Tuesday 14 April 2009

धरती का मोह...आकाश की चाह...

वो बोला "मैं तुम्हारा रनवे हूँ तुम यहाँ से आकाश में उड़ान ले सकती हो".. वो बोली "मेरे पास पंख नहीं हैं" .. "यह लो बादलों के पंख यह तितली के पंखों की तरह रंग बिरंगे नहीं है पर तुम उड़ान ऊँची ले सकोगी".. वो बोली "मेरे पास उड़ने के लिए आत्म विश्वास नहीं है"... "लो मेरी सारी प्रार्थनाए तुम्हारे साथ हैं जो तुम्हे हमेशा भरोसा दिलाती रहेंगी मैं तुम्हारे साथ हुं"... वो बोली "लेकिन मैं वहां करूंगी क्या?" वो बोला "सारा आकाश तुम्हारा है इंद्रधनुष तुम्हारा है जो भी तुम्हे वहां दिखे, मिले, तुमसे कुछ कहे... तुम उसे पेंट करना और यह लो डायरी इसमें उसके बारे में लिखना"....उसने अपनी हथेली उसके पाँव के नीचे लगा दी और उसने बिना दौड़े ऊँची उड़ान ली .... उड़ते - उड़ते पहले वह चाँद के पास पहुंची, वह मुह लटकाए बैठा था... उसने पूछा "क्यों उदास हो?" चाँद बोला "तुम्हारी ज़मी के कवि समझते हैं चांदनी मेरी है पर वह तो ज़मी की है उसे ही छूती है वहीँ रौशनी फैलाती है सिर्फ अमावस्या के दिन ही मेरी है"....वह चांदनी के पास गई ...वो भी नाराज़ लगती थी वह बोली "चाँद मेरे यश से जलता है उसी की दी रौशनी से यदि धरती महकती है और वहां के कवि मुझे चाहते हैं मेरे ऊपर कविता लिखते हैं तो इसमें मेरा क्या कसूर" ... उसने सोचा कितना अच्छा होता यदि वह अपने साथ मेरिज काउंसलर ले आती धरती से ज्यादा यहाँ उनकी जरूरत है... दोनों को उनके भरोसे छोड़ वह आगे बढ़ी...वह तारों के पास पहुँची वह बादल, सूरज और चाँद की चुगली कर रहे थे, उससे शिकायत भरे स्वर में बोले "सूरज हमे दिन में अंधा कर देता है रात में बादल.. हमारे पास चाँद से ज्यादा रौशनी है किन्तु चांदनी फिर भी उसी की है सदियों तक प्रतीक्षा की, लोभ दिया वह हमारी तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखती और धरती पर सड़क पर सोते हुए भिखारी के पाँव चूम, उसके ऊपर बिछ जाती है"...उसने मन ही मन सोचा यहाँ की राजनीति तो बिहार की राजनीति जैसी है हमेशा अँधेरा ही इनका साथी रहेगा... वह बिना कुछ बोले सूरज की तरफ मुड़ ली... उसने दूर से ही उसे चेतावनी दी "अपना भला चाहती हो तो दूर चली जाओ तुम्हे पंखों के बीच से छु लिया तो पिघलोगी खुद, किन्तु आकाश और धरती पर मुझे बदनाम करोगी"...उसने अपने आप को आईने में देखा "क्या उसकी शक्ल राखी सावंत से मिलने लगी है" उसका अब मन भर गया था वह वापस लौटना चाहती थी खाली डायरी और कोरे पन्नो के साथ... आकाश दूर से ही अच्छा लगता है वह धरती पर लौट कर पेंटिंग करेगी और कविता लिखेगी...धरती पर पहुंची तो उसका रनवे वहां नहीं था. उसने उसे ढूंढा, वह किसी और को उड़ना सीखा रहा था उसकी हथेली में किसी और के पाँव थे ...वह गिड़-गिडाई मुझे लैण्ड होना है नहीं तो मैं गिर जाउंगी.. वह बोला इस रनवे से तुम सिर्फ उड़ सकती हो उतरना तो तुम्हे अपने आप पड़ेगा ... उसके पास जमीन से टकराने के अलावा कोई विकल्प न था... वह नीचे गिरने लगी और धरती छूने से पहले पेड़ पर अटक गई तभी से वह वहीँ लटकी है अब उसे ना धरती का मोह है और ना आकाश की चाह... अपनी हथेली उसके पाँव के नीचे लगा दी और उसने बिना दौड़े ऊँची उड़ान ली .... उड़ते - उड़ते पहले वह चाँद के पास पहुंची, वह मुह लटकाए बैठा था... उसने पूछा "क्यों उदास हो?" चाँद बोला "तुम्हारी ज़मी के कवि समझते हैं चांदनी मेरी है पर वह तो ज़मी की है उसे ही छूती है वहीँ रौशनी फैलाती है सिर्फ अमावस्या के दिन ही मेरी है"....

वह चांदनी के पास गई ...वो भी नाराज़ लगती थी वह बोली "चाँद मेरे यश से जलता है उसी की दी रौशनी से यदि धरती महकती है और वहां के कवि मुझे चाहते हैं मेरे ऊपर कविता लिखते हैं तो इसमें मेरा क्या कसूर" ... उसने सोचा कितना अच्छा होता यदि वह अपने साथ मेरिज काउंसलर ले आती धरती से ज्यादा यहाँ उनकी जरूरत है... दोनों को उनके भरोसे छोड़ वह आगे बढ़ी...

vah तारों के पास पहुँची वह बादल, सूरज और चाँद की चुगली कर रहे थे, उससे शिकायत भरे स्वर में बोले "सूरज हमे दिन में अंधा कर देता है रात में बादल॥ हमारे पास चाँद से ज्यादा रौशनी है किन्तु चांदनी फिर भी उसी की है सदियों तक प्रतीक्षा की, लोभ दिया वह हमारी तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखती और धरती पर सड़क पर सोते हुए भिखारी के पाँव चूम, उसके ऊपर बिछ जाती है"...उसने मन ही मन सोचा यहाँ की राजनीति तो बिहार की राजनीति जैसी है हमेशा अँधेरा ही इनका साथी रहेगा...


वह बिना कुछ बोले सूरज की तरफ मुड़ ली... उसने दूर से ही उसे चेतावनी दी "अपना भला चाहती हो तो दूर चली जाओ तुम्हे पंखों के बीच से छु लिया तो पिघलोगी खुद, किन्तु आकाश और धरती पर मुझे बदनाम करोगी"...उसने अपने आप को आईने में देखा "क्या उसकी शक्ल राखी सावंत से मिलने लगी है" उसका अब मन भर गया था वह वापस लौटना चाहती थी खाली डायरी और कोरे पन्नो के साथ... आकाश दूर से ही अच्छा लगता है वह धरती पर लौट कर पेंटिंग करेगी और कविता लिखेगी...

धरती पर पहुंची तो उसका रनवे वहां नहीं था. उसने उसे ढूंढा, वह किसी और को उड़ना सीखा रहा था उसकी हथेली में किसी और के पाँव थे ...वह गिड़-गिडाई मुझे लैण्ड होना है नहीं तो मैं गिर जाउंगी.. वह बोला इस रनवे से तुम सिर्फ उड़ सकती हो उतरना तो तुम्हे अपने आप पड़ेगा ... उसके पास जमीन से टकराने के अलावा कोई विकल्प न था... वह नीचे गिरने लगी और धरती छूने से पहले पेड़ पर अटक गई तभी से वह वहीँ लटकी है अब उसे ना धरती का मोह है और ना आकाश की चाह...

foto- flickr.com

4 comments:

राकेश जैन said...

adbhut kintu aakarshak

डॉ .अनुराग said...

नीरा क्या मैंने इसे पहले पढ़ा है ?

vandana gupta said...

gahrayi kiye huye..........ek achcha lekh.

Ashok Kumar pandey said...

उसने मन ही मन सोचा यहाँ की राजनीति तो बिहार की राजनीति जैसी है हमेशा अँधेरा ही इनका साथी रहेगा...

अच्छा लगा यह प्रयोग