वो हैदराबाद में पोस्टिंग पर था और उससे मिलने हर सप्ताह अंत में दिल्ली आता। एयर फोर्स में नौकरी की शुरुआत थी और उन दिनों डोमेस्टिक फ्लाईट भी इतनी सस्ती नही थी, उसकी सारी तनखा किराए में निकल जाती। वह दोनों सप्ताह अंत का बेसब्री से इन्जार करते। वह इंडियन एयर लाइंस में एयर होस्टेस थी। वैसे एक फाइटर पायलेट का एयर होस्टेस से टकराना आसान नही होता क्योंकि न तो फाइटर प्लेन में एयर होस्टेस होती है और न ही उनके डिपारचर और अराइवल लाउंज होते हैं। उन्हें एक मित्र ने मिलवाया था और पहले ही दिन से दोनों न्यूटन के सेब और पृथ्वी की तरह आकर्षित थे। एक दिन वह फ्लाईट लेट होने पर डेढ़ घंटा देर से केफे में मिलने पंहुचा, वह मधु मक्खी की तरह भुन भुना रही थी और बिना कुछ पूछे एक चांटा उसके मुह पर रसीद दिया जिसकी गुंज लाबी में देर तक रही और आस- पास बैठे लोगो की निगाहें उन पर उससे भी ज्यादा देर तक टिकी रही। वह खिलखिला कर हँसता रहा और वो उस पर बरसती रही। बाकी सब अपने कान और आँखे गरम करते रहे।
वह दस दिन की छुट्टी लेकर दिल्ली आया हुआ था। उन दोनों ने अपने माँ बाप को मिलवाने का फैसला किया। लड़के की माँ चुप थी पर उनके चेहरे पर लिखी नाखुशी बोल रही थी। लड़की की माँ ने काफ़ी कोशिश की दोनों परिवार किसी निर्णय पर पहुच जाएँ पर नाकाम रही। विदा लेते वक्त बस इतना कहा हमारे पास दो रिश्ते हैं एक आस्ट्रेलिया में इंजिनियर और दुसरा आपका बेटा, और आपका बेटा हमारी और हमारी बेटी की पहली पसंद है।
एक सप्ताह हो चला था वह दोनों मिले नही थे। ना उन दिनों मोबाइल फ़ोन हुआ करते थे और ना ही घर में लैण्ड लाइन थी। उसने माँ से कुछ नही कहा और ना कुछ पुछा। वह अपने आप से लड़ता रहा स्वयम को समझाता रहा। हर रोज़ खा-पी कर, हर बात का हूँ हाँ में जवाब देकर वह ओंधे मुह बिस्तर में बेजान सा पड़ा रहता। ऐसे ही एक सप्ताह गुजर गया। माँ से उसका यह हाल ना देखा गया वह इतवार को उसके सर पर हाथ फिराते हुए बोली जा उन लोगों से कह दे शादी की तारीख पक्की कर लें। माँ तुम खुश तो हो ना? माँ ने सर हिलाया और मुस्कुरा दी। वह उठ खड़ा हुआ और माँ को बाहों में जकड़ लिया। फुर्ती से तैयार हुआ और अपनी मोटर साइकल निकाली और मोती बाग़ से जनक पुरी उसी तेजी से दोडाई जैसे वह रन वे पर जेगुअर दौड़ाता हुआ हवा में उड़ता है।
घर का दरवाज़ा खुला था, घर के आस- पास और घर के भीतर चहल- पहल थी। घर के आँगन में लड़की की माँ दिखी उसे देखते ही बोली "अरे बेटा तुम ! थोड़ी देर कर दी तुमने आज सुबह ही उसकी विदाई हुई है। वह आस्ट्रलिया से आया हुआ था सब कुछ बहुत जल्दी में हुआ। उसने आगे बढ़ कर माँ के पाँव छुए और फ़िर गले से लगा लिया दोनों की आखें नम थी। वह उनके कंधे पर हाथ रख, मुस्कुरा कर बोला आप फ़िक्र ना करें, वो चली गई तो क्या मैं हूँ ना!
इस बात को अरसा हो चला है। वो जब भी दिल्ली आता है जनक पुरी जाता है, उसके बच्चों की तस्वीर देखने, अपने बच्चों के किस्से सुनाने, उनका अकेलापन बांटने और अपनी नयी पोस्टिंग की जगह बताने।
अक्सर सपने में उस तमाचे की गूंज उसे नींद से जगा देती है।
9 comments:
behad dil ko choo lene wala
रोचक।
प्यार का एक नाम जिम्मेदारी बांटना भी है ना!.......विमल मित्र का एक उपन्यास याद आ गया .
आख़िरी पंक्ति सब समझा देती है!
ट्रैजिक !
accha laga aapka chota sa kissa. accha likhti hain.
goood one dear
keep writing this way,
i know this person !
lekin likhne ka andaaz kaafe achha hai!
yahee antar hai bollywood mei aur sachaayee mei
behad khoobsoorat kahani. accha likhti hain aap, aaj pahli baar aapke blog paar aayi...jindagi ka hissa hain aapke ye shabd.
kuch kuch, satyam shivam sundaram jaisa.
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