने के लिए रस्सी फेंकी ... </span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"क्या तुम एक रात के लिए अपने आप को भूल नहीं सकती..." रोहन ने उसके कान में फुफुसाया.. </span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"नहीं..."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सुनते ही अंकिता को अपने आगोश से मुक्त कर..रोहन खड़ा हो गया ... अंकिता ने पानी की बोतल मुंह से ऐसे खाली की जैसे किसी मेराथन से लौटी हो ... </span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"क्या तुम चाहती हो मैं अब चला जाऊं ?.."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"हाँ!.." अंकिता का मुह और सर दोनों एक साथ बोले .. </span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"चलो! मुझे नीचे तक छोड़ने नहीं आओगी?..."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"चलो!.. वह आँखें नीची किये बोली</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">" तुम यहीं खड़ी रहना जब तक मैं तुम्हारी आँखों से ओझल ना हो जाऊं.." वह </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">होटल के मुख्य द्वार पर पहुँच कर बोला.. अंकिता के होठों ने इस बार रोहन की </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">मुस्कान का जवाब मुस्कान से दिया..</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वह उसकी छाया को छोटे होते हुए देखती रही... अचानक छाया रूककर वापस उसे </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">देख कर हाथ हिला रही है उसने भी हाथ हिलाया ... लेकिन छाया वहीं खड़ी हो </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">गई है ...उसने कुछ पल इंतज़ार किया... लेकिन छाया नहीं हिली ... वह आखरी </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बार हाथ हिला कर अपने कमरे में लौटी तो लगा ...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कमरे की चार दिवारी, </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सोफा, गिलास, बेग, अलमारी, पलंग, बिस्तर, दीवार पर टंगी </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">पेंटिंग, आइना उसे घूर रहे हैं और कमरे में रह गई रोहन की गंध के बारे में </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">हज़ारों सवाल कर रहे हैं उसने जवाबों से बचने के लिए बत्ती बुझा दी ...</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">लेकिन उस रात वह अपने अंतर्मन की उथल-पथल और सवालों से बच ना सकी....जिन्होंने </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">जवाब ना मिलने पर अंकिता की नींद निगल ली ...</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वह दो दिन बाद वापस लौट गया और अंकिता के पास एयर पोर्ट से उसका टेक्स्ट आया ... "यादगार शाम के लिए शुक्रिया... खुश रहना..वैसे तुमने उस रात होटल में मेरे साथ आबू गरीब के कैदियों जैसा व्यवहार किया... :-)</span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">फिर मिलेंगे..</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">पांच वर्ष बीत गए और वह दोनों कभी नहीं मिले ... आज जब घर लौटी </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">तो दरवाज़े पर एक पार्सल उसे घूरता मिला ... उसने उसे उठाया और बेरहमी से खोला... भीतर एक कविता की किताब </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">निकली ..जिसका नाम था.."मुक्त-पल".... जिसमें लिखी एक-एक कविता को वह उसी तरह पहचानती है जैसे उसके </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">चेहरे को आइना पहचानता है ... किताब के तीसरे पन्ने पर लिखा था ... उस </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अजनबी के लिए जिसकी छाया अंकित हैं मेरी जिंदगी के हाशिए में ... ख़ुशी उसकी आखों से सावन-भादों की तरह बरसी... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो पन्ने पलट रही थी ...और उनके बीच से हाथ से, नीली रोशनाई में लिखा एक कागज़ का टुकड़ा चमका ... . </span><br />
<span style="font-family: Verdana, sans-serif;"></span><br />
<div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अंकिता मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूं ...इस किताब के लिए नहीं ...हमारे </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बीच इंसानियत के रिश्ते के लिए ... जिसको तुमने उस रात सिर्फ वन नाईट स्टेंड होने </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">से बचा लिया ... रोहन ..."</span><br />
</div><div align="justify"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसने दीवार पर लगी मोनालिसा की पेंटिंग को देखा ... अंकिता के होठों की मुस्कान मोनालिसा के होठों की मुस्कान जैसी थी ....अचानक अंकिता को मोनालिसा की मुस्कान का रहस्य मिल गया था.... </span><br />
<div align="justify"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><span style="font-size: x-small;">foto-www.flickr.com</span><br />
</div><br />
</div><br />
</div></div></div></div></div></div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com46tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-53904288289085957722009-12-02T15:53:00.000-08:002009-12-02T16:03:15.833-08:00पचास गुलाब की खुशबू उसे काँटों सहित याद आएगी ...<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDVQmwErwKE2SCmg19nNHuo7UbEmu_JadVWVKpe8O969ysj2zoc94qDrzIr7QcVpKdYNo5NRuoZ6aedOAcHzAeUh4SblF5qNuohbM0r1v3tZ0qJP2j5gag6VL8lVPh4l_TvSrtqN920eo/s1600-h/DSC01543.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" er="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDVQmwErwKE2SCmg19nNHuo7UbEmu_JadVWVKpe8O969ysj2zoc94qDrzIr7QcVpKdYNo5NRuoZ6aedOAcHzAeUh4SblF5qNuohbM0r1v3tZ0qJP2j5gag6VL8lVPh4l_TvSrtqN920eo/s320/DSC01543.JPG" /></a><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">घर वालों के साथ, गत्ते के तीन फीट ऊँचे डिब्बे में बंद, पचास लाल गुलाब भी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहे थे.. घर में घुसते ही वह गाड़ी कि चाबी और पर्स टेबल पर फेंक डिब्बा खोलने बैठ गई ...उसने उन्हे डिब्बे से बाहर निकाला, पानी से भरी थेली में बंधे और गोल्डन टिशु से लिपटे गुलाब की लाली पचास गुनी खुशबू के साथ उसके चेहरे पर खिल गई...</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"पहली बार जिंदगी में मुझे किसी ने फूल भेजे हैं" ..."जन्मदिन मुबारक हो काश मैं भी तुम्हारे पास होता"... उसने बड़े उत्साह से भेजने वाले का नोट पढ़ा .. ... "अरे! सिंक ऊपर तक भर गई है पत्तियों के ढेर से" ..." लो दस्ताने पहन लो नहीं तो कांटे चुभ जायेंगे ..".... "यह क्या आपने सारी पत्तियां तोड़ डाली .."हरा धनिया थोड़ी ना है ऊपर की तो थोड़ी रखनी थी " ... " यह इस गुलदस्ते में नहीं आ रहे बड़ा गुलदस्ता लाओ ना..." </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसकी आवाज़ और पैर आसमान में थे .. हवा में चारों तरफ ख़ुशी तैर रही थी....वो फूल पचास राजदूत कि तरह एक राजकुमार का पैगाम एक राजकुमारी के लिए लेकर आये थे ....जिस हाँ का वो कई दिन से इंतजार कर रहे थे आज उसके बिना कहे उन्होंने उसकी आँखों में पढ़ ली... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">गुलाब कि खुशबू ने कमरे के चारों कोनो, दीवार, छत, परदे, पेंटिंग, सोफा, टेबल, लेम्प, फ्रेम, केंडल स्टेंड, बुद्धा कि मूर्ति, क्रिस्टल बोअल, कुशन, कालीन हर खाली और भरी जगह पर अपने वहां होने का ऐलान कर दिया, उनके लाल रंग कि अलग पहचान थी जैसे तारों के बीच चाँद की होती है... कमरे में बैठते - उठते गुज़रते वो आखों को बुलावा देते और नाक को चढ़ावा... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अगले दिन जब पूछने पर उसने अपना फैसला सुनाया तो पचास गुलाब के कांटे एक साथ उनके दिल और शरीर में चुभे ... उसके फैसले के आगे सर झुका लेना मज़बूरी थी और ऐसे वक्त में उसे गले लगा लेना कर्तव्य... पर उसके प्रति उनका क्या कर्तव्य था जिसने यह गुलाब भेजे थे और जो कुछ दिन पहले उसकी एक पुकार सुन कई बागीचों के फूलों को अनदेखा कर, पहाड़ों की आवाज़ को अनसुना कर, सात समुन्दर पार, धरती के एक कोने से दुसरे कोने में दिल लेने और देने आया था .... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">गुलाब को घर वालों के हवाले कर वह तो लौट गई अपने शहर.. कमरे मैं घुसते ही गुलाब को देखते ही आँखों में अजीब सा सूनापन घिर आता.. कांटो की चुभन साँसों में भर, दिल के भीतर एंठ्ती ...जो ना किसी के साथ बाँट कर कम होती और न ही भीतर दफ़न होती ... रोज उन्हे देखा ...किस तरह एक-एक कली फूल बनी और धीरे - धीरे पंखुड़ी गहरी होने लगी, अपने में सिकुड़ने लगी ...खिड़की से झांकती धुप उन्हे सुखा रही थी, पर्दा खींचने से सोते से जागती नाज़ुक हवा अनजाने में ही उन्हे फूल से अलग कर देती .. रोज़ सुबह पंखुड़ियां टीक फ्लोर पर ऐसे चमकती जैसे आने वालों के स्वागत में बिछी हों .. जब भी उन्हे उठा आँगन की मिटटी के हवाले किया ऐसा लगता जैसे दोनों के लिए देखे सपनों पर मिट्टी डाल रही हो ... सपने देखने वालों में बहुत लोग थे... विश्व के कोने - कोने में...पर उन्हे फ्लोर से उठा मिट्टी के हवाले करने को वो अकेली थी ... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">फूलों पर गिनी- चुनी पंखुड़ी रह गई .. उन्हे मटमैले पानी से निकाला और आँखे फाड़, मुह पर हाथ रख एक कदम पीछे हट गई ... गुलाब कि हर टहनी से नन्ही - नन्ही हरे रंग कि चमकदार नरम पत्तियां फूट आई थी उन पत्तियों में एक भी काँटा नहीं था... प्रक्रति, स्रष्टि और भगवान् भी उन दोनों के लिए सपने देखने से नहीं चूके... </span><br />
<br />
<div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसकी भरी आँखे देख रही है समय के उस पार, एक अंतराल, एक काल चक्र... आँगन कि कली जो हवा में बिखरी पचास गुलाब की सज्जनता, सहीष्णुता, अधीरता, और चाह अभी देख ना सकी.. एक दिन वो उम्र कि सीढ़ी पार कर जब सफेद बालो में रंग लगाएगी... पचास गुलाब की खुशबू उसे काँटों सहित याद आएगी ... </span><br />
</div><br />
</div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com29tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-3054018913486893732009-11-19T13:49:00.000-08:002009-11-19T13:49:41.044-08:00तड़ाक की आवाज़ सारे गावं पर बिजली की तरह गिरी....<div align="center" style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsBPEeKD4E45enJXH93cL5TKGWu1hiTejlzMYfX4-CADq0XWt4Ad6CVurxiph3tb1ukxHZjj5j8hTZ75qFwIxZE8brgBZd1RowW4gxItZ5khf3IHVCBssHqES7y92M-iyu-3rgHNIbTQk/s1600/chakki_cards.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsBPEeKD4E45enJXH93cL5TKGWu1hiTejlzMYfX4-CADq0XWt4Ad6CVurxiph3tb1ukxHZjj5j8hTZ75qFwIxZE8brgBZd1RowW4gxItZ5khf3IHVCBssHqES7y92M-iyu-3rgHNIbTQk/s320/chakki_cards.jpg" yr="true" /></a><br />
</div><div style="text-align: justify;">गोरा चिट्टा रंग, लंबी काठी, गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठ, दिए की लौ जैसी आँखें, कमर से नीचे तक लम्बे बाल.... कोई उसका नाम जाने बगैर बता सकता था परमजीत कौर यूपी के ज़मींदार परिवार से नहीं बल्कि, अमृतसर के गुरुनानक ट्रांसपोर्ट कम्पनी के मालिक की बेटी है. पैदा भले ही अमृतसर में हुई थी पर पली- बढ़ी अफ्रीका में, पिता कि गुरुनानक ट्रांसपोर्ट कम्पनी भारत कि सड़कों को छोड़ अफ्रीका की सड़कों पर दौड़ने लगी थी... गुरुनानक ट्रांसपोर्ट कम्पनी के पास पचपन ट्रक, साठ ड्राइवर और आठ लोग दफ्तर में काम करते थे ... घर मैं तीन नौकर थे उनके बच्चों के साथ वह कंचे खेला करती थी... घर में अनाज, चीनी, आलू, प्याज बोरियों में और सब्जी फल टोकरों के हिसाब से आते थे... आठ भाई बहनों में वह सबसे बड़ी थी... <br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">सोलहवें साल में कदम रखा ही था मां को उसकी भरी छाती और गिलहरी जैसी कूद- फांद बिलकुल ना भाती थी...उन दिनों सिख लड़कों का अफ्रीका में बड़ा अकाल था ...पंजाब से एक बुलाया भी था जिसने आते ही घोटाला किया और ट्रक का आधा माल हड़प लिया. ...यू पी का ओमकार वहीं पर काम करता था ट्रांसपोर्ट कम्पनी का हिसाब - किताब संभालता था- निहायत ईमानदार और कर्मठ और उसके पिता सरदार सुरजीत सिंह का विश्वासपात्र. ओमकार का ब्याह सोलह साल की उम्र में हो गया था और गौने से पहले ही वह कॉलेज पूरा कर उन्नीस साल की उम्र में रोज़ी रोटी कि तलाश में अफ्रीका पहुँच गया... पहले छः सालों में वह दो बार पत्नी को लाने अपनी ससुराल गया किन्तु उसने ओमकार के साथ अफ्रीका आने से साफ़ इनकार कर दिया क्योंकि परदेस में पति का तो धर्म भ्रष्ट हो चुका था वह अपने देश और माता - पिता के घर में अपना धर्म सुरक्षित रखना चाहती थी... ओमकार ने अब पत्नी से सभी उम्मीद छोड़ दी थी और अपने को अकेला मान लिया था और पिछले पांच वर्ष से वह घर नहीं गया था... सरदार सुरजीत सिंह को ओमकार की नीयत और शराफत पर बड़ा यकीन था. उन्हें मालूम था कि सब छड़े आदमी तो इधर -उधर मुह मारते रहते हैं किन्तु ओमकार ऐसा नहीं था... तभी तो उन्हे परमजीत कौर का लगन उससे उम्र में पंद्रह साल बड़े ओमकार से करने में उन्हे कोई संकोच नहीं हुआ .... माँ को तो वैसे भी वो एक आँख ना सुहाती थी... शनील का सुनहरा गोटा लगा सलवार कमीज़, सिल्क का जरीदार दुपट्टा और सुहाग का लाल चूडा पहन कर परमजीत भी बहुत खुश थी, कम से कम माँ की डांट और गालियों से तो छूटकारा मिलेगा... पर बाउजी ...वो तो उसे बहुत प्यार करते हैं... ओमकार ने लगन मंडप अपने हाथों से, परमजीत के आँगन में खुद तैयार किया था... वहीं पर खिड़की से परमजीत ने ओमकार को पहली बार देखा था उसे वो भला लगा था... ओमकार ने जब सुहागरात को परमजीत को ठीक से देखा तो एकटक देखता रह गया... वह पलंग पर बैठी गोटियाँ खेल रही थी और गोटियों के उछलने के साथ उसकी आखें ऊपर नीचे इस तरह हो रही थी जैसे अंधरे में लालटेन हिलती है उसे देखते ही परमजीत ने गोटियों को तकिये के नीचे छुपा दिया और वह माथे से खिसक आया टीका ठीक करने लगी और हडबडाहट में बिस्तर से उतर मेज़ से चाकू उठा कर बोली "तुस्सी सेब खावोगे ... " वो चाकू उसके हाथ में बंधे कलीचड़े खोलने के काम आया था... कलाई पकड़ते ही स्पर्श कि गुदगुदी से इतना हंस और हिल रही थी उसे डर था कहीं उसे चाकू ना चुभ जाए.. रात गहरी होने के साथ -साथ .. ज्यों ज्यों नजदीकियों की पकड़ मजबूत होती गई उसकी हँसी मंदी होती गई ... <br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">ओमकार ने सरदारजी की नौकरी छोड़ रेलवे में नौकरी ले ली... वो रेलवे क्वाटर में रहने लगे कभी मुम्बासा, तो कभी गिलगिल तो कभी...कम्पाला .. एक दिन जब वो घर लौटा तो वह पेड़ पर चढ़ी पड़ोस के बच्चों के साथ नाशपाती तौड़ रही थी... उसे बहुत डांट पड़ी, ओमकार ने उसपर घर से बाहर निकलने के लिए प्रतिबन्ध लगा दिया .... कई बार जब वह जल्दी घर लौटता, दबे पाँव छत पर चढ़, चुपचाप देखता वह क्या कर रही है कभी वह पड़ोस में जाती तो पीछे - पीछे उसे बुलाने पहुँच जाता....शाम को आकर वह रोज पूछता वह कहाँ -कहाँ गई और क्यों गई ... परमजीत को लगता ओमकार घर से निकलने के बाद भी अपनी आँखे घर छोड़ जाता है जो उसका हर समय पीछा करती हैं बाईस साल कि उम्र में वह चार बच्चों कि माँ बन गई उसकी गिलहरी वाली चाल कब में गुम हो गई उसे खुद को पता ना चला लेकिन उसके गालों की लाली और आँखों में मासूमियत उसी तरह बरकरार रही... <br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">ओमकार का परिवार ईदी अमीन के कहर से बच अपने महाद्वीप, देश, गाँव, घर और घेर लौट आये ...तब उन्हे नहीं मालूम था कुटुंब का कहर उनका इंतज़ार कर रहा है परमजीत ने धीरे - धीरे वो सभी काम सीख लिए थे जो उसने दो बीघा ज़मीन और मदर इंडिया में औरतों को करते देखा था, वह सुबह चार बजे उठती, गावं कि औरतों के साथ लोटे में पानी लेकर अँधेरे में जंगल जाती, लौट कर चक्की पर गेहूं और चने पीसती, दही बिलों कर मक्खन निकालती, घर और आँगन बुहारती, गोबर हटा बैल और गाय को चारा देती, हैण्ड पम्प से पानी खींच कर भरती, नौकरों के लिए मिस्सी रोटी, बच्चों के लिए परांठे चूल्हे पर बनाती, फिर पानी गर्म कर, बच्चों को नहला- धुला कर स्कूल भेजती. फिर बिटोडे पर गोबर भी पाथने जाती....खेत पर कभी वह रोटी देने नहीं गई, ओमकार अक्सर सवेरे ही साथ ले जाया करता था, रेलवे कि नौकरी में रोज टिफिन ले जाने कि उसकी आदत यहाँ भी बरकरार रही... <br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">दोपहर में यदि वो थक - थका कर लेट जाती तो जेठानी कभी चारा काटने कि मशीन चालू कर देती या रेडियो उंचा सुनने लगती, शाम को वह खाना बनाने बैठती तो जेठानी छाछ को उछाल - उछाल कर गेहूं और दालें साफ़ करने लगती और वह भिगोना और परात को उड़ती धुल से बचाने कि कोशिश में जुट जाती... जेठानी खाना अलग बनाती क्योंकि जब कभी ओमकार शहर जाता बच्चों के लिए अंडे लाता जिन्हें वह उबाल कर बच्चों को दिया करती थी ... वह कितना भी अंडे के छिलके छुपा ले किन्तु वो सफ़ेद दुकड़े जेठानी की नज़रों को ढूंढ लेते थे ... वो आस -पड़ोस की औरतों के लिए कभी अंडे के छिलके मुर्गी की हड्डी तो कभी गाय की हड्डी बन जाते... गाँव के बड़े- बूढे, नौजवान, ब्याही, बिन ब्याही औरतें, मेहमान और बच्चे सभी में वह " पंजाबन " के नाम से जानी जाती... यहाँ तक कि उसके चारों बच्चों के नाम भी एक हो गए वे स्कूल और स्कूल से बाहर वो चारों " पंजाबन के" कहलाने लगे ... क्योंकि वह गावं वालों से अच्छा पहनते थे... अच्छा खाते थे इसलिए वह "पंजाबन के" भी ज्यादा कहलाते थे... <br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">जेठ को उसका पका खाना बहुत पसंद था कभी बेंगन का भरता, भरवा टिंडे, भुनी भिन्डी, दम आलू, घिया के कोफ्ते, पालक का साग, आलू- बड़ी, मसाला चना, गाजर-मेथी, खीरे का रायता, पुलाव और रोज नयी दाल, अक्सर वो बच्चों को भेज कर दाल और सब्जी मगाते और जेठानी को कोसते " कुछ सीख ले बहू से... आलू टमाटर का घोल बनाते - खिलाते जी ना भरा तेरा.. " दीवाली पर एक बार परमजीत की देखा देखी जेठानी ने भी गुलाब जामुन बनाये जब वह मुह में अखरोट तरह चबे तो सवेरे गाय को खिलाने के काम आये .. परमजीत ने जो कटोरदान भर बच्चों के हाथ भिजवाये थे उन्हे जेठानी ने अपने हाथ के बने कह कर जेठ को खिलाये .... <br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">परमजीत अब सिर्फ सूती साड़ी पहनती थी, जिसे ओमकार दिवाली और होली पर लाकर देता, रेशमी सलवार कमीज़ बक्से में बंद हो गए, हर साल बरसात के बाद उन्हे बक्से से निकाल कर धूप में सुखाती, जेठानी हमेशा सलाह देती दे-दिवा क्यों नहीं देती? क्या करेगी इन्हें संगवा कर? जेठानी की लड़कियों के बड़े हो जाने पर परमजीत ने अपने सलवार कमीज़ उन्हे पहने को दे दिए... परमजीत घर से बहुत कम निकलती थी, जब कभी वह पहन ओढ़ कर बाहर निकलती तो घेर, दालान, हुक्का, छतें, सडकें, कुँए, खेत, टोकरे, पेड़, बैलगाड़ी, ट्रेक्टर, हरियाली, कबूतर उसे पीछे मुड़ - मुड़ कर देखते.. <br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">पड़ोस में कुनबे में लड़के की शादी हुई है, दोपहर से ढोलक और गीत गाने की आवाज़ आ रही है... वह घर का काम निपटा कर बनारसी साड़ी पहन कर तैयार हुई, बालों को बाँध कर जूड़ा बनाया, हाथ के नाखूनो में पिन से खुरच कर राख और मिट्टी निकाली, फटे पैरों कि एड़ियाँ रग ड़ी और नाखूनों पर नेल पालिश लगाईं, गले में मां का दिया सोने का हार और कानो में सास की दी हुई झुमकियाँ पहनी , लाल रंग का कश्मीरी कढाई का शाल खोल कर कधों पर डाल लिया.. छः साल की बेटी को नयी फ्रॉक पहनाई, उसकी दो चोटी बना गुलाबी रिबन बाँध दिया.. उसकी अंगुली पकड़ वह ढोलक की थाप की और मुड़ ली .... आँगन खचाखच भरा था .... दुल्हा - दुल्हन कंगना खेल चुके थे ....उनके आगे रखी परात में दूध और उस पर दूब तैर रही थी ... वह बेटी का हाथ पकड़े... बैठी औरतों के बीच दरी का टुकडा ढूंढ पाँव बचा - बचा कर रख रही ... शगुन देने के लिए धीरे - धीरे दुल्हन की और बढ़ रही थी... ढोलक और चम्मच की थाप पर औरतें बधाई गा रही थी.... जैसे ही बधाई समाप्त हुई. ढोलक कि थाप बंद हुई ... " आ गई तू पंजाबन... " उसने पीछे से सुना ... कुछ औरतें हे हे करके हंसने लगी.... परमजीत पीछे मुड़ी और आँगन में तड़ाक की आवाज़ गूंज गई ...और एक मुर्दाई खामोशी छा गई ... जिसको परमजीत की आवाज़ ने तोड़ा ...वो औरतों कि तरफ इशारा कर बोली .. बन्ना गाओ ...चुप क्यों हो गई .... ढोलक फिर से शुरू हो गई और गाना भी ... बन्ने तेरी दुल्हन चाँद सी रे ..... और सभी ने साथ आवाज़ मिलाई ...<br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">परमजीत दुल्हन का घूंघट हटा मुंह देख, शगुन देकर उसके पास बैठ गई और सभी के साथ मिलकर गाने लगी- बन्ने तेरी दुल्हन चाँद सी रे... उसे अपना दुल्हन वाला चेहरा याद आया, गोटियाँ याद आई, चाक़ू याद आया, वह अपने आप से शर्मा गई ....उसके गरम खून कि लाली उसके गालों पर दमकने लगी ... <br />
</div><div style="text-align: justify;">तड़ाक की आवाज़ सारे गावं पर बिजली की तरह गिरी और उस दिन के बाद किसी ने उसे पंजाबन और उसके बच्चों को पंजाबन का नहीं कहा .. <br />
</div><div style="text-align: justify;"> <br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: xx-small;">पेंटिंग - गूगल सर्च इंजन से </span><br />
</div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com30tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-23183034585997731992009-11-05T14:24:00.000-08:002009-11-05T22:43:52.722-08:00कहीं तुम उन्हे मसीहा और दोस्त ना समझ लो....<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br />
</div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjI4r2WDGlFTzeQWECwFzz1xo-cH0sM9GjpnyLHS2939Huc0AxgIDu-b2z0sYBP7-zLNvoY14CkjqF_1Ak9_NEwXQ8CO83Ron2e95qiwYV4YfH2wZQoUPYUNCiWZZZqjK-02ox4q2wRUzE/s1600-h/4030788015_8c0431d16c.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjI4r2WDGlFTzeQWECwFzz1xo-cH0sM9GjpnyLHS2939Huc0AxgIDu-b2z0sYBP7-zLNvoY14CkjqF_1Ak9_NEwXQ8CO83Ron2e95qiwYV4YfH2wZQoUPYUNCiWZZZqjK-02ox4q2wRUzE/s320/4030788015_8c0431d16c.jpg" vr="true" /></a><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><strong>कैसी हो?</strong> जब कोई अचानक बस इतना सा पूछ बैठे तो कई बार ऐसा क्यों होता हैं ऐसे सरल प्रश्न का उत्तर "ठीक हूँ" कहने के बाद भी वो जान लेते हैं कुछ भी ठीक नहीं है वो सब कुछ जो तुमने नहीं कहा, उन्होंने सुन लिया .... उन्हें तुम्हारे आस-पास उड़ता धुँआ तुमसे भी अधिक साफ़ दीखता है... उस "ठीक हूँ" में उन्हें एक ही वेवलेंथ पर सिग्नल टकराने की संभावना दिखाई देती है... उनके पूछने के ढंग में ऐसा क्या है कि " कैसी हो" सुनते ही मन और आत्मा अपनी जगह से उछल कर हवा में तैरने लगते हैं और वो उन्हे बिना मुखोटे के और निर्वस्त्र देख लेते हैं .. ऐसा क्यों लगता है वह तुम्हारे साथ डिब्बे में सफ़र करना चाहते हैं, खिड़की वाली सीट तुम्हें दे तुम्हारी किताब मांग कर पढ़ना चाहते हैं,... तुम्हारे पाँव की यात्रा कि लम्बाई जानना चाहते हैं... तुम्हारे दर्द की गठरी खुलवा उसमें मुसे पड़े दर्द को इस्त्री कर, जिससे की वो दिल और आँखों को कम से कम चुभे, करीने से लगाना चाहते हैं , .... वो धरकनो के पन्ने पलट, प्यार में मिले जिंदा पलों कि खुशबू सुंघ और उसमे मिले आंसू को गिन तुम्हे पाब्लो नरूदा की कविता सुना, प्यार में खोया विशवास लौटाना चाहते हैं ...वो तुम्हारे नैन- नक्ष पर फितरे कस माथे के बलों की जगह तुम्हारे चेहरे पर हंसी की खेती करना चाहते हैं ... वो तुमसे तुम्हारे गुनाह उगलवा उन्हें तराजू में रख तुम्हारा पलड़ा अपने से हल्का बता डंडी मारना चाहते हैं... वो तुम्हारे बचपन में लगी चोट के निशाँ की कहानी कोरी किताबों के पन्नो को सुनना चाहते हैं ... वो जिन्दगी और दुनिया से मिली ठोकरों का बेंक बेलेंस जानकार तुम्हारा अकाउंट खाली करना चाहते हैं... वो गुमी खुशियों कि चाबी ढूढना छोड़ तुम्हारे अंतर्मन का ताला पतझड़ और पर्वतों से तोड़ना चाहते हैं... वो सपनो की ताबीर को नींद से बाहर निकाल तारों से उनकी सिफारिश करना चाहते हैं... वो तुम्हे घर की खिड़की से सुरज कि दस्तक और चांद की चाशनी चखाना चाहते हैं ... वो तुम्हारी जिंदगी में हवा के झोंके कि तरह आकर, शाम की घूप की तरह सिमटना चाहते हैं वो तुम्हारे खामोशी को सरगम दे तुम्हारा साज़ बनना चाहते हैं, वो तुम्हारा आकाश ढूंड, वहां पर लिखा तुम्हारा नाम पढ़वा उसका कोना तुम्हारी अंगुली से बाँधना चाहते हैं वो दराज और सपनो में कैद कुलबुलाहट को पंखो में बदलने का नुस्खा तुमसे बाँटना चाहते हैं ...</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
<div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कहीं तुम उन्हे मसीहा और दोस्त ना समझ लो, उनके दिए-लिए पर अपना हक़ ना मान लो ... वो तुम्हे ढूंढ कर तुम्हे वापस लौटा, रूमी और हाफिज़ को तुम्हारा सगा बना, वर्तमान और भविष्य को तुम्हारे हवाले कर, मुस्कुराते हुए तुमसे विदा ले, तुमसे दूर जाना चाहते हैं ... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
<div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif; font-size: xx-small;">foto - flickr.com</span><br />
</div><br />
</div><br />
</div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-84274069104703721712009-10-20T16:47:00.000-07:002009-10-20T16:51:06.741-07:00नीले आसमान से स्लेटी बादल घुमड़- घुमड़ कर उसकी ओर आ रहे थे....<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuVYTWxbu_JCg0QnB3PblElSjUII6Xk8hnXjE_he2OsvsIDPVkjL69Cpj1Qka1a8jJe26TWxyMJlNCiqHKukA5F7CwWX0Lhnedg_durVlvgNsnIMNbwhK50KP2bEuagC_UkpNsuArs-OE/s1600-h/2511369048_c17a1fb442.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuVYTWxbu_JCg0QnB3PblElSjUII6Xk8hnXjE_he2OsvsIDPVkjL69Cpj1Qka1a8jJe26TWxyMJlNCiqHKukA5F7CwWX0Lhnedg_durVlvgNsnIMNbwhK50KP2bEuagC_UkpNsuArs-OE/s320/2511369048_c17a1fb442.jpg" vr="true" /></a><br />
</div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">धूली धुप की तरह पीली, शीशे की तरह पारदर्शी, बरसात के टपकते पानी की तरह साफ़, अभी- अभी गिरी बरफ की तरह सफ़ेद, बिना बादलों के आकाश की तरह नीला, बिजली की रौशनी पहले और गड़गडाहट बाद, होटों से कही हाँ और ना, पन्नो पर पुते तथ्यों का आगाज़ ... वो जिंदगी को ऐसे ही देखता है ब्लेक एंड व्हाइट में.. पिछले तीन सालों से आजतक वृंदा को नहीं मालुम पुष्कर बीच के रगों को देखने में सच में ही असमर्थ है या वो उन्हें देख कर अनदेखा करना उसकी फितरत है ... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम्हे कभी चिंता नहीं होती लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे.. कल रात तुमने फोन अपनी माँ को पकड़ा दिया " से हाय तो पुष्कर माँ ... तुम्हे मालुम है रात का एक बजा था उस समय!" </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम मुझे इतना देर से फोन क्यों करते हो? मेरी माँ बहुत साफ़ और खुले दिल की औरत है उसके पास तुम्हारी तरह फालतू बातें सोचने का वक्त नहीं .. क्यों अपना दीमाग खराब करते हो दुनिया के बारे में सोच कर?"</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम लड़की हो मुझे तुम्हारी बदनामी की चिंता होती है.."</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तुम्हे मेरी चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है आई कन् लुक आफ्टर माइसेल्फ़... तुम अपने माता - पिता के आदर्श बेटे, कालेज के आदर्श विधार्थी और मेरे आदर्श दोस्त बने रहो.. यही तुम्हे सूट करता है" </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो किसी तरह से भी डाक्टर बनना चाहता है , यह उसके अलावा उसके माता - पिता का भी सपना है.. . ग्रेजुएशन के बाद भी लगा रहा, जब देश में दाखला नहीं मिला तो विदेश चला गया... जाने से पहले पुष्कर ने वृंदा के जन्मदिन पर उसकी ख़ुशी के लिए बहूत कुछ करना चाहा..वृंदा को उसकी दी ख़ुशी स्वीकार करने में कोई आपति ना थी लेकिन पुष्कर ख़ुशी बटोर कर उसके कदमो में डालना चाहता था और दुनिया के डर से उस ख़ुशी में शामिल होने से उसे एतराज़ था... व्रंदा ने जब उसकी दी ख़ुशी को स्वीकार करने से मना कर दिया तो उनकी अहम् की लड़ाई में दोस्ती कुर्बान हुई ... उस शख्स का क्या करे जो जिंदगी की दस्तक को अनसुना कर दुनिया के दिल टटोलता फिरता है ... फिर भी इंसानियत और शिष्टाचार की इज्ज़त रखना दोनी ने अपना धर्म समझा, जन्मदिन और नए साल पर वो एक दुसरे को शुभ कामनाएं भेजते रहे..</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">आर्किटेक्ट का लंबा कोर्स समाप्त कर व्रंदा एक प्रतिष्टित फर्म में नौकरी करने लगी ...</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वृंदा ने भरपूर जिंदगी जी, उसने कभी अपनेआप को अकेला महसूस नहीं किया.. किसी से मिलने और अपनी जिंदगी में शामिल करने का कभी कोई अवसर नहीं गवाया... वह हर उन अवसरों और पार्टी में मोजूद होती... जहाँ किसी से मिलने की गुंजाइश होती, हर उस उम्मीदवार से मिली जिसको उसकी माँ ने चुना, आफिस की केन्टीन में आसपास मंडराने वालों पर भी वह उदार रही और कोई भी डेटिंग के किसी अवसर को उसने नहीं खोया... वो अलग बात है ... कुछ उसके कंधे तक आते थे, कुछ उसके आत्मविश्वास से घबराए, कुछ उसके फेमिनिस्ट विचारों से दूर भाग गए, कुछ ने उसकी आँखों की गहराई से ज्यादा पे पेकेट में दिलचस्पी ली, कुछ उसे फर्नीचर की तरह अपने घर में सजा कर रखना चाहते थे, कुछ एक दुसरे को जानने से पहले अपनाने को आतुर थे, तो कुछ सिर्फ गुड टाइम के लिए साथी बने , कुछ उसके सुंदर चहरे और कमसिन देह को छोड़ बाकी सब कुछ बदलना चाहते थे... उन सब की वह परिचित बनी, अच्छी दोस्त बनी, और कभी दूसरो ने उसे अजनबी बना दिया या कभी अनजाने में उसने... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">पुष्कर को वापस लौटे साल हो चला है ... दोनों अपनी जिंदगी में मशगूल हैं ... वृंदा ने सोशलाइज़िन्ग के अलावा कई और शौक पाल लिए हैं जैसे हर तीन महीने बाद छुट्टियों पर जाना , हफ्ते में एक बार सालसा क्लास के लिए जाना, जन्मदिन और शुभ अवसरों पर दोस्तों और घरवालों के लिए खुद हाथ से ग्रीटिंग कार्ड बना कर देना, इतवार को ब्लाइंड स्कूल में जाकर अंधे बच्चो के साथ खेलना, शनिवार को कोचिंग स्कूल में पढ़ाना, इसके अलावा जो समय बचा फेसबुक और किताबों में मुह दे लेना .... उसके चेहरे की ताजगी और मन की चंचंलता समय के साथ निखरती रही, खुश रहने का तो उसे वरदान मिला था... वो जहाँ जाती जाने के बाद भी उसकी हंसी हवा में गूंजती ... जिंदगी का कोई ऐसा पल नहीं छोड़ा जो उसने जीया ना हो... जिन्दा पलों की </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">चाबी उसकी अँगुलियों में हर समय झूलती... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कभी कालेज के दोस्त पुष्कर को लेकर मज़ाक करते तो वृंदा मुस्कुरा कर कहती "मैं चाहती हूँ उसकी खूबसारी गर्ल फ्रेंड हो जो उसके दिमाग से दुनिया का डर निकाल सके, वो मिस्टर सेक्रिफाईस से मिस्टर सक्सेसफुल बने... पार्टी में सबसे शर्मीली लड़की का हाथ थाम उसे डांस फ्लोर पर ला सके, अपनेआप को आईने में देख कर मुस्कुरा सके, आँखों से काला चश्मा उतार आसमान को देख सके, वो मुझे कहीं मिले तो कहे आई डोंट लाईक यौर मिस्टर राइट " ... और वह खिलखिला कर हंस देती .. </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">माँ कभी उदास होती तो वह गले में बाहें डाल, आखों में आँखे गडा कहती " अरे माँ तुम चिंता ना करो तुम अपने नातियों को अगले साल गोद में खिलाओगी ... वैसे तुम मेरे साथ कब रहना शुरू करोगी मेरी पलटन को कौन देखेगा जब मैं आफिस जाउंगी ..." दोनों की हँसी दीवारों से टकराती ... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसके मोबाइल फोन पर दोस्त का एस एम् एस है ... पुष्कर मिला था, बरिस्ता में, तुम्हे जानकार ख़ुशी होगी वह अभी भी सिंगल है और उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं है... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसने खिड़की से बाहर फैले अँधेरे को देखा... आखों के रास्ते वो उसके भीतर और आस-पास उतरने लगा ... क्या अभी भी वो ब्लेक एंड व्हाइट जिंदगी जीता है? जीवन के रगों के प्रति कलर ब्लाइंड है ?... अपनी इच्छा को दराज में बंद कर दुनिया की ख्वाइशों में जीता है? ..इर्द -गिर्द बिखरे जिंदा पलों को अनदेखा कर पलकें मूंद लेता है ... धरकनो की आवाज़ में भी ट्रेफिक का शोर सुनता है, आज और अभी को ठुकरा कर कल और परसों में जीता है... इस अँधेरे से निकल भी ना पाई थी की सोचते-सोचते दुसरे अंधरे ने आँखों को घेर लिया और पता ही चला कब पहला अँधेरा उसे अकेला छोड़ खिसक गया ...</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सुबह जब आँख खुली तो उसके मोबाइल फोन पर अनजान नंबर से दो मिस काल थे और एक अस ऍम अस ... मैं </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">कल तुम्हारे शहर आ रहा हूँ तुम्हे डेट पर ले जाने... अपनी सभी डेट्स केंसल कर दो... पहुँच कर फोन करता हूँ ..पुष्कर</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">व्रंदा ने खिड़की से बाहर देखा नीले आसमान से स्लेटी बादल घुमड़- घुमड़ कर उसकी ओर आ रहे थे.... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana;"></span> <br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana;">फोटो -flickr.com </span><br />
</div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-4663859798087063054.post-6624049505731260462009-09-30T16:17:00.000-07:002009-09-30T16:22:51.206-07:00एक शाम की भूख और पचास हजार की रोटी..<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8vII1gRhVWR-Btt8BqwTxZFmzBuFRA3pLjExyjavDwk_bXcnnButW9I8ffFDe8UyGIid1rdaXf88cElX_iTtgcgiaM7iYRiNMn0XruSbnDPU0ew3iINBn0pli8UtS7y1UXgS0YmHw8Xo/s1600-h/chipattithumb.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" iq="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8vII1gRhVWR-Btt8BqwTxZFmzBuFRA3pLjExyjavDwk_bXcnnButW9I8ffFDe8UyGIid1rdaXf88cElX_iTtgcgiaM7iYRiNMn0XruSbnDPU0ew3iINBn0pli8UtS7y1UXgS0YmHw8Xo/s400/chipattithumb.jpg" /></a><br />
</div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">पता नहीं क्यों उसे लगने लगा है परिवार में उसका अस्तित्व ऐसा ही है जैसे शेल्फ पर रखी किताब का है, दीवार पर लगी घड़ी का है, मेज पर रखी चाबी का है, धुप में काले चश्में का है, बरसात में छाते का है, जाड़े में गर्म कोट का है ...वो सभी अमूर्त और अद्रश्य रहते हैं जब तक उनकी ज़रूरत नहीं पड़ती ... पर उसे किसी से कोई शिकायत नहीं है परिवार के सपने पूरे करने के लिए उसने अपने सपनों का साथ तो उसी दिन छोड़ दिया था जब कालेज की नौकरी छोड़, पत्नी के भाई के साथ बिजनेस शुरू किया था.. किसी के दबाव में आकर नहीं .... यह सब कुछ उसने स्वेच्छा से किया था...अपनों को खुश रखने और उनकी ख्वाइशे पूरी करने कि कोशिश में वह रेल के इंजन की तरह हो गया है उसमें खुद को झोंकता है और गाड़ी उसी और चलती है जहाँ पसिंजर जाना चाहते हैं ...उसके लिए यह सब अपनी पटरी, दिशा और स्टेशन की ओर चलने से कहीं अधिक आसान है ... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वह एक सप्ताह बाद बिजनेस टूर से लौटा है...घर के लोग उसके आगे- पीछे घूम रहे हैं पत्नी को याद करने कि फुर्सत उसे नहीं मिली थी किन्तु आज उसका अपनापन देख ग्लानी हो रही है... वह फोन पर भी कितना रुखा और उदासीन था ... ऐसा बहुत समय बाद हुआ है वह घर लौट कर अपनों के बीच खुश है आज ऐसा लग रहा है वह अपने घर नहीं किसी और के घर सात वर्ष बाद लौटा है... आज एक और विशेष बात है उसकी प्लेट में नौकर के हाथ कि नहीं बेटी के हाथ कि बनी रोटियां उड़न तश्तरी की तरह उतर रही हैं है, गोल नहीं है, अलग-अलग प्रान्तों के नक्शे हैं यह कश्मीर का नक्शा है सफ़ेद और मुलायम, यह उतरांचल का है थोड़ा उबड़- खाबड़ , यह पंजाब का लगता है कुछ ज्यादा करारा किनारों से थोड़ी मोटा, तोड़ने में सख्त है पर स्वाद में वाह ! आज बेटी इतनी बड़ी हो गई है और सबसे बड़ी बात यह कि वो रसोई कि तरफ मुडी है ओर पिता को गरम रोटी खिला रही है ... वो तीन रोटी खाता है किन्तु बेटी के आग्रह पर आज चार रोटी खाई हैं और रोटी के रंग, रूप और स्वाद की तारीफ़ वो खाना ख़त्म करने बाद भी करता रहा... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वो जेब में हाथ डाल रहा था.. फिर अचानक पूछ बैठा... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"बरखा बेटा! कुछ देना चाहता हूँ?"</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"नहीं पापा! कुछ नहीं चाहिए! "</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसके जवाब से वह और उदार हो गया और बोला "तुम्हारा मोबाइल ठीक से चार्ज नहीं होता, जन्मदिन से पहले ही तुम्हें नया मोबाइल दिला दूंगा " </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">बरखा का चेहरा और आँखे चमक उठी "पापा मैंने पांच हजार तो जमा कर रखे हैं बाकी आप दे देना .. मुझे आई-फोन चाहिए, बिजनेस टूर पर आप जब सीन्गापुर जायेंगे तो वहां से लेकर आना " </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"ठीक है ... मुझे तुम्हारे हाथ कि रोटी पहली और आखरी बार तो नहीं मिल रही न?" दोनों जोरों से हंस दिए.. </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">सोने से पहले उसका सेल फोन बजा.. उसे ख़ुशी हुई उदित का फोन है.. नहीं तो वह मोबाइल का बिल बचाने की वजह से वह घर वालों से ही उम्मीद करता है ... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"बेटा कालेज कैसा चला रहा है ?"</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"पापा फर्स्ट क्लास " </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"कालेज के अलावा क्या हो रहा है?" </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"पापा मैं आजकल रोटियां बनाना सीख रहा हूँ जब छुट्टियों में घर आउंगा तो आपको अपने हाथ कि रोटी खिलाउंगा .."</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"तू फ़िक्र मत कर मैं तेरे हाथ कि रोटी बिना खाए ही तेरे अकाउंट में रुपये डाल दूंगा... " उसने हंस कर कहा ... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"पापा दस हज़ार चाहिए....मुझे कालेज के फंक्शन....." .</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"कल ही डाल दूंगा उसने बात काटते हुए कहा...ज्यादा कि ज़रूरत हो तो बताना.."</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"नहीं पापा काफी होंगे.. पर मैं आपको अपने हाथों से रोटी बना कर जरुर खिलाउंगा.. "</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">दोनों हंसते हुए एक दुसरे को बाय कहते हैं .... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"> </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अरे यह क्या?" पास बैठी पत्नी बोली? उसने हैरानी से उसकी तरफ देखा... </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"मैंने तुम्हारे लिए बीस साल तक रोटियां बनाई ... तुमने मुझे क्या दिया?" </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"अरे! सब कुछ तुम्हारा ही तो है...." </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"बस! हमेशा कि तरह हवा में बात! ...."</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"ठीक है तुम्हें क्या चाहिए? "</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"सिर्फ एक हीरे कि अंगूठी " </span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">"बीस साल के सिर्फ बीस हज़ार... कल केश ला देना"</span><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">वह हंस कर बोली उसके चेहरे कि फीकी सी मुस्कान ने पत्नी की हंसी का साथ दिया... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;"><br />
</span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">उसे यकीन हो गया वह होटल से अपने घर लौट आया है... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Verdana, sans-serif;">अब उसे किसी के हाथ की रोटी खाने कि इच्छा नहीं होती ... नौकर के हाथ की रोटी अच्छी लगती है क्योंकि उनमें नोटों की महक थोड़ी कम आती है... </span><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><span style="font-size: xx-small;">फोटो- गूगल सर्च इंजन से </span><br />
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</div>neerahttp://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com20