Thursday 29 January 2009

लव इन द टाइम आफ कोलरा...

सालों से एक दूसरे को जानते हुए उन दोनों को नही मालूम था उनका क्या रिश्ता है उन्होंने कभी जानने की ज़रूरत भी महसूस नही की। उन्हें सिर्फ़ यह मालूम था ख़ुशी, दुख, महंगाई, कोई नई मुसीबत, नौकरी की जदोज़हद, किताबों की लिस्ट, कोई अच्छा सा फॉरवर्ड जब कभी अवसर मिलता बाँट लेते। साल- दो साल में कभी मौका लगा तो मिल लेते केफे में, किताबों की दूकान पर, पार्क की बेंच पर या किसी दोस्त की छत के नीचे। एक दुसरे से कोई उम्मीद नही थी इसलिए कभी एक दूसरे से शिकायत भी नही हुई... वो एक दुसरे से महीनो बात ना करे कोई फर्क नही पड़ता था। जब भी बात करते तो लगता दोनों के बीच जैसे अन्तराल तो आया ही नही था। दोनों की अपनी मजबूरी थी जिम्मेदारी थी जो उन्होंने कभी एक दुसरे से नही बाँटी... समय के साथ एक सवाल दोनों की खामोशी के बीच टकराता, आमने-सामने होते तो आखों में बोलता नज़र आता पर दोनों के होठों पर आकर रूक जाया करता।


उसका इमेल आया है वह अमरीका जा रही है और जाने से पहले उससे मिलना चाहती है क्योंकि रात की फ्लाईट है दोपहर की ट्रेन से दिल्ली पहुँच अपना सामान बहन के घर टिका, कुछ घंटो के लिये उससे रीगल पर मिलेगी। वो हमेशा की तरह उससे पहले पहुँच जाता है और वो आधे घंटे बाद आती है... दोनों केफे में बैठ कर काफ़ी पीते हैं बातें करते हैं वो उसके अमेरिका के प्रोजेक्ट के बारे में पूछता है और वह उसकी नई किताब के बारे में बात करती है, वो उसके सर से उड़े बालों का मज़ाक उड़ाती है, वो उसके दांत से कुतरे नाखूनों का, वो सोचती है वह उससे पूछेगा कब आओगी? वो सोचता है वो बिना पूछे बताएगी, वो सोचती है वह कुछ कहना चाहता है वह बिना कुछ कहे उसकी आंखों में जवाब ढूँढता है। यकायक मुस्कुराता हुआ कुर्सी से खड़ा हो जाता है... तुम यही ठहरो मैं अभी आधे घंटे में आता हूँ मुझे बहुत जरूरी काम है। इससे पहले की वह कुछ कहे वह केफे से बाहर जा चुका था।


वह इंतज़ार करती है फ़िर अपने से सवाल पूछती है क्यों उसने उम्मीद की कुछ बदलने की, कुछ सुलझाने की, रिश्ते को परिभाषा देने की ... वह सोचती है इससे अच्छा तो वह बहन के घर आराम करती। उसे अपने ऊपर झुंझलाहट आती है वह ध्यान बटाने के लिये मेज से मैगजीन उठाती है अपने आस-पास उठती नज़रों को और दिल की उथल- पुथल को पलटते पन्नो के शोर में छुपाने की कोशिश करती है। शब्दों को सिर्फ़ देख सकती है ना उन्हें पढ़ सकती है और ना उनका अर्थ समझ सकती है फ़िर भी वह मैगजीन में आँख गड़ाए बैठी है... उसकी निगाह बार - बार दरवाजे की और उठ जाती हैं। एक घंटा होने को आया उसके सब्र का बाँध टूट चुका है। बीस मिनट पहले उसने फोन पर कहा था वो पाँच मिनट में पहुंचने वाला है... टीशू से भीगी पलकें पोंछती है केफे से बाहर आ टेंपो वाले को आवाज़ देती है।


वह बाहर टेक्सी से निकल उसे इंतज़ार करने की हिदायत दे , बगल में कित्ताब दबाये केफे में घुसता है। खाली मेज को देख वेटर से पूछताछ कर टेक्सी वाले का भाड़ा चुकाने बाहर आता है। अखबार में लिपटी दो फूलों की माला की तरफ़ इशारा करते हुए कहता है इन्हे मन्दिर में चढ़ा देना। टेक्सी वाले को पचास रुपये का नोट ऊपर से थमा, वापस केफे में बिना दूध की चाय का आर्डर दे उसी टेबल आकर बैठ जाता है।

जेब से पेन निकाल कर नई किताब के कोरे पन्नो को सूंघते हुए दुसरे पन्ने पर अपना नाम और आज की तारीख लिखता है उसका टाइटल "लव इन द टाइम आफ कोलरा"पढ़ मन ही मन मुस्कुराता है। होंठो पर उसका नाम बुदबुदा अँगुलियों से सेलो फ़ोन के बटन दबा उससे पूछता है तुम्हारी फ्लाईट कितने बजे की है तुम्हें एक किताब भेंट कर सकता हूँ? उधर से आवाज़ आती है देखो! परेशान होने की ज़रूरत नही है और अब समय भी ज्यादा नही है.. तुम अपना ख्याल रखना.. और फ़ोन डिस्कनेक्ट हो जाता है।


वह किताब का आखरी पन्ना खोलता है जहाँ नायक को आधी सदी के इंतज़ार के बाद नायिका अपना रही होती है वह पढ़ते हुए मुस्कुराता है और चाय के घूँट भरता है।
फोटो- गूगल सर्च इंजन से

Tuesday 20 January 2009

वांटेड ऐ सीरियल किलर...‏


आजकल वह खुश नहीं। नौकरी, घर, दफ्तर, कार, टी वी, मेल बॉक्स, मोबाइल फ़ोन, मोगरा, चाँद, बारिश, प्यार किसी से भी खुश नही और सबसे अधिक नाखुश अपने आप से। ऐसे नाखुशी के दौर उसके जीवन में आते-जाते रहे हैं लेकिन अब से पहले उसने उन्हें अपनी जिंदगी नही बनाया था। इस दौर से गुजरने के लिए उसके पास हमेशा एक हथियार रहा है जो साउंड प्रूफ़ बुलेट से भी ज्यादा साउंड लेस और असरदार है। उसका इस्तेमाल वो कभी-कभी करता था लेकिन आजकल वह उसे हमेशा अपनी जेब में लिए घूमता है दिन-रात स्वयं पर वार करने के लिए और लगे हाथों अपने शुभचिंतको को लपेटने के लिये। इससे पहले की कोई उफ़ करे वह अपने कान और आँख बंद कर लेगा और यह उम्मीद रखता है जितना उसे अपने दर्द से प्यार हो गया है उसके अपने भी उसके दिए दर्द को उतना ही प्यार करें। उसकी खुदगर्जी की सीमा पार हो चुकी है दर्द को बांटना तो दूर उसकी गंध भी किसी को लगने नही देता। अपनों से फरेब कर दुनिया के सारे गम अकेले हड़प करना चाहता है। यदि आप गलती से उसके बढ़ते बैंक-बैलेंस का जिक्र छेड़ दें तो वह बड़ी आसानी से नाकार देगा जैसे कोई अपनी अवैध संतान को नाकारता है।


प्यार पर उसको यकीन है यही उसकी पहचान और प्रेरणा है बड़ी शिद्दत से अक्सर वह इसका एलान अपने दोस्तों और ब्लॉग पर करता है यदि उसका प्यार लोक-लिहाज़ छोड़ उसके दरवाजे पर दस्तक दे तो वह दरवाजे पर ही पानी पकड़ा दरवाजा बंद कर लेगा कहीं उसके भीतर की आंच की भनक प्यार को न लग जाए। उस आंच को वह टी वी चेनल बदलने और सिंगल माल्ट के ग्लास के लिये बचा कर रख लेगा। अचानक प्यार को वह सड़क पर मिल जाए तो फटाफट अपना हथियार सड़क पर फेंक उसका हाथ थाम लेगा और पूछेगा "कैसी हो? कहाँ थी इतने दिन से?" विदा लेते ही चारों तरफ़ नज़र घुमा चुपचाप सड़क से हथियार उठा, फूँक मार, धूल झाड़, सहजता से अपनी जेब में रख, सिटी बजाता अंधेरों में गुम हो जायेगा।

फोटो - गूगल सर्च इंजन से

Wednesday 14 January 2009

मुझे मुक्त कर दो...



भीतर की औरत

ने पत्नी से पूछा

तुझे क्या मिला?


पति का प्यार,

ड्राइंग रूम की दीवार

पर सजा फेमली फोटोग्राफ,

ग्रीन बेल्ट को छूता

ड्रीम हाउस ,

सड़क नापने को कार,

परिचितों, अपरिचितों का

इर्ष्या भाव,



जब तुम तुम थी

आसमा, सागर पलकों में बसते,

आइना तुम्हे

दिन-रात पढ़ता,

दिल और आत्मा को

आंखों की नज़र करता,


पकड़ती हो साइड मिरर में

भागती उम्र की रफ़्तार,

होती है लाल बत्ती पर

फुर्सत से आँखे चार,



अस्तित्व मिटा

इच्छाएं क़तर

दोष मुक्त हो

पत्नी से परफेक्ट बनी,

भीतर की अग्नि

आंसुओं से भी न बुझी,


अगले क्षण क्या करना है

का सॉफ्टवेयर तुम्हारे

हाथ-पाँव में फिट है,


आत्मा को ट्रेश

दिल और दिमाग में


उसे डाउन लोड कर लो,

ममता, मंगलसुत्र,

ग्लास सीलिंग चटखने की धुन में


तर लो,

मुझे मुक्त कर दो...


फोटो - गूगल सर्च इंजन से

Tuesday 6 January 2009

माई बाय फ्रेंड इज नो मोर.....

वो वार्ड राउंड पर जाने को तैयार थी और कंसल्टेंट का इंतज़ार करते हुए नर्स से केस नोट मांग रही थी। तभी उसकी नज़र चोदह नंबर बेड पर गई वो आंसुओ से रो रहा था। वो पास जाकर बोली क्या हुआ आप क्यों रो रहे हैं? उसने धीरे - धीरे बताना शुरू किया... देखो पत्नी के मर जाने के बाद मैं चालीस साल से अकेला रह रहा हूँ, मैं शेफिल्ड यूनिवर्सिटी में माना हुआ साइंटिस्ट था जिसने सोलर एनर्जी पर रिसर्च कर देश-विदेश में नाम कमाया। मेरे बेटों के तुम्हारे जितने बच्चे हैं वो क्रिसमस, मेरे जन्मदिन और फादर डे पर मुझसे मिलने आते हैं। मुझे कभी किसी से कोई शिकायत नही रही। मैं कभी किसी पर निर्भर नही रहा, तुम्हें नहीं मालूम बिस्तर से ना उठ पाना मौत से भी अधिक भयानक है। घर पर मैं सुबह उठ कर अखबार पढ़ता, अपनी आराम कुर्सी पर बैठ दिन भर टी वी देखता और काफ़ी पीता रहता और अब तक तो चार कप पी चुका होता, यहाँ मुझे सुबह से सिर्फ़ एक कप नसीब हुआ है और यह सब बताते हुए उसके आँसू और तेज़ी से टपकने लगे। वह उसके खड़ी नसों वाले हाथ पर अपना हाथ हलके से दबा कंसल्टेंट के पीछे - पीछे चल दी...


वार्ड राउंड खत्म कर वह उसके बेड पर पहुँची... उसके हाथ में काफ़ी का कप देख वो मुस्कुरा उठा फ़िर रो कर कहने लगा किसी ने उसके लिये आज तक ऐसा नही किया...वो दोनों फ़िर बातें करने लगे. अचानक वह उससे पूछ बैठा डू यू हव ऐ बाय फ्रेंड डाक्टर? मैं इतनी भाग्यशाली नही उसने हँस कर उत्तर दिया. आई एम् सिंगल... यू आर माइन नाव और दोनों जोरों से हँसने लगे... वो जब भी वार्ड से गुजरती वो अपने बिस्तर से चिल्लाता... आई लव यू ....आई लव यू ...आई लव यू.... वो होंठो पर अंगुली रख श्श्श्श ...करती मुसकुराती - झेपती वार्ड से निकल जाती...नर्स और वार्ड के मरीज ज़ोर- ज़ोर से हँसते और उसे चिढ़ाते।


अचानक सुबह के सवा तीन बजे फ़ोन की घंटी बजती हैं घबराहट और हड़बड़ाहट में फ़ोन उठता है .... उसमें से सिसकने की आवाज़ आती है... माई बाय फ्रेंड इज नो मोर ...उसने मेरे हाथों में दम तोड़ा है मैं उसे बचा नही सकी और वो फ़ुट-फ़ुट कर रो पड़ी... फ़ोन के इस तरफ़ कोई राहत की साँस ले उसे चुप कराने की कोशिश करता है...

फोटो गूगल सर्च इंजन से