वह सड़क छोड़ अगली गली में मुड़ गई ...अंगूठे और अंगुली के बीच का रेत अब उसकी त्वचा को रंगने लगा था ....वो चप्पल निकाल कर उसे झाड़ने लगी ....एक सफेद रंग की चमचमाती गाड़ी उसके पास आकर ब्रेक लगाती है उसका चालाक भी सफ़ेद कपडों में है वह उससे एक नाम को लेकर पूछताछ करता है की इसका क्या मतलब है? वह उसे मदद करने की कोशिश करती है पर वह तीन बार वही प्रश्न दोहराता है...अंत में वह कहती है उसे नहीं मालूम! वो कहता है उसका घर यहीं पास में है क्या वह उसके घर ड्रिंक्स के लिए चलना पसंद करेगी?....वह मुस्कुरा कर जवाब देती है वह खुद के लिए नहीं दूसरो के लिए इसी का बंदोबस्त करने निकली है ...सफ़ेद गाड़ी जितनी तेजी से उसके पास आकर रुकी थी उतनी तेजी से उसकी आँखों से ओझल हो गई ...तभी उसे गली के कोने में अपनी मंजिल नज़र आई।
वह वापस लौट, एक हाथ को ऊपर उठा पानी की बोतल को हवा में हिलाती हैं लहरों से खेलती छोटी - बड़ी आक्रतियाँ हाथ हिला उसकी और बढ़ने लगी ....वो चप्पल उतार रेत पर बैठ अपना पर्स टटोलती है एक छोटे से गोल दर्पण को मुख के सामने रख, कुछ क्षण उसमें झाँक, अपनी तमाम उम्र और स्त्रीत्व समेटती है अंत में उसके सफ़ेद बाल और आँखों के गड्ढे यही विश्वास दिलाते हैं की गाड़ी वाला शख्स उसकी मदद के लिए ही रूका था और निश्चिंत हो एक लंबी साँस लेती है । आइना कभी झूठ नहीं बोलता यह वह हमेशा से मानती आई है।
उसकी और बढ़े हाथों की देर से आने की शिकायत को नज़रंदाज़ करते हुए, उन्हें मुस्कुराते हुए पानी की बोतल थमा, वह अंगूठे और अंगुली के बीच उभरे छाले पर से रेत साफ़ करने लगी।
फोटो - गूगल सर्च इंजन से
15 comments:
नीरा जी तारीफ़ के लिए शब्द कम हैं ...बहुत अच्छा लिखा है आपने ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
अरे बाबा बोलता है न! क्यों आइने की जान लेने पर तुले हो?
बिल्कुल सही आइना कभी झूठ नहीं बोलता । संजीदा प्रस्तुतीकरण अच्छा लगा । बधाई
नीरा जी बहुत सुंदर.अत्यंत सराहनीय प्रयास.आपके रचनाकार को हार्दिक बधाई.
मौसम और उम्र के संयोग वियोग सा दृश्य इस तरह आपने प्रस्तुत किया है गोया आँखों के आगे पल भर जो था उसे रीयर मिरर के व्यू सा देख रहे हों. एक शेर भी याद आया हालाँकि दोनों की कोई तुलना नहीं है फिर भी
इतनी कड़ी है धूप कि पत्तों पे आज कल
चढ़ता नहीं है रंग ज़र्द के सिवा !!
आइना सरासर और सरेआम झूठ बोलता है। जाइये आइने के सामने खड़े हो जाइये और देखिये आपकी बांई आंख को दांई आंख बताएगा। इसी तरह बांये हाथ को दांया और दांये पैर को बांया बताएगा। सब उलट पुलट कर देता है। आइने का भी कोई भरोसा है।
अब तारीफ़ नहीं करूँगा ......कितनी करूँ ? ......कुछ लोग जब कम लिखते है तो अखरता है ..राजपुर रोड याद आ गयी बचपन वही गुजरा है
देख लो जो भी देखना चाहो
आईना कुछ भी बोलता ही नही।
पढ़ कर अच्छा लगा
-विजय तिवारी ' किसलय '
पहली बार इस ब्लॉग पर आई...अब बार बार आउंगी!
Incredible. Har baar ki tarah dil ko choone vali kathaa. Aapki har post padh kar pyaas aur badh jaati hai.
असली कहानी वही जिसको अंत तक पढ़ने के बाद, एख बार फिर से पढ़ा जाये..शायद कुछ मिस कर गये...! ये वैसी ही थी...! आपकी तारीफ क्या करे...??? शब्द भी तो हों उतने सटीक अपने पास...!!
हमेशा कि तरह दिल को छु गयी! यह तो दिल कि बात है हम माने या न माने
आइना झुट नहीं बोलता! आपकी पोस्ट का अब और भी इंतजार रहेगा
Neera ji aap bhot accha likh rahin hain ..pr samajh nahi payi ki ye ek khani ka ans hai ya kuch aur...in paktion me gahrayi hai......एक सफेद रंग की चमचमाती गाड़ी उसके पास आकर ब्रेक लगाती है उसका चालाक भी सफ़ेद कपडों में है वह उससे एक नाम को लेकर पूछताछ करता है की इसका क्या मतलब है? वह उसे मदद करने की कोशिश करती है पर वह तीन बार वही प्रश्न दोहराता है...अंत में वह कहती है उसे नहीं मालूम! वो कहता है उसका घर यहीं पास में है क्या वह उसके घर ड्रिंक्स के लिए चलना पसंद करेगी?....वह मुस्कुरा कर जवाब देती है वह खुद के लिए नहीं दूसरो के लिए इसी का बंदोबस्त करने निकली है ...pr ye pangtiyan mantabya ko spast nahi kar rahin ya maine kuch miss kar diya hai....?
ह्म्म्म्म्म्म आईना कभी झूठ तो नहीं ही बोलता....मगर आईने की बात भला आदमी कब से समझने लगा....वो तो आईना ना फोड़ देगा....!!
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