उसकी आँख खुली और घड़ी की और मुड़ गई... कमरे के भीतर अँधेरा वैसा ही बिखरा पड़ा था जैसे सोने से पहले था... इस मौसम में सूरज का अलार्म बजने से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही सूरज ने रौशनी देने की गारंटी दी है की वह स्कूल और आफिस बंद होने तक रौशनी देता रहेगा... बिना चमक के, बिना पीले रंग के, बिना ऊष्मा के वह बादलों के पीछे छुप कर भी अपने होने का अहसास दिला देता है ताकि दिन और रात पर उसका विश्वास कायम रहे.. ...
उसके दिमाग का अलार्म अक्सर घड़ी के अलार्म को हरा देता है और आज भी यही हुआ... शरीर रजाई से बाहर निकालने कि इजाज़त मांग रहा है जो उसे रोज़ कि तरह नहीं मिलती...हाथ पैरों को दीमाग का आदेश जरूर मिल जाता है जिसे वो कभी नहीं ठुकराते... एक झटके से रजाई पलंग के दूसरी तरफ फेंक... बैठ जाती है उसके पाँव स्लीपर तलाशते हैं वो गाउन लपेटती हुई दुसरे कमरे में झाकती है... रजाई का ढेर ज़मीन पर कुंडली मारे बैठा है.. उसके ऊपर स्पाइडर मेंन सो रहा है और सुपरमेन घुटने पेट में दिए , पलंग के किनारे बिस्तर की चादर के नीचे सिमटा पड़ा है यदि वो जरा सा भी हिला तो बेचारा स्पाइडर मेंन उसके भार तले दब जाएगा ...वो अपने कमरे से गर्म रजाई ला उसके पाँव, कमर, पेट और कन्धों के नीचे दबा देती है ...चार वर्ष के सीखियाँ पहलवान, सुपरमेन की हड्डियों के नीचे रजाई टेंट कि तरह तन गई.. उसके ठंडे नर्म गाल पर अपनी गर्म हथेली रख दुसरे हाथ से स्पाइडर मेंन उठा वही पास के स्टूल पर टिका देती है .. उसकी नज़र सुपरमेन के मासूम चेहरे पर टिकी है बाल काटने के बाद उसके कान कितने बड़े लगते हैं सुपरमेन का विरासत में मिला नाम इसके कान के अनुरूप है "कपिल"...
रात दोनों तय करके सोये थे सुबह क्या करना है समझोता मज़बूत करने के लिए उसने बकायदा रिश्वत दी है... सोने से पहले दो कहानी ज्यादा सुनाई थी... वापस लौटने के बाद मेक्डोनाल्ड में बर्गर और शाम को "हल्क" फिल्म ... और इस नेगोसिअशन के दौरान उसके नन्हे से मुख से निकले शब्द ... परहेप्स... इनडीड... ..फॉर एक्साम्पल....एब्सोलुत्ली.. बट... बिकाज़.... लेट मी थिंक... इट्स नाट फेयर....लेट मी पुट दिस वे.... . नींद आने के बाद तक भी उसके कानों में तैरते रहे... उसने डेढ़ घंटे के भीतर पंद्रह वर्ष अनुभवी बेटियों की माँ कि वो सभी धारणाएं और ग़लतफ़हमीयाँ दूर कर दी जो उसने बेटों के पालने के बारे में पाल रखी थी. .
किताब और तौलिया उठा वह बाथरूम में घुस गई ... जब गीले सर बाहर निकली तो पर्दों के बीच से छनती रौशनी अंदर और बाहर से मिटते अँधेरे का ऐलान कर रही थी...अँगुलियों ने परदे का कोना पकड़ा और जोर से खींच दिया ...परदों कि रेलिंग और रिंग्स के बीच बजती खनक के साथ उसने कमरे में झाँका.. रजाई के टेंट में कोई हलचल नहीं हुई ...सुपरमेन के कमरे में आकर भी यही किया... कमरे में बिखरे उजाले और परदों के खिसकते से सोने वाले कि आँखों का कोई सरोकार ना था ...उसने खिड़की से बाहर झांका ... सूरज बिना दिखे भी आकाश का रंग बदल रहा है ...घास ने स्लेटी रंग कि चादर ओढी है ....मोर पंखी के पेड़ सावधान कि स्थिति में खड़े हैं पेड़ पर चिड़िया सेव कुतर रही है पेड़ के नीचे ऐसे ही कुतरे हुए कुछ सेव पड़े हैं.. पीछे के घरों की कतार में एक घर के भीतर बती जल रही है और उस घर के सामने से एक बस गुजर रही है उस बस के अलावा सुबह कि शान्ति अपनी पूरी तरंग से विराजमान है जिसे वह हेयर ड्रायर लगा बड़ी बेहरहमी से कुचल देती है.... वारड्रोब का दरवाजा खोलने और आज कि डायरी के पन्ने का आपस में गहरा सम्बन्ध है उसने काली गर्म पतलून, सफेद और काली बारीक धारी का पूरी आस्तीन का ब्लाउज और पतलून के साथ की मेचिंग जेकेट... मौसम के साथ-साथ कलर और कलर कोर्डिनेशन बोर्ड रूम की मांग भी है...
ड्रेसिंग टेबल के सामने मोस्चराइजर की ट्यूब दबाते हुए वह आवाज़ लगाना शुरू करती है .. उसके हाथ रजाई के टेंट को आगे पीछे हिला रहे हैं और चार-पांच बार हिलने के बाद सुपरमेन का मासूम सा चेहरा बिना आँखे खोले तकिया छोड़ हवा में झूल रहा है उसकी छाती पर चिपका सुपरमेन टी शर्ट की सिलवटों से निकलने कि कोशिश कर रहा है अचानक उसकी आँखें खुली दो बल्ब टिमटिमाये .. जैसे वो कभी सोये नहीं थे .. "बुआ आई फाउंड माई मिंटू" ... "मिंटू कौन?"... " माय लोस्ट रेबिट..हाओ केन यू फोरगेट मिंटू बुआ?".... .. .. वो अपनी नन्ही- नन्ही हथेलियों को हवा में उछाल कर, बंद- खोल कर उसे समझा रहा है ..."आई वाज़ चेजिग हिम आल नाईट.".. "वन मोमेंट ही वाज़ इन माई हेंड... अदर मोमेंट ही वाज़ गान" ... वो बिना पलक झपके बोल रहा है मुख से ज्यादा उसकी मोटी- मोटी आँखें बोल रही हैं उनमें तैरता हुआ मिंटू एक्वेरियम में मछली की तरह साफ़ दिख रहा है .... वह अपनी कलाई उठती है और आँखें भागते समय को पकड़ती है... इससे पहले वो कुछ कहे वह मुह खोल..आँख बंद कर.. जम्भाई और अंगडाई लेता हुआ धीरे से बुदबुदाता है "आई हेड ए वेरी लांग डे!....." और जिस तेजी से उसका चेहरा तकिये से हवा में उछला था उसी तेजी से वह चेहरा तकिये पर आखें मूंदे पसर गया है और सुबह की रौशनी में कमल की तरह खिल उठा है ... उसके होठ उसके गालों को चूमते हैं...
वह दो फोन लगाती है एक अपनी पी ऐ को और एक बेबी सीटर को... कपड़े बदल वह धीरे से उसकी रजाई में सरकती है.. आँखे मूंद आहिस्ता से उसके सपने में झांकती है रजाई के भीतर कस के सुपरमेन का हाथ पकड़ लेती है... आज वह दोनों मिंटू को पकड़ कर ही रहेंगे...
foto from - www.karanfincannon.com
15 comments:
कलम की तूलिका से क्या खूब चित्र खींचा है आपने..बधाई.
बहुत खूब..वाह..बेहतरीन लेखन!
एक दम परफेक्ट स्क्रिप्ट ......कितने लॉन्ग फ्रीज़ शोट है.....कितने क्लोस अप.....पर खुशिया इन्ही कमरे के कोनो पे सोती है स्पाइडर मेन की बांह पकड़ ......
आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ...आपके लेखन ने बाँध लिया...कमाल का लिखा है आपने...शब्द चयन और भाव दोनों बेमिसाल...वाह...बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर...
नीरज
बहुत सुन्दर शब्द चित्र खींचा है.
आपके लिखने का यही तरीका बहुत प्रभावित करता है ..सुन्दर शब्द चित्रण शुक्रिया
खास बच्चों के साथ एक आम सुबह और निर्णायक प्रश्न जिसने जिंदगी बुनी जाती है आपने बारीकी से उकेरे हैं. सूक्ष्म विवरण इस पोस्ट की खूबी है. हर तीसरे वाक्य में एक ऐसा विवरण जो लगे कि पास ही अभी घटित हुआ है. बुआ ज़िन्दगी की यात्रा में आँखें खुली रखे हुए है जान कर प्रसन्नता होती है. सुंदर पोस्ट !
वाह, बेहतरीन लेखन,शुभकामनायें
आपके ब्लांग का शीर्षक वेहद मार्मिक हैं बिहार के ताजे हलात के लिए आप हमारे ब्लांग पर भ्रमण कर सकते हैं।अब मिलते रहेगे,
बेहद खूबसूरत… :)
बहुत सुंदर है, सुबह की तरह स्वच्छ-प्रांजल.
बाहर था तो इस बार देर से आया
ऐसे कुछ शब्द चित्र किसी पत्रिका में भेज दीजिये
समावर्तन का पता भेजता हूं।
niranjanshrotriya@rediffmail.com
niranjanshrotriya@gmail.com
आप शीघ्र भेजिये इस मेल पर।
behtreen rachna
apki post pad ke laga sab kuch nazro se dekh rahi hun...dil ke kareeb mahsoos hua....
Bahut khoobsurat
Man ki gehraayee se nikley
vichar ki unchaayee bahut sundar kahani
Anaam Montreal
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