बशीरा ने नज़रें उठाई और बस स्टाप के अन्दर लगे स्क्रीन पर झांका, जो पिछले पंद्रह मिनट से बता रहा है कि छत्तीस नंबर बस तीन मिनट में आ रही है, पुश चेयर में बंधे साजिद और जावेद, पलट -पलट कर उसकी और देख, हाथ उठा बेल्ट से मुक्त होने को मचल रहे हैं, पुश चेयर के नीचे टोकरी में दो बड़े प्लास्टिक के शापिंग बैग हैं एक में चार छोटी- छोटी टी शर्ट हैं, दो कार्डराय की पैंट हैं दुसरे थैले में उनके नए जूते और तीन - तीन जोड़ी नयी जुराबें... उसके कंधे पर पर्स नुमा बड़ा बेग... जिसमें पड़ी पानी, दूध की बोतल अपना भार कंधे को प्रत्येक क्षण तुलवा रही थी..हाई स्ट्रीट में उसके पास से गुजरते लोगों की आँखों में छिपा परायापन जो आँखें मिलते ही आँखों से बाहर आ जाता है यहाँ बस स्टाप पर उसके पास लाइन में आकर खड़ा हो गया है जिसने बस का इंतज़ार और लंबा कर दिया ... उसे लगता है उसका सारा वजूद और पहचान उसके सर पर बंधे एक मीटर कपड़े में है वो समझ सकती है चार दिवारी के बाहर सूरज और हवा को एतराज़ है वह उसके बालोंऔर बालों में लगी क्लिप को कभी छू नहीं पाए.. किन्तु आस पास खड़ी परछाइयाँ क्यों चश्मा बदल -बदल कर देखते है एक चश्मा कहता है बेचारी को रोज़ पीटता है, दुसरा दो बच्चे पुश चेयर में हैं चार स्कूल में होंगे, तीसरा बस में इसके पास वाली सीट ना मिले लहुसन की बदबू बर्दाश्त नहीं होती, चौथा सरकारी खजाने पर परिवार ऐश करता है, पति बेरोजगार है या टेक्सी चलाता है और टेक्स चुराता है,पांचवा इन्हें सरकार वापस क्यों नहीं भेज देती, छटा लिबास के भीतर छाती का भार और आकार नाप चुका है...
बड़ा सोच समझ कर घर से निकली थी... आसमान साफ़ है हवा में सब्र है हाई स्ट्रीट में सेल लगी है... दो घंटे में, दो बच्चों के साथ, दो बड़ी दुकानों में जाकर ही उसके हाथ- पाँव, कंधे और सब्र सभी ने जवाब दे दिया था .... घर से खिला - पिला कर लाइ थी... आते हुए बस में सो गए थे और सोते रहे.. लौटने के समय जागे है... बस स्टाप के भीतर, बिल बोर्ड पर बदलते पोस्टर्स को दोनों बड़े ध्यान से देख रहे हैं .. बस स्टाप अब बारह - पंद्रह लोग है सभी बूढ़े लाइन में हैं और जवान लाइन से बाहर ... यदि बस स्क्रीन पर बताये समय पर आ गई होती तो अब तक वह घर में होती... तभी उसने देखा एक नीली आखों वाली डबल पुश चेयर को धकेलती हुई लाइन में पीछे आकर खड़ी हो गई, उसकी घुटनों तक लम्बी काली स्किर्ट पर उसकी नज़र गई,जो उसकी स्किर्ट से थोड़ी ही ऊँची है यह राज़ सिर्फ बशीरा को मालुम है.. दोनों की निगाह एक दुसरे की पुश चेयर पर है जिसका मेक एक है, डिजाइन और साइज़ एक है, बच्चों का जुडवा और उनकी उम्र बराबर होना एक है और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफ़र करने का संघर्ष एक है इन सभी समानता को आखों ही आखों में दर्ज करती चार आँखे मुस्कुराई ...
तभी छत्तीस नम्बर बस आ गई.. तीन लोग जो लाइन में आगे थे उनके चढ़ने के बाद बशीरा ने पुश चेयर आगे धकेली..
"तुम वहीं रुको यह पुश चेयर बड़ी है अन्दर नहीं आ सकती.." ड्राइवर ने सीट बैठे हुए हाथ बढ़ा कर रोकते हुए कहा..
"लेकिन यह तो आ रही है..." बशीरा पुश चेयर के अगले पहीये उठा बस के पायदान पर लगाने को थी...
"नहीं यह इस तरह नहीं आ सकती ..." ड्राइवर सीट से उठ कर बस के दरवाज़े पर आकर खड़ा हो गया...
बशीरा अपने से पीछे अन्य यात्री को रास्ता देती हुई बस के दरवाज़े की बगल में सरक गई ... साजिद और जावेद को बेल्ट से मुक्त किया .. उन्हे फूटपाथ पर खड़ा कर ...पुश चेयर के दोनों हत्थों को क्लिक करके बंद किया..
सबसे बाद में नीली आँखों वाली जुड़वां बच्चों को पुश चेयर में धकेलती आई और पुश चेयर के अगले पहिये उठा दोनों बच्चों सहित बस के अन्दर चली गई... वह पुश चेयर को बच्चों सहित अन्दर छोड़ बाहर निकली...उसने जावेद को गोद में लिया... साजिद बशीरा की गोदी में था... बशीरा ने हत्थों से और नीली आखों ने पहियों की तरफ से उठा कर पुश चेयर को बस में लाकर खोला और सलीम और जावेद को उसमें बैठा दिया ...दोनों के माथे पर पसीना चमक रहा था ... ड्राइवर टिकट देने के लिए बशीरा का इंतज़ार कर रहा था...
बशीरा ने नीली आँखों वाली को ना जाने कितनी बार थेंक यू कहा...वो दोनों पुश चेयर खड़ी करने वाली जगह के सामने खाली सीट पर बैठ गई....
"तुम कुछः करोंगी नहीं?" नीली आँखों वाली ने बशीरा से कहा..
"क्या मतलब?.." बशीरा ने आखें गोल करते हुए कहा...
"जाओ ड्राइवर का नाम पूछ कर आओ..." बशीरा को अब कुछः -कुछः समझ आने लगा ... वह अपनी सीट से उठी, हेंडल पकड़ झूलती हुई आगे बढ़ी... ड्राइवर ने नाम देने में आनाकानी की... और एक बहस के बाद अपना नाम दे दिया...
"तुम्हारे पास कागज़ और पेन है?" नीली आँखों वाली ने पूछा...
बशीरा ने बेग टटोला और पिछले महीने का हास्पिटल अपाइंटमेंट लेटर निकाला.. इतनी देर में नीली आखों वाली ने पिछली सीट से पेन का इंतजाम कर लिया.. .
"चलो लिखो तुम्हारे साथ क्या हुआ... " नीली आँखों वाली ने लेटर को उलट कर मुड़े -तुड़े पन्ने को अपने पर्स पर रख लिखने का सहारा दिया... बशीरा ने जल्दी - जल्दी आठ लाइने लिखी...
"जाओ बस में बैठे लोगों से .. इस कागज़ पर हस्ताक्षर लो.. मैं बच्चों पर नज़र रखती हूं .."
बशीरा एक-एक कर सभी के पास गई... किसी ने कहा मैंने कुछः नहीं देखा और किसी ने देख कर भी हस्ताक्षर देने से इनकार किया ... और कुछः को हस्ताक्षर देने के लिए आठ लाइने पढ़ने की ज़रुरत महसूस नहीं हुई...बशीरा अपनी सीट पर लौटी तो नीली आँखों वाली ने अपने हस्ताक्षर किये... आई फोन से उसने पता ढूंढ लिया था नीचे लिख दिया...
बशीरा का बस स्टाप आ गया और वह उस कागज़ को अपने बेग में समेट नीली आँखों वाली का थेंक यू करती रही.. पुश चेयर को धकेलती बस से उतर गई...
एक सप्ताह बाद बशीरा के नाम ख़त आया ... ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी ने उसकी शिकायत दर्ज कर ली है और तहकीकात शुरू हो गई है... इस तहकीकात के परिणाम के बारे में उसे छ सप्ताह बाद सूचित किया जाएगा...
बशीरा को परिणाम और तहकीकात से कुछः ज्यादा उम्मीदें नहीं थी ... लेकिन अपने भीतर के विश्वास और एकता की ताकत से मिलने के बाद आईने ने उसकी शक्ल बदल दी ... इस दुनिया में वह अकेली नहीं है उसका संघर्ष भी अकेला नहीं है ... नीली आँखों वाली का चेहरा अक्सर उसे आईने में नज़र आता ... वह सोचती उसने उसका नाम और फोन नंबर भी नहीं पूछा....
आठवें सप्ताह के मध्य में उसे पत्र मिला ... ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी उसके साथ हुए सलूक के लिए क्षमा चाहती है, ड्राइवर पर नस्ली भेदभाव और लिंग भेदभाव का गुनाह साफ़ साबित होता है ऐसा कर्मचारी ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी की नौकरी के लिए अनुपयुक्त है और ऐसे लोगों को समक्ष लाने के लिए ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी उसका धन्यवाद करती है...
आज थेंक यू कहने के लिए नीली आँखों वाली पास नहीं है... वह एक क्रान्ति और शक्ति की तरह हमेशा उसके भीतर रहेगी और सही वक्त पर, सही जगह पर, स्त्री के अधिकारों के लिए, अन्नाय के विरुद्ध उसकी आवाज़ बन कर...
फोटो गूगल सर्च इंजन से