सुख हाथों की पहुँच से दूर नहीं हुआ करता था... दाल में नमक की तरह सुख का स्वाद दिन में कम से कम एक- दो बार तो आ ही जाता... जिंदगी के रंगों से भरपूर .. सुख मामूली चीज़ों में गैर मामूली चमत्कार की तरह मौजूद होता ... लाल रीफिल का पेन ना हुआ अलादीन का चिराग हुआ... छोटे भाई ने यदि ले लिया उसकी जान सूखने लगती ... यह मेरी सारी स्याही खर्च कर देगा... वो बची कापियां भरती रहती फिर पन्नो पर लाल टिक लगाने का सुख, नंबर देने का सुख, अपना नाम लाल स्याही में लिखने का सुख... आज बुधवार है साढ़े आठ हो गए हैं... दिल में धुकधुकी... चित्रहार का समय हुआ जाता है... मेरे साथ चल ना पड़ोस में... अकेले शर्म आती है... वो लाल पेन दो मुझे अपना..मरते दिल से एक सुख के बदले दुसरा उसके हवाले .... सरकारी मकान के छोटे से कमरे में ठन्डे फर्श पर बैठ कर दूरदर्शन ज़न्नत की सैर करा देता ... फिर स्कूल में चित्रहार पर चर्चा ...ना देखती तो इस सुख से वंचित रह जाती ना... वो मीठा चूरन और आम पापड़ बेचने वाला, बंद गेट पर पाँव उठा भीड़ में उचक कर... चीभ पर रखो और चटकारे लेने का सुख... बाटा के नए जुते आगे से नोक वाले पीछे से डेढ़ इंच एडी वाले, उन पर सजी वेलवेट की छोटी सी एक बो टाई, सुबह पहनने के सुख से लबालब बेहद खुशनुमा रात गुजारने का सुख ...पहली बार तवे पर जले- भुने दुनिया के नक़्शे पापा को खिलाने पर फूल कर गुब्बारा हो जाने का सुख, मां वो रोज बरामदे में खड़ा घूरता है .. इस शिकायत का सुख... जिस दिन वो नहीं दिखता सुख उसे ढूंढता है ...
कालेज के हास्टल में, गैर इजाज़त, सर्दी की रात में हीटर पर चाय बनाने का सुख... तुमने धुयाँ उड़ाने का सुख अभी तक नहीं लिया.. लो आज कोशिश तो करो ...... खों... खों...खों..खों... खिड़कियाँ खोलो...दम घुटता है... वार्डन के आफिस के बाहर पिजन होल में नीले लिफ़ाफ़े में बंद सुख... हर सप्ताह तेरे पापा इतना लम्बे ख़त में क्या लिखते है... आँखों में बल्ब की तरह टिमटिमाता सुख.. मां के ब्लाउज को सेफ्टी पिन से कस पहली बार साड़ी पहनने का सुख ... किसी अनजान का हास्टल के गेट पर आ धमकने, चौकीदार से झूठ बोल, उसकी हसरतों की धज्जियाँ उड़ा, सहेलियों के साथ लोटपोट होने का सुख... कालेज सोशल में शाही खाना खाने के बाद , मजनुओं को चकमा दे चौपट हो जाने का सुख... होली वाले दिन हसीनो को पानी से भरे गढे में मिट्टी की साबुन से नहाते देखने का सुख... जनपथ से कौड़ी के भाव खरीदे डिज़ाईनर कपड़े पहनने का सुख, मेस के बावर्ची से आटे, दाल सब्जी की खस्ता हालत पर नोक- झोंक करने सुख... गर्मियों की छुट्टियों में घर लौटने का सुख...मोहल्ले में मां के साथ देख, जानी -अनजानी आँखों में कोतुहल नाचता देखने का सुख , पड़ोस के घर में लम्बा उंचा मेहमान .... बहनजी देवर कह रहा था... भाभी पड़ोस में जानी -पहचानी अच्छी सुशील - सुंदर लड़की थी आपने कभी जिक्र भी नहीं किया...किसी अनजान का अनजाने में दिया हमेशा याद रहने वाला सुख...लोगों की भीड़ में, परदेसी से मुलाक़ात और उसकी आँखों में रात की नींद खो देने का सुख....उसी पल उसके साथ जिंदगी गुजारने का फैसला लेने का सुख...
नन्ही सी जान को नींद में कुनमुनाते -मुस्कुराते देख सातों धाम घूम आने का सुख, पहली कमाई से उसकी मां के लिए सोने के बुँदे खरीदने का सुख, सड़क पर हवा से तेज़ भागती आत्मनिर्भरता का सुख, तिनका-तिनका जोड़ कर बसाए आशियाने में स्टूल पर विराजमान ताजे फूलों की महक का सुख, उसकी तरक्की पर सारे आर्थिक संकट दूर हो जाने सुख, दाल में खूब सारा घी डाल घर आये भाई को गर्म फुल्का खिलाने का सुख, फोन पर मां की आवाज़ सुन सभी गम भुलाने का सुख, अंगुली पकड़ कर चलने वाली का उसके पैरों पर खड़े हो जाने का सुख... परिंदों का छत पर डबल रोटी के टुकड़े बाँट कर खाते देखने का सुख, मौसम की पहली बर्फ से बने स्नोमेन को धारीदार टोपी पहनाने का सुख, एकांत से लिपट कर खुद को ढूंढ लाने का सुख, चाँद से उतर प्यार का दबे पाँव दिल में दाखिल हो अपना साम्राज्य घोषित करने का सुख, बारिश का खिड़की से धूल साफ़ कर आसमा नजदीक लाने का सुख, खुद को हल्का करने के लिए शब्दों से मिले सहारे का सुख, कच्चे -पक्के शब्दों पर बनवास में धरती के उस छोर से मिली बेशकीमती वाह-वाही का सुख ....
सुख सिर्फ उस पल का वफादार है जीवन भर का नहीं...वो उम्र के दौर से होकर जिंदगी से गुजर जाएगा ... इन्द्रियों से बुखार की तरह उतर जाएगा है वो दराज में बंद पड़ा किनारों और कोनो से घिस जाएगा...यादों के तहखानो में जंग की तरह खुरदरा हो जाएगा .. मानसून की तरह आकर पतझड़ की तरह झड़ जाएगा... जब कभी लौट कर दस्तक देगा यदि पहले जी लिया होगा तो ज़हन को झंझोरे बिना, आँखों को चुन्धियाये बिना, रगों में दोड़े बिना, होंठों पर सजे बिना, हाथ मिलाये बिना सामने से निकल जाएगा... एक समय आयेगा आँखे सुख को पहचान नहीं पाएंगी और सुख और दुःख की शक्ल एक लगने लगेगी ... मुक्ति का सुख खुली मुठ्ठी में बंद होगा ...सब सुखों के मिट जाने के बाद बस जीवित रहा ... शब्दों के सागर से मोती चुनने का सुख...