यह काम आसान था
पर उन्हें मेहमानों का ख्याल था,
वो जूझ रहे थे जान से
केमरे और माइक को पड़ी थी
हर एँगल की कवरेज़ से,
चुटकी भर नफरत को दी
अरबों आंखों ने सेक,
क्यों ना हों उनके होंसले बुलंद
हर कमरे, हर लाबी, हर घड़ी मिली
उन्हें सफलता की गंध।
पी ऍम ने भी दी दुहाई,
जैसे आँगन में
घूमती बिल्ली भगाई,
हमने भी रिमोट कंट्रोल को साक्षी मान,
बहती गंगा में डूबकी ले
पुलिस और नेता के मुहँ पर चपत लगाई।
बार-बार कबूतर उड़े,
सौ साल में पहली बार,
उनके फाइव स्टार घर
धुएं से भरे,
भीतर छोड़े बच्चों की खातिर,
हर गोली के बाद
वो वापस मुड़े,
शहर में दहशत और मातम से
पुते चेहरे ना जीये- ना मरे...
4 comments:
किसी की त्रासदी उनके लिये व्योपार है........
"प्रत्यक्षा" को फौलो करते हो ना.....उसे बार-बार पढो....हरेक बार उसे पढने में हर बार अर्थों के नए आयाम ध्वनित होते हैं.....गोया कि एक ही सूर पर कई ध्वनियाँ...
.....मैंने भी आज ही पढ़ा उसे....और...और...और...पढता ही रह गया....ये गहराई है कि क्या....क्या पता...!!ये गहराईयाँ भला कहाँ से आती हैं....??
जूझ रहे थे जान से
केमरे और माइक को पड़ी थी
हर एँगल की कवरेज़ से,
चुटकी भर नफरत को दी
अरबों आंखों ने सेक,
क्यों ना हों उनके होंसले बुलंद
हर कमरे, हर लाबी, हर घड़ी मिली
उन्हें सफलता की गंध।
पी ऍम ने भी दी दुहाई,
stithi ka achchha warnan hai
Neera ji bhot saaf chitra khicha hai aapne. acchi rachna bdhai.
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