Wednesday 17 December 2008

डिजिटल एज में सिसकता सोहाल्वी सदी का प्यार...

वो मुक्त होना चाहता है, रिश्ते से, साझेदारी से, चाहत से, प्यार से, बन्धन से, उससे साथ किए वादों से, उस पर मर मिटने की कसमों से, साथ देखे सपनो से, साथ ढूंढे आकाश से, दोनों के बीच की चांदनी से, एक दुसरे की छाया से, महक से, साँसों से, धरकनो से, वर्त्तमान से, भविष्य से, साथ चली पगडण्डी से, उसके लिये लिखी कविता से, शब्दों से, उसके ख्याल से, उसके साथ जुड़े नाम से...

उसने कहा जो हमारे बीच खूबसूरत घटना था घट चुका, जितना इस रिश्ते में हम जिंदा रह सकते थे रह लिये, जो भी एक दुसरे से बाँट सकते थे बाँट लिया, जिस मुकाम पर पहुंचना था पहुँच चुके, अब आगे सब सड़ने लगा है पके सेव की तरह, रिश्ता जिन्दा पलों से रिक्त होने लगा है अब वो सब नही रहा जो पहले था हमारे बीच, अधपके पलों के लिए एक दुसरे की गुलामी करने और सलीब उठा कर चलने से क्या फ़ायदा, मुझे एक बेहतर अवसर मिल रहा है फ़िर से जिन्दा पल जीने का, में उसे खोना नही चाहता, मैं तुम्हारी आंखों में आखें डाल कर साफ़ और सच बताना चाहता हूँ, तुम समझ सकती ही ना ऐसा सच बोलना कितना मुश्किल होता है इसके लिये कितनी हिम्मत, ईमानदारी और इंसानियत की ज़रूरत होती है यह सब आसान नही है फ़िर भी मैं तुम्हारे लिए यह सब कर रहा हूँ ...अरे! तुम इतना चुप क्यों हो?

वो शरीर पर गिरी बिजली और आखों में उमड़ते सैलाब को होंठो की मुस्कराहट में छुपा कर सोचती है डिजिटल ऐज का प्यार कितना पारदर्शी और प्रगतिशील है कांट्रेक्ट ख़त्म होने वाले दिन भी , आंखों में आखें डाल, स्माल प्रिंट में लिखी शर्तें समझा रहा है ....

पेंटिंग - अमोर & साइकी

18 comments:

Pratyaksha said...

शायद हमेशा ऐसा होता आया है , लेन देन का हिसाब हमेशा गड़बड़ , जितना दिया , उतना मिला नहीं..

Unknown said...

bahut he accha likha hai....lakin bahut saare font phade nahi jaa rahe hain.....pata nahi ho sakta hai mere browser ka problem ho......

सुशील छौक्कर said...

क्या कहें आज के सच को बयान कर दिया जी आपने।

art said...

bahut hi bhavuk abhivyakti.....achha laga aapko padhna......
swati

डॉ .अनुराग said...

धपके पलों के लिए एक दुसरे की गुलामी करने और सलीब उठा कर चलने से क्या फ़ायदा, मुझे एक बेहतर अवसर मिल रहा है फ़िर से जिन्दा पल जीने का, में उसे खोना नही चाहता,


तमाम खामियों के बावजूद सिर्फ़ एक खूबी है इसमे ....कांट्रेक्ट ख़त्म होने पर कानो में झूठ बोलकर नही कहता "i लव यू "

अमिताभ श्रीवास्तव said...

achha hay..mukti ko apni laghu katha ke madhyam se ukera ek naya pryog he..16 vi sadi ka pyar ho yaa aaj ki sadi ka...pyaar sirf pyaar hota he..aour ek baat kahu to vo yah ki pyaar apne aap me mukt hota he...yadi prem he to svabhavik dhang se vo mukt he..
mukti yaa moksh..prem ke aadhar pr hi ho sakta he..
halaki main aapke lekhan se baahar ki baate karne laga fir bhi bahut achcha laga isliye kahne me aa gaya..
amitabh
mumbai

Meenu Khare said...

बहुत अच्छी लेखन शैली है आपकी!

विधुल्लता said...

is hisaabi-kitaabi duniyaa main ..khonaa to sachche vyakti ko hi padhtaa hai ..par likhaa gyaa takleephdey hai ,lekin phir bhi sundar-sateek badhai

Puja Upadhyay said...

aisi parishitiyan kai baar aati hain, aapne bilkul sahi chitra kheencha hai.
mujhe bhi ye sacchai behtar lagti hai. shayad har rishtey ki ek umr hoti hai.

Unknown said...

aapne ne to kavita ke madhyam se sabkuch badal diya......
wahhhh likhte raho....aapke lakhen se bahut kuch sikhne ko milta hai....


Jay ho magalmay ho....

मधुकर राजपूत said...

हर रिश्ते में बस लगाव ही तो आधार होता है, धागा टूटा और रिश्ता इतिहास बन जाता है। यादों में सड़ता रहता है और एक दर्द की खुनकी बार-बर उसका अहसास करा जाती है। लेकिन हर रिश्ता खत्म होता है, यथार्थ यही है। जिटल एज में तो प्यार का यांत्रिकीकरण हो गया और यांत्रिकी में स्थिर कुछ नहीं होता।

मोहन वशिष्‍ठ said...

आज का सच बयां किया है जी आपने

Neha Jain said...

Bahut hi accha likha hain aapne, aakhri line bahut hi sahin lagi -- "small print mein likhi shartein samjha raha hain" :)

anuradha srivastav said...

डिजिटल ऐज को दोष दें या खुद को ? व्यवाहारिकता का मुल्लमा चढा कर अपने संस्कारों से दूर होते युवा और सुविधाभोगी मानसिकता । सोचने को मजबूर करती है।आपकी लेखन शैली पसन्द आयी।

Doobe ji said...

bahut achi lagi apki ye rachna BADHAI

sandhyagupta said...

Aakarshak andaaj me likhti hain aap. Shubkamnayen

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

मेरा मानना है की बातें करते रहनी चहियें। बातें करते रहने से ऐसी नौबत नहीं आती। फिर भी, अगर किसी तरह आ जाती है तो ऐसे रिश्तों को ऐसे मोड़ पे छोड़ना चाहिए, की हम ज़िन्दगी में कभी भी पीछे मुड़कर इस रिश्ते के बारे मैं सोंचे तो खुशी हो न की तकलीफ...
अच्छा व्यक्त करती हैं आप, स्वयं को.... बधाई

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

यह कैसा प्यार् ? क्या प्यार मे इतना दर्द और अपेक्षा ? आपके विचारो ने भावुक सा बना दिया।
ATTACK******

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