घंटाघर पर उतर, पलटन बाज़ार से गुजरते हुए, चार- पांच टेढ़ी - मेढ़ी गलियों से होकर, कूड़े के ढेरों को फांदते हुए, आवाज़ लगाते ठेले वालों के बीच से जगह बना, ट्रेफिक में अटके स्कूटर के शोर -गुल; ग्राहकों, पैदल चलने वालों, आवारा कुतों और गायों कि भीड़ में, सब्जी मंडी में उस नाली के ऊपर तखत पर बनी चाट कि दूकान तक पहूंचना कोई आसान काम नहीं है .. वो भी शाम के वक्त......
वो वहां रोज शाम आता है, कभी सात दिन, कभी दस दिन, कभी पंद्रह दिन, कभी बीस दिन लगातार. यह निश्चित नहीं था वह कब रोज़ आते -आते गायब हो जायेगा और कब इन रोज़ आने वाले दिनों के बीच चार महीने, छह महीने, आठ महीने का अन्तराल आ जाएगा, पर चाट कि दूकान पर आने और गायब होने का यह सिलसिला करीब दशकों से लगातार कायम है, इस बीच चाट वाले का बेटा भी कभी-कभी बाप की जगह दूकान पर दिखाई देने लगा है।
चाट वहां दोने में मिलती है, दही, इमली कि चटनी और पानी बताशे का चटपटा पानी चमकते हुए स्टील के भगोने में रखा होटा, चाट वाला अधेड़ उम्र का बुजुर्ग है वो मटमैली धोती और बनियान में पलोथी मार कर चाट खिलाने बैठता है, उसके कंधे पर टंगा हाथ पोंछने का तोलिया हमेशा साफ़ धुला हुआ होता है वह बड़े प्रेम से सबको चाट खिलाता है ... उसका नंबर आने पर चाट वाला बिना पूछे ही उसे चाट खिलाना शुरू कर देता, वह जानता था उसको क्या खाना है सूजी के नहीं, आटे के बताशे खिलाने हैं, बताशे में इमली कि चटनी कितनी डालनी है, कितनी मिर्च, कितना मसाला, कितनी दही, चाट खिलाने का क्रम भी उसे मालूम था. वह पानी-बताशे से शुरू करता, फिर टिक्की, दही पापड़ी, सबसे बाद में दम आलू... चाट कि दूकान पर उसके दुसरे ग्राहकों के बीच वह अलग ही दिखाई देता है, छ फिट ऊँची काठी, सर पर खड़े छोटे-छोटे बाल, चेहरे पर विनम्रता, गर्दन से टपकता पसीना, ढीली-ढाली डेनम की जींस और पसीने से भीगी उसकी टी शर्ट...
वो हमेशा अपनी बारी का इंतज़ार बिना कोई शिकायत किये करता और चाट वाले को सरजी कह कर बुलाता. उसके बारे में इतने साल से चाट वाला सोचता आया है और आज उससे पूछे बैगर ना रहा गया ..."साब आप करते क्या हैं?" चाट वाले ने बताशा पत्ते के ऊपर रखते हुए पूछा. वह बताशा सटक कर मुस्कुराया और बोला "सरजी कल सुबह जो पांच जहाज ऊपर से उड़ेंगे बाहर सड़क पर आकर देखना सबसे आगे वाले में कौन बैठा है ...."
अगले दिन चाट वाला हिंदी और अंग्रेजी के अखबारों में छपी उसकी तस्वीर सबको दिखा रहा है वर्दी में वो कितना अलग रहा है ....आज उतरांचल का पांचवा जन्मदिन है... अखबार में लिखा है जो कभी इस घाटी कि पगडण्डी पर साइकल के पैडल घूमाता था आज वह उसी पगडण्डी के आकाश पर अपना नाम लिख रहा हैं...
केंद्रीय विधालय की दीवार फांदते,
बारह से तीन शो में आँखे चुराते,
पड़ोसियों की खिड़की के शीशे तोड़ते,
पिता के प्रहार से बेचते,
चंद अंको से जिंदगी में मात खाते,
कभी सोचा था?
एक दिन वह लिखेगा
अपना नाम बादलों कि स्याही से,
इन्द्रधनुष से सींचेगा
द्रोण नगरी का गगन,
शहर का बच्चा बूढ़ा
सर उठाएगा,
जब वह अर्पण करेगा
उतरांचल को अपना नमन,
घर की छत गूंजेगी
उसकी गर्जना से,
छत के नीचे
गर्व और सार्थकता से
चार आँखें होंगी नम…
फोटो - गूगल सर्च इंजन से
15 comments:
आपका कहने का तरीका मुझे बहुत बता है ....पूरा एक साँस में पढ़ गया ...बहुत अच्छा लगा ....अगली पोस्ट के इंतजार में
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
जीवन की गलियों से गुजरती हुई कविता, सार्थक प्रयास। बधाई।
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S.B.A.
TSALIIM.
बहुत ही सुन्दर. उस गली कूचे वाले शहर का नाम भी बता देते तो अच्छा लगता..
गोया के .....हमारा तो यार भी ऐसा है ओर एक कजिन भी....आप उन्हें कहाँ मिले ???
मैं निर्विघ्न देखता हूँ शब्दों का बुना जाना यूं प्यार से...
ग्राहकों के बीच वह अलग ही दिखाई देता है, छ फिट ऊँची काठी, सर पर खड़े छोटे-छोटे बाल, चेहरे पर विनम्रता, गर्दन से टपकता पसीना, ढीली-ढाली डेनम की जींस और पसीने से भीगी उसकी टी शर्ट...
कविता सदा की भांति अपने आस पास बिखरी हुई , बहती हुई सी!!
once again an emotional post.
even DROPOUTS has made their mark.
आत्मीयता पहुँच की तमाम मुश्किलों- बाधाओं के बीच से आखिर आदमी को खींच ही लेती है.और कसबे का गुज़रे कल का छोरा आज भी इन्हीं अपनापे के अड्डों में फिरता है.
wonderfull
Neeraji, aapka andaaz sabse nirala hai. Bahut - bahut Badhaee. -- Alka Sinha
बहुत उम्दा लेखन. आज उषा वर्मा जी के घर आपके विषय में चर्चा हुई. अच्छा लगा.
गर्व और सार्थकता से
चार आँखें होंगी नम…
आपका लिखने की शैली भी बडी सुन्दर एवम रोचक लगी। बधाई।
हे प्रभु यह तेरापथ
मुम्बई टाईगर
दलित,गवार,और नारी,कमेन्ट में भी आरक्षण के अधिकारी; कुछ दिन के लिए नीरा से नीरज बन जायो कमेन्ट के भंवरे नहीं आयेंगे ; जय नारी शक्ति;
बेनाम जी
अभी तक जरूरत महसूस नहीं हुई है लिंग बदलने की और जहाँ तक उम्मीद है आगे भी नहीं होगी, फिर भी सुझाव के लिए बहूत - बहूत शुक्रिया... तितली और भवरों को निमंत्रण की ज़रूरत नहीं सिर्फ फूलों की ज़रूरत है...
शुभकामनाएं
आपने इस एनानिमस का कमेन्ट लगाकर हिम्म्त दिखाई।
इतनी घटिया सोच और आत्मविश्वास की ऐसी कमी बताती है कि ये आदमी कितना sick है।
उम्मीद है ऐसे लोगो का आप के भीतर के लेखक पर कोई असर नहीं होगा।
Aap ki kalam ne kar diya varna,
Vo kahan itna khoobsoorat hai.
Aasmaan me sar theek hai lekin,
Kadam zameen par zaroori hai.
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