Thursday 28 May 2009

वसंत के बाद पतझड़...

सुनो!

पुरानी टहनी जोर से ना हिलाओ

उसकी सारी पत्तियां ना गिराओ

सिर्फ धरकनो को सही

प्रकृति को ना आंसू पिलाओ

कदमो के नीचे की जमींन मांग

आँखों को ना धूल दिखाओ


देखो!

वो तने से लिपटी लता

ऊपर बयाँ का घोंसला

शाखा पर अटकी पतंग

छाया में खिली हमारी सुगंध


ना दो हवाला

सड़े गले फलों का

पत्तियों पर चलते कीड़ों का

गुम हो गई तितलियों का

काला होते इन्द्र्धनूश का


वसंत के बाद

पतझड़ को आना था

यह पाठ क्यों नयी टहनी

उगने के बाद पढ़ाना था

पेंटिंग- केन बुशी (गूगल सर्च इंजन से)

Tuesday 19 May 2009

बर्फ में बने लोगों के कदमो पर कदम...

वो चाय बना रही है, उसने दूध के लिए फ्रीज खोला, दूध के गेलन में सिर्फ एक कप चाय लायक ही दूध बचा है ... उसने पड़ोसन के लिए चाय बनाई, अपने लिए जूस का ग्लास भर लिया, पड़ोसन अक्सर बच्चों को स्कूल छोड़ते हुए उसका पास आ जाती है .. पड़ोसन के जाने के बाद, दूध के बिना फ्रीज, तेल की खाली बोतल, सब्जी की टोकरी में पड़ी दो प्याज़, नमक नीम्बू के साथ टमाटर और खीरा खाने को उसका मन उसे सुपर मार्किट जाने की जिरह कर रहा है पर खिड़की से बाहर पड़ी बर्फ उसे घर से बाहर ना निकलने की हिदायत दे रही है ... बिजली का बिल भी भरना है आज आखरी तारीख है वह सुबह याद दिलाकर गया है ...
उसने जींस के ऊपर गर्म पुलोवर, हाथों में दस्ताने, पैरों में जुराब और फिर ऊपर लंबा मोटा कोट पहना, पेट पर से बटन बड़ी मुश्किल से बंद किया, मफलर लपेटा और धड़ाक से दरवाजा बंद करके वह बाहर आ गई, सड़क और दरवाज़े में छ गज का फासला होगा... फूटपाथ के साथ गाडियाँ पार्क हैं अधिकतर तो टेक्सी हैं कुछ बर्फ से ढकी हैं और कुछ बिलकुल साफ़... घरों कि दीवारे और छत एक दुसरे से जुड़े हैं जैसे किसी बड़े पोस्टर के टुकड़े आपस में जुड़े होते हैं केवल दरवाजों पर लिखे नंबर से या फिर उनके बाहर खडी टेक्सी के रंग से उसमें रहने वाले कि पहचान हो सकती है किसी ने फूटपाथ पर दाना फेंका हुआ है जिसे कबूतर चुग रहे हैं बरफ के ऊपर दाना चमक रहा है... जहाँ-जहाँ लोगो के कदम पड़े हैं वहां से बर्फ पिघलने लगी है कबूतरों के भोज में खलल ना पड़े वह फूटपाथ छोड़ सड़क पर उतर जाती है..छपाक से उसका पाँव पिघली बर्फ में पड़ता है ... चलते - चलते जूते के अन्दर पाँव और पानी धीमे-धीमे अपना आलाप छेड़ रहे हैं...
कबूतरों को देख कर उसे कल रात रसोई में दिखे चूहे कि याद आ गई। कितना जोर से चिल्लाई थी वो हँस रहा था तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे पहली बार चूहा देखा है और वैसे भी स्वदेश में तो वह इंसानों के साथ घरों में प्रेम से रहते हैं। पड़ोस के लोग घर गन्दा रखते हैं वहीं से आते हैं वो जिद करती रही इसे निकालो वरना तो वह कभी रसोई में नहीं घुसेगी। अरे! पूरी स्ट्रीट के फ्लोर बोर्ड उठा कर कहाँ ढूंढें चूहे को... चूहेदान लाकर वह उसे निकालने की कोशिश करेगा उसने वादा किया... एक भी तिलचट्टा देखकर वह रसोई में पाँव नहीं रखती थी एक बार घर में मेहमान आये हुए थे माँ ने पानी लाने को कहा जब आधे घंटे बाद भी पानी नहीं पहुंचा तो खुद लाने कमरे से बाहर आई उसे रसोई के बाहर खडा देख समझ गई " बेटा तेरा कैसे काम चलेगा कोई इंग्लेंड या अमेरिका में देखना पड़ेगा" यह कहते वह खुद पानी लेकर कमरे में गई और वहां मेहमानों को बताया उनकी जवान बेटी कितनी बहादुर है।
आसमान हमेशा की तरह स्लेटी है, बर्फीली हवा के झोकें ने उसका सड़क पर स्वागत किया, आँखों और नाक से पानी बहने लगा उसने दोनों कोट की जेब में हाथ डाला, उन्हें खाली पाकर उसने पर्स में झाका और अंत में कोट की बाजू से गालों और होठों पर बहता पानी साफ़ किया.. जब- जब मफलर की लपेट हवा झोकों से खुल जाती हवा उसके गले में आइस पेक की तरह चिपक जाती। पाँव कि अगुलियां सुन्न हो गई हैं और जूते के भीतर आये पानी से उन्हें अब कोई शिकायत नहीं थी.. वह बैंक के सामने है... पर्स में बिल नहीं है शायद टेबल पर रह गया है... वह सुपर मार्किट की तरफ मुड गई..
उसे यहाँ आये अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ हैं चौड़ी, बिना गढों की सड़कें, साबुत फूटपाथ, करीने से चलता ट्रेफिक, चौबीस घंटे आती बिजली पानी, चार बजे होता अँधेरा, कभी कभी निकलने वाला सूरज, सड़कों पर पड़ी बर्फ, बस स्टाप पर लाइन में खड़े लोग और अक्सर खाली बसे उसे इस बात का अहसास दिलाते की वो लन्दन में है वरना तो ...सड़क पर काले बुर्के में पुश चेयर में बच्चे को धकेलती औरतें, पान चबाते कुरते पजामे और टोपी ओढे अधेड़ उम्र के आदमी, सलवार सूट में तुस्सी-मुस्सी करती पंजाबने और सड़क पर कूडेदान से कूड़ा समेटते सरदारजी देख कर तो ऐसा लगता जैसे किसी महानगर से निकल वह कसबे में आ गई है.... सबसे ज्यादा अजीब उसे तब लगता जब वह सब्जी खरीदने एशियन स्टोर जाती, वहां मीट की बदबू से उसे मितली होने लगती...
उसने ट्रोली की जगह टोकरी उठाई... गिने-चुने आइटम तो खरीदने हैं एक-एक आइटम के बाद टोकरी भारी होने लगी उसका मन हुआ एक दो सामन वापस रख दे, पर क्या वापस रखे का फैसला नहीं कर पाई, ब्लीच वापस रखे या पकाने वाला तेल के डिब्बा, टमाटर का पेकेट रखे या गोभी का फूल....यदि रख दिया कल फिर वापस आना पड़ेगा... उसने सोचा दो बैग में उठाएगी तो भार कम लगेगा... उसे अब गर्मी लगने लगी है आँखों और नाक से पानी की जगह अब माथे पर पसीने की बूँद हैं दम घुटता सा, ताज़ी हवा की कमी महसूस हुई। उसने अपना मफलर ढीला किया और कोट का बटन खोला... वह बाहर निकलना चाहती है ... लाइन में उससे आगे एक औरत है जिसकी कोट के नीचे से हरे रंग की सलवार नज़र आ रही है और चुन्नी से सर ढका है उसका काले बालों और पीले रंग का बच्चा पुश चेयर से निकलने के लिए हाथ पाँव पटक रहा रहा है और चिल्ला रहा है औरत बिल देकर बच्चे की तरफ मुडी ..."काम डाउन..काम डाउन" कहते हुए वह बच्चे को डांटती है... उसकी निगाह औरत के चेहरे पर पड़ी और वहीँ पर अटक गई उसका ब्रिटिश सफ़ेद रंग और उच्चारण, भूरे बाल और नीली आँखों को वह तब तक देखती रही जब तक वह और उसका बच्चा सुपर मार्किट से बाहर नहीं निकल गए...
उसने टोकरी टिल पर रख दी और दो बैग में सामान इस तरह रखा की भार बराबर हो... बाहर निकलते ही ठंडी हवा ने कहा कोट के बटन बंद कर लो... उसने नहीं किया, उसे मालूम है फिर से खोलने पड़ेंगे वैसे भी अब बटन बंद और खोलने के लिए उसके हाथ खाली नहीं हैं उसे चलते- चलते महसूस हुआ दोनों थेलों में लगातार भार बढ़ता जा रहा है उसके कंधे और कमर उन्हें उठाने से इनकार कर रहे हैं अब चढ़ाई आने पर परों ने भी जवाब दे दिया...वैसे भी चढ़ाई पर बर्फ उसके सधे क़दमों को आगे बढ़ने के बजाये पीछे धकेल रही है. उसकी हाथ की अंगुलियाँ भी सुन्न हो गई हैं... उसने टेलीफोन बूथ के पीछे फूटपाथ पर थेले टिका दिए और थोड़ी देर के लिए खड़ी हो गई... उसके पेट में जानी-पहचानी सी हलचल हुई उसने कोट के ऊपर हाथ लगा हलचल को महसूस किया...फिर दोनों हाथों में थेले उठा बर्फ में बने लोगों के कदमों पर कदम रखती आगे बढ़ी...
पेट में हलचल अब शांत हो गई है ... वो पैदा होने से पहले ही उसके साथ थेले उठाने लगी है...
फोटो - गूगल सर्च इंजन से

Wednesday 6 May 2009

कोई तीसरा भी है जो उनके राज़ जानता है...

ऐसा बहूत कम होता है वो कहीं से गुजरे और लोग उसको पीछे मुड़ कर ना देखें... शॉप फ्लोर पर तो सभी उसे ऐसे देखते जैसे पहली बार किसी औरत को देखा हो... वो एजेन्सी से आई है और अस्थाई कर्मचारी है... पोलैंड से आये हुए उसे कुछ महीने हुए हैं और उसके हाथ में रोज़ एक नई लिस्ट होती, अंग्रेजी के नए शब्द सीखने की... हर टी ब्रेक और लंच के वक़्त वो लिस्ट उसकी आँखों के सामने होती है उस वक्त अक्सर वो भी उसके साथ होता है उसके अंग्रेजी के उच्चारण का मज़ाक उड़ाने और उससे खुले आम फ्लर्ट करने को ... तुम पर हरा रंग कितना फब रहा है, तुम आज कितनी खूबसूरत लग रही है, कभी कम्पनी के बागीचे का गुलाब लेकर तो कभी ताम्बे के पाइप को काट छल्ला बना उसकी अँगुलियों में पहनाने पहुँच जाता, कभी उसके आँखों के रंग, तो कभी उसके गले में पड़े पेंडेंट की तारीफ़ करने वो हर ब्रेक में उसके आस-पास ही नज़र आता।

कम्पनी के सारे लोग दोनों को घूर-घूर कर देखते और उन दोनों की मुस्कराहट उन्हें वो सब कुछ सोचने पर मजबूर ही नहीं करती बल्कि यकीन भी दिलाती उनके बीच वो सब कुछ चल रहा है जो एक स्त्री पुरुष के नाजायज़ और जायज़ संबंधों में चलता है... दोनों को अपने सहकर्मियों से इस खूबसूरत रिश्ते कि सफाई देने कि कभी ज़रुरत महसूस नहीं हुई क्योंकि उन दोनों के बीच वही है जो सब देखते हैं और वो क्या सोचते हैं इसकी दोनों को परवाह नहीं है।
वह दोनों बहस कर रहे हैं वो कहता है काफी मशीन सिर्फ कार्ड लेती है सिक्के नहीं लेती ... और वो कहती है वह कार्ड और सिक्के दोनों लेती है वो उसका हाथ पकड़ कर ले जाती है वो कहती है "सी..." उसके चेहरे की मुस्कराहट कहती है तुम यहाँ बरसों से काम करते हो तुम्हे इतना भी नहीं मालूम? सुराख में पैसे डालती है और एक कप निकलता है और फिर कप में काफी की धार और सबसे ऊपर कप में झाग भरे हैं झाग कि तरह दोनों के जीवन में खुशियाँ भरी हैं काफी की महक पर वो छलकती हैं, खिलखिलाती हैं, मुस्कुराती हैं, बतियाती हैं... वो दोनों सोचते हैं सिर्फ उन दोनों को ही खुशियों का राज़ मालूम है।

जाब कट हुए हैं और सभी अस्थाई वर्कर जा रहे हैं आज उसका आखरी दिन है वह भी जा रही है और अब कंपनी में रोज़ के आठ घंटे फिर से उसके लिए सज़ा बन जायेंगे...दोनों ने साथ लंच किया और उन दोनों की आँखे भर आई किन्तु और सबकी आखें आज चमक रही हैं ... हर कोई जानबूझ कर उनके आसपास से मुस्कुरा कर निकल रहा है।

वो दोनों घर पर टेलिविज़न की खबरें देख रहे है उसकी कम्पनी में हुए जाब कट की खबर वो पहली बार सुन रही है और अब समझ गई है वो जब से घर लौटा है इतना चुपचाप और उदास क्यों है ...... पिछले कितने दिनों से वह उसे खुश देख रही है इतने वर्ष साथ रहते, उम्र गुजारते अब वो उसके बारे में उससे अधिक जानती है और उसके घर में आई ख़ुशी के कारण का अंदाजा लगा चुकी है, उसे हंसी आती जब वह अपना मोबाइल उसकी आखों से छुपा कर रखता और चोरी से एस ऍम एस पढ़ कर मुस्कुराता, पासवर्ड बदल कर आजकल उसने दोनों के इमेल अकाउंट पर अकेले कब्जा कर लिया और अब वह उसके सामने मेलबाक्स भी नहीं खोलता... उसका घर में इस तरह खुश रहना, यहाँ - वहाँ चुपचाप मुस्कराहट बखेरना उसे बहुत अच्छा लगता...

वह उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहती है "तुम उससे बात करते रहना और संपर्क में रहना तुम्हारा इतना उदास होना मुझे दुःख दे रहा है" ...."नहीं वो पोलेंड वापस जा रही है और कभी लौटेगी नहीं" ...उसने यह कह कर मुह छुपाने के लिए सामने पड़ा अखबार उठा लिया, वह उसके हाथों से अखबार छीन कर नीचे जमीन पर डाल देती है दोनों बाहों में उसे समेट छोटे बच्चे कि तरह उसका चेहरा अपने सीने में छुपा लेती है...

कोई तीसरा भी है जो सिर्फ उनकी खुशियों और दर्द के राज़ ही नहीं जानता बल्कि उनकी खुशियाँ और दर्द बाँटना भी जानता है...
तस्वीर - गूगल सर्च इंजन से