Tuesday, 7 October 2008
सिर्फ़ दस अध्याय दो सौ पेज...
घर कहता है मुझे हर वक्त सजा कर रखो, वर्क टॉप कहता है मुझ पर चाय के दाग और चम्मच न छोड़ो, अलमारी कहती है मुझे ठीक से लगाओ, पोस्ट कहती है मुझे खोलो, फाडो, जवाब दो, वाशिंग बास्केट कहती है मुझे खाली करो, धुले कपड़े कहते हैं प्रेस करो, फ्रिज कहता है बासी सामान बाहर फेंको, सुबह कहती है खाना शाम को बना लेना ऑफिस समय पर पहुँचो, लाल बत्ती कहती है शाम को दूध ले जाना मत भूलना, दिन कहता है गैस वाले को फ़ोन करना, टेलीफोन का बिल भर देना, बैंक से पैसे निकाल लेना, बच्चों को टयूशन ले जाना, बॉस कहता है देर तक काम करो, शाम कहती है खाना खाने से पहले आरती करो, पेट कहता है मुझे छोटा करो टहलने जाओ, रिमोट कंट्रोल कहता है मुझे मत छुओ रसोई का काम निपटा लो, शनिवार कहता है शाम को मेहमान आयेंगे पनीर फ्रिज में है ना? इतवार कहता है कल का दिन बेकार किया, आज खिड़कियाँ, वाश बेसिन, टाइल्स, फ्लोर चमकाओ, दोस्त कहते हैं- फ़ोन बजता है कोई जवाब नही देता, रिश्तेदार चुगली करते हैं- वो कभी घर पर नही होती, रात कहती है करवटें ना बदलो, सपनो को सपनो में ही जीने दो...... तुम कहते हो किताब लिखो...सिर्फ़ दस अध्याय दो सौ पेज वाली......
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9 comments:
I can identify with most situations. computer per Hindi main likhana nahi atta.
good luck
ps bachche keha rahen hain homework karrado
इस शुरूआत की बहुत बधाई और शुभकामना. ज़िन्दगी में पल पल बित्ता बित्ता इतना कुछ इकठ्ठा होता रहता है, की कई बार पता भी नहीं चलता. बहुत देर तक. जब चलता है, तो लगता है कहीं देर तो नहीं हुयी. आपके ब्लॉग के पहले पोस्ट की ही अच्छी बात ये है कि इसमें बहुत सा अधीर है कर गुजरने का ज़िन्दगी के उहा पोह और अफरातफरी के बीच. लिखने की अपनी ज़िन्दगी है और अपनी नियति भी. पर किसी गुमशुदा धूल भरे शोर में घुमड़ते- भटकते रहते से ज़ाहिर तौर पर कहीं बेहतर है उसका जादू कि तरह प्रकट होना, एक रश्मि की तरह प्रकाशित.. जो सुने जाने की शर्त और शाप से बाहर सिर्फ़ कहे जाने में मुक्त होता हुआ, प्रार्थना और पछतावों की स्वीकृतियों की तरह.. वक्त रहते लिख लेना, पास आते पल को ठीक से जी लेना भी है.. फिर से बहुत शुभ कामनाएं
सिर्फ दस अध्याय .. शायद हम सब ऐसे ही फसानों में फँसे फिर भी सपने देखते और दिखाते रहें ..सच हो जाये कभी ..
10 अध्यायों वाली नहीं...एक ही अध्याय वाली.....और वो किताब है जिन्दगी....जो हर वक्त चुपचाप हमसे कहती चलती है....ये ठीक से करो...वो ठीक से करो....और हम हैं कि उसकी बात मानते ही नहीं....और फ़िर कहते हैं कि जिन्दगी ने हमें दगा दिया.....हा..हा..हा..हा..हम भी क्या खूब हैं......!!
हिन्दी ब्लोग जगत में सवागत है। हर पल कुछ कह्ता है। लेकिन करते वही है जो मन कहता है
I lovvveed this post! It sounds so true, can identify with most situations. Very high literary quality.
very true...and very beautiful.
कभी अपने मन से पूछो वो क्या कहता है…और अगर कोई बीच मे टोके तो कहो बाद में आना।
यह सब ही तो है जिसने आधी आबादी की पूरी रचनात्मकता को बाहर नही आने दिया और पुरुष श्रेष्ठता का दम भरते रहे।
जो आज कहता है उसकी चिन्ता ज़रूरी है …पर कल जो कहेगा? जब बच्चे अपनी दुनिया मे मगन होंगें …सब कुछ बदल चुका होगा तो किसी अकेली शाम कोई अधूरी कहानी जब पूछेगी कि सबका ख्याल रखा फिर मेरी भ्रूण हत्या क्यों ? तो क्या जवाब होगा तुम्हारे पास!
भावावेश में 'तुम' लिख गया…मिटाया तो लगा अन्याय होगा…क्षमा
beautifully written...'non-living' things are shouting at us...but we are 'living' on...
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