Wednesday, 30 September 2009

एक शाम की भूख और पचास हजार की रोटी..



पता नहीं क्यों उसे लगने लगा है परिवार में उसका अस्तित्व ऐसा ही है जैसे शेल्फ पर रखी किताब का है, दीवार पर लगी घड़ी का है, मेज पर रखी चाबी का है, धुप में काले चश्में का है, बरसात में छाते का है, जाड़े में गर्म कोट का है ...वो सभी अमूर्त और अद्रश्य रहते हैं जब तक उनकी ज़रूरत नहीं पड़ती ... पर उसे किसी से कोई शिकायत नहीं है परिवार के सपने पूरे करने के लिए उसने अपने सपनों का साथ तो उसी दिन छोड़ दिया था जब कालेज की नौकरी छोड़, पत्नी के भाई के साथ बिजनेस शुरू किया था.. किसी के दबाव में आकर नहीं .... यह सब कुछ उसने स्वेच्छा से किया था...अपनों को खुश रखने और उनकी ख्वाइशे पूरी करने कि कोशिश में वह रेल के इंजन की तरह हो गया है उसमें खुद को झोंकता है और गाड़ी उसी और चलती है जहाँ पसिंजर जाना चाहते हैं ...उसके लिए यह सब अपनी पटरी, दिशा और स्टेशन की ओर चलने से कहीं अधिक आसान है ...


वह एक सप्ताह बाद बिजनेस टूर से लौटा है...घर के लोग उसके आगे- पीछे घूम रहे हैं पत्नी को याद करने कि फुर्सत उसे नहीं मिली थी किन्तु आज उसका अपनापन देख ग्लानी हो रही है... वह फोन पर भी कितना रुखा और उदासीन था ... ऐसा बहुत समय बाद हुआ है वह घर लौट कर अपनों के बीच खुश है आज ऐसा लग रहा है वह अपने घर नहीं किसी और के घर सात वर्ष बाद लौटा है... आज एक और विशेष बात है उसकी प्लेट में नौकर के हाथ कि नहीं बेटी के हाथ कि बनी रोटियां उड़न तश्तरी की तरह उतर रही हैं है, गोल नहीं है, अलग-अलग प्रान्तों के नक्शे हैं यह कश्मीर का नक्शा है सफ़ेद और मुलायम, यह उतरांचल का है थोड़ा उबड़- खाबड़ , यह पंजाब का लगता है कुछ ज्यादा करारा किनारों से थोड़ी मोटा, तोड़ने में सख्त है पर स्वाद में वाह ! आज बेटी इतनी बड़ी हो गई है और सबसे बड़ी बात यह कि वो रसोई कि तरफ मुडी है ओर पिता को गरम रोटी खिला रही है ... वो तीन रोटी खाता है किन्तु बेटी के आग्रह पर आज चार रोटी खाई हैं और रोटी के रंग, रूप और स्वाद की तारीफ़ वो खाना ख़त्म करने बाद भी करता रहा...

वो जेब में हाथ डाल रहा था.. फिर अचानक पूछ बैठा...

"बरखा बेटा! कुछ देना चाहता हूँ?"

"नहीं पापा! कुछ नहीं चाहिए! "

उसके जवाब से वह और उदार हो गया और बोला "तुम्हारा मोबाइल ठीक से चार्ज नहीं होता, जन्मदिन से पहले ही तुम्हें नया मोबाइल दिला दूंगा "

बरखा का चेहरा और आँखे चमक उठी "पापा मैंने पांच हजार तो जमा कर रखे हैं बाकी आप दे देना .. मुझे आई-फोन चाहिए, बिजनेस टूर पर आप जब सीन्गापुर जायेंगे तो वहां से लेकर आना "

"ठीक है ... मुझे तुम्हारे हाथ कि रोटी पहली और आखरी बार तो नहीं मिल रही न?" दोनों जोरों से हंस दिए..


सोने से पहले उसका सेल फोन बजा.. उसे ख़ुशी हुई उदित का फोन है.. नहीं तो वह मोबाइल का बिल बचाने की वजह से वह घर वालों से ही उम्मीद करता है ...
"बेटा कालेज कैसा चला रहा है ?"

"पापा फर्स्ट क्लास "

"कालेज के अलावा क्या हो रहा है?"

"पापा मैं आजकल रोटियां बनाना सीख रहा हूँ जब छुट्टियों में घर आउंगा तो आपको अपने हाथ कि रोटी खिलाउंगा .."
"तू फ़िक्र मत कर मैं तेरे हाथ कि रोटी बिना खाए ही तेरे अकाउंट में रुपये डाल दूंगा... " उसने हंस कर कहा ...

"पापा दस हज़ार चाहिए....मुझे कालेज के फंक्शन....." .

"कल ही डाल दूंगा उसने बात काटते हुए कहा...ज्यादा कि ज़रूरत हो तो बताना.."

"नहीं पापा काफी होंगे.. पर मैं आपको अपने हाथों से रोटी बना कर जरुर खिलाउंगा.. "

दोनों हंसते हुए एक दुसरे को बाय कहते हैं ....  


"अरे यह क्या?" पास बैठी पत्नी बोली? उसने हैरानी से उसकी तरफ देखा...

"मैंने तुम्हारे लिए बीस साल तक रोटियां बनाई ... तुमने मुझे क्या दिया?"

"अरे! सब कुछ तुम्हारा ही तो है...."

"बस! हमेशा कि तरह हवा में बात! ...."

"ठीक है तुम्हें क्या चाहिए? "

"सिर्फ एक हीरे कि अंगूठी "

"बीस साल के सिर्फ बीस हज़ार... कल केश ला देना"

वह हंस कर बोली उसके चेहरे कि फीकी सी मुस्कान ने पत्नी की हंसी का साथ दिया...


उसे यकीन हो गया वह होटल से अपने घर लौट आया है...

अब उसे किसी के हाथ की रोटी खाने कि इच्छा नहीं होती ... नौकर के हाथ की रोटी अच्छी लगती है क्योंकि उनमें नोटों की महक थोड़ी कम आती है...

फोटो- गूगल सर्च इंजन से   

Thursday, 17 September 2009

उनकी नीली आँखों में अनगिनत किरणों की रौशनी....



समुद्र कि लहरें उनके पाँव को चारों तरफ से चूमती हैं..उनकी घुटनों तक मुडी जींस को छू कर लौट जाती हैं उन्हें दोबारा भिगोने के लिए ... समुद्र ने सूरज को अपने भीतर छुपाने से पहले हाथों में ऊपर उठा रखा है ताकि सब उसे गौर से देख लें...आज की तारीख का सूरज देखने का यह आखरी मौका है... उसका रंग पीले से नारंगी हो चला है .. पर्यटक अपनी चटाई, तौलिये, फ्लास्क, छतरी, सेंडविच बॉक्स समेट रहे हैं ... घोड़ेवाला बच्चों को घोड़े पर आखरी सवारी दे रहा है ... आइसक्रीम वाले के पास अब सिर्फ वेनीला और मिंट फ्लेवर की आइसक्रीम बची है, तट पर चार पांच साल का लड़का रेत का महल पेरों तले रोंद कर खुश हो रहा है और उसकी बड़ी बहन उसकी दीवारें और छत बचाने कि कोशिश में उसे धक्का दे रही है.... उनकी माँ चिल्ला रही है उसे रोंद लेने दो वैसे भी लहरें बहा ले जायेंगी यह महल... तट पर हलचल कम होने लगी है तो सामने सड़क पर बढ़ गई है और सड़क के उस पार दुकानों पर दिवाली जैसी जगमगाहट है ... 
 

रेचल पहली बार अपने गाँव से बाहर निकली है उसका गाँव यहाँ से अस्सी किलोमीटर कि दूरी पर है, इससे पहले उसने चहल- पहल गाँव में हर रविवार लगने वाले बाज़ार में देखी है यहाँ पहली बार उसने समुद्र और शहर कि जगमगाहट देखी है गाँव में एक ही बेकरी है रेचल उसमें काम करती है जहाँ पर हर रोज राबर्ट लंच टाइम में सेंडविच और केक खर्रेदने आता था ... रॉबर्ट गाँव से बाहर एक ऊन की फेक्ट्री बन रही है उसमें क्रेन चलाने का काम करता है उसे पढाई छोड़ देनी पड़ी क्योंकि सोलह वर्ष के होते ही उसके पिता ने खर्चा देने से इनकार कर दिया ...


रेचल को जो भी सीपी नज़र आती है वो उठा लेती है और उसे रॉबर्ट कि कमीज़ की जेब में डाल देती है... उसके क़दमों के साथ सीपियाँ छनक रही हैं पार्श्व में लहरों का संगीत सातवें स्वर में उनका साथ दे रहा है ढेर सारा जीवन बिखरा पड़ा है गिले रेत पर पाँव के निशाँ में, लहरों में उबलते बुलबुलों में, हवा के साथ डोलते जहाजों में, नीले पानी में घुलती किरणों कि लाली में, आकाश में उड़ते परिंदों कि कतारों में, सड़क पर झिलमिलाती रौशनी में, केफे से उड़ती मछली कि महक में, एमुज्मेंट की मशीनों से आते शोर में .... वे समेट रहे हैं यह जीवन रेत में पड़ी सीपियों के साथ अपने ख़्वाबों में ....


दोनों थक कर बेंच पर बैठ जाते हैं .... रेचल का गुलाबी रंग नारंगी रौशनी में चमक रहा है दोनों की नीली आँखे डूबते सूरज की अनगिनत किरणों को सोख रही हैं .... रेचल ने अपना सर रॉबर्ट के कन्धों पर टिका लिया है दोनों की उम्र उनीस वर्ष है यह उनके हनीमून का आखरी दिन है... उनकी आँखों में वो सभी ख्वाब दस्तक दे रहे हैं जो प्यार के समुद्र में गोता लगाने आसमान से उतर कर आते हैं फिर नींद में बस जाते हैं ... उन्होंने फैसला किया है उनके कुछ ख्वाब नींद से ज़मीन पर उतरेंगे ... वह शादी कि पच्चीसवी सालगिरह यहीं मनाएंगे इसी तट पर, इसी बेंच पर, यहीं सूरज के सामने ... वह दो बच्चे अगले दो वर्ष में पैदा करेंगे...उन्हे एक साथ पाल-पोस कर बड़ा कर... वह रेचल का दुनिया घुमने का सपना पूरा करेगा ... वहां से लौट कर वह यूनिवेर्सिटी में दाखला लेगा और डिग्री की पढ़ाई पूरी करेगा ....



आज वो दोबारा से उसी बेंच पर बैठे हैं राबर्ट के माथे के ऊपर से सर से कुछ बाल उड़ गए हैं और रेचल के बाल कुछ ज्यादा सुनहरे हो गए हैं एक वर्ष पहले उनका तेईस वर्षीय बेटा माइकल इराक़ कि लड़ाई में मारा गया.. वह पेट्रोल से भरी लारी चला रहा था जिस पर किसी ने हेंड ग्रेनेड फेंक दिया...बेटे कि जगह उन्हे सरकार से कुछ पैसे, उसका सूटकेस और उसके दोस्तों से आखिर के दिनों में खींचे फोटो मिले ... उसकी गर्भवती पत्नी एलिक्स को गहरा सदमा लगा छ महीने  बाद बेटे के जन्म के समय उसे ब्रेन हेमरेज हो गया.... उनकी बेटी लिज़ जो माइकल से एक साल बड़ी है बचपन में दादा के फार्म पर जाकर रहा करती, उसके दादा ने उसका यौन शोषण किया, उस दर्द से छुटकारा पाने के लिए उसने हिरोइन का सहारा लिया, जब वो माँ बनी उसे बच्ची के पिता का नाम तक ना मालुम था... अपनी बच्ची को वह बहुत प्यार करती थी .. अपने आप को काबिल माँ बनाने के लिए वह एक वर्ष रिहाब में रही....फिर भी सोशल सर्विस ने बेटी को चिल्ड्रेन होम से माँ के पास नहीं लौटने दिया .. लिज़ वर्तमान से दूर भागने के लिए फिर से जाने- पहचाने पुराने रास्तों की तरह मुड़ ली ... राबर्ट और रेचल को नातिन की कस्टडी के लिए कोर्ट में केस करना पड़ा जिसे वह दो साल बाद जीत गए....



आज भी चारों तरह बहुत सारा जीवन बिखरा पड़ा है राबर्ट कि गोदी में एक जीवन आँखे मूंदे दाये हाथ का अंगूठा चूस रहा है और दुसरा जीवन रेचल और रॉबर्ट के बीच बैठा बाये हाथ की अंगुली उठा -उठा कर मुश्किल से मुश्किल सवाल पूछ रहा है जिसका वो बारी - बारी मुस्कुरा कर जवाब दे रहे हैं ... आज भी समुन्द्र उनके पेरों को चूम रहा है, सूरज को उसने हाथों में उठा रखा है ... राबर्ट के हाथ रेचल के कंधे पर है उनके सपने भले ही फिर से पचीस साल के लिए सूरज के साथ समुद्र में छिप गए हैं किन्तु पचीस साल पहले किया सूरज और समुद्र से इस बेंच पर मिलने का वादा उन्होंने निभाया है... आज भी उनकी नीली आँखों में अनगिनत किरणों की रौशनी है जो उन्होंने दशकों पहले सोखी थी .. 
 
फोटो - गूगल सर्च इंजन से

Thursday, 3 September 2009

"आई हेड ए वेरी लांग डे!....."


उसकी आँख खुली और घड़ी की और मुड़ गई... कमरे के भीतर अँधेरा वैसा ही बिखरा पड़ा था जैसे सोने से पहले था... इस मौसम में सूरज का अलार्म बजने से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही सूरज ने रौशनी देने की गारंटी दी है की वह स्कूल और आफिस बंद होने तक रौशनी देता रहेगा... बिना चमक के, बिना पीले रंग के, बिना ऊष्मा के वह बादलों के पीछे छुप कर भी अपने होने का अहसास दिला देता है ताकि दिन और रात पर उसका विश्वास कायम रहे.. ...

उसके दिमाग का अलार्म अक्सर घड़ी के अलार्म को हरा देता है और आज भी यही हुआ... शरीर रजाई से बाहर निकालने कि इजाज़त मांग रहा है जो उसे रोज़ कि तरह नहीं मिलती...हाथ पैरों को दीमाग का आदेश जरूर मिल जाता है जिसे वो कभी नहीं ठुकराते... एक झटके से रजाई पलंग के दूसरी तरफ फेंक... बैठ जाती है उसके पाँव स्लीपर तलाशते हैं वो गाउन लपेटती हुई दुसरे कमरे में झाकती है... रजाई का ढेर ज़मीन पर कुंडली मारे बैठा है.. उसके ऊपर स्पाइडर मेंन सो रहा है और सुपरमेन घुटने पेट में दिए , पलंग के किनारे बिस्तर की चादर के नीचे सिमटा पड़ा है यदि वो जरा सा भी हिला तो बेचारा स्पाइडर मेंन उसके भार तले दब जाएगा ...वो अपने कमरे से गर्म रजाई ला उसके पाँव, कमर, पेट और कन्धों के नीचे दबा देती है ...चार वर्ष के सीखियाँ पहलवान, सुपरमेन की हड्डियों के नीचे रजाई टेंट कि तरह तन गई.. उसके ठंडे नर्म गाल पर अपनी गर्म हथेली रख दुसरे हाथ से स्पाइडर मेंन उठा वही पास के स्टूल पर टिका देती है .. उसकी नज़र सुपरमेन के मासूम चेहरे पर टिकी है बाल काटने के बाद उसके कान कितने बड़े लगते हैं सुपरमेन का विरासत में मिला नाम इसके कान के अनुरूप है "कपिल"...

रात दोनों तय करके सोये थे सुबह क्या करना है समझोता मज़बूत करने के लिए उसने बकायदा रिश्वत दी है... सोने से पहले दो कहानी ज्यादा सुनाई थी... वापस लौटने के बाद मेक्डोनाल्ड में बर्गर और शाम को "हल्क" फिल्म ... और इस नेगोसिअशन के दौरान उसके नन्हे से मुख से निकले शब्द ... परहेप्स... इनडीड... ..फॉर एक्साम्पल....एब्सोलुत्ली.. बट... बिकाज़.... लेट मी थिंक... इट्स नाट फेयर....लेट मी पुट दिस वे.... . नींद आने के बाद तक भी उसके कानों में तैरते रहे... उसने डेढ़ घंटे के भीतर पंद्रह वर्ष अनुभवी बेटियों की माँ कि वो सभी धारणाएं और ग़लतफ़हमीयाँ दूर कर दी जो उसने बेटों के पालने के बारे में पाल रखी थी. .

किताब और तौलिया उठा वह बाथरूम में घुस गई ... जब गीले सर बाहर निकली तो पर्दों के बीच से छनती रौशनी अंदर और बाहर से मिटते अँधेरे का ऐलान कर रही थी...अँगुलियों ने परदे का कोना पकड़ा और जोर से खींच दिया ...परदों कि रेलिंग और रिंग्स के बीच बजती खनक के साथ उसने कमरे में झाँका.. रजाई के टेंट में कोई हलचल नहीं हुई ...सुपरमेन के कमरे में आकर भी यही किया... कमरे में बिखरे उजाले और परदों के खिसकते से सोने वाले कि आँखों का कोई सरोकार ना था ...उसने खिड़की से बाहर झांका ... सूरज बिना दिखे भी आकाश का रंग बदल रहा है ...घास ने स्लेटी रंग कि चादर ओढी है ....मोर पंखी के पेड़ सावधान कि स्थिति में खड़े हैं पेड़ पर चिड़िया सेव कुतर रही है पेड़ के नीचे ऐसे ही कुतरे हुए कुछ सेव पड़े हैं.. पीछे के घरों की कतार में एक घर के भीतर बती जल रही है और उस घर के सामने से एक बस गुजर रही है उस बस के अलावा सुबह कि शान्ति अपनी पूरी तरंग से विराजमान है जिसे वह हेयर ड्रायर लगा बड़ी बेहरहमी से कुचल देती है.... वारड्रोब का दरवाजा खोलने और आज कि डायरी के पन्ने का आपस में गहरा सम्बन्ध है उसने काली गर्म पतलून, सफेद और काली बारीक धारी का पूरी आस्तीन का ब्लाउज और पतलून के साथ की मेचिंग जेकेट... मौसम के साथ-साथ कलर और कलर कोर्डिनेशन बोर्ड रूम की मांग भी है...

ड्रेसिंग टेबल के सामने मोस्चराइजर की ट्यूब दबाते हुए वह आवाज़ लगाना शुरू करती है .. उसके हाथ रजाई के टेंट को आगे पीछे हिला रहे हैं और चार-पांच बार हिलने के बाद सुपरमेन का मासूम सा चेहरा बिना आँखे खोले तकिया छोड़ हवा में झूल रहा है उसकी छाती पर चिपका सुपरमेन टी शर्ट की सिलवटों से निकलने कि कोशिश कर रहा है अचानक उसकी आँखें खुली दो बल्ब टिमटिमाये .. जैसे वो कभी सोये नहीं थे .. "बुआ आई फाउंड माई मिंटू" ... "मिंटू कौन?"... " माय लोस्ट रेबिट..हाओ केन यू फोरगेट मिंटू बुआ?".... .. .. वो अपनी नन्ही- नन्ही हथेलियों को हवा में उछाल कर, बंद- खोल कर उसे समझा रहा है ..."आई वाज़ चेजिग हिम आल नाईट.".. "वन मोमेंट ही वाज़ इन माई हेंड... अदर मोमेंट ही वाज़ गान" ... वो बिना पलक झपके बोल रहा है मुख से ज्यादा उसकी मोटी- मोटी आँखें बोल रही हैं उनमें तैरता हुआ मिंटू एक्वेरियम में मछली की तरह साफ़ दिख रहा है .... वह अपनी कलाई उठती है और आँखें भागते समय को पकड़ती है... इससे पहले वो कुछ कहे वह मुह खोल..आँख बंद कर.. जम्भाई और अंगडाई लेता हुआ धीरे से बुदबुदाता है "आई हेड ए वेरी लांग डे!....." और जिस तेजी से उसका चेहरा तकिये से हवा में उछला था उसी तेजी से वह चेहरा तकिये पर आखें मूंदे पसर गया है और सुबह की रौशनी में कमल की तरह खिल उठा है ... उसके होठ उसके गालों को चूमते हैं...

वह दो फोन लगाती है एक अपनी पी ऐ को और एक बेबी सीटर को... कपड़े बदल वह धीरे से उसकी रजाई में सरकती है.. आँखे मूंद आहिस्ता से उसके सपने में झांकती है रजाई के भीतर कस के सुपरमेन का हाथ पकड़ लेती है... आज वह दोनों मिंटू को पकड़ कर ही रहेंगे...

foto from - www.karanfincannon.com