उसका इमेल आया है वह अमरीका जा रही है और जाने से पहले उससे मिलना चाहती है क्योंकि रात की फ्लाईट है दोपहर की ट्रेन से दिल्ली पहुँच अपना सामान बहन के घर टिका, कुछ घंटो के लिये उससे रीगल पर मिलेगी। वो हमेशा की तरह उससे पहले पहुँच जाता है और वो आधे घंटे बाद आती है... दोनों केफे में बैठ कर काफ़ी पीते हैं बातें करते हैं वो उसके अमेरिका के प्रोजेक्ट के बारे में पूछता है और वह उसकी नई किताब के बारे में बात करती है, वो उसके सर से उड़े बालों का मज़ाक उड़ाती है, वो उसके दांत से कुतरे नाखूनों का, वो सोचती है वह उससे पूछेगा कब आओगी? वो सोचता है वो बिना पूछे बताएगी, वो सोचती है वह कुछ कहना चाहता है वह बिना कुछ कहे उसकी आंखों में जवाब ढूँढता है। यकायक मुस्कुराता हुआ कुर्सी से खड़ा हो जाता है... तुम यही ठहरो मैं अभी आधे घंटे में आता हूँ मुझे बहुत जरूरी काम है। इससे पहले की वह कुछ कहे वह केफे से बाहर जा चुका था।
वह इंतज़ार करती है फ़िर अपने से सवाल पूछती है क्यों उसने उम्मीद की कुछ बदलने की, कुछ सुलझाने की, रिश्ते को परिभाषा देने की ... वह सोचती है इससे अच्छा तो वह बहन के घर आराम करती। उसे अपने ऊपर झुंझलाहट आती है वह ध्यान बटाने के लिये मेज से मैगजीन उठाती है अपने आस-पास उठती नज़रों को और दिल की उथल- पुथल को पलटते पन्नो के शोर में छुपाने की कोशिश करती है। शब्दों को सिर्फ़ देख सकती है ना उन्हें पढ़ सकती है और ना उनका अर्थ समझ सकती है फ़िर भी वह मैगजीन में आँख गड़ाए बैठी है... उसकी निगाह बार - बार दरवाजे की और उठ जाती हैं। एक घंटा होने को आया उसके सब्र का बाँध टूट चुका है। बीस मिनट पहले उसने फोन पर कहा था वो पाँच मिनट में पहुंचने वाला है... टीशू से भीगी पलकें पोंछती है केफे से बाहर आ टेंपो वाले को आवाज़ देती है।
वह बाहर टेक्सी से निकल उसे इंतज़ार करने की हिदायत दे , बगल में कित्ताब दबाये केफे में घुसता है। खाली मेज को देख वेटर से पूछताछ कर टेक्सी वाले का भाड़ा चुकाने बाहर आता है। अखबार में लिपटी दो फूलों की माला की तरफ़ इशारा करते हुए कहता है इन्हे मन्दिर में चढ़ा देना। टेक्सी वाले को पचास रुपये का नोट ऊपर से थमा, वापस केफे में बिना दूध की चाय का आर्डर दे उसी टेबल आकर बैठ जाता है।
जेब से पेन निकाल कर नई किताब के कोरे पन्नो को सूंघते हुए दुसरे पन्ने पर अपना नाम और आज की तारीख लिखता है उसका टाइटल "लव इन द टाइम आफ कोलरा"पढ़ मन ही मन मुस्कुराता है। होंठो पर उसका नाम बुदबुदा अँगुलियों से सेलो फ़ोन के बटन दबा उससे पूछता है तुम्हारी फ्लाईट कितने बजे की है तुम्हें एक किताब भेंट कर सकता हूँ? उधर से आवाज़ आती है देखो! परेशान होने की ज़रूरत नही है और अब समय भी ज्यादा नही है.. तुम अपना ख्याल रखना.. और फ़ोन डिस्कनेक्ट हो जाता है।
वह किताब का आखरी पन्ना खोलता है जहाँ नायक को आधी सदी के इंतज़ार के बाद नायिका अपना रही होती है वह पढ़ते हुए मुस्कुराता है और चाय के घूँट भरता है।
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