उसने दो पत्थर घिसे
चिंगारी चमकी
तड़क उठी
दीवार पर लगी तसवीरें
देखो! कपड़े जल रहे हैं,
नही जल सकते प्रियेबादल उढ़ा दिया है तुम्हे,
देखो! बदन पर छाले पड़ गए हैं,
दमक रही हो तुम
अपनी आभा से,देखो! धुंआ निकल रहा है
दिल से,प्रिये! कल्पना है तुम्हारी
वहां तो मानसून, बारिश
और नदी बहती है,देखो! राख बन गई हूँ,
अरे! यह में नही चाहता था!
प्रिये अब तुमहवा के संग उड़ सकती हो
आकाश छू सकती हो,
मेरे पास रहेंगे
सदा के लिए
तुम्हारी आत्मा और अतीत
6 comments:
वाह। कम ही शब्द में पूरी जीवन यात्रा और निष्कर्ष भी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
अद्भुत शब्द संयोजन है आप की रचना में....बहुत खूब...
नीरज
aaj ,pahli baar aapke blog par pahuncha.
pad kar bada sakun mila .
specially ye wali lines :
देखो! राख बन गई हूँ,
अरे! यह में नही चाहता था! प्रिये अब तुम
हवा के संग उड़ सकती हो
आकाश छू सकती हो,
मेरे पास रहेंगे
सदा के लिए तुम्हारी आत्मा और अतीत
nazmon mein kahaniya hai ..
dil ki baaton ki jubaniya hai ...
ab regular visit karung a aur padunga .
agar fursat mile to mera bhi ek blog hai ,kabhi nazar daal dijiyenga .
mujhe poori umeed hai ki aapko meri nazmein pasand aayengi .
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
देखो! बदन पर छाले पड़ गए हैं,
अरे! वहम है तुम्हारा
दमक रही हो तुम
अपनी आभा से,
kya baat hai, bahut hi contrast ya irony khoon isey?
देखो! धुंआ निकल रहा है
दिल से,
प्रिये! कल्पना है तुम्हारी
bahut aacha laga kuch naye bhav padh kar.
बाप रे.....ये क्या लिख डाला आपने....ऐसा लगा कि ऐसे किसी इंसान के साथ मेरी भी ऐसी की तैसी हो गई...कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि पुरुष होना सबसे बड़ा पाप है....मगर अपनी भी ये अकड़ है कि इस पाप को अपनी इसी जिंदगी में सबसे बड़ा पुण्य बनाकर ही धरती से विदा लेंगे.....!!सच....!!
एक बार फ़िर पढा आपको....और एक बार फिर बहुत ही अच्छा लगा....सच....!!
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