Tuesday 21 April 2009

आंखों की चमक और होंठों की मुस्कान पर पसरा जादू...

यादों के सिवाए उनके बीच कुछ भी साझा नहीं था, समय की रफ़्तार ने ना सिर्फ उनके रास्ते और दुनिया अलग की, अब तो जीवन के मूल्य और मान्यताएं भी अलग- अलग पटरी पर विपरीत दिशा में चलने लगे थे ... फिर भी वो यादों से जुड़े हुए हैं जैसे पूरब सूर्य उदय से जुड़ा है जैसे हरियाली वसंत से जुडी है जैसे समुद्र की लहरें उसकी गहराई से जुड़ी है, जैसे विश्वास सच्चाई से जुड़ा है, प्रक्रति धरती से जुड़ी है, पतंग आकाश से और दो फोन नेटवर्क से जुड़े हैं..इसी तरह वो यादों से जुड़े थे....

इस सबके बावजूद बिना आंधी आये कभी- कभी यादें बिखर जाती, कभी टूट जाती, कभी वो स्वयं पर अविश्वास करती, कभी उन्हें वो सब धोखा लगता, उनका घटित होना एक अभिशाप लगता, पाप लगता, उनका अस्तित्व फरेब लगता. जब-जब ऐसा होता वह अँधेरे में छत की दरारों, परदों पर चमकती हेड लाईट और ट्रेफिक की आवाज़ से बातें करते-करते रात भर तकिया भिगोती ...

यादों को अपना वजूद था, उनमें जो जिंदगी जी थी, सपने देखे थे, सफ़र तय किये थे, किले फतह किये थे, सीमायें लांघी थी, जंगल से तितलियाँ पकड़ एक स्पर्श में बंद की थी, बारिश में कागज़ की नाव तैराई थी, पार्क की बेंच पर एक दुसरे का इंजार किया था, दुष्यंत की कवितायें एक साथ गुनगुनाई थी, अँगुलियों में लपेट उसके बालों के छल्ले बनाए थे, समय, नियति और सूरज से आँख मिचोली कर जिंदा पल चुराए थे, अकेले में पाँव को हथेली के जूते पहनाये थे, सबके सामने मेज के नीचे हाथ सहलाए थे, पाँव के नीचे की ज़मी हरी और आकाश पर हाथों की पकड़ मजबूत की थी... यह सब सिर्फ कुछ मुट्ठी भर तारीखों में क़ैद था और हरी पत्तियों में क्लोरोफिल की तरह ज़िंदा पलों का जादू उन तारीखों में जड़ा हुआ था, उस जादू को जगाने के लिए धूप और पानी कि सख्त जरुरत थी जिसकी अब बहुत कमी थी. इसलिए अब वह अक्सर गायब रहता, यादें आवाज़ देती तो अनसुना कर देता कभी वह जानबूझ कर कानों में रुई भर लेता, तहखाने के गहरे अँधेरे में यादों को बंद कर देता।

वो सुबह उठती कलेंडर की तरफ देखती, यादों खिड़की अचानक खुल जाती, प्लेटफार्म पर जादू हाथ हिलाता मुस्कुराता दिखाई पड़ता और ट्रेन खिसकने लगती... उससे रहा ना जाता वह चलती ट्रेन से उतर उसकी और दौड़ने लगती और गले में बाहें डाल जादू से लिपट जाती और वो उसे ऊपर उठा लेता ... जो वह उस समय करने का हौसला नहीं जुटा पाई, वह सब करना कितना आसान हो गया था और उसे बड़ा आश्चर्य होता अपने आप पर और जादू के बरकरार रहने पर ...

यादों का जादू उस दिन की सबसे बड़ी सच्चाई बन उसके आगे पीछे घूमता, उसकी साँसों में महकता, हर पल उसके दिल में सितार के तार कि तरह झनझनाता, दिन भर आँखों की चमक और होंठों की मुस्कान पर पसरा रहता..
फोटो - गूगल सर्च इंजन से

16 comments:

mehek said...

behad khubsurat bhav

rajesh ranjan said...

behad prabhavi hai aapka lekhan. padhte waqt sab mehsus ho raha tha.

रंजू भाटिया said...

यादो का यही जादू आँखों में चमक बनाए रखता है ,आपके लेखन के जादू ने सम्मोह लिया .खास कर यादो के वजूद को बनाए रखने वाली पंक्तियों ने ..

के सी said...

कुछ ब्लॉग सुन्दर है, कुछ ब्लॉग पर लिखा अच्छा जाता है कुछ ब्लॉग पर कमेन्ट बेहतर आते हैं किन्तु आपके ब्लॉग से आती है दिल के स्पंदन की डिजिटल आवाज़

यह सब सिर्फ कुछ मुट्ठी भर तारीखों में क़ैद था...

इस पंक्ति को पढ़ते हुए मैं भी सोचता हूँ कि कहाँ खडा हूँ, गुम हूँ किन ख्यालों में....



यादों के सफ़ीने के पार आधी रौशनी में हवाईयन गिटार पर बजती दक्षिण अफ्रीकी धुन के नोट्स की गहराई के साथ कितने दर्द खुशबू बन कर बिखर जाते होंगे ये आपका दिल कहता है शब्दों में हर बार...

अजय कुमार झा said...

sirf itnaa ki aapkee shailee mein ek adbhut rawaangee hai jo aapkee rachnaao ko aur prabhaavee bana detee hai, bahut umdaa lekhan .

समय चक्र said...

बढ़िया संस्मरण अच्छी प्रस्तुति . धन्यवाद.

मोना परसाई said...

यादें वो जागीर है जिसे वक्त का लुटेरा भी हमसे छीन नहीं पाता ,यादों के रूमानी अहसास को लयात्मक शब्दों में अपने कथा में बखूबी व्यक्त किया है .

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

आपने यादो का अच्छा सयोजन किया। आभार्

अमिताभ श्रीवास्तव said...

mastishk ka yah kona jnhaa yaade basti he, baahar nikal kar ghumne lagi he...apki rachna ke kaaran.
sundar

डॉ .अनुराग said...

हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमान......सच कहूँ तो रगों में सिर्फ यादे ही है जो बहती है ओर असल ओक्सिजन दिल को पहुचाती है....एक याद हमें तो कई दिनों तक रिचार्ज कर देती है.....आपके लिखे का इंतज़ार रहता है मुझे .....

अनिल कान्त said...

aapki lekhni dil par jadu sa asar karti hai ....bahut meethi meethi si harkat hone lagti hai

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

नीरा जी ,
अपने यादों को लेकर बहुत खूबसूरती के साथ उन्हें शब्दों में पिरोया है .बढ़िया पोस्ट .
हेमंत कुमार

नवनीत नीरव said...

समय के साथ सबकुछ हमारे अधिकार में आ जाता है. जरूरत सिर्फ इस बात की होती है की हम उस समय का इंतजार करें .
बहुत अच्छा लिखा है आपने.
नवनीत नीरव

Puja Upadhyay said...

जिन्दा रहती यादों को बड़ी खूबसूरती से लिखा है.

Ashok Kumar pandey said...

yadon ka zaadu hi hai jo nirjan me sangeet bhar deta hai...

nostalgia ki khubsoorat abhivyakti

Dr. Deepa said...

नीरा जी, बहुत सुन्दर लिखा है यादों के बारे में, कहते हैं ये खजाना भी कभी धोखा दे जाया करता है पर आपकी पोस्ट ने इसको अमूल्य बना दिया.