Tuesday 6 January 2009

माई बाय फ्रेंड इज नो मोर.....

वो वार्ड राउंड पर जाने को तैयार थी और कंसल्टेंट का इंतज़ार करते हुए नर्स से केस नोट मांग रही थी। तभी उसकी नज़र चोदह नंबर बेड पर गई वो आंसुओ से रो रहा था। वो पास जाकर बोली क्या हुआ आप क्यों रो रहे हैं? उसने धीरे - धीरे बताना शुरू किया... देखो पत्नी के मर जाने के बाद मैं चालीस साल से अकेला रह रहा हूँ, मैं शेफिल्ड यूनिवर्सिटी में माना हुआ साइंटिस्ट था जिसने सोलर एनर्जी पर रिसर्च कर देश-विदेश में नाम कमाया। मेरे बेटों के तुम्हारे जितने बच्चे हैं वो क्रिसमस, मेरे जन्मदिन और फादर डे पर मुझसे मिलने आते हैं। मुझे कभी किसी से कोई शिकायत नही रही। मैं कभी किसी पर निर्भर नही रहा, तुम्हें नहीं मालूम बिस्तर से ना उठ पाना मौत से भी अधिक भयानक है। घर पर मैं सुबह उठ कर अखबार पढ़ता, अपनी आराम कुर्सी पर बैठ दिन भर टी वी देखता और काफ़ी पीता रहता और अब तक तो चार कप पी चुका होता, यहाँ मुझे सुबह से सिर्फ़ एक कप नसीब हुआ है और यह सब बताते हुए उसके आँसू और तेज़ी से टपकने लगे। वह उसके खड़ी नसों वाले हाथ पर अपना हाथ हलके से दबा कंसल्टेंट के पीछे - पीछे चल दी...


वार्ड राउंड खत्म कर वह उसके बेड पर पहुँची... उसके हाथ में काफ़ी का कप देख वो मुस्कुरा उठा फ़िर रो कर कहने लगा किसी ने उसके लिये आज तक ऐसा नही किया...वो दोनों फ़िर बातें करने लगे. अचानक वह उससे पूछ बैठा डू यू हव ऐ बाय फ्रेंड डाक्टर? मैं इतनी भाग्यशाली नही उसने हँस कर उत्तर दिया. आई एम् सिंगल... यू आर माइन नाव और दोनों जोरों से हँसने लगे... वो जब भी वार्ड से गुजरती वो अपने बिस्तर से चिल्लाता... आई लव यू ....आई लव यू ...आई लव यू.... वो होंठो पर अंगुली रख श्श्श्श ...करती मुसकुराती - झेपती वार्ड से निकल जाती...नर्स और वार्ड के मरीज ज़ोर- ज़ोर से हँसते और उसे चिढ़ाते।


अचानक सुबह के सवा तीन बजे फ़ोन की घंटी बजती हैं घबराहट और हड़बड़ाहट में फ़ोन उठता है .... उसमें से सिसकने की आवाज़ आती है... माई बाय फ्रेंड इज नो मोर ...उसने मेरे हाथों में दम तोड़ा है मैं उसे बचा नही सकी और वो फ़ुट-फ़ुट कर रो पड़ी... फ़ोन के इस तरफ़ कोई राहत की साँस ले उसे चुप कराने की कोशिश करता है...

फोटो गूगल सर्च इंजन से

15 comments:

के सी said...

मोर की उखड़ी हुयी पांखें उसके होने की निशानी बन कर दर-ओ-दीवारों को रोशन करती रहती है, मन के भीतर गहरे तक ऐसी ही यादें स्वांत सुख का बीजारोपण किया करती है, मेरे भी मन में कहीं बसा रहेगा नाम नीरा इस एक तवील कहानी को संक्षेप में अपने शब्दों में कहने के कारण, मैं समझता हूँ कि ऐसी कहानियाँ हमारी निर्मलता और मनुष्य के लिए सम्मोहक जीवन की जरूरत हेतु गढी जाती रहेंगी और ये भी विशवास है कि आप जैसे लोग इनकी याद दिलाते रहेंगे।

Unknown said...

दिल को छु गई........बहुत ही भावुक रचना .

कुश said...

बहुत ही मार्मिक... शब्दो पर पकड़ अच्छी है..

Puja Upadhyay said...

ajeeb sa dard liye khoobsoorat kahani...ya kahun,jindagi?

Eat. Live. Play said...

Heartwarming... Is it a true story??

Anonymous said...

Extremely touching and pure. Your style of writing creates such a vivid picture in reader's mind...amazing talent. Look forward to lot more from you

travel30 said...

very toching ..

Rohit Tripathi

Anonymous said...

भावो को शब्दों में कैसे पिरोया जाता है आपकी रचना पढ़ कर पता लगा , बहुत सुंदर रचना

BrijmohanShrivastava said...

दर्दनाक चित्रण

Ashok Kumar pandey said...

भावुक,सम्वेदन्शील और दिल को छू लेने वाली रचना।
बधाई

योगेन्द्र मौदगिल said...

पराकाष्ठा की हद तक भावुकता... संवेदी मन कईं बार ऐसा हो जाता है... बंधे कथानक के लिये साधुवाद स्वीकारें..

डॉ .अनुराग said...

कमाल का लिखती हो.....कमाल का......इन संकेतात्मक अंदाजों से पूरी बात कहने का अंदाज ...कुछ बातो को बेमिसाल बना देता है...उनमे एक अजीब सी गंध डाल देता है जानी पहचानी .इसे पढ़कर लगा जैसे मेरे किसी अपने की कहानी है.... डॉ हूँ ना ....

Amit Kumar Yadav said...

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

अनिल कान्त said...

बहुत ही प्यारी और मर्मस्पर्शी रचना .....मन को बहुत भायी ....


अनिल कान्त

मेरा अपना जहान

Ashok Kumar pandey said...

कभी अपने मन से पूछो वो क्या कहता है…और अगर कोई बीच मे टोके तो कहो बाद में आना।

यह सब ही तो है जिसने आधी आबादी की पूरी रचनात्मकता को बाहर नही आने दिया और पुरुष श्रेष्ठता का दम भरते रहे।

जो आज कहता है उसकी चिन्ता ज़रूरी है …पर कल जो कहेगा? जब बच्चे अपनी दुनिया मे मगन होंगें …सब कुछ बदल चुका होगा तो किसी अकेली शाम कोई अधूरी कहानी जब पूछेगी कि सबका ख्याल रखा फिर मेरी भ्रूण हत्या क्यों ? तो क्या जवाब होगा तुम्हारे पास!

भावावेश में 'तुम' लिख गया…मिटाया तो लगा अन्याय होगा…क्षमा