आज दो दिन बाद बरसात रुकी थी, दो दिन से बादलों में छिपा सूरज पिछली कसर निकाल रहा था। जिसे गीले कपड़े बिना हिले सोख रहे थे. चीटियाँ बिलों से बाहर निकल रही थी, केंचुए अपना खोया घर ढूढ़ रहे थे. वह घर में रह कर उकता गई थी वैसे भी जरूरी काम अब अर्जेंट हो चले थे...माँ के बहुत कहने पर भी वो ड्राईवर ले जाने को तैयार नही हुई. ड्राईवर उसे निर्भरता का अहसास दिलाता है वह ख़ुद भी ड्राइव करती है लेकिन उसे खुली सड़कों की आदत है और उस भीड़ की जहाँ सभी ट्राफिक के नियमों का पालन करते हैं वह पहले भी तो अपने बाहर के काम करती थी, तब कहाँ गाड़ी थी?
वह कीचड़ से अपने पाँव बचा-बचा कर रोड की तरफ जा रही थी, तभी उसकी नजर सड़क की ओर पीठ किए आदमी पर पड़ी, उसने लौटना चाहा पर वो इतनी नज़दीक थी कि लौटने से अब कोई फर्क नही पड़ना था. आदमी अपना काम करके जैसे ही मुड़ा उसने आदमी को घूरा,उसकी आखों में झेंप और शर्म ढूँढने की कोशिश की, वो उसकी तरफ़ देखते हुए अपनी कार की तरफ़ ऐसे घुमा जैसे अपने घर के गेट से बाहर निकला हो. चौराहे पर कुछ लड़के थे जो अब उसे घूर रहे थे, अच्छा हुआ मानसी साथ नही है वरना तो पूछती मम वाये दीज़ बोयेज़ स्टारिंग अट अस? हिन्दुस्तान में पैदा हुई हर नारी के खून मैं घूरती आखों के प्रति एंटी बाडी होती हैं और हिन्दुस्तान से बाहर पैदा होने वाली नारी वक्सीन के बावजूद भी घूरती आंखों के प्रति इम्मुनिटी नही डवलप कर पाती. वह हर निगाह कोतुहूल से गिनती है और हर बार एक ही सवाल पूछती है. वो उन लड़कों को अनदेखा कर बसस्टाप की और भागी और बस में सवार हो गई।
बाज़ार में फेशन टेलर की दूकान में घुसी। वहां बुटिक वाली आंटी दो लड़कियों से परनींदा का रस ले रही थी, उसे देखते ही बोली तुम्हारा सूट नही सिला, कारीगर रक्षाबंधन कि छुट्टी पर गावं चला गया, अगले हफ्ते ले जाना। वो अगले हफ्ते यहाँ नही होगी और यह उसने दो सप्ताह पहले सूट का नाप देते समय बता दिया था। बिना शिकायत किए उसने सूट वापस लिया और केमिस्ट की दूकान की और चल दी. वहां दो-चार आदमी उससे पहले थे, और दो-चार आदमी उसके बाद आए और वो अपने नम्बर का इंतज़ार करती रही. अंत मैं उसने भी वही किया जो सब कर रहे थे. अभी चार में से दो दवाई ही केमिस्ट ने उसके सामने ला कर रखी थी कि उसने देखा की केमिस्ट के हाथ में नए ग्राहक की पर्ची है. उसने खिसिया कर अपनी पर्ची वापस मांगी और बिना दवाई लिए दूकान से बाहर आ गई . सामने साइबर कफे नज़र आया और वह उसमें घूस गई. दस मिनट इंतज़ार के बाद उसका नम्बर आ गया उसने लाग इन किया ही था कि कोई कुर्सी खींच कर उसके पास वाले कंप्युटर और उसके बीच की जगह में बैठ गया उसकी कुर्सी इतनी नज़दीक थी की वह उसके साँसे अपनी कमर पर महसूस कर सकती थी. वो पास वाले से इंडिया और श्रीलंका के मेच की बात करने लगा. तभी दो अलग- अलग कोनो से विडियो गेम खेलते सकूल के लड़के जोर- जोर से चिल्लाये, वो एक दुसरे को हूट कर रहे थे. उसने लाचारी से साइबर कैफे के मालिक की तरफ देखा जो अपने पसंदीदा गाने किस मी.. किस मी....को सुनने के लिये मुजिक प्लेयर की आवाज़ बढ़ा रह था . वो अपनी कुर्सी से उठी और बाहर सड़क पर आ गई वह सोच ही रही थी मुन्नी बेगम की ग़ज़लों की सी डी कहाँ से ले, तभी एक मोटर साइकल गुजरी और गढे में पड़े पानी को उसकी ओर उछाल गई. वह बिना किराया पूछे स्कूटर में जा बैठी. घर पहुँच कर वह स्कूटर वाले को सत्तर रुपये दे ही रही थी तो उसके पिता बोल पड़े पचास रुपये लगते हैं शहर से घर तक, वो दोनों बहस करने लगे. माँ उसे कीचड़ और पसीने से लथ-पथ देख मुस्कुरा उठी जैसे कह रही हों कहा था ना .... पड़ोस की आंटी उससे मिलने आई हुई थी कपड़े बदल वह ड्राइंग रूम में पहुची, आंटी उसे देखते ही बोली कितनी कमज़ोर हो गई है तेरा चेहरा सूख गया है, यह कैसे कपड़े पहने हैं इस उमर में अच्छे नही लगते ... वह यह कह कर उठ आई कि वह बहुत थक गई है.
उसे अपने ऊपर झुंझलाहट आई. यह लोग तो ऐसे ही हैं जैसे वो उन्हें छोड़ कर गई थी. वह कितनी बदल गई है बड़े दंभ से कहती थी वह बिलकूल नही बदली, उसे अपने मोहल्ले और यहाँ के लोगों से आज भी उतना लगाव है, वह कबसे वापस लौटने और उनके बीच रहने का सपना देख रही है फ़िर क्यों उसे बार- बार याद आ रहे हैं दिन-रात थैंक्यू, प्लीज़, सारी का जाप करती बर्फीली हवा, खुली सड़क के दोनों तरफ़ पैदल चलने वालो का इंतज़ार करते वीरान पेड़,एक तिकोनी छत वाला घर, छोटी सी स्टडी और उसमें इंतज़ार करती खामोशी ...उसने सोने कि कोशिश की पर उसकी आँख खुल गई थी.. हमेशा के लिये ....