Thursday 28 May 2009

वसंत के बाद पतझड़...

सुनो!

पुरानी टहनी जोर से ना हिलाओ

उसकी सारी पत्तियां ना गिराओ

सिर्फ धरकनो को सही

प्रकृति को ना आंसू पिलाओ

कदमो के नीचे की जमींन मांग

आँखों को ना धूल दिखाओ


देखो!

वो तने से लिपटी लता

ऊपर बयाँ का घोंसला

शाखा पर अटकी पतंग

छाया में खिली हमारी सुगंध


ना दो हवाला

सड़े गले फलों का

पत्तियों पर चलते कीड़ों का

गुम हो गई तितलियों का

काला होते इन्द्र्धनूश का


वसंत के बाद

पतझड़ को आना था

यह पाठ क्यों नयी टहनी

उगने के बाद पढ़ाना था

पेंटिंग- केन बुशी (गूगल सर्च इंजन से)

21 comments:

Udan Tashtari said...

गहरी सोच-सुन्दर अभिव्यक्ति! बधाई.

श्यामल सुमन said...

अच्छी कल्पना, अच्छा शब्द चित्र।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

के सी said...

नीरा जी
आपकी कवितायेँ तजा हवा के झोंकों की तरह हुआ करती है, थोडा सा वक़्त लगेगा इस पर कुछ लिखने को.

अनिल कान्त said...

waah ye to aapne jeevan ko jeene ka ek falsafa bayan kar diya

संगीता पुरी said...

इस कविता के माध्‍यम से जीवन की सच्‍चाई को बखूबी अभिव्‍यक्ति दी गयी है .. बधाई।

रंजना said...

Waah !!

Sundar kavita...sundar shabd chitra khincha aapne.

डॉ .अनुराग said...

दबे पाँव चलकर आता है
पाँव के निशान नही मिलते...........

वक़्त बेज़ुबान मुसाफ़िर सा है

के सी said...

कई दिनों से कुछ फुरसत के पल तलाश रहा था, आज आपकी कविता को इत्मीनान से पढ़ा. हमेशा की तरह एक मुकम्मल कविता, एक सम्पूर्ण और सजीव दृश्य. आप के लेखन की ये सुन्दरता बनी रहे और संवरती रहे.

Ashok Kumar pandey said...

नीरा जी

कविता अच्छी लगी…पर और बेहतर हो सकती थी अगर तुक मिलाने की जगह इसकी आंतरिक लय पर ध्यान दिया होता…जैसा आपके गद्य में होता होता है।

Unknown said...

Dear Didi
This is just amazing!! speaks lots about life .You are just too good!!! I think you must write a book now.

pushpendrapratap said...

kavita sunder hai khub likhe shubhakamnaye

satish kundan said...

आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ...बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग..

वसंत के बाद

पतझड़ को आना था

यह पाठ क्यों नयी टहनी

उगने के बाद पढ़ाना था..बहुत उम्दा रचना...मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..

शोभना चौरे said...

देखो! वो तने से लिपटी लता ऊपर बयाँ का घोंसला शाखा पर अटकी पतंग छाया में खिली हमारी सुगंध
bhut hi khubsurat abhivykti

Bhawna Kukreti said...

aha bahut sundar ! acha shabd chitra kheencha hai kaveeta me aapne . badhai :)

रानी पात्रिक said...

बहुत सुन्दर कविता है। भ्रम में जीने से तो सत्य की अनुभूति जब भी हो जाए अच्छा है। है कि नहीं?

!!अक्षय-मन!! said...

आपके सुन्दर एहसास आपकी रचना को आपके ही शब्दों से सुशोभित कर रहे हैं............

अक्षय-मन

सुरभि said...

वसंत के बाद
पतझड़ को आना था
यह पाठ क्यों नयी टहनी
उगने के बाद पढ़ाना था

बहुत सुन्दर!

Neha Dev said...

खूबसूरत कविता है
हमेशा की तरह दिल को छू जाने वाली

Akhilesh Shukla said...

atisunder,,,,,,,,,,

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

ना दो हवाला
सड़े गले फलों का
पत्तियों पर चलते कीड़ों का
गुम हो गई तितलियों का
काला होते इन्द्र्धनूश का

नीरा जी ,
बहुत बढिया लगी आपकी कविता लेकिन कहीं कहीं टाइपिंग की गलतियाँ रह गयी हैं .उन्हें देख लीजिएगा .
हेमंत कुमार

Unknown said...

neera
wakai sunder
aanad aaya padhker
wah