Monday 24 November 2008

बस इतना सा ख्वाब है ...




( यह कविता मुझे ऋतुराज जी ने भेजी है उन्होंने बताया है की यह १९९१ में लिखी थी। जबकि उनका बेटा-बेटी अभी चौदह और बारह वर्ष के हैं। इंतनी सुंदर कविता के लिये उन्हें शुभकामनाये देती हुं और उम्मीद करती हुं वो अपनी रचनाये और अन्य खवाब भी हम से बांटते रहेंगे... )



बस इतना सा ख्वाब है...


अंगुली पकड़ बेटा मुझे घसीटता है

मै उसकी खोजी राह पर चलना चाहता हूँ।



बे-सबब दौड़ती है, इधर-उधर मेरी बेटी

वो जहाँ जाना चाहे, जाने देना चाहता हूँ।



अच्छे नही लगते, मुझे सड़क पर लावारिस बच्चे

हर बच्चे को माँ के साथ देखना चाहता हूँ।



मै कब उस-से उसकी खुदाई चाहता हूँ,

इंसान हूँ इंसानियत देखना चाहता हूँ।


ऋतुराज

8 comments:

!!अक्षय-मन!! said...

एक-एक शब्द अमूल्य है जितना कहीं कम है क्यूंकि अभी आँख मेरी नम है ......क्या करूं ख़ुद को रोक नही पाया इतना सुंदर भाव देख कर
इस अनमोल रचना के लिए ऋतुराज जी को मेरी ओर से ढेर सारी बधाई.....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
सब कुछ हो गया और कुछ भी नही !!
इस पर क्लिक कीजिए
मेरी शुभकामनाये आपकी भावनाओं को आपको और आपके परिवार को
आभार...अक्षय-मन

!!अक्षय-मन!! said...

एक-एक शब्द अमूल्य है जितना कहूं कम है क्यूंकि अभी आँख मेरी नम है ......क्या करूं ख़ुद को रोक नही पाया इतने सुंदर भाव देख कर
इस अनमोल रचना के लिए ऋतुराज जी को मेरी ओर से ढेर सारी बधाई.....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
सब कुछ हो गया और कुछ भी नही !!
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मेरी शुभकामनाये आपकी भावनाओं को आपको और आपके परिवार को
आभार...अक्षय-मन

Anonymous said...

बहुत सुंदर रचना!ऋतुराज जी को उनकी कविता के लिये और आपको इसे यहां हम सबके लिये प्रस्तुत करने के लिये बधाई!

Udan Tashtari said...

अति सुन्दर सधी हुई रचना. हमारी बधाई भी प्रेषित करें.

mehek said...

waah sundar

डॉ .अनुराग said...

कभी कभी शब्द ओर भावः विधा के नियमो से ज्यादा महतवपूर्ण हो जाते है

!!अक्षय-मन!! said...

मैंने मरने के लिए रिश्वत ली है ,मरने के लिए घूस ली है ????
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑

आप पढना और ये बात लोगो तक पहुंचानी जरुरी है ,,,,,
उन सैनिकों के साहस के लिए बलिदान और समर्पण के लिए देश की हमारी रक्षा के लिए जो बिना किसी स्वार्थ से बिना मतलब के हमारे लिए जान तक दे देते हैं
अक्षय-मन

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

adhbhut bhaayi..adhbhut...in bhaavon ke liye dhanyavaad....!!