बस तली पर रह गया है बाकी सारा चुक गया है वो ऐसा मानता है किन्तु वह मानने को तैयार नहीं है उसे वह अभी भी ऊपर तक लबालब भरा नज़र आता है, वह उसकी गहराई और संताप का विश्वास दिलाने में लगी है एक दुसरे पर लुटाये खजाने का हिसाब जोड़ जिंदा पलों को दोनों हाथों से समेटने में लगी है, खूबसूरत सफ़र की तारीखें डायरी के पन्नो पर सजाने में लगी है. उसके पैरों के निशाँ पर कदम रख अपनी मंजिल को पाने में लगी है साथ देखे सपनो की तस्वीरें अल्बम में सजाने लगी है, उसकी आँखों में देखे जंगल को केनवस पर उतारने में लगी है, चाँद को निहारते हुए तारों की बुनी चादर को आँगन की धुप में सुखाने लगी है, बारिश की बुँदे और पत्ती से निकलते संगीत में भीगे उसके नाम को अपनेआप से गुनगुनाने में लगी है, यादों के फूल तोड़ जिन्दा पलों की खुशबू उसे इमेल और एस एम् एस पर सुंघाने में लगी है, दिल में उमड़ते तूफ़ान पर उसकी अगुलियों का बाँध बनाने में लगी है, सात समुंदर की दूरी और बहते काजल की तरह फैले इन्तजार को इतिहास में दबाने में लगी है स्पर्श की बिजली के तार जोड़ने को आसमान को जमीन पर लाने में लगी है, अपनी हथेलियों पर लिखे उसके नाम को स्रष्टि और संसार को पढ़वाने में लगी है ..
बाहर दस्तक हुई है दरवाज़े से कुछ फिसला है वह कांपते हाथों से मोटा सा लिफाफा उठाती है उसकी आखों के सामने पता लिखने वाले की तस्वीर घूम जाती है होंठों पर मुस्कराहट बिखर जाती है धरकने बेकाबू हैं और पाँव आसमान में, वह लिफाफा खोलती है उसकी अँगुलियों से झरे शब्द वर्षों बाद उसकी अँगुलियों में वापस लौट आये हैं वह कांपने लगती है उसकी अंगुलियाँ तली साफ़ करती हैं धरकने खाली तली छूती हैं और आँखें लबालब हैं और कागज़ का एक टुकड़ा लिफाफे के भीतर से गुनगुनाता है ....
धरती सूरज का
चक्कर लगा थक जायेगी
चाँद को चांदनी
रास ना आएगी
कल- कल करती नदी
पगडण्डी कहलाएगी
पार्क की बेंच
इंतज़ार में गल जायेगी
फ्लेट की चाबी ऊपर वाले की
तिजोरी में बंद रह जायेगी
द्रष्टि हाथों की
अंगुलियाँ भी ना गिन पाएगी
फिर भी
चौखट पर उसकी आहट
पोस्ट मेन की तरह आएगी
एक मुठ्ठी आसमा
लेटर बॉक्स से सरका जायेगी ....
फोटो- गूगल सर्च इंजन से
20 comments:
एक मुठ्ठी आसमा
लेटर बॉक्स से सरका जायेगी ....
-बेहतरीन संगम-गद्य पद्य का.
खूबसूरत अभिव्यक्ति, रोचक व प्रसंशनीय है।
नफीस !
विलक्षण रचना...कमाल का शब्द चयन.
नीरज
विलक्षण रचना...कमाल का शब्द चयन.
नीरज
शब्द रचते हैं जीवन के बहुरंगी चित्र, कामना और विश्वास से भरे पलों का असर जाता नहीं उम्र भर, चौखट पर उसकी आहट को इस कदर सजीव किया गोया कोई गा रहा हो " बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं , तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं ..." आपने शब्दों को निचोड़ कर किसी गीली छाँव में इस तरह सुखाया जैसे बदन के पैरहन फिर से देह पर टंग जाने को आतुर हवा के बिना लहराते हों ! आपके लेखन की एक अदा है , एक विधा है जो नित नए बिम्ब रचती है !
आत्मविश्वास धोखा
रूह की इच्छाएं अतृप्त
मनोवेग स्पंदित
और आपके शब्द जादू
एक मुठ्ठी आसमा
लेटर बॉक्स से सरका जायेगी ....
जानती है नीरा जी कल की पोस्ट लिखते हुए मै भी कुछ ऐसा ही शीर्षक देने की सोच रहा था .एक मुट्ठी खुदा की आरजू में.....कभी कभी आपका लिखा बैचैन कर देता है..कामो के बीच भी की फ़ौरन एक ख़त या मेल कर दूँ आपको....सचमुच.!
kal ki meri post par Anuraag ji ne kaha ki lahar aur kinaro ko ek dusare ki baraabar zarurat hai...!
aaj soch rahi hun ki aap ki post padh kar ki is aasmaan ko us dharati ki kitanai zarurat hai jo use apna aasmaa banaye baithi hai...!
bahut achchha likha hai...!
चौखट पर उसकी आहट
पोस्ट मेन की तरह आएगी
एक मुठ्ठी आसमा
लेटर बॉक्स से सरका जायेगी ....
बहुत सुन्दर दिल खो गया इस में .
एक मुट्ठी आसमान तो बहुतों को मांगते सुना है...पर इस शिद्दत से मेल्बोक्स में लिफाफे की शक्ल में नहीं. बेहद खूबसूरत लिखा है. एक एक शब्द गहरी अनुभूति में भीगा लगता है.
neera, apk pas shabdon ka vo jadu hai jo bahut kam logon k pas hota hai....jin sthition ko apne jis sahjata se shabdon me bandh lia hai vo bahut mushkil aur saadhna ki baat hai....mubark...amarjeet kaunke(dr.)
neera, apk pas shabdon ka vo jadu hai jo bahut kam logon k pas hota hai....jin sthition ko apne jis sahjata se shabdon me bandh lia hai vo bahut mushkil aur saadhna ki baat hai....mubark...amarjeet kaunke(dr.)
kya? thoda spasht hote to aur sadharanikaran hota.
sajhedari se patal ka vistar hpta hai.
आप ने बहुत हि खूब्सूरत खयाल लिखा है पड्ते हूए बहुत गेहरायी में ले गया.... त्रिपता
बहुत गहरा भावः !! बार बार पडने को दिल करता है! और जितनी बार पढो उतनी और गहराही महसूस होती है दिल के एकदम करीब से छु गयीi
पहली बार इधर आया, बेहतरीन प्रस्तुति,बधाई स्वीकारें।
निश्चल भावो की सरिता जो झीने परदे में मधुर स्मर्तिया को छिपाए है,जिसने पहाडो की उबर खाबर को
समतल कर बहने की कोशिश की मगर स्वाभाव अनुसार न पहाड़ समतल हुए न सरिता को बहने की जगह,
अब उबर खाबर से दूर उसे समतल चाहिए आसमान चाहे वो मुठी भर ही क्यों न हो ;
बेहतरीन!
एक मुठ्ठी आसमा
लेटर बॉक्स से सरका जायेगी
बाहर दस्तक हुई है दरवाज़े से कुछ फिसला है वह कांपते हाथों से मोटा सा लिफाफा उठाती है उसकी आखों के सामने पता लिखने वाले की तस्वीर घूम जाती है होंठों पर मुस्कराहट बिखर जाती है धरकने बेकाबू हैं और पाँव आसमान में, वह लिफाफा खोलती है उसकी अँगुलियों से झरे शब्द वर्षों बाद उसकी अँगुलियों में वापस लौट आये हैं....
वाह...! कमाल की संरचना...!! बहोत खूब नीरा जी मेरे पास तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं...
.बहुत सुंदर...!!
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