Friday, 26 February 2010

"आई कैन एशियौर यू .. आई शेल नेवर नीड देम..."


पिछले तीन महीने से रीटा रात को यह सोच कर सोने जाती है सुबह को वह कभी ना उठे तो बेहतर होगा.. थोमस के आ जाने से भी सुबह को कभी ना उठने की ख्वाइश कम नहीं हुई है.. उसके जिगर का टुकड़ा उसकी ख़ुशी नहीं सिर्फ व्यस्त रहने का माध्यम बन कर रह गया है... नन्ही सी जान की मुस्कराहट में मां को ज़न्नत नसीब होती है पर यहाँ ना तो उसका दिल पसीजता है और ना ही दूध उतरता है... वो रात ग्यारह बजे उसे फार्मूला मिल्क देती है वह सुबह पांच बजे तक चुपचाप सोता है .... जब सुबह में वह दूध के लिए रोता है वह उसके रोने पर नहीं ... अपने ज़िंदा होने पर झल्लाती है... परदे सरकाने, रौशनी भीतर आने, घड़ी कि टिक-टिक, दूधवाले के ट्रक की टीम-टीम, फोन की घंटी, पोस्ट मेन की आहट, पड़ोसियों की मुस्कराहट और स्कूल जाते बच्चे सभी से वह बचती है और शुब्ध है.. और सबसे ज्यादा घबराहट और तनावग्रस्त है बंद लिफाफों से, जिन्हें वह खोलती नहीं और फाड़ती भी नहीं.... उन्हे बिना खोले ही भीतर के धुएं को सूंघ सकती है .... बंद लिफांफों का ढेर लग गया है कुछ रीटा एमरी के नाम से हैं और कुछ डेविड पोलार्ड के ....वो बंद लिफ़ाफ़े दिन भर उसे घूरते हैं, चिल्लाते हैं, धमकी देते हैं तुम बेघर हो जाओगी, बिजली और गैस कट जायेगी, तुम्हें कोर्ट में घसीटा जाएगा, सामान कुडकी हो जायेगी, तुम्हारा ए टी एम् कार्ड मशीन निगल जायेगी... तुम्हें मदद चाहिए हम मदद करेंगे ... तुम्हारे सारे क़र्ज़ चुका देंगे...तुम यहाँ साइन कर दो, अपनी हर महीने की कमाई और सुख- चैन हमेशा के लिए हमारे पास गिरवी रख दो... उसे ऐसा लगता है उसके चारों ओर अविश्वास और अनिष्चितायों का मकड़- जाल डंक फैलाए बैठा है.

डेविड और रीटा एक दोस्त के घर मिले थे ... जल्दी ही यह मुलाक़ात प्यार के रिश्ते में बदल गई .. रीटा को छत्तीस की उम्र में प्यार नसीब हुआ था और डेविड उसकी जिंदगी का पहला प्यार था .. जबकि डेविड की जिंदगी में प्यार इतनी बार आया-गया कि वो उसकी गिनती भूल चुका है लेकिन वो अक्सर रीटा से कहा करता वह औरों से एकदम अलग है उस जैसी उसके जीवन में पहले कभी नहीं आई.. उसको अब तक सिर्फ उसका इंतज़ार था ...दोनों के बीच ढाई सौ किलोमीटर की दूरी थी जिसे वह सप्ताहांत में मिटा देते... एक शुक्रवार को डेविड रीटा के शहर के लिए रवाना होता और अगले शुक्रवार को रीटा डेविड के घर ... रीटा अपने माता -पिता के पास रहती थी और डेविड को उनका आस -पास होना उतना ही नापसंद था जितना रीटा के माता -पिता को रीटा और उसका साथ...पर वो सप्ताह अंत में एक दुसरे से जरूर मिलते ...डेविड ने रीटा को अपनी कम्पनी में एडमिनिस्ट्रेटर की वेकेंसी की इतला दी ...तीन महीने बाद नौकरी उसकी थी और वह अपने माता - पिता का घर छोड़ उसके शहर में आ गई, दोनों बड़े फ्लेट में जाने के बाद उसे सजाने में व्यस्त हो गए...

पानी की तरह साफ़ साझेदारी थी दोनों के बीच .. फ्लेट का आधा-आधा किराया, गैस और पानी का बिल रीता के अकाउंट से, बिजली और कौंसल टेक्स डेविड के अकाउंट से... सुपर मार्किट की शौपिंग एक सप्ताह रीटा और अगले सप्ताह डेविड, गाड़ी की इंशोरेंस की ज़िम्मेदारी डेविड की और रोड टेक्स रीटा खरीदती, पेट्रोल एक बार रीटा तो अगली बार डेविड भरवाता ..कितने का भरवाना है वह भी निश्चित था .... इसी तरह से वो पिछले पांच वर्षों से इकट्टे रहे थे .

रीटा का बहुत मन था एक दिन डेविड शादी का प्रस्ताव रखेगा लेकिन डेविड शादी जैसे बंधन में यकीन नहीं रखता लेकिन वह उसे माँ बनने से ना रोक सका... रीटा ने जब उसे खुशखबरी दी तो वह अगले दिन उसके लिए फूलों का गुलदस्ता लेकर आया ... और जब सात महीने का थोमस रीटा के गर्भ में किक मार रहा रहा था.. तब डेविड पांच महीने पुराने प्यार के पास रहने के लिए अपना सामान समेटते हुए बेडरूम में चहल कदमी कर रहा था.. उसे उम्मीद थी फ्लेट के साथ शायद डेविड गाड़ी भी उसके पास छोड़ देगा क्योंकि गाड़ी का लोंन रीटा अदा कर रही है पर उसे खरीदने के लिए डेविड ने अच्छा खासा डिपोजिट दिया था.. लेकिन वो गाड़ी अपने साथ ले गया ... जाती हुई गाड़ी की आवाज़ उसके लिए छोड़ गया जिसे उसके कान ना जाने क्यों दिन में कई बार सुनते हैं .. यह क्या कम है टी वी और वाशिंग मशीन उसने खरीदे थे वो उन्हे नहीं ले गया.... मां का साथ देने के लिए थोमस अपनी निर्धारित तिथि से तीन सप्ताह जल्दी पैदा हो गया ... थोमस भी शायद फ्लेट के टी-वी और वाशिंग मशीन की तरह है डेविड उसे क्लेम करने और देखने नहीं आया .. उसने अपने गर्भ में थोमस की नहीं अपने जन्म की भी प्रसव -पीड़ा महसूस की....

रीटा का इस शहर में अपना कोई नहीं है दुसरे शहर में जो अपने हैं वो हर साल क्रिसमस कार्ड भेजने के लिए सिर्फ उसका पता जानते हैं .. उनके पास ना तो रीटा का फोन नम्बर है और ना ही थोमस के पैदा होने की खबर ...... दफ्तर के मित्र अक्सर फोन पर पूछते हैं वो दफ्तर कब वापस आ रही है... वो अक्सर सोचती है वह बिल्डिंग, लिफ्ट, सातवीं मंजिल, कारीडोर, मीटिंग रूम , प्रिंटर, फेक्स मशीन, केन्टीन और ओपन प्लान आफिस स्पेस, डेविड और उसकी नयी प्रेमिका, जिसको उसी ने अपोइन्ट किया था, यह सब कैसे उनके साथ रोज आठ घंटे के लिए बाँट पाएगी ? इस तनाव से छूटकारा पाने के लिए उसने एक निर्णय लिया, थोमस के सो जाने बाद एक पत्र लिखा, उसे लिफ़ाफ़े में बंद कर, उस पर दफ्तर का पता लिख, पोस्ट करने के लिए पर्स में सरका दिया...

"तुम्हारा नाम रीटा है" वोटिंग रूम में नर्स आकर पूछती है..
वो चौंक कर सर हिलाती है और नर्स के पीछे - पीछे डाक्टर के कमरे में दाखिल होती है..

आज थोमस दो महीने का हो चुका है उसे पोलियो, मीज़ल्स, वूपिंग कफ के टीके लगने हैं... टेक्सी के पैसे बचा वह दो बसें बदल कर जनवरी के बर्फीले मौसम में पंद्रह मिनट देर से क्लीनिक पहुंची है...
"ही इज डूइंग फाइन" लेडी डाक्टर ने थोमस का वजन लेते हुए गाल थपथपा कर कहा और टीका तैयार करने लगी..
"थोमस का पिता साथ नहीं आया, मैंने तुमसे पिछली बार भी कहा था...तुम दोनों से मैं फेमली प्लानिग के बारे में बात करना चाहती हूँ"
"मुझे उसकी ज़रुरत नहीं है ..." रीटा ने ज़मीन पर निगाह गड़ाए हुए कहा
"अक्सर सभी ऐसा सोचते हैं आई नीड टू डिस्कस वेरियस फेमली प्लानिग आप्शन विद यू ..." डाक्टर ने थोमस को टीका लगाते हुए कहा.. वह सुई चुभते ही जोर से चीखा और चुप हो गया... "

"आई कैन एशियौर यू .. आई शेल नेवर नीड देम डाक्टर! ... " अचानक रीटा ने बड़े आत्मविश्वास से डाक्टर की आखों में आँखे डाल कर कहा... ऐसा कहने के बाद उसने महसूस किया वह डेविड ही नहीं दुनिया के तमाम पुरुषों से मुक्त हो गई है वह बेचारी नहीं है अपने हितों, भावनाओं, संवेदनाओं की सुरक्षा करना उसके वश में है, अनेपक्षित परिस्थितियों और चुनोतियों से जूझने की क्षमता वह रखती है वह जीना चाहती है, उसे अपने -आप को पुनर्जन्म देना होगा, ... डेविड के मिलने से पहले और डेविड के जाने के बाद की रीटा..डेविड की रीटा से अधिक सम्पूर्ण और शक्तिशाली है यह उसे दुनिया को नहीं स्वयम को साबित करना है...

वो क्लीनिक से बाहर निकल दफ्तर की दोस्त को फोन लगाती है.. कोई जवाब ना आने पर वह मेसेज छोडती है
"शैरन तुम मुझे एक अच्छी चाइल्ड माइंडर का नंबर देने वाली थी... आज ही एस एम् एस कर दो प्लीज़ .. "

चलती - चलती पोस्ट बाक्स के पास रुक जाती है ... पर्स से कल रात लिखा बंद लिफाफा निकालती है उसके चार टुकड़े कर, साथ रखे कूड़ेदान के हवाले कर मुस्कुराती है.... पुश चेयर में सोते हुए थोमस का कम्बल ऊपर कर उसके ठन्डे हाथों को कम्बल से ढक, एक लम्बी सांस खींच..अपने फौलादी हाथों से पुश चेयर धकेलती हुई बस स्टॉप की तरफ बढ़ जाती है...

फोटो - गूगल सर्च इंजन से

22 comments:

सागर said...

महानगरीय महिला का अच्छा जीवन चित्रण, एक घटना (क्योंकि इससे रोजाना साबका पड़ता है) से निर्णय से जोड़ना....
आपकी कहानियों में मुझे हर बार कुछ नयी पंग्तियाँ मिलती हैं इस बार कुछ कम हैं लेकिन फिर भी
वस्तुओं के बिखरने से घटना और मानवीय संवेदनाओं को बेहतर रूप से जोड़ा है, यह पिछली कहानी में भी था...

"पानी की तरह साफ़ साझेदारी थी दोनों के बीच

उसने अपने गर्भ में थोमस की नहीं अपने जन्म की भी प्रसव -पीड़ा महसूस की"

शायद आप ही की कहानी अभी कुछ दिनों पहले मंथन पर पढ़ी... पसंद आई.

vandana gupta said...

aaj ka sach sundar dhang se prastut kiya hai.

डॉ .अनुराग said...

एक फ्रेंच मूवी देखी थी ..फ्रेंच जानता नहीं...सबटाईटल भी नहीं थे ..उसमे लड़की उस बच्चे को रेलवे स्टेशन पर छोड़ने का सोचती है ....छोड़ देती है ...कुछ देर जाने पर बच्चा रोता है .वो इग्नोर करती है .....फिर जाने क्यों एक किताब उठाकर नजदीक के स्टाल से देखती है .....जिस किताब को उठाती है उसमे एक नन्हे बच्चे की तस्वीर होती है ......वो बच्चे को वापस ले आती है ...बच्चे को चूमती हुई मां की तस्वीर के नीचे इंग्लिश में लिखा होता है ..
you are mine only.....
पानी की तरह साफ़ साझेदारी.........अपने जन्म की भी प्रसव -पीड़ा महसूस ....

इन खूबसूरत शब्दों पर मै बाद में जायूँगा उससे पहले मै इस कहानी की आत्मा को छुना चाहता हूँ...थोमस को भी.........

देवेन्द्र पाण्डेय said...

हमेशा की तरह दिल को छू लेने वाली कहानी है.
आधुनिक परिवेश में प्यार का यथार्थ चित्रण पढ़ कर मन बोझिल हुआ जाता है. लेखन शैली कमाल की है....
"आई कैन एशियौर यू .. आई शेल नेवर नीड देम डाक्टर! ... " अचानक रीटा ने बड़े आत्मविश्वास से डाक्टर की आखों में आँखे डाल कर कहा... ऐसा कहने के बाद उसने महसूस किया वह डेविड ही नहीं दुनिया के तमाम पुरुषों से मुक्त हो गई है...

इस कहानी का यह सबसे अधिक प्रभावित करने वाला अंश है.
...बधाई.

Ashok Kumar pandey said...

उफ़
क्या कहूं इसे मुक्ति … मै इससे आगे सोचता हूं… बेटा बड़ा हुआ… उसकी अपनी दुनिया… मां का फिर एकाकीपन!

इसीलिये मुझे लगता है कि गहरी सामाजिक संबद्धता, कोई बड़ा सामूहिक स्वप्न और किसी सामूहिक जद्दोज़ेहद में भागीदारी ही उस मुक्ति तक ले जा सकती है…कुछ सच्चे और दीर्घजीवी रिश्ते जोड़ सकती है…कोई व्यक्तिगत जीवन कभी मुक्ति तक नहीं जाता!

संजय @ मो सम कौन... said...

नीरा जी,
आपकी हर रचना मन की उमड़-घुमड़ को बढ़ा देती है।
इतनी खूबसूरती से कम शब्दों में आप सब कुछ कह जाती हैं। आपकी एक पुरानी कहानी का "पंजाबन" चरित्र मेरा फ़ेवरिट चरित्र है।

कुश said...

माँ का साथ देने के लिए बच्चे का तीन महीने पहले आना.. और अपने जन्म की प्रसव पीड़ा.. आप की लिखावट से ले जाने के लिए बहुत कुछ होता है.. ये वन लाईनर्स देर तक साथ रहने वाले है..

फिर से एक उम्दा थोट को बेजोड तरीके से पिरोया है आपने..

के सी said...

वह उसके रोने पर नहीं ... अपने ज़िंदा होने पर झल्लाती है...
तुम्हारा ए टी एम् कार्ड मशीन निगल जायेगी..
अपनी हर महीने की कमाई और सुख- चैन हमेशा के लिए हमारे पास गिरवी रख दो... ये फासिज्म है जो केपिटलिज्म के भेष में हमें जकड़े हुए है.
डेविड की जिंदगी में प्यार इतनी बार आया-गया कि वो उसकी गिनती भूल चुका है.
पानी की तरह साफ़ साझेदारी थी दोनों के बीच ... क्या बयान है कि इस जिंदगी को समझौता भी नहीं कहना चाहूँगा फिर भी कुछ होता है जो इसे सहने पर मजबूर करता है.
जाती हुई गाड़ी की आवाज़ उसके लिए छोड़ गया... ये क़यामत के न आने का अफ़सोस करने का कारण सा लगा मुझे.
ऐसा कहने के बाद उसने महसूस किया वह डेविड ही नहीं दुनिया के तमाम पुरुषों से मुक्त हो गई है... कुछ देर रुक कर इस पंक्ति को फिर से पढ़ा और कई बार पढ़ा.

आपको बधाई लिखने से भी अधिक कुछ लिखना चाहता हूँ मगर क्या लिखूं ?

हरकीरत ' हीर' said...

ऐसा कहने के बाद उसने महसूस किया वह डेविड ही नहीं दुनिया के तमाम पुरुषों से मुक्त हो गई है वह बेचारी नहीं है अपने हितों, भावनाओं, संवेदनाओं की सुरक्षा करना उसके वश में है, अनेपक्षित परिस्थितियों और चुनोतियों से जूझने की क्षमता वह रखती है वह जीना चाहती है, उसे अपने -आप को पुनर्जन्म देना होगा, ..

निरा जी इस बार की कहानी एक गंभीर मुद्दे पर है .....वही सब कुछ जो आज तक स्त्री झेलती आई है ....पर तब स्त्री के पास जवाब नहीं हुआ करते थे ....आपकी कहानी ने वह जवाब दिया है ....अच्छा लगा रीता का ये फैंसला .....!!

गंभीर और परिपक्व कलम से उतरी सशक्त कहानी ......!!

डिम्पल मल्होत्रा said...

कहानी पढ़ ली है इसे मेरी attendence ही समझा जाये कमेन्ट नहीं.इतना आसान नहीं कुछ इक ब्लॉग पे कमेन्ट करना इक आपका..फिर आउंगी..

sanjay vyas said...

गहन रीतेपन से उपजी मुक्तिकामना.आखिर निर्णय में दृढ़ता और हाथ में फौलाद दिखा,पर रास्ता लम्बा और अकेला है.

अभी से अगली रचना का इंतज़ार करता हूँ.

रेखा श्रीवास्तव said...

रोड मैप से रास्ते खोजती हुई इस कहानी तक पहुंची, बहुत सजीव और यथार्थ चित्रण पर बधाई.

गौतम राजऋषि said...

छुट्टियों की व्यस्तता में उलझा रहा तो देर से आया कहानी पढ़ने....दिल्ली एयरपोर्ट पर बैठा पढ़ रहा हूं इस अद्‍भुत कहानी को...रीटा के साथ अचानक से एयरपोर्ट के इन तमाम शोरगुल से परे हम भी उसके निर्णय पे थामस के पुश-सेयर को धकेलने लगे हैं।

इस बार आपके वो लाजवाब "बिम्ब" यूं तो कम दिखे हर बार की अपेक्षा...किंतु करेक्टर का उभरना हर बार की तरह खास "नीरा-शैली" में...लार्जर दैन दि प्लाट वाली शैली जिसका मैं फैन हूं।

जा रहा हूं वापस कर्म-भूमि अपनी...जल्द ही आपकी नयी कहानी तब तक पढ़ने को मिल जाये। मेल ने भरते जख्म की खबर दी। ख्याल रखें!

गौतम राजऋषि said...

थामस के पुश-सेयर.....

पुश-चेयर...

जल्दी का काम शैतान का, ऐसा ही कुछ कहते हैं ना? चलिये, लैप-टाप बंद करने का वक्त हो गया....

डिम्पल मल्होत्रा said...

रीटा के जीवन का सूनापन जैसे चित्र का श्याम पक्ष है.
उसका साहस दिखाना न तो स्वतंत्रता का खोना है,न विवाह को बंधन मानना है.कडवी हकीकत को छोड़ के आगे बढ जाना ज़िन्दगी के लिए positive attitude लगा.
प्रेमचंद कि पात्र मिस पद्मा की तरह रीता का पात्र औरत की अद्दभुत शक्ति का प्रतीक है..

संजय भास्‍कर said...

नीरा जी,
आपकी हर रचना मन की उमड़-घुमड़ को बढ़ा देती है।
इतनी खूबसूरती से कम शब्दों में आप सब कुछ कह जाती हैं।

हितेष said...

यूँ तो कहानियां अधिक पढता नहीं मैं, किन्तु इस कहानी को पूरा किये बिना नहीं रह सका. बहुत सुन्दर.

संजय भास्‍कर said...

नीरा जी,
आपकी हर रचना मन की उमड़-घुमड़ को बढ़ा देती है।
इतनी खूबसूरती से कम शब्दों में आप सब कुछ कह जाती हैं। आपकी एक पुरानी कहानी का "पंजाबन" चरित्र मेरा फ़ेवरिट चरित्र है।

कंचन सिंह चौहान said...

बहुत शांति से पढ़ती हूँ आपको और वो शांति इस बार बहुत दिनो बाद मिली....!

कुछ लोग इतना अच्छा लिखते हैं कि उतने अच्छे की प्रशंसा करने के लिये शब्द नही होते अपने पास...!

रीटा कितनी जानी पहचानी सी है मेरे लिये....!

Sarika Saxena said...

मन को छूती हुई सशक्त कहानी। शुभकाम्नायें!

अपूर्व said...

एक जाग्रत और सजग स्त्री ही एक नये और रेशनल समाज की आधारशिला होती है..मगर जमीं मे खुद को दफ़्न कर के नयी सोच के फ़ूल खिलाना कितना मुश्किल..डेविड पुरुष की स्वच्छंदता और इर्रिस्पांसिबल अट्टीट्यूड का प्रतीक है..जो अपनी जिंदगी अपने और सिर्फ़ अपने ’सेंसरी प्लेजर्स’ को समर्पित कर देता है..मगर क्या जन्म देना ही उस स्त्री को ज्यादा जिम्मेदार और संवेदनशील बनाता है?..वरना प्रसव से पहले भी वही डेविड था और वही जिंदगी थी..जिससे रीटा को कोई तकलीफ़ नही थी?

Anand kumar said...

no words.......
is kahani ka ant lajawaab tha......the title- i can assure u i shall never need them......
really touching story.....
www.drkumargrd.blogspot.com