Wednesday 26 November 2008

अब तो उसे माफ़ कर दो...


मन्दिर के बाहर, जन्म अष्टमी के दिन, दर्शनों के लिये लम्बी लाइन में उस पर निगाह अटक गई, सत्रह - अठारह वर्ष का, इकहरे बदन, छोटे कद का लड़का, दोने में फूल की माला लिये था। उसका गोरा - चिट्टा रंग, छोटी- छोटी मासूम सी आंखें और पतले होंठ बहुत अपने और जाने पहचाने लगे। दिमाग पर ज़ोर डाल ही रही थी कि इसको कहाँ देखा है? साथ आई पड़ोसन ने भांप लिया, मुस्कुरा कर बोली पहचाना इसको? तुम्हारी नन्द का बेटा है। सकते में आ गई और आंखों के सामने 17 साल पहले का द्रश्य उभर आया, जब उसने पहली बार उसे देखा था। वह सवा साल का था, कितना गिड़-गिडाई थी वह पति के सामने, तुम्हारी बहिन अब दुनिया में नही रही कम से कम अब तो उसको माफ़ कर दो। सहारनपुर जैसे शहर में घर से भाग कर शादी करने वाली बहिन को भाई कैसे माफ़ कर सकता है। वह अकेली गई, जैसे ही शव अस्पताल से आया और ज़मीन पर रखा, चेहरे से सफ़ेद कपड़ा हटाया गया। वह भाग कर अपनी माँ के पास आया और ऊपर लेट गया। उसके ब्लाउज़ में मुँह डाल अपनी सप्ताह भर की भूख मिटाने का सामान उसके होंठ टटोलने लगे। वह कितना जोर से चिल्लाया था जब उसकी दादी ने उसे वहाँ से गसीटा था। यह द्रशय पिछले 17 साल से बुरे सपने की तरह उसके साथ है।

पड़ोसन बोली इसके बाप ने दूसरी शादी नही की, इसकी बुआ और बाप ने मिल कर पाला है, वह मन्दिर में दर्शन को छोड़, भीड़ में अपने बहुत पुराने किरायेदार उसके पिता को ढूँढने लगी...

5 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bahut khub janab.narayan narayan

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

uf! narayan narayan

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

kyaa likhun...kya kahun....samajh hi nahin aataa....aise vaakye niruttar kar dete hain....!!

के सी said...

कुछ पुरानी पोस्ट पोस्ट पढ़ रहा था , अब तो उसे माफ़ कर दो पर आते ही लगा कि कहीं पढ़ा है इसे, बहुत देर अपने भीतर टटोलता रहा कि आख़िर क्यों इसमे अपनापन लगा थक कर अगली पोस्ट पर गया दहशत और मातम फ़िर आगे पढता गया और आगे... और आगे... क्योंकि याद आने लगा दो महीने पहले रात बारह बजे आखिरी एनाउंसमेंट करके घर पहुँचा था और इसी पोस्ट को पढ़ा था पहली बार आपके ब्लॉग पर। किसी और की पंक्तियाँ क्यों लिख भेजूं आपको, मेरी ही पढिये
"इश्क वफ़ा सदमात की बातें छोड़ो भी सवालात की बातें,
साथ घडी भर का है हमारा क्या बीते लम्हात की बातें।
दिन गुजरे हैं आवारा से तेरी गली से चाँद के दर तक,
सुबह शाम रहा बंजारापन क्या ऐसे हालात की बातें।"

Kanishk Raj said...

hi Neera ji,
main duniya ki nazron me ek aam aurat hoon lekin khud ko aaj bahut khas paya jab aapke blog per MUJHE MUKT KAR DO padha to!aisa laga jaise jeevan me aapki ye chand lines uter gayi.aaj jeevan ke 50 vasant beet jane per ek aise khalipan ka ehsas hua jo ab kabhi bhar nahin paega.aapke blog se behad abhibhoot hoon
Seema verma[on facebook]