आइना पूछता आखों से
वो दिखाई नही देता,
आखें मुह छुपाती चाँद से
वो कहीं रास्ता न रोक ले
जंगल कहता नदी से
ना चलो सड़क पर
छाले पड़ जायेंगे पाँव में....
अंगुलियाँ खोजती गुमी हथेली
ज़मीन पर गिरी पत्ती में,
विंड स्क्रीन पर जमी बर्फ में,
खिड़की पर छाये अंधेरे में,
प्लेटफार्म पर घटे एतिहासिक पल में,
खुली आंखों की नींद में,
रेडियो पर बजते प्रेम गीत में,
धरकनो में बसे जिन्दा पल में,
गिरने से पहले रोज़ कहते
आंसू
उसके कंधे पर गिरते तो
बहा ले आते उसे तुम्हारे कदमों में ....
6 comments:
लाइनिंग बेहद उम्दा हैं.... लिखती रहिये....
आपकी किवता में िजंदगी के यथाथॆ को प्रभावशाली ढंग से अिभव्यक्त िकया गया है । अच्छा िलखा है आपने ।
मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
विंड स्क्रीन पर जमी बर्फ में,
खिड़की पर छाये अंधेरे में,
प्लेटफार्म पर घटे एतिहासिक पल में,
खुली आंखों की नींद में,
रेडियो पर बजते प्रेम गीत में,
धरकनो में बसे जिन्दा पल में,
गिरने से पहले रोज़ कहते
आंसू
उसके कंधे पर गिरते तो
बहा ले आते उसे तुम्हारे कदमों में ....
बहुत खूब.....क्या बात है !
उम्दा आधुनिक रचना!
dil chhu lene wale vichar.
क्या बात है ? आने वाला पल बीते हुए कल से कभी सुखद नही लगता, कही हुयी बात ना कहे शब्दों से बेहतर नज़र नही आती, अकेले में बहे आंसू अगर किसी के काँधे पर बहते तो फलदायी होते मुझे भी ऐसा ही लगता है। आँख से टपका हर मोती व्यर्थ नही होता "कौन कहता है नाला-ऐ-बुलबुल को बेअसर, परदे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए" आह से उपजा गान और कविता विलक्षणता लिए होती है तभी तो एक पुरानी पोस्ट पर नई सी टिप्पणी आपके ब्लॉग पर दस्तक दे रही है आपके वाक्य विन्यास और शब्द चयन पर बधाई लिए हुए!
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