दोबारा गर्म किए हुए चिकन, चावल, मटर पनीर, अचार, ब्रेड, कस्टर्ड, काफी, चाय , बीयर, वाइन, रम की मिली जुली मितली लाने वाली गंध वातावरण में झूल रही है.. कोई उनसे पानी ना मांग ले, वो ट्रे समेट, बत्ती बुझा, ब्लेंकेट इधर- उधर फेंक, उजाले की तश्तरियों पर फटाक -फटाक ढक्कन गिरा, पिछले हिस्से में परदे खींच आराम कर रही हैं.. खामोशी ने बंद खिड़कियों को देख सेंध लगा ली.. लोग सो रहे हैं, सोने की कोशिश में ऊँघ रहे हैं या कुर्सी से खीचा -तानी करते स्क्रीन पर आँखे चिपकाए बैठे है, उसे महसूस हुआ जो भी थोड़ा बहुत खाया वो यूँ ही पेट में तैर रहा है उसे वाइन नहीं लेनी चाहिए थी... उसके डाइजेस्टिव सिस्टम और अल्कोहल की नहीं बनती ... शायद सोने में मदद करे.. "यस प्लीज़ ..." ट्राली पर रखी बोतल और उसके बीच खुदबखुद कूद पड़ा... सभी सोने- जागने वाले लोग सांस लेने के लिए कम्पीट कर रहे हैं आक्सीजन के बाद कार्बनडाईकसाइड के लिए...वो भी उसके हिस्से में बहूत कम आई है दम घुट रहा है.... नज़रों ने गर्दन घुमा कर पास वाले को भांपा उसे निढाल देख धीरे से दो अंगुलियाँ फ्लेप के नीचे लगाई और ऊपर सरका दी ... पों फटे की सिंदूरी रौशनी में उसका चेहरा नहा गया... होंठ खुले के खुले .... फटी आँखें बस देखती रह गई... हज़ारों बार पहले भी मिला है.... नए - नए भेस में, नए से नए रंग - रूप में, नयी -नयी जगह पर, छिपते, उगते, भागते, रूकते, पीछा करते, ढीठ बन कर छत पर खड़े रहते, विंड स्क्रीन पर आँख मारते ... यह चाँद है या उसका महबूब? दुनिया भर के सूफियों, कवियों, लेखकों, प्रेमियों ने इसके बारे में सदियों से कई आसमान भर लिखा है पर वो उनको सपनो में ही करीब से मिला है... बचपन में चन्दा मामा और फिर महबूब की तरह हमेशा दिल में रहा है आज दूरियां और चांदनी बिना उसकी राह रोक खड़ा है... आँखे उसे अमृत की तरह पीती हैं... अंगुलियाँ गुलाब की पंखुड़ी की तरह छूती हैं... धड़कने उसे पहले चुम्बन के अहसास की तरह दर्ज करती हैं आत्मा इस आलोकिक सुख को अपने भीतर उसके लिखे खतों की तरह सहेजती है .. वह दोनों बांह उठाये अपने पास बुला रहा है...जैसे ही उसने खिड़की से निकल पंख पर पाँव रखा...चाँद ने उसे बाहों में भर ऊपर उठा लिया.. वो अपना आँचल भर रही है तारों से, वो उसे आकाश के कोने - कोने में ले गया... उसने सारा आकाश खाली कर दिया... चाँद एक हाथ में उसे थाम और दुसरे हाथ से उसके आँचल से एक- एक तारा उठा वो उन्हें वापस आकाश में टांक रहा है और सारा आकाश जगमगा रहा है जिधर देखो उसका नाम लिखा है... इस पल को जीने के लिए कई जीवन कम थे...
परिचारिका हाथ में पानी भरा ग्लास लिए उसके कंधे हिला रही है वो चाँद की बाहों से छूट, धम्म से ज़मीन पर आ गिरी है ... हाथों ने टटोल कर जल्दी में नीचे से पर्स उठाया, जेब में हाथ डाला, पहली, दूसरी, तीसरी कंघा, शीशा, लिपस्टिक, एक, दो, तीन पेन, चश्मा, क्रेडिट कार्ड, सौंफ की पुडिया, इलायची, रसीदें, हेयर बैंड, सेफ्टी पिन, बिंदी का पेकेट, पोलो ट्यूब, पाकिट डायरी, टाफी, मास्चराजिंग क्रीम, डीओडरएंट, सेब, टूथ पिक, टिशु.. कहाँ गया?कहाँ गया? यहीं तो डाला था... हाथों की उलट- पलट से और पैरों की उठक- पटक से, चिंकी आखों, चपटी नाक और साल्ट- पेपर बाल वाला पड़ोसी कसमसाया, उसकी अधखुली आँखे माथे में सिलवट डाल, इसकी याचना भरी आँखों को नज़रंदाज़ करते हुए, निगल जाने के अंदाज़ में घूरती हैं...वो सीधा बैठ कर अपनी टाँगे सिकोड़ता है, सेंडल छोड़ उसकी टांगों से बचती वह खिसकती है उचक कर छत से लटकता बहुत बड़ा मुह खोलती है, एक भरकम चीज़ को नीचे उतार कर फिर से शुरू होती है तलाश... हथेलियाँ जगह बनाती हैं ठुसे हुए कपड़ों, पेकीटों, अचार की शीशी, मिठाई का डिब्बा, किताबों के पन्नो , फोन चार्जर, ब्रुश, शेम्पू.... खटर -पटर, खसर -पसर ... बैचैनी बढ़ती जा रही है वो सूरज की रौशनी के आँचल में ना छिप जाए ...पड़ोसी की अधखुली आँखे खुलते -खुलते बड़ी होती जा रही है... अंगुलियाँ जिप खींचती है उसे वापस टिका ...फटाक! से बड़ा खुला हुआ मुह बंद कर ... वापस धम्म से सीट पर... आँखों में पानी और चेहरे पर मुर्दानगी... हाथ झुकते हैं टिशु तलाशने को ..अरे यह क्या है? ..मिल गया ! ... हथेलियाँ छूते ही मजबूती से पकड़ लेती हैं उसकी सफुर्ती और मुस्कराहट देखते ही पड़ोसी को टेटनस का दौरा पड़ गया है ..तेज़ी से कांपते हाथ- पाँव, चटखती हड्डियाँ, बदहवास और घबराया हुआ वह अपनी जगह से खड़ा हो गया ... इससे पहले की वो बम!.. बम! ...चिल्लाए... वो हथेली उठा और उसके सामने खोलकर समर्पण कर देती है ... उसके चेहरे का रंग बदलता है लेकिन तेवर नहीं ... "यू आर नोट अलाउड टू स्विच आन इन फ्लाईट"...वो अंगुली से इशारा करती है खिड़की से बाहर अपने टारगेट का... वो जितनी बार क्लिक करती है उतनी बार खुद को कोसती है काश उसके पास बम होता आज उसकी बाहों में जन्नत नसीब होती ... पड़ोसी उससे अधिक से अधिक दूरी रखते हुए पास से गुजरती परिचारिका से धीरे से बुदबुदाता है "इन्डियन वीमेन आर मैड... इज देयर अ एम्प्टी सीट? "
24 comments:
:-) पहली बार पढ़ने पर समझ में नहीं आया......अच्छा लिखा है, हमेशा की तरह|
सच है , "इन्डियन वीमेन आर मैड "
Indian women s are really mad:) ye to universal truth hai..:)
आपके पास बात कहने का निराला ढंग है...सबसे अलग हट कर...बेहद कमाल की पोस्ट...आपकी पोस्ट पढ़ कर कह सकते हैं :इंडियन वोमेन आर नाट मैड दे आर स्मार्ट..."
नीरज
'Indian women are mad'...I would take it as a compliment :)
पागल होना ही तो इतना सुन्दर लिखवा सकता है :)
and i like these mad women!!!
बहुत कुछ है इस पोस्ट में ....जैसे सामान की तलाशी ....हड़बड़ी आँखों के सामने है....
खैर ..........
वक़्त भी अजीब शै है ...एक ही किरदार इसके अलग लग पाने पर जुदा सा लगता है .....
शुक्र है मैडम, ट्रैक पर तो आई....
वैसे यहाँ सामन इतने हैं कि कैमरा तनिक भी स्थिर नहीं रहता.... पर सभी अस्थिरताओं का कारण एक है - पागल !
अच्छा हुआ उस mad Indian woman ने अपने पागलपन पर काबू पाने की कोशिश नहीं की...और सिदूरी रोशनी में नहाती उस छटा को हमेशा के लिए कैद कर लिया.
सचमुच ऐसे नज़ारे को जीने के लिए कई जीवन कम पड़ते हैं.
apko parhna accha lagta hai. kyuki apki shaili bilkul juda hai. aur ehsaas behte jate hain.
बस इसी तरह खुद के भीतर को टटोलते हुए बड़ी हैरान करने वाली चीजें हाथ को छू जाती है. उस एक पल लगता है कि काश ये बम होता या आज उसकी बाहों में जन्नत नसीब होती ...
aapke likhane ka andaj bahut nirala hai.
bahut pasand aai.....sach hai.
:) :) :)
ऐसे चौंकाया मत कीजिये.....!!!
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ..... बहत अच्छा लगा... आप बहत अच्छा लिखतीं हैं... अब आता रहूँगा...
very good 09914226021
आपकी कहन मन को अपील करती है. लेखन शैली पसंद आयी. अच्छी रचना पढ़वाने के लिए आपका आभार -अवनीश सिंह चौहान
इतने सारे सामान के बीच स्पष्ट होते भाव, पाठक भी उसी व्यग्रता से सामान ढूंढने लगता है..कम से कम मै तो ढूंढ्ने ही लगी थी...
This is a nice one. What is life without a bit of madness here and there. Too many sane and wise guys around and too less of mad women. Thanks for being one.
waah...
andaze bayan kabile taarif.
जवाब नहीं नीरा जी !!!!
लाज़वाब ...
आप्के किसी कमेंट का सूत्र पकड़ कर....यहां तक पहुंचा हूं...."उसकी बाहों में जन्नत नसीब होती..." अभी यही पोस्ट पढ़ी है....शेष भी पढ़ने की इच्छा है...लेकिन आपकी बात कहने की शैळी ’अपनी’ है...बहुत ख़ूब...शुभकामनाएं
सुझाव: क्या ही अच्छा हो कि आप अपने फेसबुक की वॉल पर डाले गए कुटेशंस को अपने ब्लॉग पर एक साथ डाल दें। और ऐसा अक्सर करते रहें।
behtareen rachna...baahon me zannat naseeb ho....khwahish ki boondein man ke tapt marubhumi ko sinchit kar gayi.
कमाल,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
Post a Comment