घर वालों के साथ, गत्ते के तीन फीट ऊँचे डिब्बे में बंद, पचास लाल गुलाब भी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहे थे.. घर में घुसते ही वह गाड़ी कि चाबी और पर्स टेबल पर फेंक डिब्बा खोलने बैठ गई ...उसने उन्हे डिब्बे से बाहर निकाला, पानी से भरी थेली में बंधे और गोल्डन टिशु से लिपटे गुलाब की लाली पचास गुनी खुशबू के साथ उसके चेहरे पर खिल गई...
"पहली बार जिंदगी में मुझे किसी ने फूल भेजे हैं" ..."जन्मदिन मुबारक हो काश मैं भी तुम्हारे पास होता"... उसने बड़े उत्साह से भेजने वाले का नोट पढ़ा .. ... "अरे! सिंक ऊपर तक भर गई है पत्तियों के ढेर से" ..." लो दस्ताने पहन लो नहीं तो कांटे चुभ जायेंगे ..".... "यह क्या आपने सारी पत्तियां तोड़ डाली .."हरा धनिया थोड़ी ना है ऊपर की तो थोड़ी रखनी थी " ... " यह इस गुलदस्ते में नहीं आ रहे बड़ा गुलदस्ता लाओ ना..." उसकी आवाज़ और पैर आसमान में थे .. हवा में चारों तरफ ख़ुशी तैर रही थी....वो फूल पचास राजदूत कि तरह एक राजकुमार का पैगाम एक राजकुमारी के लिए लेकर आये थे ....जिस हाँ का वो कई दिन से इंतजार कर रहे थे आज उसके बिना कहे उन्होंने उसकी आँखों में पढ़ ली...
गुलाब कि खुशबू ने कमरे के चारों कोनो, दीवार, छत, परदे, पेंटिंग, सोफा, टेबल, लेम्प, फ्रेम, केंडल स्टेंड, बुद्धा कि मूर्ति, क्रिस्टल बोअल, कुशन, कालीन हर खाली और भरी जगह पर अपने वहां होने का ऐलान कर दिया, उनके लाल रंग कि अलग पहचान थी जैसे तारों के बीच चाँद की होती है... कमरे में बैठते - उठते गुज़रते वो आखों को बुलावा देते और नाक को चढ़ावा...
अगले दिन जब पूछने पर उसने अपना फैसला सुनाया तो पचास गुलाब के कांटे एक साथ उनके दिल और शरीर में चुभे ... उसके फैसले के आगे सर झुका लेना मज़बूरी थी और ऐसे वक्त में उसे गले लगा लेना कर्तव्य... पर उसके प्रति उनका क्या कर्तव्य था जिसने यह गुलाब भेजे थे और जो कुछ दिन पहले उसकी एक पुकार सुन कई बागीचों के फूलों को अनदेखा कर, पहाड़ों की आवाज़ को अनसुना कर, सात समुन्दर पार, धरती के एक कोने से दुसरे कोने में दिल लेने और देने आया था ....
गुलाब को घर वालों के हवाले कर वह तो लौट गई अपने शहर.. कमरे मैं घुसते ही गुलाब को देखते ही आँखों में अजीब सा सूनापन घिर आता.. कांटो की चुभन साँसों में भर, दिल के भीतर एंठ्ती ...जो ना किसी के साथ बाँट कर कम होती और न ही भीतर दफ़न होती ... रोज उन्हे देखा ...किस तरह एक-एक कली फूल बनी और धीरे - धीरे पंखुड़ी गहरी होने लगी, अपने में सिकुड़ने लगी ...खिड़की से झांकती धुप उन्हे सुखा रही थी, पर्दा खींचने से सोते से जागती नाज़ुक हवा अनजाने में ही उन्हे फूल से अलग कर देती .. रोज़ सुबह पंखुड़ियां टीक फ्लोर पर ऐसे चमकती जैसे आने वालों के स्वागत में बिछी हों .. जब भी उन्हे उठा आँगन की मिटटी के हवाले किया ऐसा लगता जैसे दोनों के लिए देखे सपनों पर मिट्टी डाल रही हो ... सपने देखने वालों में बहुत लोग थे... विश्व के कोने - कोने में...पर उन्हे फ्लोर से उठा मिट्टी के हवाले करने को वो अकेली थी ...
फूलों पर गिनी- चुनी पंखुड़ी रह गई .. उन्हे मटमैले पानी से निकाला और आँखे फाड़, मुह पर हाथ रख एक कदम पीछे हट गई ... गुलाब कि हर टहनी से नन्ही - नन्ही हरे रंग कि चमकदार नरम पत्तियां फूट आई थी उन पत्तियों में एक भी काँटा नहीं था... प्रक्रति, स्रष्टि और भगवान् भी उन दोनों के लिए सपने देखने से नहीं चूके...
उसकी भरी आँखे देख रही है समय के उस पार, एक अंतराल, एक काल चक्र... आँगन कि कली जो हवा में बिखरी पचास गुलाब की सज्जनता, सहीष्णुता, अधीरता, और चाह अभी देख ना सकी.. एक दिन वो उम्र कि सीढ़ी पार कर जब सफेद बालो में रंग लगाएगी... पचास गुलाब की खुशबू उसे काँटों सहित याद आएगी ...
29 comments:
ओह! बहुत भावपूर्ण कहानी...
गुलाब है तो काँटे तो होंगे ही. सुन्दर और भावपूर्ण रचना.
बहुत भावपूर्ण कहानी..
बहुत सी संवेदनायें समेटे सुन्दर अभिव्यक्ति शुभकामनायें
आपकी लेखनी हैं ही काबिले तारीफ़ कि हर बार बेहतरीन बेहतरीन रचनायें निकलती हैं.
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
उफ़ इतना दर्द
बात हमेशा अधूरी क्यों रह जाती है?
वैसे पूरा होना होता भी क्या है? ढेर सारे आधे-अधूरों का बेतरतीब समुच्चय ही ना!
इस दर्द को वही लड़की समझ सकती है, जिसे इस तरह ५० फूलों के साथ इन काँटों का दर्द मिला हो....!
बहुत ही भावपूर्ण....!
phoolon ke sath khar bhi hote hain
aur kharon ke sath dard bhi hota hai
kahani behad bhavpoorna rahi........dil ko choo gayi
ह्म्म्म. दर्द का चित्रण सिर्फ दिख सकता है.
महसूस तो वे कर रहे हैं काँटों की चुभन के साथ.
Simplicity is the core strength of your style. Very touching... feelings generated by this story will stay with me for ever
कई बार टोका है यूँ बेवक्त
नंगे हाथो माजी न कुरेदा करो.......
कुछ लम्हे बड़ी तेज चुभते है
Ek dum dil ko lag gaee!absolutly emotional and touches the soul
As usual you are just amazing!!
वाकई! कुछ लम्हे बड़ी तेज चुभते है..
मेरे भीतर की जिस ख़ुशी में जितने गुलाब खिलते थे उतने ही कांटे भी ... कमाल है.
एक दिन वो उम्र कि सीढ़ी पार कर जब सफेद बालो में रंग लगाएगी... पचास गुलाब की खुशबू उसे काँटों सहित याद आएगी ... इससे पहले की भी बहुत सी पंक्तियाँ है जो मुझे जगाएगी कई रात.
"एक दिन वो उम्र कि सीढ़ी पार कर जब सफेद बालो में रंग लगाएगी... "
शिल्प तो हमेशा से अपने चरमोत्कर्ष पर है, लेकिन कथ्य? शायद मेरी अदनी-सी समझ दोष के काबिल है।
Zaroori nahi ke pachas gulabon ki khoshboo hamesha kaanto sahit yaad aaye. Faisla na to gulabon par hai aur na hi unse judi kisiki bhavnao par, balki apne dil ki sachchai ka hai. Dil sachcha ho to gulab hi gulab, khushboo hi khoshboo,aapki kalam ki tarah, ab wo rang baalon main lagane ki umar ho ya gaalon main.
kahaani
lafz
paatra
bhaav
prastuti...
sbhi kuchh bahut behtar !!
khani pahle padh chuki thi par jaise ki aaj kal kahi cmnt nahi kar rahi thi to yaha bhi nahi kiya...lakin karungee jaroor...aj aapki post ki nahi ik cmnt ki tareef karne aayee hun jo ki aapki har ik post se achha lga...इधर आओ... पहले तो तुम्हे गले लगाना है ...फिर तुम्हारा हाथ पकड़ कर... तुमसे दो प्रश्न पूछने है तुम क्या चाहती हो? इस सब से क्या तुम्हारी पीड़ा घटी है?...mujhe or kuch nahi kahna.....
इस गुलाब की तरह अप्रतिम सुन्दरता वाले गद्य (या पद्य?)में जो बहुत कुछ कहता है वो पानी पर हिलती परछाई की तरह है.कथ्य का छायाभास है, एक विराट कथा की ओर संकेत की तरह.पता नहीं में इस छायाभास को पकड़ पाया या नहीं पर यहाँ बार बार आकर कोशिश ज़रूर की है.
sach me dil dimaag ko hilati hai apki kahania.....first time aaya or pada..Blog ka title hi kafi kuch kahta hai...
Haa Ek baat...
kakte kabhi ladko ki kismat me aa jate ha....
Kya aapki koe book published hai...?
aap bahut achchha likhte ho.!
गुलाब कि खुशबू ने कमरे के चारों कोनो, दीवार, छत, परदे, पेंटिंग, सोफा, टेबल, लेम्प, फ्रेम, केंडल स्टेंड, बुद्धा कि मूर्ति, क्रिस्टल बोअल, कुशन, कालीन हर खाली और भरी जगह पर अपने वहां होने का ऐलान कर दिया, उनके लाल रंग कि अलग पहचान थी जैसे तारों के बीच चाँद की होती है... कमरे में बैठते - उठते गुज़रते वो आखों को बुलावा देते और नाक को चढ़ावा...
वाह .....आपकी लेखनी हमेशा छू जाती है ....!!
hello... hapi blogging... have a nice day! just visiting here....
आप सब को
नव-वर्ष
२०१० की
मंगल कामनाएं ...
सचमुच।
नव वर्ष की अशेष कामनाएँ।
आपके सभी बिगड़े काम बन जाएँ।
आपके घर में हो इतना रूपया-पैसा,
रखने की जगह कम पड़े और हमारे घर आएँ।
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2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।
सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
बहुत दिन हुए मैम...कुछ नये की प्रतिक्षा में हैं हम आपके पाठक गण नये साल।
नव वर्ष की समस्त शुभकामनायें!
बहुत सुंदर रचना है।
द्वीपांतर परिवार की ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
एक दिन वो उम्र कि सीढ़ी पार कर जब सफेद बालो में रंग लगाएगी... पचास गुलाब की खुशबू उसे काँटों सहित याद आएगी ...
..वह क्या बात है दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ दर्द को बखूबी अभिव्यक्त करतीं हैं.
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