Monday, 27 October 2008

हथेली पर टाटू...


वह वो सब करती थी जिसे करने की उम्मीद लोग उससे नही रखते थे। किन्तु लोग इस बात से खुश थे की वह वो सब नही कर रही जो उसे करना चाहिए। वो अक्सर दिखाई देती यूनिवर्सिटी केम्पस में होली पार्टी का बंदोबस्त करती, एशियन बोल के टिकेट बेचती, बी बी सी एशियन रेडियो पर ब्यूटी और बोलीवुड की डीबेट में बोलती, बुगी बुगी के कम्पीटिशन में भाग लेती, कम्युनिटी सेंटर में लड़कियों को कत्थक सिखाती, हिल्टन होटल की दिवाली पार्टी में स्टेज पर आजा नाच ले के गाने पर थिरकती, ट्रेफाल्गर स्क्वायर में कल्चरल सिटी आफ द ईअर के लिए अपने शहर का प्रतिनिध्तव करते हुए कैमरे के सामने पोज़ करती, कभी लोकल अखबार की पन्नो पर केट वाक् में, तो कभी किसी छोटे परदे के सेरियल में छोटा सा रोल करती। जब वह दो महीने के लिये मुंबई गई तो सभी खुश हुए, देखा कहा था ना, वो कुछ नही कर रही वह तो बिल्कुल नही जो उसे करना चाहिए था, अब वो मुंबई से वापस आने वाली नही. वो लोग ज्यादा खुश थे जो हर शादी और बर्थ दे पार्टी की डांस फ्लोर पर उसकी वाह-वाही सुनते बोर हो चले थे और अब उससे हाय हेलो करना भी पसंद नही करते थे।

आज घर में छोटी सी दिवाली पार्टी है वह दो लड़कों का हाथ पकड़े दस साल की बच्ची के तरह फुदकती, मटकती, चहकती घूम रही है कभी उनके साथ गोल-गोल घूम कर थिरकती है तो कभी उनके गाल थपथपाती है। वह झुक कर दोनों के कानों में मुस्कुरा कर कुछ कहती है दोनों अपनी हथेली उसके सामने बढ़ा देते हैं वो बड़े प्यार से उनका हाथ पकड़, जींस की जेब में से रबर स्टेम्प निकाल उनकी नन्ही हथेली पर दबा देती है.... जहाँ उभरती ही उसकी साधारण सी पहचान...

Dr Apurva Bhardwaj
F1 A&E St Mary Hospital
Nottingham

लड़के खुश होकर अपनी माँ के पास दौड़ जाते हैं टाटू दिखाने... वह अपने दादाजी की हथेली खींच रही है और अंत में जीत जाती है। उसके दादा अपनी हथेली को देख इस बात से मुस्कुरा रहे हैं जो उन्होंने उसके जन्म के दिन ऐलान किया था, आज बाईस वर्ष बाद वह उनकी हाथों की लकीरों पर लिख रही है....

1 comment:

डॉ .अनुराग said...

कैसे पिरो दिया आपने इतने सारे भावो को चंद शब्दों में ...बिना भाषा के मकड़जाल के .......