Tuesday, 20 October 2009

नीले आसमान से स्लेटी बादल घुमड़- घुमड़ कर उसकी ओर आ रहे थे....



धूली धुप की तरह पीली, शीशे की तरह पारदर्शी, बरसात के टपकते पानी की तरह साफ़, अभी- अभी गिरी बरफ की तरह सफ़ेद, बिना बादलों के आकाश की तरह नीला, बिजली की रौशनी पहले और गड़गडाहट बाद, होटों से कही हाँ और ना, पन्नो पर पुते तथ्यों का आगाज़ ... वो जिंदगी को ऐसे ही देखता है ब्लेक एंड व्हाइट में.. पिछले तीन सालों से आजतक वृंदा को नहीं मालुम पुष्कर बीच के रगों को देखने में सच में ही असमर्थ है या वो उन्हें देख कर अनदेखा करना उसकी फितरत है ...
"तुम्हे कभी चिंता नहीं होती लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे.. कल रात तुमने फोन अपनी माँ को पकड़ा दिया " से हाय तो पुष्कर माँ ... तुम्हे मालुम है रात का एक बजा था उस समय!"
"तुम मुझे इतना देर से फोन क्यों करते हो? मेरी माँ बहुत साफ़ और खुले दिल की औरत है उसके पास तुम्हारी तरह फालतू बातें सोचने का वक्त नहीं .. क्यों अपना दीमाग खराब करते हो दुनिया के बारे में सोच कर?"
"तुम लड़की हो मुझे तुम्हारी बदनामी की चिंता होती है.."
"तुम्हे मेरी चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है आई कन् लुक आफ्टर माइसेल्फ़... तुम अपने माता - पिता के आदर्श बेटे, कालेज के आदर्श विधार्थी और मेरे आदर्श दोस्त बने रहो.. यही तुम्हे सूट करता है"

वो किसी तरह से भी डाक्टर बनना चाहता है , यह उसके अलावा उसके माता - पिता का भी सपना है.. . ग्रेजुएशन के बाद भी लगा रहा, जब देश में दाखला नहीं मिला तो विदेश चला गया... जाने से पहले पुष्कर ने वृंदा के जन्मदिन पर उसकी ख़ुशी के लिए बहूत कुछ करना चाहा..वृंदा को उसकी दी ख़ुशी स्वीकार करने में कोई आपति ना थी लेकिन पुष्कर ख़ुशी बटोर कर उसके कदमो में डालना चाहता था और दुनिया के डर से उस ख़ुशी में शामिल होने से उसे एतराज़ था... व्रंदा ने जब उसकी दी ख़ुशी को स्वीकार करने से मना कर दिया तो उनकी अहम् की लड़ाई में दोस्ती कुर्बान हुई ... उस शख्स का क्या करे जो जिंदगी की दस्तक को अनसुना कर दुनिया के दिल टटोलता फिरता है ... फिर भी इंसानियत और शिष्टाचार की इज्ज़त रखना दोनी ने अपना धर्म समझा, जन्मदिन और नए साल पर वो एक दुसरे को शुभ कामनाएं भेजते रहे..

आर्किटेक्ट का लंबा कोर्स समाप्त कर व्रंदा एक प्रतिष्टित फर्म में नौकरी करने लगी ...
वृंदा ने भरपूर जिंदगी जी, उसने कभी अपनेआप को अकेला महसूस नहीं किया.. किसी से मिलने और अपनी जिंदगी में शामिल करने का कभी कोई अवसर नहीं गवाया... वह हर उन अवसरों और पार्टी में मोजूद होती... जहाँ किसी से मिलने की गुंजाइश होती, हर उस उम्मीदवार से मिली जिसको उसकी माँ ने चुना, आफिस की केन्टीन में आसपास मंडराने वालों पर भी वह उदार रही और कोई भी डेटिंग के किसी अवसर को उसने नहीं खोया... वो अलग बात है ... कुछ उसके कंधे तक आते थे, कुछ उसके आत्मविश्वास से घबराए, कुछ उसके फेमिनिस्ट विचारों से दूर भाग गए, कुछ ने उसकी आँखों की गहराई से ज्यादा पे पेकेट में दिलचस्पी ली, कुछ उसे फर्नीचर की तरह अपने घर में सजा कर रखना चाहते थे, कुछ एक दुसरे को जानने से पहले अपनाने को आतुर थे, तो कुछ सिर्फ गुड टाइम के लिए साथी बने , कुछ उसके सुंदर चहरे और कमसिन देह को छोड़ बाकी सब कुछ बदलना चाहते थे... उन सब की वह परिचित बनी, अच्छी दोस्त बनी, और कभी दूसरो ने उसे अजनबी बना दिया या कभी अनजाने में उसने...

पुष्कर को वापस लौटे साल हो चला है ... दोनों अपनी जिंदगी में मशगूल हैं ... वृंदा ने सोशलाइज़िन्ग के अलावा कई और शौक पाल लिए हैं जैसे हर तीन महीने बाद छुट्टियों पर जाना , हफ्ते में एक बार सालसा क्लास के लिए जाना, जन्मदिन और शुभ अवसरों पर दोस्तों और घरवालों के लिए खुद हाथ से ग्रीटिंग कार्ड बना कर देना, इतवार को ब्लाइंड स्कूल में जाकर अंधे बच्चो के साथ खेलना, शनिवार को कोचिंग स्कूल में पढ़ाना, इसके अलावा जो समय बचा फेसबुक और किताबों में मुह दे लेना .... उसके चेहरे की ताजगी और मन की चंचंलता समय के साथ निखरती रही, खुश रहने का तो उसे वरदान मिला था... वो जहाँ जाती जाने के बाद भी उसकी हंसी हवा में गूंजती ... जिंदगी का कोई ऐसा पल नहीं छोड़ा जो उसने जीया ना हो... जिन्दा पलों की चाबी उसकी अँगुलियों में हर समय झूलती...

कभी कालेज के दोस्त पुष्कर को लेकर मज़ाक करते तो वृंदा मुस्कुरा कर कहती "मैं चाहती हूँ उसकी खूबसारी गर्ल फ्रेंड हो जो उसके दिमाग से दुनिया का डर निकाल सके, वो मिस्टर सेक्रिफाईस से मिस्टर सक्सेसफुल बने... पार्टी में सबसे शर्मीली लड़की का हाथ थाम उसे डांस फ्लोर पर ला सके, अपनेआप को आईने में देख कर मुस्कुरा सके, आँखों से काला चश्मा उतार आसमान को देख सके, वो मुझे कहीं मिले तो कहे आई डोंट लाईक यौर मिस्टर राइट " ... और वह खिलखिला कर हंस देती ..

माँ कभी उदास होती तो वह गले में बाहें डाल, आखों में आँखे गडा कहती " अरे माँ तुम चिंता ना करो तुम अपने नातियों को अगले साल गोद में खिलाओगी ... वैसे तुम मेरे साथ कब रहना शुरू करोगी मेरी पलटन को कौन देखेगा जब मैं आफिस जाउंगी ..." दोनों की हँसी दीवारों से टकराती ...
उसके मोबाइल फोन पर दोस्त का एस एम् एस है ... पुष्कर मिला था, बरिस्ता में, तुम्हे जानकार ख़ुशी होगी वह अभी भी सिंगल है और उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं है...
उसने खिड़की से बाहर फैले अँधेरे को देखा... आखों के रास्ते वो उसके भीतर और आस-पास उतरने लगा ... क्या अभी भी वो ब्लेक एंड व्हाइट जिंदगी जीता है? जीवन के रगों के प्रति कलर ब्लाइंड है ?... अपनी इच्छा को दराज में बंद कर दुनिया की ख्वाइशों में जीता है? ..इर्द -गिर्द बिखरे जिंदा पलों को अनदेखा कर पलकें मूंद लेता है ... धरकनो की आवाज़ में भी ट्रेफिक का शोर सुनता है, आज और अभी को ठुकरा कर कल और परसों में जीता है... इस अँधेरे से निकल भी ना पाई थी की सोचते-सोचते दुसरे अंधरे ने आँखों को घेर लिया और पता ही चला कब पहला अँधेरा उसे अकेला छोड़ खिसक गया ...
सुबह जब आँख खुली तो उसके मोबाइल फोन पर अनजान नंबर से दो मिस काल थे और एक अस ऍम अस ... मैं कल तुम्हारे शहर आ रहा हूँ तुम्हे डेट पर ले जाने... अपनी सभी डेट्स केंसल कर दो... पहुँच कर फोन करता हूँ ..पुष्कर
व्रंदा ने खिड़की से बाहर देखा नीले आसमान से स्लेटी बादल घुमड़- घुमड़ कर उसकी ओर आ रहे थे....
 
फोटो -flickr.com

24 comments:

कुश said...

पता नहीं क्यों दुनिया से डर कर हम अपनी इच्छाओ का गला घोंट देते है.. कहानी की बुनावट अच्छी है..

mehek said...

kabhi rishton ki gathe khul jaye ,kitna achha lagta hai,kush se sehmat.behad sunder likha hai aapne.mann mein kahi gehre utar gaya.

Puja Upadhyay said...

जब भी ऐसी किसी लड़की के बारे में पढ़ती हूँ लगता है अपनी कहानी पढ़ रही हूँ...ख़ुशी तो अपने अन्दर छुपी होती है...
दुनिया के हिसाब से जीने वाले क्या जाने इस रंग को, उनके लिए तो सब ब्लैक एंड व्हाइट ही होगा. कहानी बड़ी खूबसूरत लिखी है आपने, अंत तो खास तौर से बहुत पसंद आया.

निर्मला कपिला said...

कथानक कथ्य शैली शिल्प कहीं भी कसर नहीं छोडी । बहुत सुन्दर कहानी है शुभकामनायें

अनिल कान्त said...

सुन्दर कहानी बुनी है जिसमें रंग भी हैं और ब्लैक एंड व्हाइट कलेवर भी है

vandana gupta said...

bahut hi rochak , dil ko chooti kahani laikhi hai.......badhayi.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर कहानी है।बढिया लिखी है।

डॉ .अनुराग said...

जानती है .कुछ लोग जब लिखते नहीं कई दिनों तक .उन्हें बुलाने का मन करता है .आप उनमे से एक है ...फिर भी ऐसा लगा ..बहुत कुछ कहा नहीं .....जितना भी कहा ...कुछ भी अजनबी सा नहीं लगता ...

कंचन सिंह चौहान said...

वृंदा को तो मैं जानती हूँ, बहुत अच्छी तरह और पुष्कर को भी...मगर ये बात अजीब सी है कि दोनो मुझ में ही कैसे है...?????

excellent....! amazing...!! I'm speechless after reading it...!!!!

डिम्पल मल्होत्रा said...

सुबह जब आँख खुली तो उसके मोबाइल फोन पर अनजान नंबर से दो मिस काल थे और एक अस ऍम अस ... मैं कल तुम्हारे शहर आ रहा हूँ तुम्हे डेट पर ले जाने... अपनी सभी डेट्स केंसल कर दो... पहुँच कर फोन करता हूँ ..पुष्कर..nahi janti kyun bt these lines r ultimate.....

rashmi ravija said...

पुष्कर जैसे पात्र हमारे आस पास दर्ज़नों बिखरे पड़े हैं.....हाँ , वृंदा जैसे ज़िन्दगी से भरपूर बिदास पात्र....उँगलियों पर भी गिनने को नहीं मिलेंगे....अच्छी कहानी..ज़िन्दगी के करीब..

रंजू भाटिया said...

बेहतरीन लगी यह कहानी .आपकी कलम जब भी कुछ लिखती है वह दिल को छु लेती है ..बहुत कुछ अपने आस पास का लगता है ..

Ashok Kumar pandey said...

एक और उम्दा पोस्ट

sanjay vyas said...

कम में भी सब कुछ सामने चलता दिखाई देता है.समय,रंग,रिश्ते और बहुत कुछ.
एक चित्र लिपि की तरह है ये कथा.सुंदर,अर्थपूर्ण और संजोने लायक.

के सी said...

जटिल को सरलता से लिखना आपसे सीख रहा हूँ.
पोस्ट के बारे में क्या कहूँ वही हज़ार खुशबुओं वाली ज़िन्दगी वही हज़ार शिकायतें जो एक सवाल बन के उभरती है. बहुत ही सुंदर !

गौतम राजऋषि said...

कई दिन से आपको पढ़ने की सोच रहा था आपकी कुछ टिप्पणियां अपने प्रिय ब्लौगरों की पोस्टों पे पढ़कर। आज फुरसत मिली कुछ तो....अच्छा किया जो आ गया, वर्ना शब्दों के इन हसीन रंगों से वंचित रह जाता।

अच्छा शिल्प और मोहक भाषा-शैली...कहीं-कहीं टंकन की त्रुटियां उलझाती हैं, लेकिन दुबारा पढ़ने पे समझ में आ जाती हैं।

प्रदीप कांत said...

Achchee post

Arshia Ali said...

मन को छू गयी आपकी कथा। बहुत ही मार्मिक भाव हैं, इसके लिए अगर बधाई न दूं, तो ये बेइमानी होगी। और हाँ, कहानी का शीर्षक बहुत ही प्यारा है।

--------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।

हरकीरत ' हीर' said...

सुभानाल्लाह.....नीरा जी कमाल का लिखतीं हैं आप.....कुछ पंक्तियाँ underline कर रखीं हैं मसलन......

उसने खिड़की से बाहर फैले अँधेरे को देखा... आखों के रास्ते वो उसके भीतर और आस-पास उतरने लगा ... क्या अभी भी वो ब्लेक एंड व्हाइट जिंदगी जीता है? जीवन के रगों के प्रति कलर ब्लाइंड है ?... अपनी इच्छा को दराज में बंद कर दुनिया की ख्वाइशों में जीता है? ..इर्द -गिर्द बिखरे जिंदा पलों को अनदेखा कर पलकें मूंद लेता है ... धरकनो की आवाज़ में भी ट्रेफिक का शोर सुनता है, आज और अभी को ठुकरा कर कल और परसों में जीता है... इस अँधेरे से निकल भी ना पाई थी की सोचते-सोचते दुसरे अंधरे ने आँखों को घेर लिया और पता ही चला कब पहला अँधेरा उसे अकेला छोड़ खिसक गया ...

नीले आसमानपर स्लेटी बादलों का घुमड़ना मुबारक आपको ....!!

हरकीरत ' हीर' said...

सुभानाल्लाह.....नीरा जी कमाल का लिखतीं हैं आप.....कुछ पंक्तियाँ underline कर रखीं हैं मसलन......

उसने खिड़की से बाहर फैले अँधेरे को देखा... आखों के रास्ते वो उसके भीतर और आस-पास उतरने लगा ... क्या अभी भी वो ब्लेक एंड व्हाइट जिंदगी जीता है? जीवन के रगों के प्रति कलर ब्लाइंड है ?... अपनी इच्छा को दराज में बंद कर दुनिया की ख्वाइशों में जीता है? ..इर्द -गिर्द बिखरे जिंदा पलों को अनदेखा कर पलकें मूंद लेता है ... धरकनो की आवाज़ में भी ट्रेफिक का शोर सुनता है, आज और अभी को ठुकरा कर कल और परसों में जीता है... इस अँधेरे से निकल भी ना पाई थी की सोचते-सोचते दुसरे अंधरे ने आँखों को घेर लिया और पता ही चला कब पहला अँधेरा उसे अकेला छोड़ खिसक गया ...

नीले आसमानपर स्लेटी बादलों का घुमड़ना मुबारक आपको ....!!

हरकीरत ' हीर' said...

सुभानाल्लाह.....नीरा जी कमाल का लिखतीं हैं आप.....कुछ पंक्तियाँ underline कर रखीं हैं मसलन......

उसने खिड़की से बाहर फैले अँधेरे को देखा... आखों के रास्ते वो उसके भीतर और आस-पास उतरने लगा ... क्या अभी भी वो ब्लेक एंड व्हाइट जिंदगी जीता है? जीवन के रगों के प्रति कलर ब्लाइंड है ?... अपनी इच्छा को दराज में बंद कर दुनिया की ख्वाइशों में जीता है? ..इर्द -गिर्द बिखरे जिंदा पलों को अनदेखा कर पलकें मूंद लेता है ... धरकनो की आवाज़ में भी ट्रेफिक का शोर सुनता है, आज और अभी को ठुकरा कर कल और परसों में जीता है... इस अँधेरे से निकल भी ना पाई थी की सोचते-सोचते दुसरे अंधरे ने आँखों को घेर लिया और पता ही चला कब पहला अँधेरा उसे अकेला छोड़ खिसक गया ...

नीले आसमानपर स्लेटी बादलों का घुमड़ना मुबारक आपको ....!!

Dr.R.Ramkumar said...

वृंदा ने भरपूर जिंदगी जी, उसने कभी अपनेआप को अकेला महसूस नहीं किया.. किसी से मिलने और अपनी जिंदगी में शामिल करने का कभी कोई अवसर नहीं गवाया...
वृंदा ने सोशलाइज़िन्ग के अलावा कई और शौक पाल लिए हैं जैसे हर तीन महीने बाद छुट्टियों पर जाना , हफ्ते में एक बार सालसा क्लास के लिए जाना, जन्मदिन और शुभ अवसरों पर दोस्तों और घरवालों के लिए खुद हाथ से ग्रीटिंग कार्ड बना कर देना, इतवार को ब्लाइंड स्कूल में जाकर अंधे बच्चो के साथ खेलना, शनिवार को कोचिंग स्कूल में पढ़ाना, इसके अलावा जो समय बचा फेसबुक और किताबों में मुह दे लेना .... उसके चेहरे की ताजगी और मन की चंचंलता समय के साथ निखरती रही, खुश रहने का तो उसे वरदान मिला था.
Bahut dil se aur ummeedon se likhi hai kahani ...sundar abhivyakti badhai...

Medha said...

Kahani kuch apni si lagi. Khaskar Vrinda ka khud ko vyasta rakhaane ka tarika.Achchha laga padh kar.

Unknown said...

जिन्दा पलों की चाबी उसकी अँगुलियों में हर समय झूलती...
WAH
BAHUT ACHA NEERA
aaj ke dour ke ladke ladkiyon ki jindagi ko tumne bakhubi bayan kiya..bhasha nadi ke saman behti hai ..bina kisi rukkavat ke...wah