Saturday 27 June 2009

खोई चाबी कि तरह खुशियाँ ज़मीन पर पड़ी....

इन्बोक्स में मुट्ठी भर कोतुहूल छुपा दो, दरवाज़े पर धागे से गुलाब कि पंखुडियों कि पुड़िया बांधों जैसे ही वो दरवाजा खोले, उसका चेहरा एक क्लिक में क़ैद कर लो, गर्मी में अपने हिस्से कि छाया और सर्दी में धुप उसके नाम कर दो, आम कि गुठली खुद के लिए और फांकें उसके लिए छोड़ दो, रात को चुपके से उठ उसकी शक्ल केनवस पर उतार दो, टी वी के आगे सिकुड़ी देह को कम्बल उढ़ा दो, अँधेरे में उसके हाथ की उभरी नस को अंगुली से दबा दो, उसके तिलों और ठोडी के निशाँ को चश्मे बद्दूर बना लो, रेड लाईट पर खरीदा गजरा उसके हाथों में थमा दो, बिना वज़ह अंधरे कमरे में जलती मोमबत्तियों की चादर बिछा दो, जन्मदिन पर खरीदी कोरी किताब के पहले पन्ने पर कविता छुपा दो, खिड़की पर चाँद को बुला उसकी आँखों से अपना हाथ हटा दो, चलते- चलते रिक्शा मोड़ फलूदा कुल्फी कुल्हड़ में पेक करा लो, उसकी बचपन कि फोटो को वाल पेपर बना दीवार पर चिपका दो, भीड़ में उसके लिए जगह बनाने को उससे कदम भर आगे हो लो, चटनी पीसती अँगुलियों पर जीभ घुमा शहद चाख लो, पहली बारिश कि मिट्टी डिब्बी में बंद कर माटी का इतर मरुस्थल में सूंघा दो, मंदी बारिश में छतरी मजबूती से, तेज बारिश में हवा को घूस दे आसमान में उड़ा दो, उसकी नीद में झांक सारे सपने चुरा सुबह चाय की चुस्कियों पर उसे लजा दो, सुबह शाम एक नाम उसके कान में मन्त्र कि तरह बुदबुदा उसकी आँखों के जंगल को पन्नो पर उगा दो...

सच! खुशियाँ देना कितना आसान है ....


प्रभात की पहली

किरण की तरह

उदित होता है

आत्मा पर


प्रकाशित करता है

अंधरों में खोई जिंदगी

जिसको मैं अक्सर

जीना भूल जाती हुं


खोई चाबी कि तरह

मिल जाती हैं खुशियाँ

वहीं ज़मीन पर पड़ी

Painting by Bonnie Lanzillotta

21 comments:

अजय कुमार झा said...

लिखने की शैली और अंदाजे बयां...कमाल है ..बहुत सुन्दर

विवेक सिंह said...

बहुत सुन्दर !

अनिल कान्त said...

क्या खूब लिखा है वाह मज़ा आ गया

डॉ .अनुराग said...

खींचकर चाँद को छत पे पहरे पे बैठा दो....की कोई मुआ उस रात डिस्टर्ब न करे ...ओर घर की दीवार पे लिख दो की' तुमसे मोहब्बत है '....फिर रोक लो वक़्त को.....

!!अक्षय-मन!! said...

"खोई चाबी कि तरह खुशियाँ ज़मीन पर पड़ी...."
in pankhtiyon main hi saara saar samaya hua hai.....bahut hi accha laga aapki ye sundar rachna padhkar.

के सी said...

मुझे उद्धरण कला बेहद पसंद आती है वो चाहे पेंटिंग में हो या फिर लेखन में
शब्दों से अव्यक्त को अपरिभाषित रूप में प्रस्तुत कर पाना एक संजीदा काम है, आप इसे खूबसूरती से करती हैं.
कविता तो हमेशा ही अच्छी हुआ करती है पर इस बार पिछली कहानी का असर दिल से जा नहीं रहा है, वो इस कदर भीतर तक समां गयी है कि अभी कुछ समय और लगेगा नए को स्वीकार करने में. फिर से आप बहुत अच्छा लिखती हैं मैं सीखता हूँ और प्रतीक्षा बनी रहती है .

M VERMA said...

सच! खुशियाँ देना कितना आसान है ....
बहुत खूब्

Ashok Kumar pandey said...

वाह नीरा जी

इस बार दर असल आपने दो कवितायें पढवाई हैं और दोनों शानदार

प्रकाश गोविंद said...

बहुत खूबसूरत लेखन है आपका !

शब्दों का प्रयोग अत्यंत सुन्दरता से करती हैं !

बढ़िया पोस्ट !


आज की आवाज

Puja Upadhyay said...

खुशियों का बेहद खूबसूरत समां बाँधा है...वाकई कितना आसान होता है इन नन्ही खुशियों को पकड़ना. बहुत प्यारा लिखा है.

विनोद कुमार पांडेय said...

खोयी चाभी की तरह खुशियाँ,

क्या भाव है..अत्यन्त सुंदर अभिव्यक्ति

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

पहली बारिश कि मिट्टी डिब्बी में बंद कर माटी का इतर मरुस्थल में सूंघा दो, मंदी बारिश में छतरी मजबूती से, तेज बारिश में हवा को घूस दे आसमान में उड़ा दो, उसकी नीद में झांक सारे सपने चुरा सुबह चाय की चुस्कियों पर उसे लजा दो, सुबह शाम एक नाम उसके कान में मन्त्र कि तरह बुदबुदा उसकी आँखों के जंगल को पन्नो पर उगा दो...

सच! खुशियाँ देना कितना आसान है ....

नीर जी ,
सचमुच आपके शब्द चित्र का कोई जवाब नहीं ....कई कई बार पढ़ने का मन होता है .आप शब्द भी विषय के अनुरूप मखमली ..कोमल चुनती हैं .
हेमंत कुमार

Crazy Codes said...

ur words and way of writting are good. nice blog.... keep writting...

रानी पात्रिक said...

बहुत सुन्दर। सच ज़िन्दगी की उहा पोह में पास पड़ी इन खुशियों से हम कितने बेखबर हो जाते हैं।

कंचन सिंह चौहान said...

अरे वैलेंटाइन डे स्पेशल कैसे मनायें इसके टिप्स है क्या...?? :) बहुत सुंदर...! काश ऐसी खुशी देने वाला सिर्फ एक व्यक्ति हो जीवन में..तो बहुतो की ज़रूरत न हो..!

पूनम श्रीवास्तव said...

आदरणीया ्नीरा जी,
पहली बार आपके ब्लाग पर आई --बहुत बढ़िया लगा---सुन्दर शब्द संयोजन ।
पूनम

sanjay vyas said...

खुशियाँ हमसे आइस-पाइस खेलती है...और हर वक़्त हमारे आस पास ही होती है.
शब्द आपके यहाँ लीलाएँ करते है.

Atmaram Sharma said...

खुशियाँ नई धज के साथ प्रकट हुई है. साधुवाद.

cartoonist anurag said...

vah......
neera ji......
bahut hi umda likhti hai aap.....
is sunder rachna k liye aapko dher sari badhaiya.....

ek bat aour aapne jo mera hosla
badaya uske liye dil se aabhar......

asha karta hu aap aage bhi isi tarah mera margdarshan
aour hosla badate rahenge.....

Urmi said...

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत सुंदर लिखा है आपने!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

Razi Shahab said...

andaaz-e-bayan kya khoob hai ... dil khush ho gaya